हम सभी एक राजनीतिक दल को बेहद सीमित नज़रिए से देखते हैं. फलां पार्टी हारेगी या जीतेगी, नेता का ब्रांड चमक रहा है या फीका पड़ गया है. मगर इसी के साथ राजनीतिक दल के भीतर कई प्रक्रियाएं एक साथ चल रही होती हैं. जैसे हम नहीं जानते कि आईटी सेल के आगमन के बाद पार्टी के स्वाभिमानी और मेहनती कार्यकर्ताओं की भूमिका कैसे बदल गई है. क्या उनकी जगह मुख्यालय से लेकर ज़िलों के कार्यालय तक में आईटी सेल चलाने वाले खुद को महत्वपूर्ण कार्यकर्ता समझने लगे हैं और पुराने कार्यकर्ताओं का काम सिर्फ व्हाट्सएप में भेजे गए संदेशों को फार्वर्ड करना रह गया है. राजनीतिक दल बहुत बदले हैं. इस चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में दूसरी बार के लिए दावेदारी कर रही है, कई ज़िलों में उसके नए कार्यालय बनकर तैयार हो चुके हैं.
मेरठ का यह दफ्तर अब जर्जर अवस्था में है मगर हमेशा तो ऐसा नहीं रहा होगा. पार्टी के शुरुआती दिनों की यहां कितनी यादें होगीं. कितने कार्यकर्ता यहां आते जाते खप गए होंगे और कितने महान बन गए होंगे. इस दफ्तर में बीजेपी का क्षेत्रीय और ज़िला कार्यालय भी चलता था. हमारे सहयोगी श्याम परमार ने बताया कि मेरठ का यह पुराना ऑफिस बाबा मनोहर नाथ मंदिर ट्रस्ट की संपत्ति है जिसमें बीजेपी का कार्यालय 20-25 साल से एक बड़े कमरे में चल रहा था. जैसे फैज़ाबाद का यह कार्यालय पुराना है. बाबरी मस्जिद ध्वंस के दौरान यहां पर भाजपा के सभी बड़े नेताओं का आना जाना होता होगा. मगर अब यह बीते दिनों की ब्लैक एंड व्हाईट तस्वीरों सा लगने लगा है. 1980 में बनी बीजेपी के दान और किराये पर चलने वाले दफ्तर इतिहास से मिटा दिए जाएंगे. इसी तरह फिरोज़ाबाद का यह दफ्तर पुराना हो चुका है. एस एन अस्पताल के सामने जैन मंदिर के चौराहे के पास हुआ करता था जो अब बंद हो चुका है. अब नया कार्यालय यहां बन रहा है. दबरई मुख्यालय से एक किलोमीटर दूर फिरोज़ाबाद रोड एनएच-2 पर बन रहा है. शापिंग काम्पलेक्स में चल रहा है. यहां अब ताला लग चुका है.
एक पार्टी कई सौ नए दफ्तर बना रही है. इसकी न तो कहीं चर्चा है और न ही इस पर रिपोर्ट. 19 मई 2015 की मिंट की ख़बर कहती है कि ज़मीन से नाता जोड़ने के प्रयास में और समर्थकों से फंड लेने के लिए बीजेपी कार्यालयों का एक राष्ट्रीय नेटवर्क बनाएगी. बीजेपी 630 ज़िलों में पार्टी का कार्यालय बनाने वाली है जिन्हें वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए राज्य और दिल्ली के मुख्यालय से जोड़ा जाएगा. बीजेपी के पास 280 ज़िलों में ही कार्यालय हैं और 2016 तक बाकी के 350 ज़िलों में दफ्तर बन कर तैयार हो जाएगा. जहां दफ्तर है वहां भी नया दफ्तर बना है.
इनकी लागत क्या है, ज़मीन खरीदने से लेकर इमारतें बनाने का खर्चा क्या इसकी जानकारी हमें नहीं है. मीडिया में पार्टी फंड को लेकर जो खबरें आ रही हैं उसके अनुसार 2017-18 में छह राजनीतिक दलों को कुल 1293 करोड़ आमदनी हुई. सबसे अधिक बल्कि 90 प्रतिशत से अधिक बीजेपी की आय 1027 करोड़ है. जिनमें से 53.9 प्रतिशत आय अज्ञात सोर्स से हुई हई है.
किसी रिसर्चर को अध्ययन करना चाहिए था, रिकार्ड करना चाहिए था कि 600 से अधिक नए दफ्तरों की डिज़ाइन क्या है, इनकी बनावट आने वाले दिनों में किस तरह के राजनीतिक दल की तस्वीर पेश करती है. इमारत के भीतर अध्यक्ष से लेकर महासचिवों के बैठने की व्यवस्था किस प्रकार संगठन के ढांचे का बयान कर रही है. इन मुख्यालयों और कार्यालयों के ज़रिए बीजेपी आने वाले दिनों में नई स्मृतियों की रचना भी कर रही है. हो सकता है कि अब पार्टी की गतिविधि में कार्यालय की भूमिका पहले से कहीं अधिक स्थायी और महत्वपूर्ण होने वाली है. किसी के घर या दुकान से पार्टी चलाने की प्रथा शायद बंद हो जाए.
जैसे मेरठ में दफ्तर की इमारत बनकर तैयार है. देखने से मॉल और थ्री स्टार होटलों की याद दिलाती है मगर चकाचक यह दफ्तर पार्टी फंड के पैसे से बना है. ज़मीन खरीदी गई है. पार्किंग की व्यवस्था है. प्रथम तल पर 200 लोगों की क्षमता वाला हॉल है. एक कांफ्रेंस हॉल भी है. 34 कमरे हैं. इसके भीतर आकर लगता है है कि दान दक्षिणा में दी गई इमारतों से चलने वाली राजनीति के दिन चले गए. कार्यकर्ता और नेताओं को आते ही लगेगा कि वे शापिंग काम्पलेक्स में आ गए हैं. अभी तक पार्टी कार्यालय होने के बाद भी नेता अपने घर या होटल में ही बैठकें कर लेते थे, मगर इतनी तैयारी से यही लगता है कि ये सब भी बंद होगा और पार्टी की राजनीतिक गतिविधि किसी प्रभावशाली के घर दुकान से नहीं इस दफ्तर से चलेगी. स्टाफ के निवास की भी व्यवस्था है. हमने इसकी लागत पता करने की कोशिश की मगर जानकारी नहीं दी गई. कहा गया कि लखनऊ आफिस से खरीद हुई थी, उन्हें पता होगा.
दिल्ली में भी 2018 में बीजेपी का एक नया मुख्यालय बना, कभी इंटरनेट पर इसके बारे में सर्च कीजिए. भीतर की तस्वीर शायद ही मिले. सारी तस्वीर मुख्यालय के बाहर की है. यह मुख्यालय कितने में बना, मीडिया रिपोर्ट में इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिली. 2 एकड़ ज़मीन में यह मुख्यालय बना है. इसके तीन ब्लॉक हैं. एक ब्लाक 7 मंज़िल का है. बाकी दो ब्लाक 3-3- मंज़िल के हैं. 70 कमरे हैं. इकोनोमिक टाइम्स में 18 फरवरी 2018 की रिपोर्ट है. इसमें अमित शाह का बयान है कि दुनिया में किसी भी दल का इतना बड़ा मुख्यालय नहीं है. इसकी लागत कितनी है, कभी नहीं बताई गई. आईटीओ के पास इतना भव्य मुख्यालय तो दो चार करोड़ में नहीं ही बन सकता है.
यह ज़रूर है कि सब दिल्ली में नहीं बना है बल्कि ज़िलों में भी दफ्तर बने हैं।. अकेले उत्तर प्रदेश में 51 नए दफ्तर बनकर तैयार हैं और बन रहे हैं. कई जगह पूरी तरह से तैयार हैं और कई जगहों पर अंतिम चरण में हैं.
फिरोज़ाबाद का दफ्तर भी नया ही बना है. ये दफ्तर तो तैयार हैं मगर चुनाव के कारण कई जगहों पर पूरी तरह चालू नहीं हुए हैं. इमारत के रंग में भाजपा के झंडे के भी दो रंग हैं. मथुरा के नए दफ्तर के बारे में मीडिया में खबर छप गई थी कि कनेक्शन के बगैर ही बिजली चल रही थी यानी बिजली चोरी हो रही थी. मीडिया में रिपोर्ट आने के बाद कनेक्शन ले लिया गया है. मथुरा वाला दफ्तर पुष्पांजली उपवन में है. करीब 200 मीटर जगह में है. एक अनुमान के मुताबिक ज़मीन की कीमत 45-50 लाख होगी और इमारत के बनाने की लागत 60-70 लाख हो सकती है. यानी करीब सवा से डेढ़ करोड़ की लागत की बात सूत्र कहते हैं. पर यह पुख्ता जानकारी नहीं है.
भाजपा का यह कार्यालय यूपी के श्रावस्ती की है. वही श्रावस्ती जहां बुद्ध सर्किल बनाने के वादे को दो साल में कुछ नहीं हुआ मगर एक साल में भाजपा का नया कार्यालय बन गया. यहां भी पहले भाजपा का अपना दफ्तर नहीं था. बहराइच में भाजपा का अपना कार्यालय नहीं था मगर यहां नई इमारत बन कर करीब करीब तैयार है. तीन मंज़िला इमारत का उद्घाटन हो चुका है. इस इमारत की लागत की जानकारी नहीं मिल सकी.
एक पार्टी का सैंकड़ों की संख्या में कार्यालय बनाना कोई सामान्य घटना नहीं है. 6 अप्रैल को बीजेपी यूपी के 51 ज़िलों में एक साथ अपने पार्टी कार्यालयों का उद्घाटन करेगी. 51 कार्यालय करोड़ों रुपये से ही बने होंगे मगर सही संख्या कोई नहीं बताता. आखिर ज़मीन खरीदने से लेकर 51 जगहों पर तीन मंज़िला इमारत बनाने में कुछ तो लागत आई होगी. क्या एक राजनीतिक दल को इसकी जानकारी खुद से नहीं देनी चाहिए. नए दफ्तर बनाने में बीजेपी ने पूरे देश में और यूपी में कितने करोड़ खर्च किए. यानी न मंदी का असर पड़ा न नोटबंदी का असर हुआ. रियल स्टेट भले मंदा चल रहा है मगर भाजपा ने दिखा दिया है उसका अपना रियल स्टेट सफल रहा है.
इसी तरह मध्य प्रदेश चुनावों के समय अनुराग द्वारी ने जबलपुर में बीजेपी के नए कार्यालय का हाल बताया था. मध्य प्रदेश में 51 ज़िले हैं. 9 ज़िले को छोड़ कर सभी में नए कार्यालय बन चुके हैं. 42 नए दफ्तर बने हैं. क्या यह जानना दिलचस्प नहीं रहेगा कि सैकड़ों की संख्या में दफ्तर बनाने में बीजेपी ने कितने करोड़ खर्च किए. पैसा कहां से आया है. क्या चंदे के पैसे से ये सब हुआ है.