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This Article is From Dec 19, 2017

2019 के लिहाज़ से गुजरात के जनादेश का संदेश

Sudhir Jain
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 19, 2017 12:27 pm IST
    • Published On दिसंबर 19, 2017 12:27 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 19, 2017 12:27 pm IST
जनता के फैसले को भी किसी अदालती फैसले की तरह ही लिया जाता है. कई बार अदालती फैसले की व्याख्या करने में भी दिक्कत आती हैं. फैसला आमतौर पर एक-दो वाक्यों में होता है, लेकिन फैसले के साथ कुछ व्यवस्थाएं भी जोड़ी जाती हैं. अंग्रेजी में इन्हें 'फाइंडिंग्स' कहते हैं. फैसले को पूरी तौर पर समझने के लिए इन 'फाइंडिग्स' या उपनिर्णयों को भी उतने ही गौर से पढ़ना होता है. एक वाक्य के इस मुख्य फैसले को कोई नहीं नकार सकता कि गुजरात का जनादेश BJP के पक्ष में आया है, लेकिन उसके साथ जुड़े दूसरे कई और जनादेशों को देखना हो, तो जनता की दी कई और व्यवस्थाओं को पढ़ा जाना भी ज़रूरी है. यह कवायद इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि गुजरात का विधानसभा चुनाव वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव को नज़र में रखकर लड़ा जा रहा था.

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जीत के अलावा और क्या मकसद थे गुजरात चुनाव में...?
अगर जीत का मकसद सिर्फ गुजरात तक सीमित होता, तो इस चुनाव को लेकर पूरे देश में तूफान सा न उठा होता. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के लगभग सारे मंत्री वहां रात-दिन डेरा न डाले होते. ज़ाहिर है, गुजरात के नतीजों से जांचा जाना था कि केंद्र में काबिज BJP सरकार की लोकप्रियता कितनी कम या ज़्यादा हुई है. खासतौर पर नरेंद्र मोदी सरकार के अब तक के कामकाज पर अंतरिम रायशुमारी भी होनी थी. मसलन नोटबंदी, GST और देश में समग्र विकास के कामकाज पर एक प्रदेश में रायशुमारी का मौका था. इसे हम चुनाव प्रचार के मुद्दों और प्रचार में लगे केंदीय नेताओं के कद और आकार को देखकर भी समझ सकते हैं. इस बात से भी समझ सकते हैं कि 2019 के मद्देनज़र ही सत्तारूढ़ BJP की प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी वहां उतरा था. इस हद तक कि कांग्रेस ने गुजरात पर ही ध्यान लगाने के लिए हिमाचल की अनदेखी कर दी.

यानी कोई भी समझ सकता है या उसे मानना पड़ेगा कि देश की आबादी के सिर्फ साढ़े चार फीसदी आबादी वाले प्रदेश में इतनी जबर्दस्त, इस किस्म की रस्साकशी सिर्फ विधानसभा चुनाव तक सीमित नहीं हो सकती. इसीलिए कहा जाने लगा था कि गुजरात के चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव का माहौल बनाएंगे. बेशक गुजरात के नतीजों से यह पता चलना था कि केंद्र में काबिज सरकार की छवि का सूचकांक क्या है. इसका आकलन इस आधार पर होना था कि 2014 की तुलना में गुजरात में BJP और कांग्रेस क्या खोती हैं, और क्या पाती हैं. विश्लेषण से पहले यह सामने रख लेना होगा कि गुजरात का चुनाव क्या वहां सरकार बनाने के लिए न्यूनतम सीटें पा लेने के लिए था...? क्या वहां का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को सिद्ध करने के लिए था...?

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2014 की तुलना में किसने क्या पाया, क्या खोया...?
विश्लेषण से हिसाब लगता है कि गुजरात के चुनाव में BJP ने जितनी सीटें और वोट खोए, वे 12 लोकसभा सीटें खोने के बराबर हैं. पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में BJP को एक लोकसभा सीट के बराबर नुकसान हिमाचल में हुआ. यानी दो राज्यों के इन विधानसभा चुनावों में जनता ने कुल 13 लोकसभा सीटों जितना समर्थन BJP से वापस लेकर कांग्रेस को दे दिया. जैसा माना जा रहा था कि गुजरात का यह चुनाव 2019 के लिए जनता के मूड को बताएगा, उस हिसाब से जनादेश के मायनों को समझना कठिन नहीं है. और अगर जनादेश को राजनीतिक दलों की खुशी या ग़म से भांपना हो, तो यह हैरत की बात है कि वोटों की गिनती के दिन, यानी सोमवार को कांग्रेस मुख्यालय में पहली बार देखा गया कि गुजरात में हारने के बाद भी देर शाम तक जश्न का माहौल था. यानी कांग्रेस को भी लग गया है कि माहौल में बदलाव की शुरुआत हो गई है...?

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कुछ और भी बताता है यह जनादेश...
कुछ चुनाव विश्लेषकों ने बारीकी से विश्लेषण किया है. उनके मुताबिक गुजरात में गांव के रुझानों से पता चल रहा है कि ग्रामीण वोटर का रुख बदल चला है. गुजरात में सत्तारूढ़ BJP की बहुमत लायक जीत शहरी वोटरों के सहारे आई है. यही रुख उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनावों में दिखा था. इसी बीच, पंजाब में भी यही माहौल है. इसके अलावा वोटर के सामाजिक समूहों के रुझान को देखें तो अलग-अलग सामाजिक समूहों के तीन लड़कों ने अपने राजनीतिक असर का अंदाज़ा लगा लिया है. किसी भी कोण से जांच लें, यह बात तो पता चलती ही है कि कांग्रेस के प्रदर्शन में इन तीनों लड़कों की भूमिका BJP के खिलाफ माहौल बनाने में तो रही ही है. सन् 2019 के लोकसभा चुनाव के लिहाज़ से देखें, तो कांग्रेस को भी लग गया है कि वह '70 के दशक तक रहे अपने परंपरागत जनाधार को फिर एकजुट करने में कामयाबी हासिल कर रही है.

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गुजरात के चुनाव का आगा-पीछा...
पीछा देखें तो BJP गुजरात में काफी कुछ उतार पर है. अपने चरमोत्कर्ष के दिनों में भी यह उतार उसके लिए चिंता की बात होना चाहिए. और अगर 2019 के लिहाज़ से सोचें, तो गुजरात और हिमाचल में BJP की जीत उस पर एक जिम्मेदारी का बोझ भी बढ़ाती है. वह इस तरह से कि 2019 के चुनाव में अभी डेढ़ साल बाकी है. इस बीच BJP को पूरे देश में सत्तारूढ़ होने के नाते जिस स्वाभाविक सत्ता-विरोधी असंतोष से निपटना था, उसमें हिमाचल अलग से जुड़ गया है. गुजरात में विकास को बढ़ता दिखाने की चिंता उसे लगातार बनी रहेगी. यानी गुजरात और हिमाचल को वहीं तक सीमित रखते हुए यह जनादेश भले ही BJP के लिए उपलब्धि दिखता हो, लेकिन 2019 के लिहाज़ से उसकी चिंताएं बढ़ गई हैं.

VIDEO विश्लेषण : गुजरात की जनता ने क्या दिया BJP को, क्या दिया खुद को...


सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं...

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