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This Article is From Nov 29, 2016

नोटबंदी के निर्णायक मोड़ पर फिर 'फेयर एंड लवली'...?

Sudhir Jain
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 29, 2016 16:08 pm IST
    • Published On नवंबर 29, 2016 16:08 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 29, 2016 16:08 pm IST
नोटबंदी पर धीरे-धीरे कैसी बेचारगी की बाते होने लगी हैं. ज्यादा जुर्माना देकर अपना काला धन सफेद करने की बात... नोटबंदी क्या इसी काम के लिए की गई थी. बाकायदा ऐलान हुआ था कि काले धन का सहारा बनने वाले 500 और 1,000 रुपये के सारे नोट रद्दी का टुकड़ा बना दिए गए हैं. इससे यह होना था कि जितने नोट नहीं बदले जा पाएंगे, उतनी रकम सरकारी खज़ाने में अपने आप आ जाएगी, देखिए किस तरह...

चौदह लाख बीस हजार करोड़ की रकम इन बड़े नोटों की शक्ल में है. इन नोटों की रकम के बराबर सोना सरकारी तिजोरी में है. नोटबंदी की मियाद खत्म होने के बाद जितने नोट जमा नहीं होंगे, उतनी रकम के नए नोट रिजर्व बैंक बेधड़क छाप लेगा, क्योंकि उतना सोना पहले से सरकारी तिजोरी में जमा है. जिनका काला धन रद्दी का टुकड़ा बना दिया गया, वे चाहे फेंकें या जलाएं या बहाएं, यह उनका सिरदर्द था. काले धन वालों का यह दर्द सरकार अपने सिर क्यों ले रही है. ऐसा करना क्या अपने आप में एक घोटाला साबित नहीं हो जाएगा.

ये नोट गरीबों के काम आने का तर्क...
काले धन को सफेद करने की नई स्कीम की तारीफ करने वालों का तर्क अजीब है कि ये नोट बेकार में ही बेकार जा रहे हैं. उनका भावनात्मक प्रचार है कि अब ये गरीबी हटाओ योजना में काम आएंगे. सवाल है कि इन नोटों को पूरे के पूरे, यानी 100 फीसदी सरकारी खजाने में पहुंचाने का इंतजाम हो चुका था, क्योंकि बाहर ये नोट रद्दी हो चुके थे, और उनके बदले उतने ही नए नोट छापने का इंतजाम हो चुका था। फिर सरकार ने अपने खजाने के इन नोटों की आधी रकम काला धन रखने वालों को दे देने की योजना क्योंकर बनाई होगी...? भारीभरकम सवाल तो उठ ही गया है. इस मामले में अगर निष्कर्ष निकालना चाहें तो एक तरह से यह भी कहा जा सकता है कि सरकार के पास गरीबों के लिए जितनी रकम आने की पक्की संभावना बन गई थी, अब उसकी आधी रकम काले धन वालों के पास ही छोड़ देने की योजना का ऐलान हो गया है.

करेंसी के अपमान के भावनात्मक तर्क की आड़...
करेंसी की बेकदरी का भावनात्मक तर्क चलाने का मतलब क्या है...? वह ज़माना सैकड़ों साल पहले चला गया, जब सोने-चांदी के सिक्के इसलिए बनते थे कि अगर सरकारी खज़ाना फेल हो जाए तो सिक्कों को चांदी-सोना मानकर कहीं भी बेच लो. अब व्यवस्था यह है कि आपको नोट देते समय यह करार किया जाता है कि उतनी कीमत की दूसरी चीज़ आपको किसी भी समय दी जाएगी और फिर रिजर्व बैंक अमान्य किए जिन नोटों को वापस ले रहा है, उनका करेगा क्या...? काटकर-गलाकर उनकी लुगदी बनाकर दोबारा कागज़ बनाने के अलावा सरकार कर भी क्या सकती है. इस रिसाइकिल्ड कागज़ की आखिर कितनी कीमत होगी...?

सिक्कों के गलाए जाने के मामले...
कई बार होता आया है कि सोने और चांदी के सिक्कों की धातु जब बाजार में सिक्कों पर मुद्रित रकम से ज्यादा हो जाती थी तो लोग उन्हें गलाकर धातु बेचना शुरू कर देते थे. इसे करेंसी का अपमान या अपराध माना जाता था. आजादी के बाद तांबे और दूसरी मिश्रित धातुओं के सिक्कों के साथ यह होता आया है. तत्कालीन सरकारें तब दूसरे सिक्के जारी कर हालात से निपटती रही हैं, लेकिन इस समय मसला बड़ी रकम के नोटों की बंदी का था और ऐलानिया तौर पर काले धन के खिलाफ था. और ये नोट कागज़ के हैं और इतने हल्के होते हैं कि इनकी रद्दी भी बिकने की कोई संभावना नहीं बनती. हां, कुछ साल बाद अभिलेखागारों और संग्रहालयों के महत्व के ज़रूर होंगे ये नोट.

काले धन वालों को राहत देने का बहाना...
अब सवाल उठता है कि काले धन को जुर्माना देकर सफेद बनाने की योजना क्या उन्हें कानूनी घूस लेकर राहत देने की नहीं है...? अमान्य किए गए नोटों की बेकदरी का भावनात्मक तर्क क्या काले धन वालों को राहत देने का चालाक बहाना नहीं है...?

नोट जलाने-गलाने या फेंकने की खबरों को फैलाना...
कुछ ख़बरें दिखाई जा रही हैं कि एक-दो जगह बड़े नोट अधजले या कटे-फटे मिले. ऐसे दृश्यों की वीडियो रिकॉर्डिंग क्या प्रायोजित नहीं हो सकती...? क्या ऐसी प्रायोजित ख़बरें बनवाने के पीछे वे ताकतें नहीं हो सकतीं, जो जुर्माना देकर काले धन को सफेद बनाने की योजना में अपना भारी मुनाफा देखते हैं. वैसे भी दूसरे गरीबों के खातों के ज़रिये अपने पुराने नोटों के काले धन को नए नोटों वाले काले धन में तब्दील करने का काम अभी भी आसान नहीं बना हुआ है...? इतना ही नहीं, चालू वित्तवर्ष में ही अपना मुनाफा ज़्यादा दिखाकर पिछले साल के काले धन को सफेद बनाने का विकल्प क्या अभी भी खुला हुआ नहीं है...? कहने का मतलब यह कि काले धन वाले लोग नोटों को रद्दी कागज़ समझकर उन्हें जला-गला रहे होंगे, इससे ज्यादा झूठी बात क्या होगी.

सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं...

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