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This Article is From May 04, 2016

केरल में हुए गैंगरेप पर क्यों चुप हैं हम सब...?

Richa Jain Kalra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 04, 2016 13:51 pm IST
    • Published On मई 04, 2016 13:51 pm IST
    • Last Updated On मई 04, 2016 13:51 pm IST
केरल में 30 साल की कानून की पढ़ाई करने वाली छात्रा के साथ हुई दरिंदगी पर हम खामोश क्यों हैं...? यह मामला निर्भया जितना ही संगीन और घिनौना है... लड़की के शरीर पर 30 गहरे ज़ख्म मिले हैं। उसके साथ घर में घुसकर बलात्कार और फिर निर्मम तरीके से हत्या की गई... बलात्कार के चलते उसकी आंतें शरीर के बाहर आ चुकी थीं... घटना के छह दिन बाद तक पुलिस हाथ पर हाथ रखकर बैठी रही... लेकिन क्यों यह मामला निर्भया की तरह देशभर में आंदोलन का मुद्दा नहीं बना... क्या इसलिए कि यह दक्षिण के एक राज्य में हुआ...? उससे हम उत्तर भारतीयों का सरोकार नहीं हैं...? क्यों इसे लेकर लोग देशभर में सड़कों पर नहीं आए...? केरल में महिलाओं-लड़कियों ने प्रदर्शन किया, लेकिन क्या यह एक समाज के तौर पर हमारे दोहरे मापदंड नहीं... क्यों महिलाओं के खिलाफ ऐसे जघन्य अपराधों पर हम अपनी सुविधा के हिसाब से हरकत में आते हैं...?

सोशल मीडिया पर हैशटैग जरूर चल रहा है #JusticeForJisha ...लेकिन अगर हम केरल की ही बात करें, तो यहां का समाज इस घटना से उद्वेलित नहीं दिखता... महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले केरल जैसे राज्य में बढ़ रहे हैं... यह वही राज्य है, जिसे देश में 100 फीसदी साक्षरता पाने का तमगा हासिल हुआ था... पिछले साल 1,200 से ज़्यादा महिलाओं के साथ यहां बलात्कार हुआ। हर एक लाख की आबादी में 63 महिलाओं के साथ बलात्कार की संख्या सामने आती है... शायद यह संख्या आपको ज़्यादा न लगे, लेकिन आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि देश का राष्ट्रीय औसत एक लाख में 56 के आसपास है... केरल में बलात्कार का आंकड़ा पड़ोसी राज्य तमिलनाडु से तो तीन गुना ज़्यादा है, जहां यह संख्या एक लाख पर 18 है...

दिल्ली तो रेप कैपिटल के नाम से बदनाम हुई, लेकिन केरल के आंकड़े बहुत-से सवाल खड़े करते हैं... क्या महिलाओं के खिलाफ हिंसा का साक्षरता, आधुनिक समाज और विकास से कोई लेना-देना नहीं...? केरल में महिलाओं की वर्कफोर्स में भी खासी भागीदारी है, और लेबर यूनियन में भी वे शामिल हैं... पिछले साल मन्नार में चाय बागानों में काम करने वाली हज़ारों महिलाओं की हड़ताल ने यहां के राजनीतिक दलों के साथ ट्रेड यूनियनों को भी हैरत में डाल दिया था... बेहतर तनख्वाह, बोनस और अन्य सुविधाओं की मांगों को मनवाने में ये कामयाब रही थीं... लेकिन सच यह भी है कि महिलाओं को जो अधिकार अपने पुरुष सहकर्मियों के मुकाबले मिलने चाहिए, वे नहीं मिल रहे हैं... महिलाओं के साथ भेदभाव में केरल अन्य राज्यों से अलग नहीं है...

घर पर अकेली इस दलित लड़की के साथ हुई दरिंदगी पर जो खामोशी और लचरपन वहां की पुलिस और सरकार ने दिखाया है, वह बताता है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर हमारा तंत्र उतना ही नाकारा और असंवेदनशील है, जितना निर्भया से पहले था... छह दिन तक कोई कार्रवाई नहीं और बाद में राज्य के गृहमंत्री बेशर्मी से अपनी पुलिस का बचाव करते दिखते हैं... यह नाकामी हमारे सरकारी तंत्र के साथ-साथ हम सब की भी है कि हम इन मुद्दों को तरजीह नहीं देते... इस पर वह गंभीरता नहीं दिखाते, जिसकी ज़रूरत है, वरना हर रोज़ देश में दुधमुंही बच्चियों से लेकर बूढ़ी महिलाओं तक के साथ बलात्कार के मामले सामने नहीं आते...

ऋचा जैन कालरा NDTV इंडिया में प्रिंसिपल एंकर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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