स्कूल में गोलीबारी से दहला अमरीका, नफ़रत के आगे नतमस्तक हैं नेता

बंदूक रखना एक बड़ा मसला है, मगर बंदूक चलाने के पीछे के कारणों को आप अनदेखा नहीं कर सकते. हमलावर मनोरोगी भी हो सकता है और नफ़रती भी. इन्हें केवल बंदूक आसानी से नहीं मिल रही है, बल्कि उससे भी आसानी से मिल रही है वह विचारधारा जो गर्व का गुब्बारा फुलाती रहती है.

जिस किसी भी समाज में हिंसा और हिंसा का बदला लेने की जड़ें मज़बूत होती हैं, जहां लोग इसे सही ठहराने में दिन-रात जुटे रहते हैं, उसके असर में किसी को भी लग सकता है कि हिंसा करना सही है और इतिहास या वर्तमान की किसी घटना का बदला इस तरह से लिया जा सकता है. हिंसा की यह सोच समाज को अनिश्चित और असुरक्षित बना देती है, पता नहीं होता कि कब कौन, कहां से आएगा, बंदूक उठाएगा और किसी को छलनी कर देगा.आतंक से लड़ने के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, लेकिन समाज के भीतर हिंसा के इन छोटे-छोटे घरों को बनाने वाला समाज कभी आतंक से मुक्त नहीं हो सकता है. मंगलवार की सुबह अमेरिका के टैक्सस प्रांत के एक शहर के प्राथमिक स्कूल में गोली चल गई.19 बच्चों की हत्या हो गई है. 

18 का सल्वाडोर रामोस किसी रेस्त्रां में काम करता था. उसे जानने वालों का कहना है कि पिछले कुछ दिनों से चुप रहने लगा था. एक दिन पहले उसके रॉब एलिमेट्री स्कूल में जाने की बात भी कही जा रही है, जहां का वह छात्र रहा था. इस स्कूल में सीनियर छात्रों को बुलाया गया था ताकि वे जूनियर छात्रों से पंजा लड़ाते हुए, उनका हौसला बढ़ा सके. अमेरिकी मीडिया में सल्वाडोर के स्कूल में आने और नहीं आने की खबर छपी है. मंगलवार की दोपहर सल्वाडोर रामोस अपने बचपन के स्कूल जाता है. स्कूल जाने से पहले घर में अपनी दादी को गोली मार देता है. उसके बाद स्कूल के बच्चों पर गोलियां चलाने लगता है. सल्वाडोर रामोस की बंदूक से 19 बच्चे मारे गए हैं. इनकी उम्र सात से 10 साल की है. ये सभी दूसरी, तीसरी और चौथी कक्षा में पढ़ते थे. सल्वाडोर ने स्कूल की एक टीचर इवा मिरेलेस की भी हत्या कर दी है. अंत में पुलिस के हाथों हत्यारा सल्वाडोर रामोस भी मारा गया. यहां पढ़ने वाले ज़्यादातर बच्चे हिस्पानिक मूल के हैं और उनकी सख्या 600 है. दक्षिण अमरीका और मध्य अमरीका से आने वाले किसी को भी शक की निगाह से देखा जाता है. उन्हें हिस्पानिक कहा जाता है. लोगों को लगता है कि अवैध रुप से आ रहे हिस्पानिकों का वर्चस्व बढ़ रहा है. इस घटना से अमरीका में कोहराम मचा है.रॉब एलिमेट्री स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता से डीएनए सैंपल लिया गया ताकि बच्चों से मिलाकर देखा जा सके कि किसके बच्चे की हत्या हुई है. यह सब कितना भयावह है.मगर अमरीका ऐसी कई भयावह घटनाओं से निकल कर सामान्य होता रहा है, और हिंसा के पीछे के कारणों का ठीक से सामना नहीं कर सका. 

हिंसा से आप आधी-अधूरी लड़ाई नहीं लड़ सकते. ऐसा नहीं हो सकता कि दूसरे देश पर युद्ध थोप दें और अपने देश के भीतर चल रहे नफरत के संग्राम से नज़र मोड़ लें. हिंसा को सही बताने वाले ऐसे नगीनों से आप भारत में भी टकरा सकते हैं. जो इन दिनों इतिसाह का बदला लेने का मंत्र लोगों के कानों में दिन रात फूंक रहे हैं.राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि दुनिया में ऐसी घटनाएं बहुत कम होती हैं. राष्ट्रपति जो बाइडेन को पता होना चाहिए कि इस साल अमेरिका में स्कूलों में गोली चलने की यह 28 वीं घटना है. 

- टेक्सस की घटना से पहले 27 बार स्कूलों में गोलियां चल चुकी हैं.
- 2018 से लेकर आज तक स्कूलों में गोलीबारी की 119 घटनाएं हो चुकी हैं. 
- 2021 में 34 बार स्कूलों में गोली चलने की घटना हुई है. जो सबसे अधिक है.
- 2019 और 2018 में दोनों ही साल स्कूलों में गोली चलने की 24 घटनाएं हुई हैं.

दिसंबर 2012 में एक बंदूकधारी ने सैंडी हूक एलिमेट्री स्कूल में घुसकर 26 लोगों को मार दिया था. यह घटना कनेक्टीकट के न्यूटाउन की थी. इस घटना का मुख्य आरोपी एडम लांज़ा बीस साल का था. अपने घर से तीन बंदूके लेकर स्कूल आ गया. 2018 में पार्कलैंड के  मार्जोरी स्टोनमन डगलस हाई स्कूल में 17 बच्चों और शिक्षकों की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद भी राष्ट्रपति बाइडन कैसे कह सकते हैं कि टैक्सस की जैसी घटनाएं दुनिया में अपवाद हैं. यह याद करने का समय तो नहीं है, मगर ऐसी घटनाएं कई बार हो चुकी हैं, अमेरिका में भी और दूसरे देशों में भी. 

दिसंबर 2014 में पाकिस्तान के पेशावर में भी एक स्कूल पर आतंकी हमला हुआ था. इस आतंकी हमले में 132 बच्चों की हत्या हो गई थी. इसके अलावा स्कूल के दस कर्मचारी भी इस हमले में मारे गए थे. 100 से ज़्यादा बच्चे घायल हो गए थे. तालिबानी स्कूल में घुस गए थे, और बेंचों के नीचे छिपे बच्चों को निकाल कर मार डाला था. यह कोई साधारण स्कूल नहीं था बल्कि आर्मी पब्लिक स्कूल था. मारे गए ज़्यादातर छात्र 12 से 16 साल के थे. अब वही दुनिया तालिबान से मिलकर अफगानिस्तान में सरकार चला रही है. 

अमेरिका में बिना लाइसेंस के ही बंदूक ख़रीद लेते हैं.अमरीकी संविधान अपने नागरिकों को हथियार रखने का अधिकार देता है.टैक्सस में करीब 46 प्रतिशत लोगों के पास बंदूके हैं बल्कि टैक्सस के गवर्नर ग्रेग एबॉट को इस बात के लिए निशाना भी बनाया जा रहा है कि वे बंदूक रखने के नियमों को और आसान बनाना चाहते हैं कि लोग बिना लाइसेंस के ही बंदूक रख सकें. बंदूक खरीदने वाले की कोई जांच पड़ताल न हो. रिपब्लिकन गवर्नर ने कहा था कि तमाम आपत्तियों के बाद भी इस बिल पर वे दस्तखत करेंगे और कानून बना देंगे. अमरीका में बंदूक बनाने वाली कंपनियों का भी खेल है. उनका धंधा चलता रहे इसलिए वे नहीं चाहती कि बंदूक खरीदना मुश्किल हो जाए. अमरीका के राष्ट्रपति बाइडन जनता से कह रहे हैं कि वह बंदूक लाबी पर दबाव डाले. इस खेल को हिन्दी में समझिए. सरकार का कंपनियों पर बस नहीं है, सरकार जनता से कह रही है कि वो कंपनियों पर दबाव डाले. यानी कंपनियों सरकार की माई बाप बन गई हैं. यही कारण है टेक्सस की घटना के बाद कनेक्टीकट के प्रतिनिदि क्रिस मर्फी अपने भाषण में उत्तेजित नज़र आ रहे थे कि हम क्या कर रहे हैं. 2012 में उनके ही राज्य के स्कूल सैंडी हुक्स में गोली मार कर बच्चों की हत्या कर दी गई थी. 

बंदूक रखना एक बड़ा मसला है, मगर बंदूक चलाने के पीछे के कारणों को आप अनदेखा नहीं कर सकते. हमलावर मनोरोगी भी हो सकता है और नफ़रती भी. इन्हें केवल बंदूक आसानी से नहीं मिल रही है, बल्कि उससे भी आसानी से मिल रही है वह विचारधारा जो गर्व का गुब्बारा फुलाती रहती है. जिसका आधार इस बात पर टिका है कि एक या अनेक समुदायों से नफरत करना है .

14 मई को न्यूयार्क के बफलो शहर में 18 साल का एक लड़का पेटन एस जेनड्रान बंदूक लेकर एक सुपर मार्केट में घुस जाता है और दस लोगों को मार देता है. इस हमले के लिए वह दो सौ मील की यात्रा तय करता है. इंटरनेट पर हत्या का सीधा प्रसारण करता है. यह लड़का ब्लैक समाज के प्रति नफ़रत से भरा हुआ था. इसने 180 पन्नों का एक दस्तावेज़ भी पोस्ट किया था जिसमें व्हाईट की महानता और सर्वोच्चता की फालतू और फर्ज़ी बातें लिखी थीं. इसमें तरह-तरह से इस बात का भूत खड़ा किया गया है कि एक दिन ऐसा आएगा कि जब ब्लैक की आबादी अधिक होगी और व्हाईट की कम हो जाएगी. ब्लैक व्हाईट की जगह ले लेंगे. इसे अंग्रेज़ी में व्हाइट रिप्लेसमेंट थ्योरी कहते हैं. इसलिए ज़्यादा से ज्यादा ब्लैक को मार देना चाहिए. नफ़रत की इस सोच ने 18 साल के जेनड्रान को हत्यारा बना दिया. जेनड्रान ने लिखा है कि वह कई साल से ब्लैक की हत्या के सपने देखा करता था, उसकी तैयारी कर रहा था.इस प्रसंग से आपको भारत की याद आ सकती है. व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी के रिटायर्ट अंकिलों के पोस्ट याद आ रहे होंगे जो दिन रात गर्व करो,गर्व करो का जाप रटते रहते हैं और भूत खड़ा करते हैं कि एक दिन दूसरा समुदाय उन पर हावी हो जाएगा इसलिए गर्व करते रहो. तमाम आंकड़ों में मुस्लिम आबादी की रफ्तार थमती नज़र आती है मगर भूत खड़ा करने वाले ऐसे ऐसे प्रपंच रचते हैं कि कोई भी दिन रात मुसलमानों के प्रति नफरत और भय को पाल सकता है. न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा है कि 2011 से दुनिया भर में व्हाईट रिप्लेसमेंट की थ्योरी के असर में 160 से अधिक हत्याएं हो चुकी हैं.

जिस तरह से टेक्सस के स्कूल में गोलीबारी की घटना की तुलना कनेक्टीकट के स्कूल की घटना से हो रही है उसी तरह बफलो शहर की गोलीबारी की इस घटना की तुलना 2015 में चार्ल्सटन के एक चर्च में 9 ब्लैक की हत्या से की जा रही है.जांच में यह बात सामने आई है कि बफलो का 18 वर्षीय हत्यारे ने न्यूज़ीलैंड की दो मस्जिदों में गोलीबारी की घटना से प्रेरणा ली थी.2019 में न्यूज़ीलैंड की दो मस्जिदों में गोलीबारी की इस घटना में 51 से अधिक मुसलमान मारे गए थे. एक और अंतर है. जब न्यूज़ीलैंड में हमला हुआ था तब वहां की प्रधानमंत्री ने जनता को संबोधित किया था.अमरीका में जब भी ऐसी घटना होती है, वहां के राष्ट्रपति का बयान आता है. मैं इसकी तुलना भारत के प्रधानमंत्री से नहीं कर रहा, जो ऐसे कई मौक़े पर चुप रह जाते हैं. बल्कि कर रही रहा हूं. 

व्हाइट रिप्लेसमेंट थ्योरी आप आसानी से समझ सकते हैं.ऐसी बहसों से समाज में ज़हर फैलाया जा रहा है. भारत में भी और अमरीका में भी. कि दूसरे देशों से आए ब्लैक और दूसरे लोगों की संख्या बढ़ जाएगी तब व्हाईट के वोट की ताकत कम हो जाएगी. व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी और गोदी मीडिया में आए दिन मुसलमानों की आबादी बढ़ जाने को लेकर डिबेट पैदा किया जाता है और इस बहाने भय कि एक दिन बहुसंख्यक अल्पसंख्यक हो जाएंगे. गोदी मीडिया प्रश्नवाचक चिन्ह लगाकर ऐसे सवालों को समाज के भीतर पहुंचा देता है. आपको गोदी मीडिया की कुछ पुरानी हेडलाइन दिखाना चाहता हूं जो डिबेट के समय चैनलों के स्क्रीन पर लगाई गई थीं. 

किसी धर्म, किसी नस्ल या किसी जाति की सर्वोच्चता का नारा मूर्खता का महागलियारा है. इसकी गली में जो प्रवेश करता है, हत्यारा बनकर निकलता है. कुछ लोग बंदूक उठा लेते हैं तो कुछ लोग हिंसा को सही ठहराने और माहौल बनाने में लग जाते हैं. गोदी मीडिया पर किसी न किसी बहाने धर्म की चर्चा होती रहती है. पीईंग ह्यूमन और क्रूरदर्शन के रमित वर्मा ने केवल मई महीने में कुछ चैनलों के दो मेन डिबेट शो का अध्ययन किया है. देखने की कोशिश की है कि इन चैनलों के पिछले 15 डिबेट शो में धर्म से जुड़े कितने मुद्दे थे.   
-Aaj Tak, Zee News, News18, रिपब्लिक भारत, टाइम्स नाऊ नवभारत के पिछले 150 डिबेट के टॉपिक का अध्ययन किया है. 
- अध्ययन में यह निकल कर आया है कि 150 डिबेट में से 138 डिबेट का संबंध किसी न किसी तरीके से धर्म से रहा है. 
- जिस वक्त महंगाई चरम पर हो, गर्मी हो, असम में बाढ़ हो, उस वक्त केवल धर्म से जुड़े मुद्दे पर डिबेट हो रहे हैं. 

अमेरिका की घटना, भारत की घटना, समानता हूबहू  भले न लेकिन अंतर बहुत गहरा नहीं है. धर्म के नाम पर जब न्यूज़ चैनल रक्षक बन जाएं तो धर्म की चिन्ता मत कीजिए, देश की चिन्ता कीजिए. जो चैनल और ऐंकर पत्रकारिता के धर्म की रक्षा नहीं कर पाए, वे आपके धर्म की रक्षा कर रहे हैं, इस मुगालते में मत रहिए. इस तरह के डिबेट में ऐंकर की भाषा में धार्मिक सर्वोच्चता का बखान देखा जा सकता है. धर्म की आड़ में उनके तेवर आक्रामक हो जाते हैं और इसी बहाने आम लोगों की समस्याओं को सामने आने से रोक भी दिया जाता है. धर्म का मामला समझ कर आम लोग आंखें फाड़ कर देखने लग जाते हैं. चैनलों की तरह हिन्दी के कई अख़बार, आई टी सेल और व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी की मेहनत को जोड़ लें तो पूरा समाज ही धर्म के टापिक से घिर गया है. इसके आधार पर एक धर्म से नफरत है या उससे सर्वोच्चता है. उस पर अपनी दावेदारी है. इसका नतीजा आप अभी ही देख रहे हैं. कई बार देख चुके हैं. 

मध्य प्रदेश के नीमच के भंवर लाल चत्तर जैन को 14 बार थप्पड़ मारने वाला दिनेश कुशवाहा मनसा से बीजेपी की पूर्व पार्षद का पति है. मानसिक रुप से बीमार भंवर लाल अपना नाम तक नहीं बोल पाए. कुछ बुदबुदाते हैं लेकिन दिनेश कुशवाहा कहता है कि मोहम्मद नाम हैं और मारने लगता है. अगले दिन भंवर लाल जैन का शव बरामद होता है. आरोपी विजय कुशवाहा भाजपा युवा मोर्चा और नगर इकाई में पदाधिकारी रहा है. मृतक भंवरलाल का परिवार भी बीजेपी से जुड़ा है. यह वीडियो दिनेश ने ही वायरल किया है.क्या दिनेश को यह लगा कि ऐसी करतूत का वीडियो वायरल करना अब अच्छी बात है. लोग तारीफ करेंगे. क्या भंवर लाल की ज़ुबान से मोहम्मद निकलने के कारण दिनेश के ज़हन में हिंसा की भावना तेज़ होती गई और वह कथित रुप से हत्यारा बन गया?

भंवर लाल जैन को मारने वाला दिनेश कुशवाहा और न्यूयार्क के बफलो शहर के सुपर मार्केट में गोली चलाने वाला जेनड्रान, दोनों  के ज़ेहन में नफरत एक ही जगह से आती है. स्वयं की सर्वोच्चता और दूसरे के प्रति घृणा से. भंवर लाल जैन की हत्या का इंसाफ़ केवल आरोपी का पकड़ा जाना और जेल जाना नहीं है, बल्कि उस विचारधारा की तह तक जाना भी है, जिसने एक व्यक्ति को हत्यारा बना दिया. यह कोई पहली घटना नहीं है. 

अख़लाक का दाया हाथ आरी से काट दिया गया था. अख़लाक ने आरोप लगाया था कि शराब के नशे में दो लोग  उसे मारने लगे. जब देखा कि अखलाक के दाहिने हाथ पर 786 लिखा है,वह मुसलमान है तो उसका दायां हाथ काट दिया. यह घटना 23 अगस्त 2020 की है. जब सोशल मीडिया में हंगामा हुआ तब जाकर 7 सितंबर 2020 के दिन पानीपन की पुलिस ने FIR दर्ज की. अख़लाक की FIR के तुरंत बाद दोनों आरोपियों ने भी उसके ख़िलाफ FIR दर्ज करा दी. उस पर सात साल के बच्चे के कथित यौन शोषण का आरोप लगाया और पोस्को के तहत मामला दर्ज हो गया. हरियाणा पुलिस ने जनवरी 2021 में अख़लाक को गिरफ्तार कर लिया. जबकि अखलाक के हाथ काटने वालों को आज तक सज़ा नहीं मिली है. उल्टा अख़लाक को 14 महीने तक उस आरोप में जेल में रहना पड़ा जिसके खिलाफ पुलिस के जुटाए सबूत अदालत में टिक नहीं सके. जो गवाह थे, अदालत को दिख गया कि सिखाया पढ़ाया गया है. यही नहीं फास्ट ट्रैक कोर्ट के पोस्को जज सुखप्रीत सिंह ने कहा कि पहले तो FIR काफी देर से कराई गई और उसी दिन कराई गई, जब अख़लाक ने FIR दर्ज कराई. यही नहीं पीड़ित बच्चे की चिकित्सा जांच नहीं हुई. इस प्रकार कोर्ट ने अखलाक को बरी कर दिया.अखलाक के भाई ने इस फैसले पर अपना बयान दिया है. 

अख़लाक़ नाई का काम करता था. उसका एक हाथ कट गया है. अब वह यह काम नहीं कर पाएगा. जिन लोगों ने अखलाक का हाथ काट दिया, उन्हें आज तक सज़ा नहीं हुई है, उस मामले में पुलिस ने चार्जशीट तक दायर नहीं किया है. हमने इन दोनों घटनाओं का ज़िक्र अमेरिका के टेक्सस में हुई गोलीबारी की घटना के संदर्भ में किया है. तो एक संदर्भ का ज़िक्र अभी बाकी है.

ये उन परिवारों के ट्वीट हैं जिनके बच्चे 2012 में मारे गए थे. सैंडी हुक्स स्कूल के बच्चों के माता पिता ने टैक्सस के रॉब एलिमेंट्री स्कूल के बच्चों के माता पिता का सान्तवना भेजी है. यह भी एक संस्कार है, हिंसा के शिकार माता-पिता दस साल बाद हिंसा के शिकार माता-पिता का दुख बांट रहे हैं. टेक्सस की घटना ने उनके भीतर का दर्द उभार दिया है. वे अपने बच्चों की याद में डूब गए हैं लेकिन टेक्सस के माता-पिता के दर्द को भी समझ रहे हैं. इस घटना के बाद कई माता-पिता ट्विटर पर लिख रहे हैं कि उनके बच्चे अब इसका अभ्यास करने लगे हैं कि स्कूल में गोली चल गई तो क्या होगा. भवंर लाल जैन की हत्या औऱ अखलाक के हाथ काट दिए जाने की घटना से एक समुदाय के भीतर क्या इसी तरह के ख्याल नहीं उभरते होंगे? लेकिन क्या उन्हें कोई इस तरह से दिलासा दे रहा है? मैं यह सवाल प्रधानमंत्री मोदी से नहीं, आपसे पूछ रहा हूं.

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