मूर्ति-स्मारक की आड़ में जरूरी मुद्दे लापता हैं

मूर्ति लगाने से उन युवाओं में गौरव भाव आता है जो अपने इलाके में घटिया स्कूल कालेज और अस्पताल को देखते देखते निराश हो चुके होते हैं. भारत के बेरोज़गार युवकों को अतीत के गौरव से जो समृद्धि मिलती है उसे दुनिया का कोई अर्थशास्त्री नहीं समझ सकता.

मूर्ति-स्मारक की आड़ में जरूरी मुद्दे लापता हैं

भारतीय रिज़र्व बैंक और संसद की स्थायी समिति के अनुसार प्रति व्यक्ति आय के मामले में उत्तर प्रदेश और बिहार की हालत बहुत ख़राब है. ये दोनों ही राज्य सबसे नीचे हैं. भूगोल और आबादी के हिसाब से भी भारत के इन दो बड़े राज्यों में अगर लोगों की कमाई इतनी कम है तो आप समझ सकते हैं कि जीवन स्तर का क्या हाल होगा. इन दो राज्यों में उच्च शिक्षा की हालत पर अगर बात करने लगूं तो बात ही खत्म नहीं होगी. इन दोनों राज्यों के युवाओं का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उनकी प्राथमिकता में अच्छी पढ़ाई नहीं है वर्ना मुझे इस पर बात करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती. 

इन दोनों राज्यों में अगर आप सफल नेता बनना चाहते हैं तो मेरी बात को ध्यान से सुनिए बल्कि लिख कर पर्स में रख लीजिए. आप हमेशा अतीत के गौरव की बात कीजिए,किसी महापुरुष की मूर्ति या स्मारक की बात कीजिए. ध्यान रहे,किसी महापुरुष को सीधे याद मत कीजिए. पहले घोषित कीजिए कि फलां महापुरुष को भुला दिया गया,आप याद दिलाने के लिए आंदोलन चला रहे हैं. अगर तुरंत कोई महापुरुष का ध्यान नहीं आता तो किसी की भी मूर्ति बना कर लगा दीजिए लोग मान लेंगे कि किसी महापुरुष की ही होगी,तभी तो उनकी मूर्ति बनी है.आपका कुर्ता भी ख़राब नहीं होगा और आप बड़े नेता बन जाएंगे. मूर्ति लगाने से उन युवाओं में गौरव भाव आता है जो अपने इलाके में घटिया स्कूल कालेज और अस्पताल को देखते देखते निराश हो चुके होते हैं. भारत के बेरोज़गार युवकों को अतीत के गौरव से जो समृद्धि मिलती है उसे दुनिया का कोई अर्थशास्त्री नहीं समझ सकता. 

याद करने में बुराई नहीं है लेकिन याद करना नेता बनने का आसान रास्ता हो चुका है. जो अपना फोन नंबर और पासवर्ड याद नहीं रख पाते, वे भी किसी महापुरुष को याद करने और उनकी याद दिलाने में लगे हुए हैं. ट्विटर पर मंत्रियों के हैंडल पर जाकर देखिए. वे रोज़ किसी न किसी महापुरुष को याद करते हैं. एक दिन में एक से अधिक महापुरुषों से प्रेरणा पाने का दावा करते हैं. जबकि उनके काम में इन महापुरुषों का एक भी गुण नहीं झलकता है. पहले लगा था कि केवल बीजेपी महापुरुषों को याद कर रही है, दूसरों ने भुला दिया है. 

जब तक बीजेपी याद कर रही थी तब तक कहा जा रहा था कि बीजेपी सबको याद करती है. बाकियों ने उन्हें भुला दिया है. किसी की जयंती पर फोटो या मीम ट्विट कर देना याद करने की सबसे उत्कृष्ठ गतिविधि मान ली गई.सोशल मीडिया के ज़रिए बीजेपी ने याद करने की राजनीति को नया मोड़ दे दिया जिससे मुकाबला करने के लिए पिछले कुछ साल से हर दल के नेता हर महापुरुष को याद करने लगे हैं. कई बार नेता गलत फोटो भी लगा देते हैं. मार्च 2018 में शशि थरुर ने महाविर स्वामी के बदले गौतम बुद्ध की तस्वीर लगा दी थी. एक समय था जब कोई पार्टी किसी महापुरुष को याद करती थी तब वह यह संकेत देती थी कि फलां महापुरुष उसकी विचारधारा के करीब है. अब ऐसा नहीं है. कोई दल किसी को याद करने के मामले में किसी से पीछे नहीं रहना चाहता. याद किए जाने की इस होड़ में साहित्यकारों को भी शामिल कर लिया गया है. उन्हें शिकायत रहती थी कि राजनीतिक समाज कभी याद नहीं करता. लेकिन अब वे काफी खुश होंगे कि उन्हें बीजेपी कांग्रेस से लेकर जनता दल औऱ हर दल के नेता याद कर रहे हैं. किसने किसे पढ़ा है,यहां यह महत्वपूर्ण नहीं है, किसने किसे याद किया है उल्लेखनीय ये है. याद करने के तुरंत बाद ही नेता की भाषा से पता चल जाता है कि साहित्य से दूर दूर का नाता नहीं है. इधर जनता परेशान है कि वोट लेने के बाद नेताजी भूल गए हैं लेकिन नेताओं ने हर दिन कई महापुरुषों को याद कर दिखा दिया है कि उनकी याद्दाश्त बची हुई है. वे भले जनता को भूल गए हैं लेकिन जनता के प्रिय महापुरुष को याद कर रहे हैं. हम इन सभी महापुरुषों से माफी मांगते हैं, हमारी समस्या इन्हें याद किए जाने को लेकर नहीं है, दूसरी है.  याद करने के  मामले में क्या याद रखा गया है औऱ क्या भुला दिया है बता रहे हैं राजनीति पर लिखने वाले हिलाल अहमद.  

मूर्तियों और स्मारकों को गलत और सही के पैमाने से देखना एक जटिल काम है लेकिन राजनीति का यही काम हो जाए तब फिर इस पर विचार किया जाना चाहिए. मूर्ति और स्मारक के ज़रिए पहचान की राजनीति इस वक्त अपनी अंतिम सीमा पर पहुंच गई लगती है. हर दूसरा नेता कहता है कि इतिहास ने भुला दिया. आप किसी भी राज्य के कालेजों में इतिहास की कक्षा का हाल देखिए. सैंकड़ों छात्र हैं मगर टीचर या तो एक भी नहीं हैं या एक दो ही हैं. इतिहास पढ़ना एक मुश्किल काम है. कई किताबों से गुज़रना पड़ता है. आप इतिहास पढ़ते नहीं, इंजीनियर बनना पसंद करते हैं फिर अचानक चिल्लाने लगते हैं कि हमें इतिहास नहीं पढ़ाया गया. उत्तर प्रदेश जहां मूर्तियों औऱ स्मारकों की राजनीति ने कई वर्गों को गर्व का भाव दिया इसके बाद भी वे आर्थिक तौर पर पिछड़े हैं. उनके नौजवानों को नौकरी नहीं मिल रही है. राजनीति की इस होड़ के कारण राज्य का बजट बढ़ता जा रहा है.   

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यूपी में स्मारकों और मूर्तियों की सुरक्षा के UPSSF नाम से एक  विशेष सुरक्षा बल बना है. टाइम्स आफ इंडिया ने पिछले साल लिखा है कि इसका बजट 1747 करोड़ रुपया है. एक दूसरे अखबार में इस साल फरवरी की खबर है कि हाई कोर्ट के बाद बन रहे इस सुरक्षा बल की पांच पांच बटालियन होगी. अखबारों की रिपोर्ट से पता चलता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी महापुरुषों के स्मारकों को संवारने के आदेश दिए हैं. साफ सफाई की व्यवस्था करने को कहा है. 

मूर्तियों की राजनीति ने इस राज्य को इतनी मूर्तियां दे दी हैं कि अब इनकी सुरक्षा के लिए अलग से बटालियन बनने वाली है. जिन मूर्तियों की स्थापना भावनाओं के सम्मान के लिए की जाती है, स्थापना के बाद वही मूर्तियां भावने के आहत होने का ख़तरा भी बन जाती हैं. 

उत्तर प्रदेश में पहचान की राजनीति के लिए पुराने महापुरुषों की खोज के अलावा नए महापुरुषों की खोज और उनकी स्थापना तेज़ी से हो रही है. हर किसी की मूर्ति बन रही है ताकि किसी को न लगे कि उसका समाज छूट गया है. यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यानाथ ने पिछले कुछ महीनों में हेमवती नंदन बहुगुणा, साहित्यकार भार्तेंदु हरिश्चंद्र के अलावा कई मूर्तियों की आधारशिला रख चुके हैं और अनावरण कर चुके हैं. 

इसी सिलसिले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आज गोरखपुर में थे यहां उनके कर कमलों द्वारा साढ़े बारह फीट की ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की मूर्ति का अनावरण किया गया. एक दिन पहले मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ ग्रेटर नोएडा में थे जहां उन्होंने राजा मिहिर भोज की मूर्ति का अनावरण किया. इस साल फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहराइच में राजा सुहेलदेव की याद में एक स्मारक के निर्माण का शिलान्यास किया है. इस साल मार्च में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बहराइच में ही महाराणा प्रताप, राजा रुदेंद्र बिक्रम सिंह की मूर्ति का अनावर कर चुके हैं. बहराइच यूपी क एक नया राजनीतिक परिसर बन कर उभर रहा है. यहां महाराणा प्रताप,राजा सुहेलदेव , रुदेंद्र बिक्रम सिंह की मूर्ति बन चुकी है और बन रही है. रवीश रंजन बता रहे हैं कि यूपी के नए राजनीतिक केंद्र बहराइच में मूर्तियों औऱ स्मारकों का हाल. 

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मायावती के कार्यकाल में हज़ारों करोड़ के अंबेडकर स्मारक बने लेकिन उसकी आलोचना करने वाली बीजेपी की सरकार ने इसी जून में अपना अंबेडकर स्मारक और सांस्कृतिक केंद्र बनाने का एलान किया है. इस पर भी करोड़ों रुपये खर्च होंगे ही.