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This Article is From Feb 25, 2022

यूक्रेन को बर्बाद करने निकला बेलगाम रूस, ग्‍लोबल लीडर बेबस

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    February 25, 2022 00:39 IST
    • Published On February 25, 2022 00:39 IST
    • Last Updated On February 25, 2022 00:39 IST

रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया है. यूक्रेन ने भी रूस पर हमले का एलान कर दिया है. अब यह जंग कहां जाकर और कब जाकर रुकेगी, किसी को नहीं पता है. अभी तक नेटो और अमरीका अपने सैनिकों को जंग में भेजने से इंकार कर रहे हैं लेकिन इनके करीब होने के कारण रूस यूक्रेन पर हमला बोल दिया है. क्या रूस एक अलग देश यूक्रेन पर शर्तें थोप सकता है कि वह किससे संधि करे या संबंध बनाए? युद्ध केवल रूसी सीमा पर नेटो की लामबंदी को लेकर नहीं हो रहा है. अब जब जंग हो गई है तब क्या यूक्रेन पश्चिमी ताकतों की मदद से रूस को इस बार आगे बढ़ने से रोक देगा या रूस यूक्रेन की हालत भी क्रीमिया औऱ जॉर्जिया की तरह कर देगा? यह युद्ध यूक्रेन और रूस के बीच ही रहेगा या यूरोप भर में फैलेगा अभी यह चैप्टर नहीं खुला है तब तक के लिए आप उन ग्लोबल लीडर की तरफ देखिए जो इस वक्त कड़ी निंदा के बाद लोकल काम में व्यस्त हो गए हैं. कुछ ग्लोबल लीडर ने तो कड़ी निंदा भी नहीं की. संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था और सुरक्षा परिषद की भव्यता आज लाचार और बेकार नज़र आ रही है. तमाम चेतावनियों, अपीलों और कूटनीतिक प्रयासों के बीच रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया और अब यूक्रेन ने भी अपनी सेना को खुलकर दो दो हाथ करने के आदेश जारी कर दिए हैं.

हमले की एक अजीबो ग़रीब परिभाषा के साथ रूस ने यूक्रेन पर चौतरफा हमला कर दिया. इसे स्पेशल मिलिट्री अटैक बताया है. इसके तहत यूक्रेन के केवल सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया है. क्या किसी देश के सैन्य ठिकानों पर हमले को हमला नहीं कहा जाता है? यह स्पेशल मिलिट्री अटैक क्या होता है? अटैक भी स्पेशल होने लगा है. रूस ने कहा कि यूक्रेन पर कब्जे के लिए हमला नहीं किया गया है बल्कि पूर्वी यूक्रेन में आठ वर्षों से जो नरसंहार चल रहा है उसे खत्म करने के लिए यह हमला हुआ है. यूक्रेन के नागरिकों पर हमला नहीं किया जा रहा है. अपनी सैनिक ताक़त को गंवा देने के बाद यूक्रेन के पास क्या बचेगा? मज़बूत नेता के नाम पर दुनिया सनकी नेताओं को कुर्सी पर बिठा रही है या उनकी सनक की कीमत चुका रही है. मेरी एक बात याद रखिएगा. युद्ध के समाप्त होते ही जैसे ही दुनिया के किसी हिस्से में जब जी-20, 40, 420 की बैठक होगी तब आप देखेंगे कि यही पुतिन उस फ्रेम में ग्लोबल लीडर बनकर ग्लोबल लीडरों को सुशोभित कर रहे होंगे. AFP की खबर थी कि रूस ने यूक्रेन के एयर बेस को पूरी तरह से तबाह कर दिया है. यूक्रेन ने अपनी हवाई सीमाओं को बंद कर नागरिक उड़ानों को रद्द कर दिया है. उसका कहना है कि रूस ने पूरे देश के खिलाफ चौतरफा हमला बोल दिया है. इसका स्केल इतना बड़ा है कि नागरिकों की जान को ख़तरा दिखने लगा है. यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमिर ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन में मार्शल ला लगा दिया है. उनका कहना है कि डोनेत्सक की सीमा पर यूक्रेन की सेना और अलगाववादी सेना के बीच जंग शुरू हो गई है. डोनेस्त्क पिपल्स रिपब्कि के हथियारबंद दस्ते यूक्रेन के सैनिक ठिकानों पर हमला कर रहे हैं. यूक्रेन की राजधानी कीव में बम धमाके सुने गए हैं. कीव के अलावा कई शहरों में धमाकों की आवाज़ सुनी गई है. हर तरफ से दावे हो रहे हैं. रशिया टुडे की खबर के अनुसार LPR ने दावा किया है कि यूक्रेन की सेना अपने मोर्चे से पीछे हट रही है. यूक्रेन कह रहा है कि वह अपनी सीमाओं की रक्षा करेगा औऱ कर रहा है.

पुतिन ने रूस की आम जनता को भी दांव पर लगा दिया है. युद्ध के कारण रूस का शेयर बाज़ार 45 प्रतिशत गिर गया. डॉलर के मुकाबले रूसी मुद्रा रुबल ऐतिहासिक रूप से गिर गई. भारत के लोगों को भी रूस के इस कदम की कीमत चुकानी पड़ेगी. भारत में शेयर बाज़ार काफी गिरा लेकिन इस बाज़ार के खिलाड़ी उबरना भी जानते हैं. उनकी चिन्ता छोड़ दीजिए, अपनी कीजिए कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल के पार चली गई. सात मार्च के बाद पेट्रोल और डीज़ल के दाम आपकी जेब पर मिसाइल अटैक करने वाले हैं और महंगाई के टैंक हर सामान पर बम बरसा रहे होंगे. यूक्रेन के कई शहरों में भारत के अलग-अलग राज्यों के छात्र मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं. इनकी संख्या 18-20 हज़ार के बीच बताई जाती है. अगर यह हमला नागरिक इलाकों में पहुंचा तो भारतीय परिवारों के लिए चिन्ता बढ़ जाएगी. तनाव बढ़ने के साथ ही टिकट इतना महंगा हो गया कि हर छात्र के लिए लौटना संभव नहीं था. क्या भारत ने इसी को लेकर रूस से कोई अपील की है या रूस से कोई अपील करने वाला है? सार्वजनिक स्तर पर ऐसी अपील की सूचना नहीं है, अंदरुनी तौर पर कूटनीतिक प्रयास हो रहे हों तो उसके बारे में भी जानकारी नहीं है. 

लखनऊ की रहने वाली छात्र सना ने इस वीडियो को आज सुबह भारतीय समय के अनुसार 10 बजे के करीब रिकार्ड किया है. उन्होंने बताया कि सुबह सुबह कीव में धमाके की आवाज़ सुनी गई थी. एयरपोर्ट की तरफ से लोगों के भागने की खबर आने लगी. पश्चिम की दिशा में जाने वाली हाईवे पर गाड़ियों की कतार से साफ है कि लोग कीव छोड़ कर पश्चिमी सीमा की तरफ भाग रहे हैं जिसे अब तक सुरक्षित माना जा रहा है. आप वीडियो में देख सकते हैं कि डिवाइडर के उस तरफ गाड़ियां धीरे धीरे चल रही हैं और स्क्रीन की तरफ की सड़क खाली है और चंद कारें हैं जो तेज़ रफ्तार से जा रही हैं. राजधानी कीव उत्तरी यूक्रेन का हिस्सा है. रूस की सीमा और बेलारूस से नज़दीक है. भारतीय दूतावास ने आज एडवाइज़री जारी की है कि सभी छात्र अपने अपने घरों में ही रहें. यूक्रेन के हालात बेहद अनिश्चित हैं. जो छात्र यूक्रेन के दूसरे इलाकों से कीव की तरफ आ रहे हैं वे वापस लौट जाएं औऱ सुरक्षित जगहों पर रहें. समय समय पर एडवाइज़री जारी की जाती रहेगी. कुछ छात्रों की आज की फ्लाइट थी, लेकिन कीव स्टेशन पर पहुंच कर इन भारतीय छात्रों को पता चला कि विमान सेवा रद्द कर दी गई है.

लेकिन पोलैंड की सीमा से लगे सुदूर पश्चिम के शहर इवानो से राशिद ने यह वीडियो भेजा है. आज ही सुबह का था. उनकी बालकनी से दिख रहा यह काला धुआं बता रहा है कि रूस ने यूक्रेन पर चौतरफा हमला किया है. इन तस्वीरों से हमले का अंदाज़ा मिल जाता है और इसका भी कि इस समय वहां फंसे भारतीय छात्रों की क्या मनोदशा होगी. 22 फरवरी को भारतीय दूतावास ने नसीहत जारी की थी कि छात्र अस्थायी तौर पर यूक्रेन छोड़ दें लेकिन सबके लिए निकलना आसान नहीं था. फ्लाइट कम थी और टिकट बहुत महंगे थे. रूस दावा कर रहा है कि नागरिकों पर हमला नहीं है लेकिन सैनिक ठिकानो पर हमला कभी भी नागरिकों को चपेट में ले ही सकता है. अभी तक रूस ने कहा कुछ है और किया कुछ है. तो क्या उसके इस दावे पर भरोसा किया जा सकता है. राशिद ने कहा कि उनको शहर से निकलने से मना कर दिया गया है. इस पश्चिमी शहर में दो हज़ार भारतीय छात्र पढ़ते हैं जो अपनी जान को लेकर बेहद असुरक्षित हो गए हैं. यहां के नागरिको को बंकर में छुपने की सलाह दी गई है. टर्नोपिल शहर में भी सायरन की आवाज़ सुनी गई है.

इसी तरह यूक्रेन की जनता भी चिंतित होगी. उसके जान माल को भी हर पल खतरा बना होगा. यूक्रेन और रूस अपनी अपनी तरफ से सैनिकों और विमानों के मार गिराने का दावा करते रहे. दावा दोनों तरफ से किया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंतोनियो गुतेरेस ने कहा था उन्हें लगता रहा कि युद्ध नहीं होगा, युद्ध नहीं होगा लेकिन वे ग़लत थे. ये हाल है संयुक्त राष्ट्र के महासचिव का. कई महीनों से तनाव बढ़ा हुआ था और उन्हें लग रहा था कि युद्ध नहीं होगा. जबकि संयुक्त राष्ट्र के सदन में अलग अलग देश रूस को लेकर अपनी राय रख रहे थे उसी वक्त हमला शुरू हो गया. यूक्रेन के राजदूत ने कहा कि 48 मिनट पहले आपके राष्ट्रपति ने हमले का एलान कर दिया है. क्या आप आन रिकार्ड कहना चाहेंगे कि इस वक्त आपकी सेना यूक्रेन के शहरों पर बम नहीं बरसा रही है.

कड़ी निंदा का असर नहीं हुआ. रूस कूटनीतिक समाधान की बात करने लगा था लेकिन अचानक उसने पूर्वे यूक्रेन के दो क्षेत्रों को मान्यता दे दी, फिर हमला कर दिया. रूस में लोकतंत्र नहीं है. पुतिन ने खुद को 83 साल की उम्र तक सत्ता में रखने के लिए कानून पास करवा लिया है. वे 2036 तक राष्ट्रपति पद पर बने रह सकते हैं. चीन के राष्ट्रपति शी चीनपिंग आजीवन राष्ट्रपति रह सकते हैं. क्या इस युद्ध में लोकतंत्र को बहाल करने का भी एंगल है? अगर ऐसा है तो क्या यह तरीका है? इस रास्ते से तो यूक्रेन का लोकतंत्र ख़तरे में पड़ गया है. लोकतंत्र की बहाली के नाम पर हमला इराक और अफगानिस्तान में चल गया लेकिन उसका क्या हश्र हुआ दुनिया ने देखा है. इस एंगल से भी इस मामले को देखने की ज़रूरत है.

आजीवन पद पर बने रहने वाले इन नेताओं की महफिल जब संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में सजती होगी तब क्या उसका चरित्र लोकतांत्रिक रह जाता होगा? क्या तानाशाहों की कोई संस्था भी लोकतांत्रिक हो सकती है? यह कैसा लोकतंत्र है कि सुरक्षा परिषद के पांच सदस्यों में दो ने अपने अपने देश में कानून बदलकर खुद को आजीवन पद पर बिठा लिया है? जिस सुरक्षा परिषद की सदस्यता को लेकर हिन्दी प्रदेशों के अखबारों में कुछ लोग आजीवन संपादकीय लिखते रहते हैं कि भारत वहां पहुंच जाएगा तो विश्व गुरु बन जाएगा, आज उस सुरक्षा परिषद की हालत आप देख रहे हैं. उसके पास कोई ताकत नहीं बची है. यह केवल एक परिषद है सुरक्षा से इसका कोई संबंध नहीं रहा. यह संस्था युद्ध नहीं रोक सकी. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव सदन में और ट्विटर पर रूस से युद्ध बंद करने की अपील करते रहे और युद्ध होता रहा.

रूस के विपक्षी नेता ने कहा है कि पुतिन ने लूट मचाई है. उस पर पर्दा डालने के लिए यूक्रेन पर हमला किया है ताकि राष्ट्रवाद की आड़ में खुद को बचा सकें. रूस प्रतिबंधों से काबू में नहीं आया तो अपील का क्या ही असर होगा. पश्चिम के देशों ने युद्ध के विकल्प के रूप में प्रतिबंधों को हथियार बनाया तो रूस ने सीधे युद्ध कर दिया. युद्ध के कारणों और परिस्थिति के बारे में कई तरह के लेख छप रहे हैं और आप पढ़ भी रहे होंगे. इस झगड़े की जड़ में एक बड़ा कारण नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइज़ेशन (नेटो) है. इस नेटो ने यूक्रेन की मदद के लिए सेना भी नहीं भेजी है और न किसी को समझ आ रहा है कि नेटो रूस को जवाब किस तरह से दे रहा है. करारा जवाब मिलेगा के नाम पर सब अपने अपने घर में पराठा खा रहे हैं और यूक्रेन की जनता बमबारी से घिरी हुई है.

राजनीतिक विषेशज्ञ और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के प्रोफेसर जॉन जोसेफ मियरशाइमर का एक विश्लेषण यहां बताना ज़रूरी है. उनका कहना है कि किस तरह से नेटो की सदस्यता के नाम पर यूक्रेन को लुभाया गया और रूस को लगातार चिढ़ाया गया. 2008 में बुखारेस्ट में नेटो के शिखर सम्मेलन में यूक्रेन और जॉर्जिया को सदस्य बनाने का एलान किया गया था. रूस ने उस वक्त ही सख्ती से एतराज़ किया था. उसका कहना था कि इससे उसकी सीमाएं असुरक्षित हो जाएंगी. नेटो की इस हरकत के कारण 2008 में रूस ने जॉर्जिया पर हमला कर दिया. जॉर्जिया के लोग नेटो के बहकावे में आ गए और रूस को सबक सिखाना चाहते थे लेकिन रूस का हमला उन पर भारी पड़ गया. वे आज तक उससे उबर नहीं सके हैं. नेटो ने जॉर्जिया को उकसा तो दिया लेकिन रूस के खिलाफ कोई खास मदद नहीं की. रूस और जॉर्जिया की लड़ाई पांच दिन चली थी जिसमें बड़ी संख्या में नागरिकों औऱ सैनिकों की मौत हो गई थी. प्रोफेसर जॉन का मानना है कि यही हाल आज यूक्रेन का होने वाला है. प्रोफेसर जॉन मानते हैं कि एक बार यूरोपियन यूनियन ने यूक्रेन से समझौता करने की पहल की तब रूस ने एतराज़ किया. फिर रूस का प्रस्ताव आया कि रूस, यूक्रेन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष सब मिलकर बहुपक्षीय समझौता कर सकते हैं लेकिन यह समझौता नहीं हो सका. इससे यूक्रेन में नाराज़गी फैली औऱ वहां विद्रोह की हालत हो गई. यूक्रेन के राष्ट्रपति को रूस का पिट्ठू माना जाता था, उनके खिलाफ भी बगावत हो गई और उन्हें देश छोड़ कर रुस भागना पड़ा. यूक्रेन में उस दौरान जो हिंसा हुई थी उसमें 130 से अधिक लोग मारे गए थे. 23 फरवरी 2014 को यूक्रेन की संसद ने वोट किया है कि रूसी सहित सभी अल्पसंख्यक भाषा का दर्जा समाप्त किया जाता है. इसके चार दिन बाद 27 फरवरी 2014 को रूस की सेना क्रीमिया में प्रवेश कर जाती है. 6 मार्च 2014 को क्रीमिया की संसद ने वोट किया कि वह रूस का हिस्सा है. इसी दौरान रूस के समर्थन वाला बागी गुट दोनेत्स्क औऱ लुहांस्क क्षेत्र की कुछ इमारतों पर कब्जा कर लेता है. पिपल्स रिपब्लिक कहने लगता है. बाद में खुद को मतदान के ज़रिए स्वतंत्र घोषित कर देते हैं. इन दोनों क्षेत्रों की चाह थी कि रूस में विलय हो जाए लेकिन रूस ने वह भी नहीं किया. रूस ने सोमवार को इन्हीं दो क्षेत्रों को मान्यता दी है. पश्चिम औऱ यूक्रेन रूस पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह पूर्वी यूक्रेन में अलगाववाग को उकसा रहा है.

नेटो के सेक्रेट्री जनरल के एक बयान से इस खेल को आप और बेहतर तरीके से समझ सकते हैं. उनका कहना है कि नेटो अपनी सेना नहीं भेजेगा क्योंकि यूक्रेन नेटो का सदस्य नहीं है. मगर नेटो यूक्रेन को बहुमूल्य सहयोगी मानता है. इसी नेटो से नज़दीकी के नाम पर रूस यूक्रेन पर हमला कर रहा है और नेटो सामान बेचने और भेजने की बात कर रहा है. हथियार भेज कर ही सब पल्ला झाड़ रहे हैं. यूक्रेन से कह रहे हैं कि मेरी बनाई बंदूक ले लो और जाओ अकेले लड़ो. इस तरह से कभी कोई उकसाये तो किसी से झगड़ा न करें. क्या प्रोफेसर जॉन जोसेफ मियरशाइमर की आशंका सही साबित होगी कि यूक्रेन की हालत भी जॉर्जिया और क्रीमिया की तरह होने वाली है? युद्ध टालने के लिए नेटो के विस्तार को क्यों नहीं रोका गया. यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के प्रोफेसर जॉन जोसेफ मियरशाइमर का दावा है कि रूस यूक्रेन पर कब्जा नहीं करना चाहता बल्कि उसे तहस नहस करना चाहता है. वह पश्चिमी ताकतों को संकेत दे रहा है कि उसके इलाके से पीछे हट जाएं. नेटो के नाम पर रूस को उकसाने की बहुत कोशिश हुई है और इस राय को भी इस जंग में काफी प्रमुखता दी जा रही है. अमरीका खुश हो सकता है कि रूस के हमले को लेकर उसकी जानकारी पुख्ता साबित हुई जिसे दुनिया के कई देश महज़ अफवाह समझ रहे थे लेकिन जानकारी होते हुए भी अमरीका इस हमले को नहीं रोक सका.

अमरीका में पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप पुतिन के कदम को स्मार्ट मूव बता रहे हैं लेकिन रिपब्लिकन पार्टी के सांसद कांग्रेस में जो बाइडन के प्रयासों के साथ खड़े हैं. अमरीकी मीडिया में जो बाइडन की आलोचना भी हो रही है. इसे अमरीका के कूटनीतिक प्रयासों की असफलता के रूप में भी देखा जा रहा है. अमरीकी विदेश सचिव एंटनी ब्लिंकेन ने ऐसे सवालों के जवाब में कहा है कि अमरीका के कारण अमरीका और यूरोप के कई देश रूस के खिलाफ एकजुट हुए हैं. अमरीका इंतज़ार नहीं कर रहा है बल्कि एक्शन ले रहा है. अगर पुतिन ने यूक्रेन पर संपूर्ण रूप से हमला किया तब उस हमले का जवाब दिया गया. लेकिन व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन पेसाकी कह रही हैं कि यूक्रेन में अमरीकी सेना भेजने की कोई योजना नही है. अमरीका रूस के साथ युद्ध नहीं करेगा. अमरीकी मीडिया ने बार बार पूछा कि अगर रूस ने कीव पर कब्ज़ा कर लिया क्या तब भी अमरीका कुछ नहीं करेगा. उसके सैनिक कीव नहीं जाएंगे. पेसाकी ने कहा कि वे भी कुछ भी कहने की हालत में नहीं हैं. राष्ट्रपति बाइडन रूस के खिलाफ लड़ने के लिए यूक्रेन में सेना नहीं भेजेंगे. रूस ने अमरीकी प्रतिबंधों के जवाब में कहा है कि वह चुप नहीं बैठने वाला है. अमरीका को पता चल जाएगा. अगर अमरीका को लगता है कि उसके प्रतिबंधों से रूस पीछे हट जाएगा, अपने हितो की रक्षा नहीं करेगा तो यह कभी नहीं होने जा रहा है. यूक्रेन पर हमले के बाद बाइडन पूरी दुनिया की प्रार्थना की बात करते रहे. यूक्रेन के लोगों के साथ खड़े होने की बात करते रहे. बाइडन ने कहा कि इस युद्ध से भारी तादाद में जान माल का नुकसान होगा. हत्या और विध्वंस के लिए रूस ही जिम्मेदार होगा. बाइडन ने कहा है कि वे हालात पर नज़र बनाए रहेंगे. लगता है कि वे भी कुछ करने के नाम पर टीवी देखते रहेंगे और ट्वीट करते रहेंगे.

दुनिया की जो ताकतें रूस को युद्ध करने से नहीं रोक पाई, वो युद्ध के लिए रूस को किस व्यवस्था के तहत ज़िम्मेदार ठहराएंगी? इस वक्त हम एक व्यवस्था विहीन वैश्विक व्यवस्था देख रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि युद्ध होने दिया जा रहा है, इसके नाम पर यूक्रेन और रूस की सीमा से लगे उसके सहयोगी देशों को भी अरबों डालर के हथियार बेच दिए गए हैं. धंधे का जुगाड़ पहले हो चुका है.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान मास्को पहुंचे हैं. उनके इस दौरे को काफी उत्सुकता से देखा जा रहा है. हमले के वक्त रूस के उप विदेश मंत्री इमरान खान का स्वागत कर रहे थे. मास्को एयरपोर्ट पर इमरान का एक वीडियो आया है जिसमें वे कह रहे हैं कि वे कितने उत्साहजनक समय में यहां आए हैं. युद्ध के समय me “so much excitement” कह कर इमरान ने पाकिस्तान की छवि ही खराब की है. कोई वीडियो गेम नहीं चल रहा है ख़ान साहब. ऐसे वक्त में वहां जाकर इमरान ने पाकिस्तान के कूटनीतिक संबंधों का मज़ाक उड़वाया है. इमरान खान के इस दौरे पर भारत स्थित रूसी दूतावास के राजनयिकों ने द हिन्दू की सुहासिनी हैदर से कहा है कि रूस और पाकिस्तान के बीच रक्षा संबंध नहीं हैं. रूस मानता है कि कश्मीर का मुद्दा दोनों देशों के बीच का मुद्दा है. रूस ने भारत के स्टैंड का स्वागत करते हुए कहा है कि वह तमाम प्रतिबंधों के बाद भी भारत को रक्षा उपकरणों और S-400 मिसाइल सिस्टम की डिलिवरी करेगा. लेकिन रूस ने यह भी कहा है कि उसे उम्मीद है कि भारत सहित उसके सहयोगी देश जल्द ही डोनेस्त्सक पिपल्स रिपब्लिक और लुहांस्क पिपल्स रिपब्लिक को मान्यता देगे.

क्या भारत डीपीआर और एलपीआर को मान्यता देगा? उससे पहले भारत रूस से अपील कर यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों की मदद कर सकता है. यूक्रेन पर अगर हमला हुआ तो उनके साथ क्या हुआ, पूरे समय में हमारी ये चिन्ता बनी हुई है.

वाशिंगटन पोस्ट की एक खबर देख रहा था कि कई प्रकार के ग्लोबल लीडर ने रूस के हमले की निंदा की है. इसमें फ्रांस, इटली, फिनलैंड, कनाडा, अमरीका के राष्ट्राध्यक्षों के बयान हैं जिन्होंने रूस की कड़ी निंदा की है. चीन का स्टैंड भी रूस की तरफ ही लगता है. चीन ने प्रतिबंधों की निंदा की है और कहा है कि बातचीत से हल निकाला जाए. बम बंदूक निकल जाने के बाद बातचीत का बयान क्या केवल बोल कर चुप हो जाने के लिए दिया जा रहा है? दिल्ली में यूक्रेन के राजदूत ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी को रूस के राष्ट्रपति पुतिन से बात करना चाहिए.

क्या आप जानना चाहते हैं कि युद्ध के बाद भारत के प्रधानमंत्री ने क्या बयान दिया है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लोबल लेवल युद्ध को लेकर भले न कहा मगर इस ग्लोबल संकट को उन्होंने लोकल लेवल पर वोट का मुद्दा बना दिया है.

यूपी की जनता ने पिछले कई महीनों से बेरोज़गारी, महंगाई और सांड को लेकर मतदान की तैयारी करने में लगी थी, प्रधानमंत्री मोदी ने उसके सिलेबस में यूक्रेन भी जोड़ दिया है. यूक्रेन में जंग हो रही है, इस ग्लोबल मुद्दे पर भारत के ग्लोबल लीडर ग्लोबल लेवल पर नहीं बोल रहे हैं लेकिन इस ग्लोबल मुद्दे को लेकर लोकल लेवल वोट मांग रहे हैं. अचानक से यूपी के मतदाताओं के कोर्स में इंटरनेशनल सिलेबस जोड़ दिया गया है इसलिए हमने प्राइम टाइम में यूक्रेन को लेकर इतनी मेहनत की है. यूपी की जनता के लिए यह विषय किसी चुनौती से कम नहीं है. अभी तक नून और तेल पर उसके इंटरव्यू हो रहे थे, सांड की समस्या पर पत्रकार उससे पूछ रहे थे, जल्दी ही पत्रकार यूक्रेन पर पूछने लगेंगे और यूपी की जनता भूल जाएगी चुनाव यूक्रेन को लेकर हो रहा है या यूपी को. बस कोई ये न कह दे कि दोनों में कोई अंतर नहीं है यू से ही यूक्रेन होता है और यू से ही यूपी होता है. अगला नारा ये न हो जाए कि यूपी यूक्रेन भाई भाई. जब से जनता ने दिमाग का ताला बंद कर चाबी तालाब में फेंक दी है तब से यही सब लाजिक खूब चल जाती है. बहरहाल अभी तक यूपी की जनता अपनी आर्थिक दुर्बलताओं को लेकर चिन्ता में डूबी हुई थी लेकिन प्रधानमंत्री ने उस पर ताकतवर भारत की चिन्ता थोप दी है.

क्या प्रधानमंत्री मोदी यूक्रेन औऱ रूस के युद्ध में पुलवामा जैसी कोई संभावना देख रहे हैं? नहीं तो यूक्रेन के संकट में सुहेलदेव की धरती से लेकर कमज़ोर दारोगा और मज़बूत दारोगा तक को ले आने का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि पूरी मानवता के लिए ज़रूरी है कि भारत को ताकतवर होना चाहिए. लेकिन मानवता की रक्षा के लिए प्रधानमंत्री ने रूस से तो कोई अपील नहीं की. तब किस लिए प्रधानमंत्री भारत को ताकतवर बनाने के लिए एक एक वोट मांग रहे हैं?

और फिर भूपेश चौबे कान पकड़ कर उठक बैठक क्यों करने लगते हैं? दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के विधायक कान पकड़ कर उठक बैठक कर रहे हैं, ठीक है कि पांच साल से भूपेश जी ने काम नहीं किया मगर कान पकड़ने की क्या ज़रूरत थी, इससे ताकतवर भारत और भारत की सबसे ताकतवर पार्टी के बारे में क्या संदेश जाएगा. ये तो कहिए कि बाइडन और पुतिन दोनों ही प्राइम टाइम नहीं देखते हैं अगर देख लेंगे तो पता चलेगा कि हो क्या रहा है, भारत के प्रधानमंत्री ग्लोबल लेवल पर कोई बयान नहीं दे रहे हैं औऱ खुर्जा बुलंदशहर में यूक्रेन संकट के नाम पर वोट मांग रहे हैं? ट्रंप होते तो कम से कम भूपेश चौबे के कान पकड़ने से सीख लेते और वहां टेक्सस में कान पकड़ने लगते.

हर युद्ध अपने साथ कई विडंबनाओं को लेकर आता है. यूक्रेन अपनी जनता की जान नहीं बचा पा रहा है लेकिन यूपी में बीजेपी का विधायक जितवा रहा है. ऐसी विडंबना आपने पहले नहीं देखी होगी. ऐसा प्राइम टाइम भी आपने नहीं देखा होगा. बस दुआ कीजिए कि नेताओं की सनक कम हो. युद्ध न हो. भारत के छात्र सुरक्षित घर लौट आएं और यूपी में मतदाता को यूक्रेन के नाम पर वोट न देना पड़े.

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