नई दिल्ली : एक-दूसरे की नैतिकता और ईमानदारी को खोखला साबित करने का दौर आज समाप्त हो गया। एक और चुनाव मुद्दों पर खुलकर चर्चा करने का मौका गंवाकर जा रहा है। रैलियों और विज्ञापनों में लाखों रुपये फूंक दिए गए। एक से एक पंच लाइनों के ज़रिये एक दूसरे को धराशायी करने का सुख सब लेते रहे। बेतुके बयानों पर टीवी पर घंटों बहस चली। हासिल क्या होने जा रहा है। किसी की हार या जीत के अलावा इस चुनाव का हासिल क्या है।
देश और दुनिया में स्वर्ग बना देने के नारे के साथ दिल्ली कई चुनाव देख चुकी है। ऐसा नहीं है कि कुछ नहीं हुआ। हर बार दिल्ली पहले से कुछ बदल ही जाती है, लेकिन दिल्ली वह नहीं है, जो इंडिया गेट के आसपास की तस्वीरें बताती हैं। जिस राजपथ को ओबामा देखने आते हैं, वह दिल्ली का कुछ भी नहीं है। दिल भी नहीं है। दिल तो वहां होता है, जहां शरीर होता है। दिल्ली का शरीर उन बस्तियों में है, जहां के लोगों को आज भी उस दिल्ली का इंतज़ार है, जो भारत की राजधानी है। जहां से देश को चलाने का सपना और इक़बाल बांटा जाता है।
आज दक्षिणी दिल्ली के ओखला विधानसभा क्षेत्र से लौट रहा था। इस इलाके में नेता के काफिले में ऐसी कार थी, जो अलग-अलग मॉडल के हिसाब से 50 लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये में मिलती है। दुख की बात यह रही कि इतनी आलीशान कार को सभास्थल तक लाने के लिए अच्छी सड़क नहीं थी। ओखला और फरीदाबाद और आश्रम को जोड़ने वाली सड़क के बीच एक संकरा पुल है। इतना संकरा, कि एक तरफ से एक गाड़ी ही आ-जा सकती है। बाकी की जगह से ई-रिक्शा चिपकती हुई निकल पाती है।
हम इसी रास्ते से मदनपुर खादर पहुंचे थे। लोगों ने घेर लिया कि रैली छोड़िए, पहले हमारी समस्या दिखाइए। जब मैं गलियों में गया तो बताया गया कि इन तीन-तीन मंज़िला मकानों में शौचालय नहीं हैं। कुछ घरों में है, लेकिन उनकी नियमित सफाई के लिए पांच हज़ार रुपये देने पड़ते हैं। पता नहीं, कोई सिर पर मैला उठाकर बाहर तो नहीं लाता होगा। मगर यह बात दिमाग में ठनकी ज़रूर। महिलाओं ने बताया कि किसी कॉलोनी में सीवर नहीं है, इसलिए हम शौचालय बना नहीं सकते। आपने ऐसे पक्के मकान देखे हैं, जो देखने में ठीक-ठाक बने हुए हैं, मगर उनमें शौचालय नहीं हैं।हर कोई अपनी बात मुझसे कह देना चाहता था। औरतों ने बताया कि 2,000 घरों पर एक सार्वजनिक शौचालय है, जो रात 11 बजे बंद हो जाता है। लूज़-मोशन हो जाएं तो किसी को एक दिन में शौच के 50 रुपये तक देने पड़ जाते हैं। बिना पांच रुपये लिए शौचालय वाला अंदर नहीं जाने देता। रात के 11 बजे के बाद औरतों को नाले की तरफ अंधेरे में जाना पड़ता है, जो किसी जोखिम से कम नहीं है। आप इस स्थिति की कल्पना कीजिए, फिर किसी भी दल या नेता को प्यार करते हों, उसकी बातों को सुनिए। मुझे यकीन है कि आप उसके झूठ से भीतर तक छिल जाएंगे।
कंक्रीट की बस्तियां बसी हैं। उनमें सब कुछ है। टीवी, फ्रिज, एसी और कार भी, मगर शौचालय नहीं है। यह स्थिति कितनी भयावह है। एक औरत मिली, जो एक किलोमीटर की दूरी से पानी का गैलन लेकर आई थी। पानी माफिया ने पूरा प्लांट लगा रखा है। वे पांच से 20 रुपये में पानी बेचता है। सबको पानी देने का वादा कितना खोखला लगा, मैं बता नहीं सकता। जब माफिया पानी पहुंचा सकता है, तो नेता क्यों नहीं। यह माफिया भी तो किसी न किसी राष्ट्रवादी दल में होंगे ही। आम लोगों को पता है कि खारे पानी को साफ कर बड़ी मात्रा में पानी बर्बाद हो रहा है, लेकिन आम लोग अपने विधायक और सांसद के पास दौड़ते-दौड़ते थक जाते हैं तो फिर उस माफिया को सरकार मान लेते हैं।
हम वहां से निकलकर अपोलो अस्पताल की तरफ आ गए। आप जब फरीदाबाद से आश्रम की तरफ आएंगे, तो बाएं हाथ पर रेललाइन मिलती है, जो आगरा से दिल्ली की तरफ जाती है। इस लाइन के किनारे सालों से झुग्गियों को देख रहा हूं। कार रोककर देखने चला गया। दिल्ली का एक गांव मिला हरकेश नगर। नेशनल हाइवे और हरकेश नगर के बीच से रेललाइन गुज़रती है। इस गांव के पास अपना रास्ता नहीं है। लोगों ने बताया कि रेल पुल का सामान चार साल से पड़ा है, मगर बना नहीं है। रेल फाटक भी नहीं है। गांव से बाहर निकलने के लिए रेललाइन पार करनी पड़ती है। कई बार दिल्ली से सिग्नल न मिलने पर पटरियों पर रेलगाड़ियां घंटे भर से ज्यादा समय के लिए रुक जाती हैं।नतीजा यह होता है कि बच्चे स्कूल के लिए लेट हो जाते हैं और महिलाएं काम पर नहीं जा पातीं। दफ्तर जाने वालों को भी देरी का सामना करना पड़ता है। हम आपको दक्षिणी दिल्ली की तस्वीर बता रहे हैं। उस दक्षिण दिल्ली के बारे में, जिसकी संपन्न तस्वीरों का कितना बखान होता है। मगर हमारा अमीर तबका भी कितना संवेदनहीन है। वह देश के असली लोगों को छोड़ काल्पनिक मुल्क की कल्पना में स्टेडियम से लेकर टीवी सेट के सामने इंडिया-इंडिया करता रहता है।
हरकेश नगर के लोगों ने बताया कि गांव में पीने का पानी नहीं है। गांव की औरतें पहले रेललाइन पार करने का जोखिम उठाती हैं, फिर नेशनल हाइवे पार कर ओखला टंकी से पानी लाती हैं। बच्चों को भी इस काम में लगाया गया है। मर्द या तो बाहर का काम करते हैं या घर में होते हैं तो बाहर ताश खेलते हैं। पानी लेने का बोझ औरतों पर ही हैं।
बस इसी दिल्ली को देखकर लगा कि किसी भी पार्टी का फैन होना या समर्थक होना जनता से वादाखिलाफी है, उसके हितों से गद्दारी है। राजनीतिक दल में होना चाहिए, मगर हर समय जनदबाव को बनाए रखने के लिए। उम्मीद है, इस चुनाव में इन लाचार लोगों की आवाज़ गूंजेगी। कोई भी जीते, मगर जीतने के बाद इन लोगों की बुनियादी समस्याओं का समाधान कर दे। दिल्ली वर्ल्डक्लास बनकर वहीं इंडिया गेट पर नाचेगी। इसे असल में थिरकना है तो दिल्ली के उन मोहल्ले में पानी, बिजली और सड़क ले जानी होगी। जब तक हरकेश नगर और मदनपुर खादर जैसे इलाके हैं, वर्ल्ड क्लास बनाने का हर सपना इन बेआवाज़ लोगों को कुचलने के हथियार से ज्यादा कुछ नहीं है, भद्दा मज़ाक है।
This Article is From Feb 05, 2015
इस दिल्ली को भी दिल्ली समझे कोई...
Ravish Kumar, Vivek Rastogi
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Updated:फ़रवरी 05, 2015 20:10 pm IST
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Published On फ़रवरी 05, 2015 20:05 pm IST
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Last Updated On फ़रवरी 05, 2015 20:10 pm IST
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