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This Article is From Jun 16, 2015

शरद शर्मा की खरी खरी : इस मुद्दे पर 'राजनीति' हो रही है!

Sharad Sharma
  • Blogs,
  • Updated:
    जून 16, 2015 19:04 pm IST
    • Published On जून 16, 2015 14:11 pm IST
    • Last Updated On जून 16, 2015 19:04 pm IST
आजकल आप लोग टीवी में खूब देखते और सुनते होंगे कि हर दूसरा एंकर और रिपोर्टर बस यही बोलता दिखता है कि 'इस मुद्दे पर राजनीति हो रही है।'

इससे पहले मैं आगे बढूं ये बताना ज़रूरी है कि इस लेख में घटनाओं या इवेंट का ज़िक्र केवल अपनी बात बताने के लिए किया जा रहा है न कि किसी को दोषी या ज़िम्मेदार ठहराने के लिए।

दिल्ली और आजकल तो इसकी राजनीति को भी कवर करता हूं ऐसे में जब मौजूदा विवाद या यूं कहें लड़ाई केंद्र और राज्य सरकार में अधिकार को लेकर चल रही है तो ऐसे में एक दिन मैं संसद भवन पर एक वरिष्ठ टीवी रिपोर्टर से मिला।

जब कोई सीनियर मिलता है तो मेरी आदत होती है कि उससे किसी मौजूदा चर्चित मुद्दे पर उसकी राय जानकर चर्चा करूं। इससे फायदा ये होता है कि आपकी सोच का दायरा बढ़ता है और आप उस मुद्दे की गहराई में जाने की दिशा में आगे बढ़ते हैं और वैसे भी कहते हैं न लिया हुआ ज्ञान और दिया हुआ दान व्यर्थ नहीं जाता।

ज़ाहिर है कि मैं जैसे ही उनसे मिला तो चर्चा दिल्ली की राजनीति और मोदी-केजरीवाल सरकार के टकराव की शुरू हुई। इस बीच मैंने बड़ी उत्सुकता से उन सीनियर रिपोर्टर से पूछा कि आपकी क्या राय है, मौजूदा विवाद पर? वह बोले मुझे बाकी सब तो नहीं पता, लेकिन केजरीवाल राजनीति कर रहे हैं।

मैंने बोला कि अरे वह तो सबको पता है, नेता है तो राजनीति करेगा ही, लेकिन आप ये तो बताओ कि जो मांग केजरीवाल कर रहे हैं या जो दलील मोदी सरकार के हवाले से दी जा रही है इसमें किसका तर्क और ज़मीन मज़बूत है? ये मैं आपसे समझना चाहता हूं।

वह बोले कि ये मुझे पता नहीं, लेकिन केजरीवाल राजनीति कर रहे हैं। ये सुनकर जो मेरे मन में आया वह मैं आगे बताऊंगा, लेकिन मैंने उनसे और बात करके न तो उनका समय जाया किया और न अपना और हम दोनों अपने अपने काम पर चल पड़े।

एक दूसरा मुद्दा जो अभी दिल्ली में छाया हुआ था नगर निगम की हड़ताल का, जिसके कारण दिल्ली कूड़े के ढेर में बदल गई थी। मैंने इस मुद्दे पर जितनी स्टोरी,आधे घंटे या एक घंटे के लंबे कार्यक्रम देखे सभी में बस यही दिखा कि 'दिल्ली का हुआ कूड़ा' दिल्ली में इस गंदगी का ज़िम्मेदार कौन?' 'क्या बीजेपी-आप कर रही हैं कूड़े की राजनीति?' या फिर 'कांग्रेस ने लगाए बीजेपी-आप पर राजनीति के आरोप'

पूरे 10-12 दिन दिल्ली में नगर निगम में हड़ताल हुई और दिल्ली में खूब गंदगी फैली, लेकिन इसकी ज़िम्मेदारी ही किसी पर तय नहीं हो पाई। अरे भाई सीधा बताओ न कि इसका ज़िम्मेदार कौन है, वह बीजेपी जो नगर निगम पर राज करती है जिस पर निगम को चलाने का ज़िम्मा है या फिर वह 'आप' जो दिल्ली पर राज करती है, जिस पर दिल्ली सरकार को चलाने का जिम्मा है।

चलिए थोड़ा बहुत इधर-उधर और टेक्निकल इश्यू भी मान लें, जिसके कारण किसी एक पर ज़िम्मेदारी नहीं डाली जा सकती, लेकिन फिर भी कोई एक तो होगा, जो इस गंदगी के लिए ज़्यादा ज़िम्मेदार होगा?

पर कहीं कोई ज़िम्मेदारी का अता-पता ही नहीं। डिबेट के प्रोग्राम ने भी एक घंटे में वही निष्कर्ष दिए, जो रिपोर्टर की 2 मिनट की स्टोरी दे रही थी और डिबेट में भी चाहे किसी पार्टी के नेता हों या पत्रकार जो एक्सपर्ट के रूप में बुलाये जाते हैं सब के सब बस यही कह रहे थे कि राजनीति हो रही है।

वो जो ऊपर सीनियर रिपोर्टर मुझे कह रहे थे कि केजरीवाल राजनीति कर रहे हैं। जब उनकी बात मैंने सुनी तो मेरे मन में 2 साल पहले कही गई मेरे वरिष्ठ सहयोगी और हिन्दी पत्रकारिता के स्तंभ रवीश कुमार की एक बात याद आई।

असल में उन दिनों चल रहे एक विरोध प्रदर्शन के सिलसिले में मुझे बता रहे थे। मामला एक 5 साल की छोटी बच्ची के रेप का था और पुलिस पर मामला दर्ज न करने का आरोप था, जिसको लेकर 'आप' और बीजेपी प्रदर्शन कर रहे थे और रिपोर्ट ये किया जा रहा था कि 'आप' और बीजेपी इस मुद्दे पर राजनीति कर रही हैं।

तो ये सब देखते हुए और ध्यान में रखते हम बात कर रहे थे तो रवीश कुमार ने मुझे कहा कि शरद ये बहुत ही 'सतही' पत्रकारिता है। अरे भाई इन लोगों का काम है, धरना देना, प्रदर्शन करना तो वो तो अपना काम करेंगे ही तो इसमें कहने वाली बात क्या है? गहराई में जाकर रिपोर्टिंग करो'

इस बातचीत के आधार पर मेरी समझ बनी कि किसी मुद्दे पर अगर पोलिटिकल पार्टी कुछ कर रही है तो यह कह देना कि राजनीति हो रही है, ये सबका कोई मतलब नहीं है। अरे भाई पोलिटिकल पार्टी तो बनी ही है राजनीति के लिए। नेता राजनीति नहीं करेगा तो क्या प्रवचन देगा? या पाइथागोरस की थ्योरम पर अपने सुविचार व्यक्त करेगा?

समझने की बात ये है कि कोई भी मुद्दा एक अलग चीज़ है और पोलिटिकल पार्टी उस पर जो कर रही है या कह रही है, यह अलग चीज़ है। और दोनों को अलग तरह से तवज्जो दी जानी चाहिए, लेकिन आज हो क्या रहा है? आज हो ये रहा है कि मुद्दे तो केवल नाम के होते हैं और असली ध्यान उस पर न होकर तवज्जो तो केवल राजनीति पर होता है। राजनीति पर फोकस हमारा ज़्यादा होता है, लेकिन कहते हैं कि ये पार्टियां राजनीति कर रही हैं।

हर नेता या पोलिटिकल पार्टी को हक़ है कि वो अपने हिसाब से समाज और कानून से स्वीकृत दायरे में रहकर अपने मुद्दे उठाये अपनी राजनीति करे क्योंकि आम जनता को भी हक़ है वो किसी भी पार्टी को चुने या खारिज कर दे और यही तो लोकतंत्र होता है।

और हमारा काम ये होना चाहिए कि हम जनता को बताएं कि मुद्दा ये है, इसमें ये तथ्य हैं या आंकड़े हैं और फिर बताएं कि ये इस मुद्दे पर हो रही राजनीति है।

केवल यह कह देना कि इस मुद्दे पर राजनीति हो रही है, ये मेरे हिसाब से दुनिया का सबसे आसान काम है।

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