महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार के शातिर आर्किटेक्ट शरद पवार ने विपक्ष के लिए एक नया एजेंडा तय कर दिया है - BJP के दोहरे मानदंडों की पोल खोलो, प्रधानमंत्री को नैतिक ऊंचाइयों पर रहने का मौका मत दो, और चौबीसों घंटे आक्रामक रहो.
सो अब, BJP और उनके मुख्य संचालकों - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह - को चिंतित होना चाहिए.
शरद पवार हमारे देश के सबसे शातिर और चतुर राजनेताओं में से एक हैं, और हर शब्द बेहद सावधानी से बोलते हैं. मोदी की ओर से 'मिलकर काम करने' के लिए कथित रूप से पिछले माह की गई पेशकश को लेकर सार्वजनिक रूप से TV इंटरव्यू में उनका बोलना सोची-समझी रणनीति थी. ABP-माझा को दिए गए इंटरव्यू में शरद पवार ने कहा था कि मोदी ने उनकी पुत्री सुप्रिया सुले को केंद्र सरकार में जगह देने की भी पेशकश की थी, बशर्ते वह महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए BJP के साथ आ जाएं.
शरद पवार को यह 'अभद्र पेशकश' उनकी और उनकी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) की सार्वजनिक रूप से संसद में तारीफों के पुल बांधने के बाद की गई थी. पवार के मुताबिक, उन्होंने कहा, "शुक्रिया, लेकिन नहीं चाहिए..." यह कथित पेशकश 20 नवंबर को मोदी और पवार के बीच हुई मुलाकात में की गई थी, जब BJP और उनके प्रतिद्वंद्वियों के बीच महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर रस्साकशी जारी थी, और गठन सिर्फ इसलिए अटका हुआ था, क्योंकि BJP-विरोधी पार्टियों के बीच अविश्वास था और उनकी विचारधाराएं भी एक दूसरे से कतई विपरीत थीं.
महाराष्ट्र में सत्ता पाने की BJP की लिप्सा को उजागर करने के लिए मोदी की पेशकश पर पवार उस वक्त सार्वजनिक हुए, जब देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनने देने के लिए तड़के ही राष्ट्रपति शासन हटा देने को लेकर प्रधानमंत्री के आलोचक उन पर अपनी छवि और साख से समझौता करने के आरोप लगा रहे थे. राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान मोदी NCP को लगातार 'नेचुरली करप्ट पार्टी' कहते रहे थे. शरद पवार के भतीजे अजित पवार के साथ उनकी पार्टी का 72-घंटे का गठबंधन उस समय टूट गया, जब शरद पवार अपने भतीजे को अपने पाले में वापस ले गए, और उसके बाद शिवसेना, NCP और कांग्रेस के गठबंधन ने उद्धव ठाकरे को सबसे आगे रखकर महाराष्ट्र की सत्ता संभाल ली.
अब तक मोदी खुद को भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलनकारी के रूप में सफलतापूर्वक पेश करते रहे हैं, जो कहता है - 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा...'
महाराष्ट्र के 'मिसएडवेंचर' के बाद BJP के लिए चल रहे आलोचना के दौर को पवार के दावे से हवा मिली, जिसने मोदी के सार्वजनिक दावों में छेद कर दिया, और सत्ता के लिए BJP की लिप्सा को पूरी तरह उजागर कर दिया. शरद पवार ने सुनिश्चित कर दिया कि मोदी और BJP अब नैतिकता की ऊंचाइयों पर रहने का दावा न कर पाएं.
लेकिन मोदी की पेशकश को सबके सामने लाकर पवार ने उनके साथ जुड़ने की संभावनाओं को भी पूरी तरह खत्म कर डाला. यह कुछ अलग था, क्योंकि पवार इसी बात के लिए जाने जाते है कि उनके दोस्त हर खेमे में हैं. मोदी अपनी मज़बूत याददाश्त और शिकायतों को नहीं भूलने के लिए जाने जाते हैं. पवार द्वारा सामने लाए गए इस किस्से में मोदी दोहरे मानदंड रखने वाले ऐसे शख्स के रूप में सामने आए, जिसका कोई उसूल नहीं है, और जिसे पवार कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे.
तो फिर पवार ने यह खतरा क्यों उठाया, जबकि जांच एजेंसियों के इस्तेमाल समेत कई सख्त तरीकों से अपने प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाने का मौका उन्हें केंद्र सरकार से करीबी होने के कारण मिल सकता था...? वह महाराष्ट्र में अपने गठबंधन सहयोगियों - उद्धव ठाकरे और कांग्रेस - को यह संकेत देना चाहते थे कि वह निश्चित रूप से मिलकर चलने वाले साथी हैं, और बदलते मौसम के साथ निष्ठा बदलने वाले शख्स के तौर पर उनकी छवि सच नहीं है.
अस्थिर सहयोगी की छवि वाले पवार ने उद्धव ठाकरे को आश्वस्त करने की कोशिश की है कि वह महाराष्ट्र में हुई साझीदारी को लम्बे समय तक निभाने के लिए कटिबद्ध हैं, और कोई अन्य विकल्प नहीं तलाश रहे हैं. कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के सलाहकारों ने भी उन्हें काफी समय तक यही समझाने की कोशिश की थी कि पवार पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए. पवार ने सार्वजनिक होकर उन्हें चुप्पी साधने पर मजबूर कर दिया. कांग्रेस के सूत्रों के अनुसार, व्यावहारिक राजनीति करने वाली सोनिया गांधी महाराष्ट्र में सरकार गठन के खेल में पूरी तरह पवार के मुताबिक चलीं, और अब लगता है, उनकी सरकार के गठन के बाद पवार की हर बात सच साबित हो गई.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने मुझे बताया, "कांग्रेस तथा विपक्ष की हालत यह हो गई है कि सोनिया गांधी सार्वजनिक रूप से पवार तथा ममता बनर्जी (पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री) जैसे कांग्रेस से टूटकर गए नेताओं से कांग्रेस पार्टी की छत्रछाया में लौट आने के लिए कहती हैं... वैसे, जड़ों से जुड़े हुए क्षेत्रीय नेताओं को वापस लाना ही एकमात्र तरीका है, जिससे विपक्ष मोदी की BJP को चुनौती दे सकेगा... लेकिन कांग्रेस का दुर्भाग्य है कि राहुल गांधी ऐसे किसी कदम के सख्त खिलाफ हैं..."
मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभालने के बाद उद्धव ठाकरे ने समय गंवाए बिना पूर्ववर्ती देवेंद्र फडणवीस के बड़े फैसलों को पलट दिया, जिनमें विवादास्पद कार शेड प्रोजेक्ट (मुंबई मेट्रो प्रोजेक्ट का हिस्सा) भी शामिल है, जिसके लिए हज़ारों की तादाद में पेड़ों को काटा गया, और यह भी साफ कर दिया कि वह मुंबई से अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने के मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट को भी रद्द कर सकते हैं.
वैसे, पवार ने सिर्फ मोदी को ही निशाना नहीं बनाया है. उन्होंने यह भी कहा कि वह जज बी.एच. लोया की अचानक हुई मौत की नए सिरे से जांच चाहते हैं, जो सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें अमित शाह भी आरोपी थे (उन्हें उस जज ने डिस्चार्ज कर दिया था, जो जज लोया के स्थान पर नियुक्त हुए थे). नए सिरे से जांच की पवार की मांग साफ-साफ शाह के खिलाफ कदम है. NCP के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि शाह और BJP को चेतावनी है कि महाराष्ट्र सरकार को अस्थिर नहीं किया जाना चाहिए.
महाराष्ट्र में हासिल कामयाबी से पवार अब विपक्षी एकता के संभावित आधार के रूप में उभर रहे हैं. 12 दिसंबर को शरद पवार 80 वर्ष के हो जाएंगे, और उसका जश्न विपक्षी शक्ति के नाम होगा. शरद पवार के लिए काम तय हो चुका है.
स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...
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