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This Article is From Nov 26, 2014

सार्क : पास-पास तो हैं साथ-साथ नहीं

Ravish Kumar, Rajeev Mishra
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 27, 2014 00:19 am IST
    • Published On नवंबर 26, 2014 21:27 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 27, 2014 00:19 am IST

नमस्कार मैं रवीश कुमार। क्या दक्षिण एशिया को कोई भी संगठन भारत और पाकिस्तान के बिना साथ आए कामयाब हो सकता है। काठमांडु में भारत और पाकिस्तान दोनों के प्रधानमंत्री सार्क सभा से सहयोग की बातें करते रहे, लेकिन खुद मुलाकात से बचते रहे। मुलाकात तो छोड़िये एक फ्रेम में न आ जाएं इसकी भरपूर कोशिश करते रहे। 30 साल बाद सार्क अगर दो पड़ोसियों को एक मेज़ पर आमने-सामने नहीं ला सकता तो क्या वो एक और बार फेल नहीं हुआ।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सीमाओं के बंधन प्रगति के खिलाफ हैं। सोशल मीडिया के दौर में सीमाएं मैटर नहीं करती हैं। दुनिया भर में इंटीग्रेशन एकीकरण की भावना उभर रही है। सार्क नकारात्मकता और संदेहवाद का शिकार रहा है। जबकि ये इलाका युवाओं के आशावाद से थिरक रहा है। हम बैंगकाक सिंगापुर आसानी से जा सकते हैं, लेकिन सार्क देशों के बीच आना-जाना मुश्किल है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ भी कमोबेश यही बात करते हैं कि सार्क इस रीजन के लोगों की शांति प्रगति और समृद्धि की आकांक्षाओं का केंद्र है। इस इलाके की आबादी का एक बटा पांचवां हिस्सा 15 से 24 साल के बीच है यानी युवा है। मेरा उद्देश्य है कि विवाद रहित दक्षिण एशिया हो। जहां एक दूसरे से लड़ने के बजाए हम मिलकर गरीबी, निरक्षरता, बीमारी, कुपोषण पर काम कर सकें। हमें मिलकर ग्रामीण इलाकों की गरीबी कुपोषण बेरोज़गारी दूर करना चाहिए। हेल्थ सेक्टर में सहयोग की ज़रूरत है। दक्षिण एशिया का आर्थिक विकास सस्ती ऊर्जा की उपलब्धता पर निर्भर करता है। मेरी सरकार इलाके के इंटीग्रेशन के लिए तेजी से काम कर रही है। क्या कर रही है ये नहीं बताया। लेकिन नवाज़ शरीफ ने कहा कि पाकिस्तान दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और पश्चिम एशिया के लिए स्वाभाविक रूप से कोरिडोर बन जाता है।  

आवागमन को बेहतर बनाने की बात तो भारत के प्रधानमंत्री ने भी की। बल्कि वे खुद स्वीकार भी कर रहे थे कि भारतीय सीमाओं पर संपर्क मार्ग बेहद खराब हैं जिसे वे जल्दी ठीक करने जा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय कंपनियां दुनिया भर में निवेश करती हैं, लेकिन सार्क क्षेत्रों में एक प्रतिशत से भी कम। दोनों के भाषण का मकसद इतना आदर्शवादी था कि सुनते हुए लगा कि भाषण खत्म करते ही दोनों सार्क की युवा पीढ़ी के लिए लंच पर मिलने वाले हैं। लेकिन दोनों ने एक-दूसरे के बारे में ढंग से ज़िक्र तक नहीं किया।

पीएम मोदी ने कहा कि आज एक पंजाब से दूसरे पंजाब में जब कोई सामान चलता है, दिल्ली, मुंबई, दुबई और कराची होकर जाता है। 11 गुना लंबी दूरी तय करता है और चार गुना महंगा हो जाता है। सोच कर देखिये कि हम अपने उपभोक्ताओं के साथ कर क्या रहे हैं। हमें प्रोडूयसर और उपभोक्ता के बीच की दूरियों को कम करना होगा। व्यापार का डायरेक्ट रूट बनाना होगा। मुझे पता है कि भारत को नेतृत्व करना होगा और हम अपनी भूमिका निभाएंगे।

अब यहां राष्ट्रवाद उपभोक्तावाद के सांचे में ढल कर भी घरेलू राजनीतिक दबावों से नहीं बच पाया। एक तरफ प्रधानमंत्री का उपभोक्तावाद सीमाओं के बंधन से मुक्त है तो दूसरी तरह उनका राष्ट्रवाद सीमा विवाद में फंसा हुआ जहां की घटनाओं के कारण उन्होंने पाकिस्तान से बातचीत बंद कर दी है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि सार्क के तौर पर हम अपने लोगों की आकांक्षाओं के साथ चलने में फेल रहे हैं। क्या इस वजह से कि हम अपने मतभेदों और संकोचों की दीवारों के पीछे छिप कर रह जाते हैं। हम अतीत की परछाई से बाहर नहीं आ रहे हैं। इससे तो मतभेद नहीं सुलझेंगे अलबत्ता हम अवसर ज़रूर गंवा देंगे।

तो फिर प्रधानमंत्री को मतभेदों की दीवारों के पीछे से सामने आने में कौन रोक रहा है। अगर कोई रोक रहा है तो उसका ज़िक्र उनके भाषण में तो नहीं था। उनके भाषण में ईज ऑफ बिजनेस तो था मगर ईज आफ पोलिटिक्स नहीं था। अगर प्रधानमंत्री का दिल और दिमाग कहता है कि हमें अवसर नहीं गंवाना चाहिए तो क्या उन्हें एक और बार रिस्क लेकर भारत पाकिस्तान संबंधों के लिए नया प्रयास नहीं करना चाहिए था। वे अपने अच्छे भाषण को भी तो अवसर में बदल ही सकते थे।

या फिर उनके भाषण का एक मतलब यह भी है कि वे अब पाकिस्तान को नज़रअंदाज़ कर सार्क के बाकी देशों से संबंध बेहतर करने पर ज़ोर दे रहे थे। नवाज़ शरीफ तो सार्क के आब्जवर्र चीन की भूमिका और राय को महत्वपूर्ण बताने लगे। भारत ने इसे सिरे से नकार दिया। भाषण में तो इसका ज़िक्र नहीं था, लेकिन नरेंद्र मोदी ने कहा कि वे इस इलाके में संबंधों की बेहतरी के लिए क्या करने जा रहे हैं।

भारत सार्क देशों के व्यापारियों को तीन से पांच साल का बिजनेस वीजा देगा। सार्क व्यापारियों को बिजनेस ट्रेवलर कार्ड मिलेना चाहिए। सार्क देशों को मरीज़ों को भारत मेडिकल वीजा देगा। मरीज और उसके साथ एक सहयोगी को। पीएम ने यह भी कहा कि इस इलाके में भारत के पक्ष में व्यापार संतुलन है और वे इसे लेकर सजग हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत सबको लेवल प्लेइंग फील्ड देगा। यानी सबको एक तरह का अवसर मिलेगा। सार्क देश अपने यहां भारतीय निवेश को बढ़ावा दे।

3 दिसंबर 2012 की हिन्दू अखबार की रिपोर्ट है कि भारत ने बांग्लादेश के साथ उदार वीज़ा व्यवस्था समझौते किए हैं जिसके तहत बांग्लादेश के सीनियर सिटिजन, छात्र और मरीज़ों को वीजा देने में रियायत दी जाएगी। इसी रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि भारत ने पाकिस्तान के साथ भी उदार वीज़ा सिस्टम पर करार किया है। करार तो किया है मगर ज़मीन पर असर नहीं दिखता।

इसके तहत तीर्थयात्रियों और सैलानियों को विशेष वीज़ा दिए जाने की बात थी। इसके तहत बिजनेसमैन को कई शहरों में प्रवेश की अनुमति वाली वीज़ा देने की बात थी। सीनियर सिटिजन को वीज़ा देने की बात थी।

अब क्या स्थिति है, इस बारे में जानकारी नहीं जुटा सका। माफी। बुधवार शाम तक काठमांडु से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के विदेश मामलों में सलाहकार सरताज अज़ीज़ ने कहा कि पाकिस्तान बातचीत के लिए तैयार है। भारत पहल करे। काठमांडु रवाना होने से पहले नवाज़ शरीफ ने भी यही कहा था। काठमांडु में भारत के प्रधानमंत्री ने कहा कि वे हमें जानते हैं और पहचानते भी हैं।

वहां सब एक दूसरे से मिल रहे थे सिर्फ भारत पाकिस्तान के प्रधानमंत्री एक दूसरे से नहीं मिल रहे थे। जब दोनों युवाओं से आह्वान कर रहे हैं, युवा आबादी की कसमें खाकर कह रहे थे कि इनके लिए क्षेत्र को जोड़ना ज़रूरी है तो क्या ये उन युवाओं से नहीं कह सकते थे कि क्षेत्र तभी जुड़ेगा जब हम बातचीत करेंगे।  

क्या सार्क सम्मेलन अच्छा भाषण देने का मंच है या अब भारत इस मंच को दूसरी दिशा में मोड़ रहा है, जहां वो पाकिस्तान का आसरा छोड़ अन्य देशों के साथ संबंधों को तेजी से बेहतर करना चाहता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि भारत और पाकिस्तान ही अपने संबंधों के कूटनीतिक खेल में सार्क के उद्देश्य को दांव पर लगा रहे हैं या आज भारत ने पाकिस्तान को सार्क देशों के बीच पूरी तरह से हाशिये पर ला दिया। हम पास-पास तो हैं साथ-साथ नहीं।  प्राइम टाइम

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