जाने वाले सिपाही से पूछो, वो कहां जा रहा है...

जाने वाले सिपाही से पूछो, वो कहां जा रहा है...

कभी यूट्यूब पर इस गाने को सुनिएगा। हैदराबाद के शायर मख़्दूम मोइनुद्दीन की रचना है। श्वेत-श्याम दौर की फिल्म 'उसने कहा था' का गाना है। इस गाने के दृश्यों का भी अपना ही आकर्षण है, संगीत तो बेहतरीन है ही। युद्ध की निरर्थकता बयान करता यह गाना आपके ज़हन में धीरे-धीरे उतरता है। दुनिया आज भी युद्ध की निरर्थकता झेल रही है। विश्वयुद्ध के दौर में युद्ध के खिलाफ खूब आवाज़ें उठती थीं। अब सिपाही टुकड़ों-टुकड़ों में मारे जाते हैं। हम उस भयावहता को नहीं देख पाते। हम समझना ही नहीं चाहते कि युद्ध मेज़ पर बैठकर चंद लोगों की क्रूर रचना है।

इस गाने में शायर उनकी बात करता है, जो गया है और जो जाने वाले के पीछे रह गया है। कहता है कि हम इतना शहीद-शहीद करते हैं, कभी उस सिपाही से तो पूछ लो कि वह कहां जा रहा है, जाते वक्त क्या सोच रहा है। सिपाही भी तो हम और आपमें से कोई है। वह किन यादों से गुज़रता है। जिसका बेटा शहीद हुआ है, उसका घर शोक की जगह परेड ग्राउंड बन जाता है। बहुत सारे कैमरे पहुंच जाते हैं। आम लोगों की भीड़ होती है। बहुत सारे सिपाही होते हैं।

जब भी इस दृश्य को टीवी पर देखता हूं, सोचता हूं कि बहुत सारे नए लोगों के बीच घर-परिवार और शहीद की बीवी को कोई हमेशा के लिए ओझल होने से पहले के उन लम्हों में शहीद सिपाही से लिपट जाने देता, फूट-फूटकर रो लेने देता। उस वक्त सब वहां से चले जाते, लेकिन फिर यह सवाल न उठता कि सरकार और जनता भूल गई। सवाल ही तो हावी होता है सब पर। सवालों से ही तो हमारे सोचने की सीमा तय कर दी जाती है।

बहरहाल, अब जब राष्ट्रवाद की हमारी समझ इंदीवर के गानों में सिमट ही गई है तो इस गाने को यूं समझकर सुन लीजिए कि क्या मख़्दूम मोइनुद्दीन की इस रचना से हमारी समझ कुछ बेहतर होती है या फिर हम अभिशप्त हैं 'मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती...' टाइप ही सुनते रहने के लिए। उगलते रहिए, निगलते रहिए। राष्ट्रवाद के बर्गर को भकोसते रहिए, जो फास्ट फूड हो गया है राष्ट्रभक्त होने का। बहरहाल गाने के बोल आपके सामने पेश कर रहा हूं।

जाने वाले सिपाही से पूछो, वो कहां जा रहा है...

इश्क है हासिले ज़िन्दगानी...
खून से तर है उसकी कहानी...
आए मासूम बचपन की यादें...
आए दो रोज़ की नौजवानी...
जाने वाले सिपाही से पूछो, वो कहां जा रहा है...

कैसे सहमे हुए हैं नज़ारे...
कैसे डरडरकर चलते हैं सारे...
क्या जवानी का खूं हो रहा है...
सुर्ख हैं आंचलों के किनारे...
जाने वाले सिपाही से पूछो, वो कहां जा रहा है...

कौन दुखिया है, जो गा रही है...
भूखे बच्चों को बहला रही है...
लाश जलने की बू आ रही है...
ज़िन्दगी है कि चिल्ला रही है...
जाने वाले सिपाही से पूछो, वो कहां जा रहा है...

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