विज्ञापन

समुद्र की पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं समुद्री घास के मैदान

प्राची हाटकर
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 19, 2025 11:31 am IST
    • Published On नवंबर 19, 2025 11:28 am IST
    • Last Updated On नवंबर 19, 2025 11:31 am IST
समुद्र की पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं समुद्री घास के मैदान

भारत की तटीय जैव विविधता की चर्चा करते समय अक्सर प्रवाल भित्तियों और मैंग्रोव का उल्लेख होता है, लेकिन समुद्र के भीतर फैली समुद्री घास के मैदान (Seagrass Meadows) एक उतनी ही महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है. इन्हें बहुत कम लोग जानते हैं. ये पानी के भीतर फूल देने वाले पौधे हैं, जो समुद्र की तलहटी पर घने मैदान की तरह फैले रहते हैं.

क्या है समुद्री घास के मैदान

समुद्री घास के मैदान समुद्री पानी को साफ करने,तलछट को स्थिर रखने और कार्बन को अवशोषित करने में मदद करती हैं. इन्हें अक्सर 'ब्लू कार्बन सिंक' कहा जाता है, क्योंकि ये वायुमंडल से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड सोखकर जलवायु परिवर्तन को कम करने में योगदान देती हैं. इसके अलावा, घास के ये मैदान समुद्री जीवों की नर्सरी भी हैं. अनेक मछलियां, केकड़े, झींगे अपना जीवन चक्र यहां से शुरू करते हैं. संकटग्रस्त प्रजातियां जैसे डुगोंग (समुद्री गाय) और समुद्री कछुए भी इन्हीं मैदानों पर भोजन और आश्रय के लिए निर्भर रहते हैं. तमिलनाडु के मन्नार की खाड़ी (Gulf of Mannar) में डुगोंग की उपस्थिति समुद्री घास की पारिस्थितिकी से सीधे तौर पर जुड़ी है.

सामुदायिक निगरानी और वैज्ञानिक सर्वेक्षणों से पता चला है कि समुद्री घास के मैदान तटीय आजीविका और खाद्य सुरक्षा की नींव हैं.

सामुदायिक निगरानी और वैज्ञानिक सर्वेक्षणों से पता चला है कि समुद्री घास के मैदान तटीय आजीविका और खाद्य सुरक्षा की नींव हैं.
Photo Credit: Shivani Patel

स्थानीय मछुआरे भी घास के मैदानों को महत्वपूर्ण मानते हैं. हाल के सालों में सामुदायिक निगरानी और वैज्ञानिक सर्वेक्षणों से यह पता चला है कि ये तटीय आजीविका और खाद्य सुरक्षा की नींव हैं. स्वस्थ समुद्री घास मछलियों की प्रजनन क्षमता बढ़ाती है. इससे तटीय समुदायों की आय और जीवनयापन सुरक्षित रहता है. जहां प्रवाल भित्तियां पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती हैं, वहीं समुद्री घास का यह पारिस्थितिकी तंत्र बिना किसी शोर के लगातार हमारी सेवा करता रहता है. यह तटीय क्षरण को रोकता है, समुद्र के पानी को स्वच्छ रखता है और हमें भोजन, आजीविका और जलवायु स्थिरता प्रदान करता है.

आज आवश्यकता है कि हम इस छुपे हुए पारिस्थितिकी तंत्र को और अधिक पहचान दें. स्कूलों में शिक्षा, स्थानीय समुदायों की भागीदारी और वैज्ञानिक शोध मिलकर समुद्री घास की घासभूमियों की रक्षा कर सकते हैं. यदि इन्हें संरक्षित किया गया, तो यह न केवल डुगोंग और कछुओं जैसे दुर्लभ जीवों को बचाएंगी बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी स्वच्छ जल और स्थायी जीवन सुनिश्चित करेंगी.

डिस्क्लेमर: प्राची हाटकर एक समुद्री जीवविज्ञानी और समुद्री संरक्षण वैज्ञानिक हैं. वर्तमान में वे एडवांस रिसर्च सेंटर फॉर इकॉलॉजी एंड कंज़र्वेशन, डीईएस पुणे विश्वविद्यालय में सीनियर रिसर्च ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असमत होना जरूरी नहीं है. 

ये भी पढ़ें: तस्वीर में ऐसा क्या था? 2 हजार करोड़ में बिक गई ये पेंटिंग... नीलामी ने तोड़े सारे रिकॉर्ड

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com