जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ही नहीं, आईआईटी के एमटेक और पीएचडी के छात्र भी फीस वृद्धि को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. उत्तराखंड के 16 आयुर्वेदिक कालेजों के छात्र भी फीस वृद्धि के खिलाफ 43 दिनों से आंदोलन कर रहे हैं. यह बताता है कि खराब आर्थिक स्थिति का असर आम परिवारों पर पड़ा है. जहां नौकरियां जा रही हों, सैलरी न बढ़ रही हो, मजदूरी घट रही हो, वहां फीस बढ़े यह अजीब है. अगर सरकारी संस्थान महंगे होंगे तो सबको शिक्षा नहीं मिलेगी. जेएनयू में सिर्फ फीस वृद्धि को लेकर नहीं बल्कि होस्टल मैनुअल, लाइब्रेरी के समय को लेकर भी आंदोलन हो रहा है. कई लोग कहते हैं कि छात्र आंदोलन क्यों करते हैं, इसका जवाब ये है कि अगर आंदोलन न करें तो देश की यूनिवर्सिटी में क्या-क्या खेल हो जाएगा, आपको पता नहीं चलेगा. वैसे ही लोगों की चुप्पी यूनिवर्सिटी को कबाड़ में बदल रही है जिसका नुकसान आम लोगों को ही हो रहा है.
11 नवंबर को नेल्सन मंडेला मार्ग पर बड़ी संख्या में छात्र जमा हो गए और प्रदर्शन करने लगे. मानव संसाधन मंत्री ने जेएनयू की प्रेसिडेंट ओइशी घोष से बात की. मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि जेएनयू के डीन 15 नवंबर को छात्रों से बात करेंगे लेकिन छात्रों का कहना है कि 13 नवंबर को यूनिवर्सिटी की कार्यकारी परिषद की बैठक में नए मैनुअल को मंज़ूरी दे दी जाएगी तो फिर 15 नवंबर की बातचीत का क्या लाभ. छात्र इस बात पर अड़े रहे कि यूनिवर्सिटी नए होस्टल मैनुअल को वापस लें और छात्रों से बात करने के बाद ही नए नियम बनाए जाएं. छात्रों का दावा है कि बिना छात्रों के निर्वाचित प्रतिनिधि से बात किए हुए होस्टल मैनुअल बना दिया गया. एक नवंबर को वाइस चांसलर ने अपना पक्ष ट्वीट किया था. इसमें बताया गया था कि पिछले 14 साल से यही नियम है कि 11 बजे तक छात्रों को होस्टल में लौट आना है या लाइब्रेरी बंद होने के आधे घंटे बाद लौट आना होगा. छात्रों का कहना है कि नियम वही है मगर अब इसे लागू किया जा रहा है.
क्यों किसी कैंपस के कालेज में 11 बजे तक होस्टल आ जाना चाहिए. अभी तक तो छात्र रात भर लाइब्रेरी में होते थे, चाय लेकर ढाबे पर चर्चा करते थे, तो इससे क्या नुकसान हो गया. जेएनयू एक कैंपस यूनिवर्सिटी है. वहां रात भर लाइब्रेरी नहीं खुलेगी तो कहां खुलेगी.
जेएनयू की लाइब्रेरी की तस्वीर यहां से पास होने वाले छात्रों के दिलों में हमेशा के लिए रह जाती है. रात अंधेरे किसी रास्ते से किताब लिए आता कोई छात्र पढ़ाकू दिखने के लिए नहीं बल्कि किताबों के बीच जीने मरने के लिए लाइब्रेरी में वक्त बिताता है. इस लाइब्रेरी ने न जाने कितने छात्रों की ज़िंदगी बदल दी. पहले लाइब्रेरी के कई रीडिंग रूम पूरी रात खुले रहते थे. अब छात्रों का कहना है कि एक भी रीडिंग रूम रात भर खुला नहीं रहेगा. वेबसाइट पर आ गया है कि स्पेशल रीडिंग हॉल और जनरल रीडिंग हॉल अब सुबह 9 बजे से रात 12 बजे तक ही खुले रहेंगे. जेएनयू की लाइब्रेरी की हालत पर मत जाइये, इसके बाद भी यहां के छात्रों ने दुनिया भर में कमाल किया. वैसे आपको बता दें कि अमेरिका में अमेरिका यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया बर्कली की लाइब्रेरी का बजट है 461 करोड़. इसके कई रीडिंग रूम 24 घंटे खुले रहते हैं. देर रात लाइब्रेरी से होस्टल तक जाने के लिए ट्रांसपोर्ट की सुविधा मिलती है. दुनिया हंसेगी अगर ये पता चल जाए कि जेएनयू जैसी यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी रात भर नहीं खुली रहती है. नान रेज़िडेंट इंडियन न्यू जर्सी में शर्म से किसी को बता नहीं पाएंगे.
जेएनयू के बगल में है आईआईटी दिल्ली. यहां की लाइब्रेरी के कुछ रीडिंग रूम 24 घंटे खुले रहते हैं. जेएनयू की लाइब्रेरी क्यों 12 बजे बंद होनी चाहिए. सोनीपत में एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी है अशोका, उसकी लाइब्रेरी के रीडिंग रूम सातों दिन और 24 घंटे खुले रहते हैं. पिछले साल अगस्त में रायपुर की हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में लाइब्रेरी के समय को लेकर आंदोलन हो चुका है. यूनिवर्सिटी ने फैसला किया कि लाइब्रेरी साढ़े दस बजे बंद हो जाएगी. छात्र मांग करने लगे कि 24 घंटे खुली हो. छात्र समय इसलिए मांग रहे थे कि क्लास 3 बजे तक खत्म होती थी. थोड़ा आराम करने के बाद लाइब्रेरी में लंबा समय चाहिए अगर वह साढ़े दस बजे बंद हो जाएगी तो पूरा मौका नहीं मिलता था. जब बाकी नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी 10 बजे रात से लेकर 3 बजे सुबह तक खुली हो सकती है तो हिदायतुल्ला नेशनल यूनिवर्सिटी आफ लॉ की लाइब्रेरी भी रात भर खुली रहे. आंदोलन चला और छात्र सफल रहे. अब रायपुर की यह लाइब्रेरी 3 बजे सुबह तक खुली रहती है.
इस साल अप्रैल में पंजाब यूनिवर्सिटी में गुरु तेग बहादुर रीडिंग रूम को लेकर आंदोलन हुआ. इस आंदोलन के बाद ही गुरु तेग बहादुर रीडिंग रूम और एसी जोशी लाइब्रेरी का पहला फ्लोर शाम 6 बजे से लेकर अगली सुबह 6 बजे खुला रखना पड़ा. क्या आप नहीं चाहते कि लाइब्रेरी रात भर खुली न रहे.
अब आते हैं फीस पर. जेएनयू की फीस कम है तो इसका लाभ भारत के सैकड़ों गरीब छात्रों को मिला है. वे इसकी वजह से जेएनयू से पढ़ सके. सुशील झा नाम के छात्र जो बीबीसी के पूर्व पत्रकार थे, उन्होंने अपनी गरीबी और इस फीस के अनुभव पर एक टिप्पणी की है. सुशील ने लिखा है कि भारतीय जनसंचार संस्थान में सेकेंड टॉपर था मगर नौकरी नहीं मिली. तो जेएनयू पढ़ने की इच्छा हुई. जेएनयू का फार्म भर दिया मगर तैयारी की किताबें नहीं थीं. घर से पैसा नहीं आता था और खुद के पास नहीं था. दोस्तों के साथ जेएनयू की मेस में खाना खा लेता था. मेस वर्कर भी खिला देते थे. जेएनयू के बस स्टैंड पर सोया हूं क्योंकि सोने की जगह नहीं थी. एक दिन जेएनयू के एक सीनियर ने देखा तो अपने कमरे में जगह दे दी और मेरा फार्म भर दिया. तैयारी के लिए किताबें दे दीं. भूख लगने पर मैंने भीगा गमछा पेट पर बांधा है और पढ़ाई की है. एडमीशन हो गया लेकिन मेस बिल भरने का पैसा नहीं था. पिता महीने का 1000 रुपये भी नहीं दे सकते थे. छह महीने तक एक दोस्त ने मेस बिल के पैसे दिए. अगर सेमेस्टर की फीस आज के जितनी होती तो मैं सही में नहीं पढ़ पाता. मेरे जैसे कई गरीब छात्र आज भी जेएनयू में हैं. कुछ साल पहले मैं बुलेट से कैंपस में आ रहा था तो एक लड़का हवाई चप्पल में पैदल चलता हुआ मिला, चेहरे पर उदासी थी. उसने हाथ दिया तो मैंने गाड़ी पर बिठा लिया. बातों-बातों में रुआंसा हो गया. मैं पूछने लगा तो वही सब जवाब मिला. पिता किसान थे. महीने के मेस बिल का आठ सौ रुपया तक भेज नहीं पा रहे थे.
फीस का सवाल आते ही कई लोग जनरल बातें करने लगते हैं. छात्र जूता खरीद लेते हैं लेकिन फीस नहीं देंगे. फिल्म देखते हैं मगर फीस नहीं देंगे. मूर्खता के इन दावों का कुछ नहीं किया जा सकता. यह सवाल पूछा जा सकता है कि जेएनयू में गरीब किसान और आम परिवारों के कितने छात्र हैं और उनकी आर्थिक आय क्या है. 2017-18 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार 1556 छात्रों में से 623 छात्र ऐसे परिवारों से आए जिनकी मासिक आय 12000 रुपये से कम थी. 40 प्रतिशत होते हैं ये. 904 छात्र ऐसे थे जिनके परिवार की मासिक आया 12000 से अधिक थी. ये आर्थिक प्रोफाइल है वहां के छात्रों का. क्या हम नहीं चाहते कि गांव और गरीब परिवारों के बच्चे अच्छी यूनिवर्सिटी में पढ़ें. 2017-18 में 684 छात्र गांव के थे. अभी तक जेएनयू होस्टल के बिजली पानी और अन्य सुविधाओं के लिए दस करोड़ कहां से दे रहा था, अब क्यों नहीं दे पा रहा है जो इसका भार छात्रों पर डाला जा रहा है. पहले रूम रेंट 10 रुपये था जो अब 300 रुपये प्रति महीने किया जा रहा है. मेस सिक्युरिटी के लिए एक बार में 5500 रुपये देने पड़ते थे जो अब 12000 रुपये किया जा रहा है. यह वापस हो जाता है लेकिन एक बार में 12000 रुपये मांगना जो वापस हो जाएगा. यह इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि डिफाल्टर बढ़ गए हैं. दस साल बाद फीस बढ़ाई जा रही है. अभी आपने सुना कि जो छात्र 800 रुपया नहीं दे सकता उससे अगर 12000 रुपये लिए जाएंगे तो वह कहां से देगा. परिमल ने ऐसे कुछ छात्रों से बात की है. जो ऐसे परिवारों से आते हैं जिनके लिए 1000 रुपये की बढ़ोत्तरी भी लाख के समान है.
आईआईटी मुंबई और आईआईटी बीएचयू में एमटेक की फीस वृद्धि को लेकर आंदोलन चल रहा है. 300 प्रतिशत फीस बढ़ी है. 50,000 से बढ़ाकर दो लाख कर दी गई. एमटेक के छात्रों को जो मासिक वजीफा मिलता था वो बंद कर दिया गया है. ज़ाहिर है वहां पहुंते गरीब छात्रों को परेशानी होगी. तो फीस वृद्धि को लेकर सिर्फ जेएनयू में आंदोलन नहीं हो रहा है. उत्तराखंड के आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज के छात्र भी फीस वृद्धि को लेकर आंदोलन कर रहे हैं.
उत्तराखंड में हाई कोर्ट की सिंगल और फिर डबल बेंच ने फैसला दिया है कि आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज में फीस वृद्धी की फैसला वापस होगा. अचानक से 80,000 साल की जगह फीस 2 लाख 15 हज़ार कर दी गई. छात्र दिसंबर 2016 से कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं. इस 9 अक्तूबर को फैसला आया कि फीस वृद्धि सही नहीं है. बढ़ी हुई फीस वापस लें लेकिन अभी तक फैसले पर अमल नहीं हुआ है. 43 दिनों से ये छात्र देहरादून में धरना दे रहे हैं. ये इतने अमीर नहीं हैं कि सवा दो लाख फीस दे दें. इसलिए आप फीस वृद्धि के सवाल पर मज़ाक न उड़ाएं क्योंकि जेएनयू के छात्र विरोध कर रहे हैं, फीस वृद्धि का विरोध आईआईटी मुंबई, बीएचयू के छात्र भी कर रहे है और उत्तराखंड क छात्र भी फीस वृद्धि का विरोध कर रहे हैं. इसका मतलब है कि जब अर्थव्यवस्था डाउन हो तो लोगों पर असर पड़ रहा होगा. फीस चुभ रही होगी इसलिए मज़ाक न उड़ाएं.