विज्ञापन
This Article is From Jun 08, 2021

बंद हो गए जब झूठ के सारे दरवाज़े, दोष राज्यों पर मढ़ चले प्रधानमंत्री

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 08, 2021 10:41 am IST
    • Published On जून 08, 2021 10:36 am IST
    • Last Updated On जून 08, 2021 10:41 am IST

सात जून के राष्ट्र के नाम संबोधन को सुनते हुए लिखना चाहिए. लिखने के बाद ध्यान से पढ़ना चाहिए. तब पता चलेगा कि इतने लोगों के नरसंहार के बाद कोई नेता किस तरह की कारीगरी करता है. कैसे वह ख़ुद को अपनी सभी जवाबदेहियों से मुक्त करता हुए, दूसरों पर दोष डाल कर जनता को एक भाषण पकड़ा जाता है. यह भाषण ठीक वैसा ही है. एक लाइन की बात कहने के लिए दाएं-बाएं की बातों से भूमिका बांधी गई है. नीति, नीयत, नतीजे और न जाने 'न' से कितने शब्दों को मिलाकर वाक्य बना लेने से 'ज' से जवाबदेही ख़त्म नहीं हो जाती.

जब लाशों की गिनती का पता नहीं, हर दूसरे-तीसरे घर में मौत हुई हो, उसके बीच से ख़ुद को निर्दोष बताते हुए निकल जाना नेतागीरी की कारीगरी हो सकती है, ईमानदारी की नहीं. टीके को लेकर शुरू से झूठ बोला गया. बिना टीके के आर्डर के दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान बताया गया. जब झूठ के सारे दरवाज़े बंद हो गए, तब प्रधानमंत्री ने भाषण के पतले दरवाज़े से अपने लिए निकलने का रास्ता बना लिया. यह भाषण मिसाल है कि कैसे जनता को फँसा कर ख़ुद निकल जाया जाता है. वैसे भाषण में मानवता का भी ज़िक्र आया है. 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com