रुला देगी कांस्टेबल के बेटे की कहानी

भारत में क्रिकेट को धर्म का दर्ज़ा हासिल है. बात शायद घिसीपिटी हो चुकी है कि लेकिन क्रिकेट के स्टेटस में आज भी कोई बदलाव नहीं है. गेंद और बल्ले के इस खेल का वर्चस्व कायम है. भारत की विविधता और विभिन्नता को क्रिकेट जोड़ता है.

रुला देगी कांस्टेबल के बेटे की कहानी

आज एक बहुत ही दिल को छू लेनी वाली कहानी. भारत में क्रिकेट को धर्म का दर्ज़ा हासिल है. बात शायद घिसीपिटी हो चुकी है कि लेकिन क्रिकेट के स्टेटस में आज भी कोई बदलाव नहीं है. गेंद और बल्ले के इस खेल का वर्चस्व कायम है. भारत की विविधता और विभिन्नता को क्रिकेट जोड़ता है. आज से नहीं, दशकों से. आपने 1983 मूवी देखी है. एक बार देखी जा सकती है. इस फ़िल्म में एक घटना का ज़िक्र है. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का ज़माना था. देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक दंगे फ़ैले हुए थे. इंदिरा गांधी ने दंगाग्रस्त इलाकों में क्रिकेट मैच के लाइव प्रसारण की व्यवस्था कराई. तब टेलीविजन आम नहीं हुआ था. भारत की जीत ने माहौल बेहतर बनाने में छोटी मगर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 

शुरुआत में क्रिकेट अभिजात्य वर्ग का खेल था. मगर आज क्रिकेट भारत में चमात्कारिक रूप से ज़िंदगियां बदल रहा है और ख़ासकर आईपीएल की शुरुआत के बाद रातोंरात ग़रीबी और गुमनामी से दौलत और शोहरत तक की तमाम कहानियां सामने आ रही है. 

रातोंरात कहना शायद ठीक नहीं लेकिन ज़्यादा ग़लत भी नहीं. आज ज़्यादातर क्रिकेटर छोटे शहरों के निम्न और मध्यमवर्ग परिवार से आ रहे हैं. 140 करोड़ के हिंदुस्तान में हर सुबह देश के हर कोने में लाखों बच्चे सुनील गावस्कर, कपिलदेव, सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली, ज़हीर ख़ान बनने के सपने लिए मुंह अंधेरे पीठ पर क्रिकेट किट टांगे मैदान का रुख़ करते हैं. पीठ के साथ एक बोझ दिमाग पर भी होता है. इन बच्चों के साथ-साथ इनके माता-पिता के दिमाग में एक परेशान करने वाला द्वन्द्व चलते रहते हैं.
 
पढ़ाई और खेल में किसे चुना जाए?

पढ़ाई और खेल में सामंजस्य बैठाया जाए?

अगर क्रिकेट में कुछ नहीं होगा तो क्या करेगा?

मेरे ख़्याल से भारत में सिविल सर्विसेज में कंपीट करने से भी ज़्यादा मुश्किल है एक क्रिकेटर बनना. दुनिया भर में T20 लीग के आने से अवसर ज़रुर बढ़े हैं लेकिन आज भी क्रिकेट में करियर बनाना पढ़ाई से मुश्किल है. ये सारी बातें मैंने आपको इसलिए बतायी ताकि आपको थोड़ा सा अंदाज़ा हो सके कि क्रिकेट में करियर बनाने की कोशिश कर रहे बच्चे और उनके परिवार को किस तरह के मानसिक दबाव से गुज़रना पड़ता है. 

क़रीब 4 दशक पहले एक लैटिन कैथलिक मलियाली परिवार रोजी-रोटी के लिए दिल्ली आ गया. सैमसन विश्वनाथन को दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल की नौकरी मिल गयी. ये परिवार उत्तरी दिल्ली के जीटीबी नगर की पुलिस कॉलोनी में रहता था. सैमसन विश्वनाथन पूर्व में फ़ुटबॉल खिलाड़ी थे और संतोष ट्रॉफ़ी में दिल्ली की ओर से खेल चुके थे. 

11 नवंबर 1994 को परिवार में दूसरे बेटे का आगमन हुआ. पहला बेटा क्रिकेट खेलता था तो छोटे को लत लगनी ही थी. जल्दी ही छोटा बेटा संजू दिल्ली की अंडर-13 में आ गया. बेटे में संभावना दिखी तो पिता ने नौकरी VRS ले लिया और परिवार दिल्ली से वापस केरल चला गया. 

2011 में उन्हें केरल की तरफ़ से पहला फ़र्स्ट क्लास मैच खेला. 17 साल के होते-होते संजू सैमसन आईपीएल में खेलने लगे. 2013 में राजस्थान रॉयल्स के आईपीएल में साथ करियर की शुरुआत की थी और उसी साल बेस्ट यंग प्लेयर ऑफ़ द सीज़न भी चुने गए.

लेकिन राष्ट्रीय टीम में आने के लिए उन्हें ख़ासा संघर्ष करना पड़ा. 2014 में वनडे टीम में शामिल किए गए लेकिन खेलने का मौक़ा नहीं मिल पाया. 2015 में T20 से अंतर्राष्ट्रीय करियर की शुरुआत की. लेकिन फिर अगले 5 साल तक उन्हें भारतीय टीम में जगह नहीं मिली. इस निराशा का सामना करना उनके लिए आसान नहीं था. 

गौरव कपूर के ब्रेकफ़ास्ट विद चैंपियन शो के दौरान संजू ने कहा, "जब मुझे पहला मौक़ा मिला तब 19 या 20 साल का था. दूसरी बार 25 साल की उम्र में चुना गया. बीच के पांच साल मेरे लिए बेहद मुश्किल भरे रहे. केरल की टीम से भी मुझे बाहर कर दिया गया. आप अपनी काबलियत पर शक करने लगते हैं. मैं सोचने लगा-संजू क्या तेरी वापसी हो पाएगी. अगर आप यथार्थवादी और ईमानदार हैं तो आपको इस दौर से गुज़रना पड़ता है."

एक बार संजू अपने आप से इतने नाराज़ हो गए कि बैट तोड़ डाला और मैच के बीच से भाग गए

उन्होंने बताया, "उन 5 साल में मैं जल्दी आउट हो रहा था. एक बार मैं आउट होकर ड्रेसिंग रूम में आया और बैट को फ़ेंक दिया. मैच चल रहा था लेकिन मैं स्टेडियम से बाहर चला गया. ब्रेबोर्न में मैच था. मरीन ड्राइव पर चलते हुए समुद्र को देखते हुए सोच रहा था कि मेरे साथ हो क्या रहा है. ढाई घंटे वहीं बैठा रहा. मैं सोच रहा था कि क्रिकेट छोड़ कर वापस केरल लौट जाना चाहिए. रात को लौटा तो सबसे पहले बैट की याद आयी. बैट टूट चुकी थी. मुझे बहुत बुरा लगा. मुझे तकिए पर बैट पटकना चाहिए था." 
 
संजू सैमसन पिछले साल से राजस्थान के कप्तान हैं. संजू अपने खेल का सारा श्रेय राहुल द्रविड़ को देते हैं. तब संजू दिल्ली की टीम में थे और द्रविड़ टीम के मेंटॉर थे.

साथ ही उन्होने कहा, "उनके साथ तीन-चार साल का समय बिताया. मैंने उनसे हर चीज़ पूछी और वापस रूम में जाकर उनकी हर सलाह डायरी में लिख लिया करता था."

 इस रिपोर्ट के तैयार किए जाने तक संजू सैमसन की कप्तानी में राजस्थान की टीम इस साल अंक तालिका में तीसरे नंबर पर है. 

संजय किशोर NDTV इंडिया के स्पोर्ट्स एडिटर हैं...

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.