रवीश रंजन की आखों देखी : विकलांग खिलाड़ियों के साथ मजाक क्यों?

पैरा एथिलीट्स के कमरे की तस्वीर

नई दिल्ली:

क्रिकेट के धूमधड़ाकों से अलग दिल्ली से करीब 50 किमी दूर गाजियाबाद में बापूधाम के मटियाला गांव के हरे भरे खेत के बीच बन रहे जनहित शिक्षा स्थान के एक कॉलेज में नेशनल पैरा एथिलिटिक्स गेम्स हो रहे थे।

कॉलेज के बाहर कई लक्जरी गाड़ियां खड़ी थी। सफेद कुर्ता-पायजामे में कई नेता मंच पर मौजूद थे, कुछ ट्राफियां मेज पर सजी रखी थी। इसी मंच के ठीक पीछे नेशनल पैरा एथिलिटिक्स में गोल्ड जीत चुके ईश्वर शर्मा अपने एक साथी खिलाड़ी की व्हीलचेयर लकड़ी के पटरे से बनाई गई ऊंची कामचलाऊं रैंप पर चढ़ाने की कोशिश करते हैं, लेकिन थक हार कर व्हील चेयर नीचे ही छोड़कर उनका साथी किसी तरह सीढ़ी चढ़कर ऊपर पहुंचता है। बीते तीन दिन से विकलांग खिलाड़ी इसी तरह की जद्दोजहद से दो चार हो रहे हैं, जबकि इन खिलाड़ियों को पहली मंजिल पर रुकवाया गया है।

मैं मंच के पीछे दूसरे कमरों में गया तो देखा क्लास रूम को ही कामचलाऊं तरीके से रहने के लिए बना दिया गया था। लग रहा था जैसे गांव की किसी बरात का ये नजारा है, जहां सरकारी स्कूल की छत ही बारिश के समय सहारा देती है। इन्हीं अधबने कमरों में एक और खिलाड़ी गीता मिली उनके चेहरे पर बहुत सारे छोटे-छोटे दाने निकल आए थे। पूछने पर पता चला कि कमरे में पंखा और खिड़कियां नहीं है, ऐसे में मच्छरों ने जमकर उत्पात मचाया है। उन्होंने ही बाथरूम दिखाया, जहां पानी का नामो निशान नहीं था, कुछ खिलाड़ियों ने शायद पॉट को ही गुस्से में तोड़ दिया था। उन्होंने ही बताया कि बीते तीन दिन से पूड़ी सब्जी या कढ़ी चावल खाकर किसी तरह यहां प्रतियोगिकता में हिस्सेदारी कर रहे हैं। तीन दिन से नहाया तक नहीं है।

सोचिए क्या यही खिलाड़ी यहां की प्रतियोगिता जीत कर अगले साल होने वाली पैरालिम्पिक्स में शिरकत करेंगे। इसका जवाब जानने के लिए जब आयोजक यानि यूपी पैरा-एथिलिटिक्स एसोसिएशन के प्रेसीडेंट कवींद्र चौधरी के पास गए, तो उन्होंने छूटते ही कहा खूब एंटी खबरें दिखाए जा रहे हो। मैंने कहा सर यहां खेत के बीच में आपने खिलाड़ियों को रुकवाया है, पंखा और रैंप की व्यवस्था तक नहीं है।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और हमारे मुख्यमंत्री गांव में खेल कराने के पक्ष में है, इसलिए गांव में इसका आयोजन करवाया जा रहा है। जहां तक बात अव्यवस्थाओं की है तो थोड़ी बहुत कमी है वह भी इसलिए क्योंकि इन विकलांग खिलाड़ियों के साथ दूसरे लोग भी आ गए हैं। जब 400 की जगह 1200 लोग आ जाएंगे तो हम क्या करेंगे।

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मैं एक तरफ इन खिलाड़ियों के खेल के इस हौसले पर खुश था तो दूसरी ओर उन सफेदपोश और बड़े बाबुओं के मकड़जाल से दुखी भी जिनमें फंसकर ना जाने कितने खिलाड़ियों का भविष्य चौपट हुआ होगा।