अमेरिका का लेबर डिपार्टमेंट हर महीने, कितने लोग पे-रोल पर आए यानी नौकरियां मिली, इसके आंकड़े जारी करता है. अनुमान था कि दिसंबर 2018 में 1,77,000 नौकरियां मिलेंगी मगर उससे भी अधिक 3,12,000 नौकरियां मिली हैं. स्वास्थ्य सेवा, होटल और सेवा-सत्कार, निर्माण, मैन्युफैक्चरिंग और रिटेल सेक्टर में काम मिला है. लोगों के प्रति घंटे काम करने का वेतन भी बढ़ा है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे अपनी नीतियों की कामयाबी बताया है और ज़ाहिर है वे इसका श्रेय लेंगे. काम मिल रहा है इस कारण काम खोजने वालों की संख्या बढ़ गई है. इसे ही लेबर पार्टिशिपेशन रेट कहते हैं. जब लगता है कि काम ही नहीं मिलेगा तो घर बैठ जाते हैं. काम खोजने नहीं आते हैं.
अब आते हैं भारत पर. दो करोड़ सालाना रोज़गार देने के वादे से आई नरेंद्र मोदी सरकार नौकरी को भूल गई. पांच साल तक डिजिटल इंडिया करते रहने के बाद भी नौकरियों को मासिक डेटा मिल जाए, इसकी कोई व्यवस्था नहीं कर सकी. उल्टा भारत का श्रम मंत्रालय का लेबर ब्यूरो जो डेटा जारी करता था, उसे समाप्त कर दिया. मई 2017 में नीति आयोग की उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई कि वह बताए कि मुकम्मल जॉब डेटा के लिए क्या किया जाए. बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी सोमेश झा की रिपोर्ट के अनुसार पनगढ़िया ने अपना पद छोड़ने से एक दिन पहले यानी 30 अगस्त 2017 को इसकी अंतिम रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय में जमा कर दी थी.
चुनाव से पहले आरक्षण का मुद्दा गर्माने की तैयारी?
अगस्त 2018 से जनवरी 2019 आ गया लेकिन इस रिपोर्ट का कुछ पता नहीं है. 25 दिसंबर को बिजनेस स्टैंडर्ड में वित्त मंत्री अरुण जेटली का इंटरव्यू छपता है. इस इंटरव्यू में सवाल पूछा जाता है कि क्या आप मौजूदा 7.5 प्रति वर्ष की विकास दर से संतुष्ट हैं, इसी से जुड़ा सवाल है नौकरियों को लेकर. जवाब में वित्त मंत्री कहते हैं, 'मैं मानता हूं कि जब अर्थव्यवस्था लगातार विस्तार कर रही हो, यहां तक कि 7.5 प्रतिशत की दर से, नौकरियों में वृद्धि तो होनी ही है. हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि हम हमेशा कम नौकरियों की बात करते हैं, लेकिन भारत में नौकरियों को लेकर कोई प्रमाणिक डेटा नहीं है. इसलिए इसकी ज़रूरत है. इस तरह के डेटा नहीं होने के कारण हमें नहीं पता लग पाता है कि अनौपचारिक सेक्टर में क्या हो रहा है.'
क्या 2019 में टीवी के दर्शकों को कोई काम नहीं है?
ग्रोथ रेट के कारण रोज़गार बढ़ता ही हो यह कोई ज़रूरी नहीं है. यूपीए के दौर में जब जीडीपी 8 से 9 प्रतिशत थी तब उसे जॉबलेस ग्रोथ क्यों कहा जाता है? वही जेटली 7.5 प्रतिशत विकास दर से कैसे यह मतलब निकाल सकते हैं कि ग्रोथ हो गया तो रोज़गार भी बढ़ गया? वित्त मंत्री को कारण पता है मगर उन्हें लगता है कि वे जो भी बोलते हैं वही अंतिम वाक्य है. पीयूष गोयल एक वीडियो ट्वीट करते हैं कि रेलवे ने एक लाख से अधिक रोज़गार दिए मगर ये ट्वीट नहीं करते हैं कि संसद में उनके ही राज्य मंत्री ने कहा है कि रेलवे के पास ढाई लाख से अधिक पद ख़ाली हैं. पांच साल में रेलवे में कितने पद खाली हुए और कितने पद भरे गए, इसे ही रेल मंत्री जारी कर दें. क्या मोदी सरकार के मंत्री इतना भी नहीं कर सकते?
सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के महेश व्यास ने आज बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि दिसंबर 2018 में बेरोज़गारी की दर 7.4 प्रतिशत हो गई थी. यही नहीं, 6 जनवरी 2019 तक के आंकड़े बताते हैं कि बेरोज़गारी की दर 7.4 प्रतिशत से बढ़कर 7.8 प्रतिशत हो गई है. महेश व्यास ने पाया है कि दिसंबर 2017 में जितने लोगों के पास काम था, उसमें से एक करोड़ दस लाख लोग दिसंबर 2018 तक बेरोज़गार हो गए. नए लोगों को काम नहीं मिला और जिनके पास काम था, उनकी भी नौकरी चली गई. महेश व्यास ने लिखा है कि एक लाख 40 हज़ार सैंपल का सर्वे करने के बाद उनका यह तात्कालिक निष्कर्ष है. अंतिम रिपोर्ट जनवरी 2019 के अंत में आएगी. सैंपल काफी बड़ा है. क्या यह स्थिति भयावह नहीं है?
पत्रकार बनना चाहने वालों के लिए रवीश कुमार की 'क्लास'
शायद इन्हीं सब आंकड़ों के आ जाने के भय से लेबर ब्यूरो का आंकड़ा बंद कर दिया गया. कम से कम लेबर ब्यूरो के आंकड़ों से संदेश जाता था कि सरकार भी खुद मान रही है. शायद इसीलिए भी बंद कर दिया गया. इसकी जगह नई व्यवस्था नहीं लाई गई क्योंकि उसमें भी यही झलकता.
प्राइम टाइम: क्या सरकार आपको देख रही है? सवाल है कि मोदी सरकार या कोई भी सरकार नौकरी के सवाल से कब तक भागेगी. यह सवाल आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके को दस फीसदी आरक्षण देने के साथ भी सामने आएगा और बाद में भी आएगा. क्योंकि जब रोज़गार नहीं है तो उसकी मार दोनों पर भी पड़ रही है. जिसके पास आरक्षण है उस पर भी और जिसके पास आरक्षण नहीं है उस पर भी. मोदीजी से एक सवाल पूछिए, नौकरियां नहीं दी, नौकरी का डेटा तो दे दीजिए या फिर पकौड़ा तलने का सामान ही दे दें.
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