नोटबंदी ने लघु व मध्यम उद्योगों की कमर तोड़ दी है. हिन्दू मुस्लिम ज़हर के असर में और सरकार के डर से आवाज़ नहीं उठ रही है लेकिन आंकड़े रोज़ पर्दा उठा रहे हैं कि भीतर मरीज़ की हालत ख़राब है. भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार मार्च 2017 से मार्च 2018 के बीच उनके लोन न चुकाने की क्षमता डबल हो गई है. मार्च 2017 तक लोन न चुकाने का मार्जिन 8,249 करोड़ था. जो मार्च 2018 तक बढ़ कर 16,111 करोड़ हो गया. यह आंकड़ा इंडियन एक्सप्रेस ने आरटीआई से हासिल किया है जो आज जार्ज मैथ्यू की बाइलाइन के साथ छपी है. लघु व मध्यम इकाई जहां 25 लाख से लेकर 2 करोड़ से कम का निवेश है वहां नॉन परफार्मिंग असेट(NPA) मार्च 2018 तक 82,382 करोड़ से बढ़कर 98,500 करोड़ हो गया है. ज्यादातर लोन पब्लिक सेक्टर बैंक के दिए हुए हैं.
यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा भी बोगस निकला, आप फिर उल्लू बने
सरकार टैक्स रिटर्न भरने के आंकड़ों पर झूम रही है लेकिन लेखा नियंत्रक परीक्षक सीएजी का कहना है कि प्रत्यक्ष करों के संग्रह में मात्र 6.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. यह इस साल के अप्रैल से जुलाई का आंकड़ा है. जबकि बजट में लक्ष्य था कि 14.4 प्रतिशत संग्रह होगा. यही नहीं कोरपोरेट से जो टैक्स मिला है वो मामूली लग रहा है. कोरपोरेशन टैक्स संग्रह में मात्र 0.57 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. पिछले सात साल में पहले चार महीने में इतना कम कोरपोरेशन टैक्स संग्रह कभी नहीं हुआ. जबकि बजट में टारगेट था कि 10.15 प्रतिशत ज्यादा वसूली होगी. पर्सनल इनकम टैक्स का संग्रह भी पिछले तीन साल के पहले चार महीने में सबसे कम है. बजट में लक्ष्य था कि 19.8 प्रतिशत की वृद्धि होगी मगर 11.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
प्राइम टाइम : नाकाम रही नोटबंदी?
इस बार 31 अगस्त तक 5.42 करोड़ आयकर रिटर्न भरा गया है. पिछले साल की तुलना में 70.86 प्रतिशत अधिक है. 5.42 करोड़ में से 3.37 करोड़ रिटर्न सैलरी पर काम करने वाले लोगों के हैं. पिछले साल 2.19 करोड़ लोगों ने इस श्रेणी में रिटर्न दायर किया था. इस श्रेणी में 54 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. लेकिन इस वृद्धि के बाद भी राजस्व वसूली में खास वृद्धि नहीं हुई है. इस साल के आर्थिक सर्वे में आप देख सकते हैं कि 2017 के साल में भी आयकर रिटर्न की संख्या बढ़ी थी मगर उससे राजस्व नहीं मिला था. ज़्यादातर रिटर्न उनके थे जिनकी टैक्स देने की क्षमता नहीं है. ढाई लाख या उसके नीचे की आय वाले थे. बाकी आप समझदार हैं. रुपया ऐतिहासिक रूप से कमज़ोर है. क्या रुपये की ऐतिहासिक कमज़ोरी के साथ जीडीपी के एक तिमाही में 8.2 प्रतिशत होने का जश्न मनाया जा सकता है? बिल्कुल मनाया जा सकता है, बशर्ते आपने सोचने समझने की शक्ति को गठरी में समेट कर गंगा में बहा आए हों.
क्या तेल के बढ़ते दाम पर लगेगी रोक?
आनिंद्यों चक्रवर्ती ने ट्विट किया है कि मान लीजिए जून 2016 में आपके पास 50,000 रुपये थे. आपकी हालत ख़राब हुई और जून 2017 में यह जमा राशि घट कर 49, 112 रुपये हो गई. लेकिन इसके अगले साल आपकी कमाई बढ़ जाती है और जून 18 में 56,728 रुपये हो जाती है. आपकी कमाई में 13.5 प्रतिशत का उछाल आया है. लेकिन जून 2016 से जून 2018 का हिसाब लगाएंगे तो यह मात्र 5.6 प्रतिशत ही हुआ. यही हुआ है इस साल की पहली तिमाही में. जाइये गंगा से अपनी गठरी ले आइये.
हिंदी का पाठक जब बनेगा सबसे अच्छा पाठक
नोट- इस लेख को लिखने में दो घंटे का समय लगा है. इंडियन एक्सप्रेस और बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी ख़बरों को पढ़कर आपके लिए हिन्दी में लाया हूं. हिन्दी के अख़बारों ने आपको ये जानकारी दी है? जानकारी नहीं दी तो क्या हुआ, आपसे पैसे तो ले लिए न! कितना प्रोपेगैंडा पढ़ेंगे. आप खुद भी इन आंकड़ों को चेक कर सकते हैं. सही बात है कि फेसबुक से भी कितने लोगों तक पहुंच पाएंगे पर मेरा काम यह सोचना नहीं है. मेरा काम है लिखना. प्रोपेगैंडा का भांडा फोड़ देना. आप चाहें तो इसे करोड़ों लोगों के बीच साझा कर पहुंचा सकते हैं.
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