यह ख़बर 13 नवंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

ऋचा जैन कालरा की कलम से : नेहरू, न्योता और नरेंद्र मोदी

पंडित जवाहरलाल नेहरू का फाइल चित्र

नई दिल्ली:

न्योता भी बड़ी अजीब चीज़ है, मिल जाए तो मन न होते हुए भी जाना मजबूरी बन जाता है... न मिले तो इज़्ज़त का सवाल बन जाता है... मौका अगर देश के पहले प्रधानमंत्री के जन्म के सवा सौ साल पूरे होने के जश्न का हो और आज के प्रधानमंत्री को न्योता न मिले तो इसे कांग्रेस की भड़ास कहें या शिष्टाचार में हाथ तंग... वैसे, कांग्रेस की भड़ास लाज़मी है... मोदी ने गांधी से लेकर सरदार पटेल तक की विरासत को जैसे भुनाया, उससे कांग्रेसी तिलमिलाए हुए हैं... गांधी और पटेल की राजनीतिक विरासत को कांग्रेस ने अपनी जागीर माना, लेकिन आज गांधी जयंती पर देशभर की गंदगी खत्म करने का मिशन हो या 31 अक्टूबर को सरदार पटेल की जयंती पर राष्ट्रीय एकता दिवस, मोदी ने इन महान नेताओं के जरिये सरकार और जनता की साझेदारी का एक नया पन्ना खोला है, जिसकी छाप लंबे समय तक रहेगी... कांग्रेस को लगता है, गांधी और पटेल को मोदी कांग्रेस से छीन रहे हैं...

न्योते पर लौटें तो क्या देश की सबसे पुरानी पार्टी प्रधानमंत्री पद की गरिमा भूल गई है या फिर मोदी को लेकर उसकी चिढ़ और नफरत शिष्टाचार पर भारी पड़ी है... दुनियाभर में 19 देशों के 52 नेताओं को शामिल होने के लिए कांग्रेस ने न्योता भेजा है, राज्यों में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर वामदलों और लालू यादव और कई अन्य नेताओं को भी सोनिया गांधी ने बुलावा भेजा है... अब क्या देश की छवि के लिए यह अच्छा है कि दुनियाभर से अहम नेता पहुंचें, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री न हों... कांग्रेस कहती है, उसने उन्हीं को न्योता भेजा है, जो नेहरू की विचारधारा में विश्वास रखते हों...

कांग्रेस के तर्क पर बहस हो सकती है, लेकिन क्या राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर बड़ा दिल दिखाने में कांग्रेस से चूक हुई है... मोदी शिष्टाचार के मामले में कई बार कांग्रेस के लिए, नाम के लिए ही सही, सम्मान दर्शाते रहे हैं... चुनावों के बाद लोकसभा के पहले सत्र में सांसदों के शपथग्रहण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लालकृष्ण आडवाणी के बाद सोनिया गांधी का शपथग्रहण हुआ... 16वीं लोकसभा के पहले दिन मोदी ने विपक्षी बेंच के पास जाकर सोनिया गांधी का अभिवादन किया... यह सही है कि चुनाव प्रचार में 'मैडम-मैडम' कहकर मोदी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर जमकर तंज कसे थे, और शायद उसकी कड़वाहट से उबर पाना कांग्रेस के लिए मुश्किल हो रहा है...

एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी, नेहरू को उनकी 125वीं जयंती पर देश के जनमानस के साथ जोड़ने की बात कर रहे हैं, तो कांग्रेस नेहरू जयंती में मोदी को नज़रअंदाज़ कर संकीर्ण मानसिकता तो नहीं दिखा रही... नेहरू की सवा सौवीं जयंती के लिए सरकारी तैयारियों पर बनी कमेटी में शामिल कांग्रेस के सदस्य कर्ण सिंह, गुलाब नबी आजाद और मल्लिकार्जुन खड़गे मोदी की अगुवाई में इस आयोजन की तैयारियों से पहले खासे संतुष्ट बताए गए थे... एक अख़बार से बातचीत में तो कर्ण सिंह ने यह तक कह दिया कि मोदी नेहरू को नज़रअंदाज़ करने की जगह एक ऐसे नेता के तौर पर सामने आए हैं, जो नेहरू का संदेश देश के लोगों के बीच ले जाना चाहते हैं...

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नेहरू की 125वीं जयंती पर कांग्रेस के समारोह में किसी को बुलाना, न बुलाना पार्टी का अधिकार है, लेकिन शिष्टाचार और गरिमा के तकाज़े पर कांग्रेस को क्या बड़ा दिल दिखाना चाहिए था... कांग्रेस अगर बुला भी लेती तो मोदी आ नहीं पाते... मोदी 10 दिन के विदेश दौरे पर हैं... यह कुछ ऐसा हो सकता था कि बात भी रह जाती और कांग्रेस मोदी की मौजूदगी से बन सकने वाली असहज स्थिति से भी बच जाती... बड़े नेताओं, बड़े दलों को बड़े मौकों पर बड़ी सोच दिखानी चाहिए...