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This Article is From Aug 07, 2016

पीएम मोदी और शिवपाल सिंह के 'साहसिक' बयानों से होगी पार्टी में गुंडे बदमाशों की सफाई..

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 07, 2016 12:10 pm IST
    • Published On अगस्त 07, 2016 12:10 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 07, 2016 12:10 pm IST
शनिवार को भारतीय राजनीति में दो बड़ी दुर्घटना हुई हैं. एक दुर्घटना उत्तर प्रदेश के इटावा में हुई है और दूसरी दिल्ली में हुई. इसे दुर्घटना इसलिए कह रहा हूं कि दो जगहों से दो बड़े नेताओं ने बयान जारी कर अपनी पार्टी और समर्थकों के विशाल हुजूम को अपराधी घोषित कर दिया है. अपने समर्थकों या चुनावी जीत में मदद करने वालों को अपराधी बताने की ऐसी व्यापक दुर्घटना बहुत कम हुई है. कद से तो समाजवादी पार्टी के नेता और कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से छोटे हैं लेकिन उन्होंने जो कहा है वह प्रधानमंत्री के बयान से भी ज़्यादा साहसिक है.

इन दोनों बयानों के आधार पर आप भारतीय राजनीति में गुंडो, माफिया और बर्बर लोगों की पहचान एक झटके में कर सकते हैं. यह दोनों ही बयान अपनी पार्टी या विचारधारा के खेमे के गुंडे बदमाशों को घास-फूस की तरह स्वच्छता अभियान में शामिल करने के लिए काफी हैं. केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू इन दोनों के बयानों के आधार पर सर्वे करा सकते हैं कि कितने गुंडे राजनीति की धारा से साफ किये गए हैं.

इटावा में शिवपाल सिंह यादव ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सुधर जाने के लिए 15 दिन का समय दिया है. शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि उनकी पार्टी के कौन-कौन लोग अवैध कब्ज़े कर रहे हैं, जो कार्यकर्ता और ठेकेदार दो दो लग्ज़री कार में घूम रहे हैं वे ईमानदारी और मेहनत से नहीं खरीद सकते हैं. क्या वाकई शिवपाल सिंह यादव को मालूम है कि उनकी पार्टी के किस किस कार्यकर्ता ने ज़मीन कब्ज़ाई है और कैसे लग्ज़री कार ख़रीदी है. या वे आज़म ख़ान के साथ मिलकर अखिलेश के ख़िलाफ़ कोई बड़ा प्लॉट रच रहे हैं. ऐसा कैसे हो गया कि दस दिन पहले किसी ने इसका संकेत दिया था और वह अक्षरश: साबित हो रहा है.

लेकिन हम आम जनता को भीतरी राजनीति से क्या. हमें आशापूर्वक उन 15 दिनों के ख़त्म होने का इंतज़ार करना चाहिए और देखना चाहिए कि शिवपाल सिंह यादव क्या करते हैं. अगर सही में यूपी में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के कब्ज़े से ज़मीनें मुक्त होने लगीं तो कमाल हो जाएगा. इसका मतलब कैबिनेट मंत्री को पता रहता है कि उनकी पार्टी के किस किस कार्यकर्ता ने ज़मीन पर कब्ज़ा किया है. अगर कार्यकर्ताओं ने शिवपाल सिंह यादव की पोल खोल दी तो क्या होगा. यह सोच कर मैं रोमांचित हो जाता हूं. अगर कोई कार्यकर्ता यह पूछ ले कि नेता जी आपके काफिले में जो लग्ज़री गाड़ियां चलती हैं क्या वह मेहनत की कमाई की होती हैं?

एक झटके में शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के अपराधीकरण की पुष्टि कर दी है. इसके लिए उन्हें बधाई. उसी तरह दिल्ली में एक झटके में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गौ रक्षकों को असमाजिक तत्व घोषित कर दिया है. 'मुझे इस बात पर गुस्सा आता है कि लोग गाय की रक्षा के नाम पर दुकान चला रहे हैं. उनमें से अधिकतर असामाजिक तत्व हैं जो गाय रक्षा के नाम पर चेहरा छिपाते हैं. मैं राज्य सरकारों से कहूंगा कि ऐसे लोगों पर दस्तावेज़ तैयार करें क्योंकि उनमें से 80 फीसदी असामाजिक गतिविधियों में संलिप्त पाए जाएंगे जिसे कोई भी समाज मान्यता नहीं देगा.' उन्होंने यह भी कहा कि अधिकतर गायें कत्ल नहीं की जातीं बल्कि पॉलिथिन खाने से मरती हैं. अगर ऐसे समाजसेवक प्लास्टिक फेंकना बंद कर दें तो गायों की बड़ी रक्षा होगी.

गनीमत है कि प्रधानमंत्री ने उन्हें गौ गुंडा नहीं कहा लेकिन यह क्या कम है कि उन्होंने गौ रक्षा के नाम पर उत्पात मचा रहे लोगों को सिरे से अपराधी घोषित कर दिया है. अभी तक ये लोग गौ रक्षा की आड़ में धर्म रक्षा और धर्म रक्षा की आड़ में राष्ट्र रक्षा का फर्जीवाड़ा कर रहे थे. लेकिन जब राजस्थान की गौ शाला में दो हफ्ते में खराब व्यवस्था के कारण 500 गायों की मौत की ख़बर आई तो इसके नाम पर हो रही गुंडागर्दी की पोल अपने आप खुल गई. एक गाय के नाम पर अख़लाक की हत्या और उसके बाद की राजनीति हुई वह कितनी भयानक है. इस राजनीति का आधार यही था कि गाय के नाम पर कोई दलील नहीं है. कोई तर्क नहीं है. गाय के नाम पर जो हम कहेंगे वही सही है.

दरअसल गाय का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा था जिसके दम पर सभी को लग रहा था कि गाय का नाम लेते ही कोई कुछ नहीं बोलेगा. यह तो अखिल भारतीय निर्विवादित आस्था है. शुक्रिया गुजरात के साधारण दलितों का जिन्होंने मरी हुई गाय फेंक कर बता दिया कि जिनकी मां है वही अंतिम संस्कार करें. जिस तरह से गाय के नाम पर चार युवकों को मारा गया वह उस राजनीतिक चुप्पी की पराकाष्ठा थी जिसे एक तरह की विचारधारा के लोग शह दे रहे थे. प्रधानमंत्री के अनुसार अगर इनका दस्तावेज़ बने तो पता चलेगा कि कौन संघ परिवार से है और कौन दूसरे परिवार से है. पता चल ही जाना चाहिए. तरह तरह के जागरण और मंच नाम से बने इन संगठनों की दुकान का लाइसेंस नंबर अब वाकई देश के सामने रख देने का वक्त आ गया है.

प्रधानमंत्री का बयान बिना शर्त स्वागत योग्य है. उन्होंने जिस तरह से 80 फीसदी गौ रक्षकों को असामाजिक तत्व घोषित कर उनकी धार्मिक मान्यता समाप्त की है वह स्वागत योग्य होना ही चाहिए. इंतज़ार करते हैं कि उनके इस बयान को संघ प्रमुख मोहन भागवत या दूसरे बड़े संगठन किस तरह से स्वीकार करते हैं. दो साल से यह असामाजिक तत्व विचारधारा के नाम पर छूट पाते रहे हैं. कुछ महीने पहले पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने भी सख्त टिप्पणी की थी कि गौ रक्षा के नाम पर गुंडो को शह मिल रही है. ऐसे लोगों की पहुंच और दखल सरकार और पुलिस तक में हो गई है. तमाम लोग आलोचना कर रहे थे लेकिन सत्ता प्रमुखों की तरफ से चुप्पी साध ली गई. यह चुप्पी नहीं टूटती अगर गुजरात के दलितों ने प्रतिकार का अभूतपूर्व रास्ता न चुना होता.

राजनीतिक रूप से भी बीजेपी और संघ परिवार गौ रक्षा के नाम पर उत्पातों को शह दे रहे थे. उन्हें लगा कि ये अकाट्य हथियार है. इनके नाम पर कुछ भी किया जा सकता है. यहां तक कि वे अपने भीतर से आ रही आवाज़ को भी अनसुना कर रहे थे. महाराष्ट्र बीजेपी के विधायक ने सबसे पहले गौ रक्षा के नाम पर बने कानून के असर के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई. चुनावों के दौरान केरल बीजेपी के अध्यक्ष वी मुरलीधरन ने कहा कि केरल में गौ मांस के ख़िलाफ़ अभियान चलाने का कोई प्लान नहीं है. वे गौ मांस खाने का विरोध नहीं करेंगे.

ज़ाहिर है जहां लगा कि गाय के नाम पर वोट नहीं मिलेगा वहां गौ मांस का मसला ग़ायब, जहां लगा कि वोट मिल सकता है वहां खूब उठा लेकिन वहां भी वोट नहीं मिला. बिहार विधानसभा का चुनाव तो लग रहा था कि गाय के नाम पर ही हो रहा था. यहां तक कि बीजेपी ने अपने राजनीतिक विज्ञापनों में गाय की तस्वीर छापी. हाल के दशकों में बिहार का चुनाव पहला चुनाव था कि जो मुख्य रूप से गाय पर हुआ और वहां गाय हार गई. वहीं से गाय की राजनीतिक महत्ता कमज़ोर पड़ती चली गई.

चुनाव जीतने के लिए बीजेपी ने उस असम के राजनीतिक विज्ञापनों में गाय की तस्वीर नहीं छापी जहां लोग ज्यादा गौ मांस खाते हैं. बीजेपी ने मुद्दा छोड़ दिया लेकिन उसकी सरकारों के नाम पर गौ रक्षकों का उत्पात कम नहीं हुआ. जहां भी गौ रक्षा के नाम पर लोगों को पकड़ कर मारा गया, उन्हें गोबर तक खिलाया गया, किसी मुख्यमंत्री ने नहीं कहा कि यह अमानवीय है. ऐसा होगा तो सीधा जेल भेजेंगे. यहां तक कि आंध्र प्रदेश के बीजेपी विधायक ने गौ रक्षा के नाम पर गुजरात के दलित युवकों की पिटाई को जायज़ ठहराया .

प्रधानमंत्री को इन सब बातों से गुस्सा आ रहा था तो उन्हें बताना चाहिए कि आंध्र प्रदेश के बीजेपी विधायक के बारे में उन्होंने क्या फैसला लिया है. क्या उन्हें तब भी गुस्सा आया था जब बिहार चुनावों में बीजेपी की तरफ से विज्ञापन छापा गया जिसमें लिखा था कि मुख्यमंत्री जी आपके साथी हर भारतीय की पूज्य गाय का अपमान बार-बार करते रहे और आप चुप रहें. गाय के मांस खाने और गौ रक्षा को राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिशों पर भी गुस्सा आया. क्या उन्हें राजस्थान में 500 गायों के भूख से मर जाने पर भी गुस्सा आया. क्या उन्हें गुजरात के चार दलितों की पिटाई पर भी गुस्सा आया.

हम नहीं जानते किस बात पर गुस्सा आया, किस बात पर नहीं, लेकिन यह बहुत बड़ी बात है कि प्रधानमंत्री मोदी ने इसके नाम पर फैल रहे आतंक से अपना समर्थन वापस ले लिया है. यह एक साहसिक बयान है. उसी तरह का साहसिक बयान जैसा शिवपाल सिंह यादव का है कि उन्हें मालूम है कि किस किस कार्यकर्ता ने ज़मीन पर कब्ज़ा किया है. प्रधानमंत्री ने उचित ही कहा कि गायों की मौत प्लास्टिक खाने से हो रही है. उनकी इस बात से गौ रक्षा विवाद का फोकस शिफ्ट हो जाना चाहिए. तमाम नगरपालिकाओं और विकास प्राधिकरणों की ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिए कि गायों को प्लास्टिक खाने की नौबत न आए, उन्हें हरी घास मिले इसलिए चारागाह की व्यवस्था कराई जाए. शुक्रिया प्रधानमंत्री जी और शुक्रिया शिवपाल सिंह यादव जी.

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