100, 101 और 108 नंबर से शुरू होकर हेल्पलाइन नंबरों की दुनिया विशाल हो गई है। सरकार, एनजीओ, कंपनियां और यहां तक कि ज्योतिष भी हेल्पलाइन और टोल फ्री नंबर देने लगे हैं। 1090, 1091, 1967, 1077, 1098, 1099, 1066, 1064। तिरुवनंतपुरम में कूड़ा फेंकने वालों पर नज़र रखने के लिए हेल्पलाइन नंबर है, तो निर्भया कांड के बाद कई राज्यों में महिला हेल्पलाइन नंबरों का भी खूब एलान हुआ है। रैगिंग रोकने से लेकर यौन समस्याओं पर मशविरा देने के लिए इतने हेल्पलाइन नंबर हो गए हैं कि सभी को याद रखना मुश्किल हो जाए। पिछली सरकार में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को याद रखने लायक नंबर आसानी से नहीं मिला था, तब तक के लिए उन्हें आठ नंबरों का हेल्पलाइन जारी करना पड़ा था।
तीन नंबर से लेकर चार नंबर और अब दस बारह नंबरों के भी हेल्पलाइन नंबर आने लगे हैं। झारखंड सरकार ने तो सोलह समस्याओं के लिए एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया है-1967, जिसका नाम रखा है ई-राहत। वाकई यह अनगिनत नंबरों की जगह एक बड़ी राहत होगी। झारखंड में आप दंगा, हत्या, बम धमाके, आग, विपदा, मेडिकल इमरजेंसी से लेकर बर्ड फ्लू के मामलों में यही नंबर डायल कर सकते हैं। किसान को लेकर भी केंद्र और राज्य स्तर पर हेल्पलाइन नंबर हैं। बड़ी संख्या में किसान इसका लाभ भी उठाते हैं, मगर आत्महत्या की दर तो इससे नहीं रुकी। जिस उत्साह से ये नंबर जारी हो रहे हैं उस रफ्तार से अगर कर्मचारी काम करने लगें और इन नंबरों की ज़रूरत ही न रहे।
हेल्पलाइन नंबरों को खारिज करने या गले लगा लेने के लिए मेरे पास कोई ठोस अध्ययन नहीं है। इतनी जानकारी ज़रूर है कि आए दिन लोग बताते रहते हैं कि फलां मंत्री को ईमेल किया, कुछ नहीं हुआ। हेल्पलाइन नंबर पर भी शिकायत की, मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई। हालांकि कई लोगों के अनुभव सकारात्मक भी रहे हैं।
यह भी सही है कि आज बड़ी संख्या में लोग टोल फ्री नंबरों का इस्तमाल करने के आदी हो चुके हैं। आप या हम अस्पताल से लेकर कंपनियों के उपभोक्ता शिकायती नंबरों को डायल तो कर ही रहे हैं। लेकिन कुछ तो है कि इन नंबरों का एलान सरकारें बड़ी धूमधाम से करने लगी हैं। शायद इसलिए कि सरकार हर वक्त अपनी विश्वसनीयता बढ़ाते रहने के प्रयास में रहती है। नंबर देकर वह यह संदेश देना चाहती हो कि उसके यहां कुछ भी प्राइवेट नहीं है। गोपनीय नहीं है।
रविवार के दिन दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जब भ्रष्टाचार विरोधी हेल्पलाइन नंबर जारी किया तो कई लोगों ने कहा कि हाल के विवादों में क्षतिग्रस्त छवि को सुधारने का प्रयास है। इसी संदर्भ में वीआईपी गेट और बाउंसर पर भी चर्चा हो गई।
मुख्यमंत्री केजरीवाल ने सारे नागरिकों को एंटी करप्शन इंस्पेक्टर का लेबल यह कहते हुए दे दिया कि अब से आप रिश्वत मांगने वाले की ऑडियो वीडियो रिकार्डिंग कर 1031 पर शिकायत दर्ज कराइये। हम ऐसे अधिकारी को जेल भेजेंगे। पिछली बार कितने लोग जेल गए, शायद कम दिनों के कारण सरकार को मौका नहीं मिला, लेकिन यह ज़रूर कहा गया कि इस भय से आम लोगों की परेशानियां कम हो गई थीं।
इससे ज़रूर अधिकारियों में भय पैदा होगा और लोगों में उत्साह कि वे रिश्वत न देना चाहें तो रिकार्डिंग कर सकते हैं। कौन रिकार्डिंग करने में सक्षम है इस पर भी बहस हो सकती है। रिश्वतखोर अफसर एक सिस्टम से संरक्षित होता है। इसमें नेता बिजनेसमैन, वकील से लेकर अपराधी और पत्रकार भी शामिल होते हैं। वह अपने इस भय से आम लोगों से लेकर खास लोगों को डरा सकता है। हो सकता है कि रिश्वत देने वाला ही किसी को ब्लैकमेल करना चाहता हो। वह रिकार्डिंग कर ले और 1031 पर भेजने के नाम पर ब्लैकमेल करने लगे। जैसा कि आरटीआई के कई मामलों में मैंने देखा है। कई लोगों ने सूचनाओं से व्यवस्था बदल दी तो कुछ इसी के आधार पर व्यवस्था से अपने लिए हिस्सा मांगने लगे।
अरविंद केजरीवाल ने पहली बार जब ऑडियो-वीडियो रिकार्डिंग की बात कही थी तब भी इस पर काफी बहस हुई थी। उनका यह आइडिया न्यूज़ चैनलों से आया था, जब यह तकीनीक अलग अलग कारणों से हाशिये पर पहुंच चुकी थी। इसके लिए पेशेवर नैतिकता यानी एथिक्स और गाइडलाइन की भी बात हुई मगर अलग-अलग संदर्भों में कई बार इसका उल्लघंन हुआ।
स्टिंग करने के कई हालात हो सकते हैं। कई बार ये सेट अप भी हो सकता है, यानी जाल बिछाकर किसी को अनजाने में भी फांसा जा सकता है। अदालत में यह स्टिंग सबूत है या नहीं इस पर भी बहस है। कानूनी राय में एकमत नहीं है और कोई स्पष्ट कानून नहीं है।
कई बार निजी तौर पर अनौपचारिक बातचीत का रिकॉर्ड भी चैनलों पर हंगामा खड़ा कर देता है। जैसा कि इस बार तो केजरीवाल का ही स्टिंग चल गया। उनकी फोन रिकॉर्डिंग चैनलों पर चलने लगी तो योगेंद्र यादव ने भी विरोध किया। मुख्यमंत्री केजरीवाल के पास तो जवाब न देने की राजनीतिक सुविधा है, लेकिन क्या आम अधिकारी या आम लोगों के पास भी यह सुविधा होगी जब कोई उनका स्टिंग कर एंटी करप्शन ब्यूरो भेज देगा। हो सकता है कि उन्हें भी मौका मिले, क्योंकि बिना इसके किसी कार्रवाई की कानूनी मान्यता नहीं हो सकती है। सारा मामला इस पर निर्भर करेगा कि दिल्ली सरकार के पास जांच करने और उसे अदालत में साबित करने के लिए कितना मज़बूत तंत्र है।
सरकार ने इस बार एंटी करप्शन ब्यूरो का बजट बढ़ा तो दिया है, लेकिन क्या एक पेशेवर तंत्र के लिए यह काफी है। दक्षिण अफ्रीका में इन्हीं सब कमियों के कारण भ्रष्टाचार के खिलाफ हेल्पलाइन सफल नहीं हो सका। दक्षिण अफ्रीका में दस साल पहले लॉन्च हुआ था।
क्या लोगों को स्टिंग इंस्पेक्टर बनाने से पहले उन्हें इसकी विधि और सीमाओं के बारे में बताया गया है। जिस आइडिया को न्यूज़ चैनल नहीं संभाल पाए उसे राजनीति ने हथियार बनाकर लोगों को सौंप दिया है। हर विभाग में सर्तकता अधिकारी है, लेकिन वह सिस्टम फेल हो गया तो लोकपाल की बात हुई। लोकपाल कहां है किसी को पता नहीं है। लेकिन लोकपाल के संदर्भ में भी कहा गया कि इससे भ्रष्टाचार तो नहीं रुकेगा। जब लोकपाल को लेकर सवाल उठ सकता है, तो हेल्पलाइन को लेकर क्यों नहीं। क्या हेल्पलाइन लोकपाल का नया विकल्प है। अगर सारे लोग स्टिंग करने लगें, एंटी करप्शन इंस्पेक्टर बन जाएं तो लोकपाल की ज़रूरत ही क्या रह जाएगी।
पिछले साल अगस्त में दिल्ली पुलिस ने केजरीवाल के इस आइडिया को अपना लिया। खूब प्रचार किया कि कोई पुलिस का आदमी पैसे मांगे तो 1064 नंबर पर शिकायत कीजिए। ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग कर पुलिस तक भेद दीजिए। इससे दिल्ली पुलिस कितनी भ्रष्टाचार मुक्त हुई है, आप उन नंबरों से नहीं समझ सकते, जो यह कह कर बताए जाते हैं कि हज़ारों की संख्या में शिकायतें आईं और दस बीस सिपाहियों के खिलाफ कार्रवाई हुई। भ्रष्टाचार ड्यूटी में लापरवाही का एक रूप है। अफसर कई तरह से आम जनता को बिना रिश्वत मांगे परेशान कर सकता है।
कहने को तो इस साल फरवरी में पंजाब सरकार ने भी एंटी करप्शन हेल्पलाइन नंबर जारी किया था। 1800-1800-1000। तमाम सरकारों के एंटी करप्शन ब्यूरो या विभागों की वेबसाइट पर इस प्रकार के नंबर दिए गए हैं। लेकिन कोई दावा नहीं कर सकता कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लग गया। हर दिन भ्रष्टाचार नए नए रूप में हमारे सामने आ जाता है। ज़रूरी नहीं कि रिश्वत अधिकारी ही मांगे। दलाल भी मांग सकता है। अधिकारी तक पहुंचने से पहले ही रिश्वत का काम हो जाता है। सिर्फ कह देने भर से स्टिंग नहीं हो जाता। ऑडियो-वीडियो की रिकॉर्डिंग करने से पहले बहुत सारी स्थितियां होती हैं। क्या आपको लगता है कि ये घूसखोर अफसर इतनी आसानी से आपके स्टिंग के लिए उपलब्ध हो जाएंगे।
मैं 1031 जैसे नंबरों को खारिज नहीं कर रहा, बस इनके असर को समझने का प्रयास कर रहा हूं। उन सौदों का स्टिंग कैसे होगा जहां नीतियों के नाम पर किसी को लाभ पहुंचाया जाता है। एक पुल का बजट दोगुना कर दिया जाता है। उन लोगों का क्या होगा जो स्टिंग से पहले पैसे कमा चुके हैं। क्या उनके खिलाफ कार्रवाई होगी या उन्हें एक बार के लिए अभयदान मिल जाएगा। ऐसे सवालों के जवाब में सरकारें कहती हैं कि हम बदले की भावना से कार्रवाई नहीं करना चाहते। यह सही है कि भ्रष्टाचार एक आदमी दूर नहीं कर सकता, लेकिन एक कानून या एक नंबर से भी दूर नहीं हो सकता है।
अधिकारियों और मंत्रियों की सालाना संपत्ति की घोषणा का एलान भी बहुत कारगर साबित नहीं हो रहा है। चुनाव आयोग में भर देते हैं कि उनके पास एक कार तक नहीं है, लेकिन सार्वजनिक रूप से वे कभी पचास लाख के नीचे की कार पर चलते दिखाई नहीं देते। उनके घर आलीशान होते हैं। बिहार में नीतीश कुमार ने कानून बनाकर कई अधिकारियों की संपत्ति भी जब्त की और उनके मकानों में स्कूल भी खोल दिए। पर क्या कोई दावा कर सकता है कि भ्रष्टाचार कम हो गया है।
भ्रष्टाचार खत्म होता है। नीयत और इच्छाशक्ति से खत्म होता है, लेकिन खत्म हुआ है इसका प्रमाण एक आम आदमी को कहां से मिलेगा। मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के दावे से ही संतोष कर लेना होगा या उसे और भी कोई जानकारी मिलेगी। क्या वह तमाम करारों को वेबसाइट पर देख सकेगा। सूचना का अधिकार लगातार कमज़ोर किया जा रहा है। पारदर्शिता के नाम पर ईमेल और नंबर बांटे जा रहे हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों का सरकारी दफ्तरों से भौतिक संपर्क खत्म हो सके। सीएजी की रिपोर्ट पर राजनीतिक तबका अपनी सुविधा से स्टैंड लेता है। नीतियों में घपला पकड़ने का ज़रिया तो सीएजी की रिपोर्ट ही है।
कुल मिलाकर भ्रष्टाचार खत्म हुआ है या नहीं, इसे आप इस तरह से देख सकते हैं कि चुनावी राजनीति में कितना सादापन आया है। जब तक चुनावी राजनीति के लिए पैसे लुटाए जाते रहेंगे तब तक इसका अर्थ यही निकाला जाएगा कि भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं हुआ है। जब तक राजनीतिक दल अपने चंदे और खर्चे का हिसाब नहीं देंगे, आप नहीं यकीन कर सकते कि भ्रष्टाचार खत्म हो गया है। पांच सितारा होटलों और फार्म हाउसों में होने वाली सियासी बैठकों का खर्चा ऐसे ही किसी गुप्त खजाने से आता होगा, जहां तक किसी आम आदमी की पहुंच शायद ही होती होगी कि वह स्टिंग कर ले।
अगर स्टिंग में इतना ही यकीन है तो इसका अधिकार सरकारी अधिकारियों को भी मिलना चाहिए। एक चपरासी अपने अफसर का स्टिंग कर ले और एक अफसर अपने मंत्री का। क्या गज़ब नहीं हो जाएगा कि कमरे के भीतर की मीटिंग का स्टिंग हो जाए, जिसमें किसी को लाभ पहुंचाने के लिए नीतियां बदली या बनाईं जा रही हो। यह भी तो कहा जाता है कि सरकारी कर्मचारी को भी भ्रष्ट होने के लिए यह सिस्टम मजबूर करता है। कितने अफसर सुसाइड कर लेते हैं। क्या दिल्ली सरकार अपने कर्मचारियों को स्टिंग का अधिकार देगी।
This Article is From Apr 06, 2015
हेल्पलाइन नंबरों का लगा अंबार, पर क्या सरकारी कर्मचारियों को भी मिलेगा स्टिंग का अधिकार
Ravish Kumar, Saad Bin Omer
- Blogs,
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Updated:अप्रैल 06, 2015 21:44 pm IST
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Published On अप्रैल 06, 2015 21:09 pm IST
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Last Updated On अप्रैल 06, 2015 21:44 pm IST
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