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This Article is From Aug 19, 2016

रियो : नरसिंह यादव को नहीं जाने देते, तो भारत की किरकिरी नहीं होती, मेडल का भी चांस बना रहता...

Rakesh Tiwari
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 21, 2016 18:32 pm IST
    • Published On अगस्त 19, 2016 13:07 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 21, 2016 18:32 pm IST
वहीं हुआ जिसका डर था, जैसे तैसे नाडा (नेशनल एंटी-डोपिंग एजेंसी) के सामने बरी होकर रियो पहुंचे भारतीय पहलवान नरसिंह यादव वाडा (वर्ल्ड एंटी-डोपिंग एजेंसी) के सामने खुद को 'बेकसूर' साबित नहीं कर सके. कई मीडिया रिपोर्ट्स में पहले ही यह संभावना जता दी गई थी कि वाडा की क्लीनचिट के बाद ही नरसिंह अखाड़े में उतर पाएंगे और यह भी कि उनके लिए वहां पार पाना मुश्किल होगा. यह अलग बात है कि नरसिंह के साथ साजिश हुई या उन्होंने धोखे से प्रतिबंधित दवा का सेवन कर लिया. मान लीजिए उनके साथ धोखा हुआ है, फिर भी वह डोपिंग में पॉजिटिव तो थे ही और भारतीय कुश्ती संघ को निश्चित रूप से यह बात पता रही होगी कि नरसिंह को रियो में अयोग्य घोषित किया जा सकता है, फिर भी उन्होंने उन पर दांव खेला और अब नतीजा सबके सामने है... दुनिया भर में भारत की किरकिरी के रूप में...इससे देश के एक मेडल का भी नुकसान हुआ है, जो संभावित था...

पहले बात देश को हुए नुकसान की. वास्तव में नरसिंह के डोप टेस्ट में पॉजिटिव आने की खबर के बाद भारत को उनकी जगह पर किसी दूसरे खिलाड़ी को भेजने की अनुमति मिल गई थी. भारतीय कुश्ती संघ ने प्रवीण राणा के नाम की घोषणा भी कर दी, लेकिन नाडा के फैसले के बाद नरसिंह को भेज दिया, जबकि नरसिंह को लेकर स्थिति संदिग्ध थी और सबको पता था कि वह वाडा के सामने फेल भी हो सकते हैं. अब जबकि 74 किग्रा वर्ग में नरसिंह दावेदारी के योग्य नहीं रह गए हैं, तो भारत अब इस स्पर्धा में भाग ही नहीं ले पाएगा और बिना भाग लिए, तो कोई मेडल मिलता नहीं... मतलब रियो ओलिंपिक में पिछले ओलिंपिक से बदतर प्रदर्शन कर रहे देश की एक और उम्मीद खत्म हो गई...

भारत को दूसरा नुकसान वर्ल्ड लेवल पर देश की हो रही किरकिरी है, जिसके लिए न केवल भारतीय कुश्ती संघ बल्कि भारतीय ओलिंपिक एसोसिएशन भी उचित फैसला नहीं कर पाने का दोषी है, क्योंकि दोनों ने नरसिंह यादव को ही भेजने की 'जिद' पकड़े रखी... भारतीय कुश्ती संघ तो किसी भी हालत में सुशील कुमार को पीछे करना चाहता था, लेकिन उसने प्रवीण राणा को भी मौका नहीं दिया. विवाद से इतर ओलिंपिक कोटा हासिल करने वाले नरसिंह के बाद लगातार दो ओलिंपिक मेडल जीत चुके सुशील कुमार की दावेदारी तो बनती ही थी और उनके जाने से भारत की मेडल की संभावना बलवती रहती, लेकिन 'अहम के टकराव' ने देश का नुकसान कर दिया...

जैसी कि आशंका थी, वाडा ने नाडा के फैसले से पूरी तरह असहमति जताते हुए उन तथ्यों को नकार दिया, जिनके आधार पर उसने नरसिंह को 'क्लीनचिट' दी थी. वाडा ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे सीएएस (कोर्ट ऑफ ऑर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स) को रेफर कर दिया, जहां नरसिंह खुद के खाने या सप्लीमेंट में मिलावट वाली अपनी बात को साबित नहीं कर सके...वैसे भी नियमों के मुताबिक यदि किसी खिलाड़ी के साथ धोखा होना प्रमाणित हो जाता है, तो भी उसे कई बार सजा मिलती है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अपने खानपान का ध्यान रखना हर खिलाड़ी का दायित्व है और इसमें नरसिंह विफल रहे. यदि हमें यह पता है, तो जाहिर है कुश्ती संघ को भी इसकी जानकारी होगी ही. नरसिंह के डोपिंग मामले को देश के भीतर ही निपटा लिया जाता, तो बेहतर होता.

वैसे भी नाडा में सुनवाई के दौरान भी न्यूज एजेंसियों में जिस तरह की खबरें आ रही थीं, उनके अनुसार नरसिंह यादव खुद को साजिश का शिकार होना साबित नहीं कर पाए थे. उनके कथित गवाह भी सामने नहीं आए. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक तो गवाहों ने किसी भी प्रकार की मिलावट से इंकार भी कर दिया था. नरसिंह के फूड सप्लीमेंट में कोई मिलावट नहीं पाई गई थी. फैसला उनके खिलाफ ही आने की संभावना जताई जा रही थी. नाडा ने फैसले का संभावित दिन भी तय कर दिया था, फिर न जाने क्या हुआ कि उसने फैसले वाले दिन भी सुनवाई की, वह भी लगभग 8 घंटे तक... जाहिर है कहीं से तो देश की एंटी-डोपिंग एजेंसी पर भी दबाव था और वह स्वतंत्र फैसला नही कर पाई, अन्यथा यह दिन नहीं देखना पड़ता... नरसिंह यादव ने तो नाडा के फैसले के बाद पीएम को मदद के लिए शुक्रिया भी कहा था... अब देश की बेइज्ज्ती की जिम्मेदारी कौन लेगा...

राकेश तिवारी khabar.ndtv.com में डिप्‍टी न्‍यूज़ एडिटर हैं...

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