तेल की बढ़ी कीमतों की मार, बाकी देशों को जनता की चिंता, कहां है हमारी सरकार?

दुनिया भर में महंगाई है. महंगाई से अपनी जनता को राहत देने के लिए दुनिया की सरकारें अलग अलग कदम उठा रही हैं. भारत में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 80 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है. मुमकिन है मिडिल क्लास और निम्न मध्यमवर्गीय तबका भी इसका लाभ ले रहा हो लेकिन क्या यह काफी है.

यूक्रेन युद्ध के कारण जब पेट्रोल और डीज़ल के दाम बढ़ने लगे, तब कई देशों ने पेट्रोल और डीज़ल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क में कटौती की है. कहीं इन कटौतियों से फर्क पड़ रहा है तो कहीं इन्हें दिखावा भी बताया जा रहा है. ऑस्ट्रेलिया में पेट्रोल पर लगने वाले टैक्स में करीब पचास फीसदी की कटौती कर दी गई है. वहां सरकार 44 सेंट टैक्स के रूप में लेती थी. लेकिन अब उसे 22.1 सेंट कर दिया गया है. एक आस्ट्रेलियन डॉलर 56 रुपये का पड़ता है. इस हिसाब से देखें तो आस्ट्रेलिया में एक लीटर पेट्रोल पर 12 रुपया टैक्स कम कर दिया गया है. लेकिन इसका फायदा तब मिलेगा जब मौजूदा स्टॉक खाली हो जाएगा. टैक्स कटौती के पहले से ही आस्ट्रेलिया के कई राज्यों में पेट्रोल के दाम कम होने लगे हैं.

ऑस्ट्रेलिया की चमकदार तस्वीरों को देखकर यह अनुमान लगाना ठीक नहीं होगा कि यहां के लोग बढ़ती कीमतों से परेशान नहीं हैं, इन्हें हर तरह की सुविधाएं मिल चुकी हैं. वहां की सरकार ने तीन अरब ऑस्ट्रेलियन डॉलर का भार वहन कर जनता को पेट्रोल की कीमतों में राहत दी है. यह राशि भारतीय रुपये में 16,800 करोड़ होती है. इस कटौती से ऑस्ट्रेलिया में इस कारण 40 लीटर के टैंक को भराने में आस्ट्रेलिया के लोगों को 10 डॉलर कम देने होंगे, भारतीय रुपये में 560 रुपये की बचत होगी. ऑस्ट्रेलिया में पेट्रोल के दाम कम होने लगे हैं. यही नहीं आस्ट्रेलिया की सरकार ने साठ लाख लोगों के खाते में 250 डॉलर की राशि जमा कर दी है. इसे वहां Cost of Living Payment (जीवन लागत भुगतान) कहा जाता है. जो लोग वृद्धावस्था पेंशन ले रहे हैं, विकलांग्ता पेंशन ले रहे हैं, बेरोज़गारी भत्ता ले रहे हैं, ऐसे कई कैटगरी में लाभार्थी के खाते में 250 डॉलर अपने आप चला जाएगा और इस पैसे पर आयकर नहीं लगेगा. इसके अलावा पुरानी योजनाओं के भत्ते में भी 20 से 30 प्रतिशत की वृद्दि कर दी गई है. भारत से गए लोगों को भी इन योजनाओं का लाभ मिलता है. NRI अंकल से व्हाट्सएप के वीडियो कॉल पर पूछ लीजिएगा. वैसे वहां इस पर भी सवाल उठ रहे हैं. दिसंबर 2021 में राज्यसभा में सरकार ने बताया है कि 5 साल में 86 हज़ार 933 भारतीयों ने आस्ट्रेलिया की नागरिकता ली है. आपको भी लग रहा होगा कि वहां सब कुछ कितना व्यवस्थित है, शायद इसीलिए भारत छोड़ कर लोग वहां की नागरिकता ले रहे हैं लेकिन भारत की राष्ट्रवाद की राजनीति नहीं छोड़ पाते हैं. क्या पता वहां की नागरिकता लेने वालों में कुछ ऐसे भी होंगे जो वहां भी मुस्लिम फल विक्रेताओं के बहिष्कार की राजनीति की सोच रखते होंगे. देश छोड़ कर गए ऐसे देशभक्तों को किस तरह से प्रेरित किया जाए कि वे ऑस्ट्रेलिया की इन सुविधाओं को छोड़ कर वापस भारत आ जाएं जहां ज़बरदस्त विकास हो चुका है. 

दुनिया भर में महंगाई है. महंगाई से अपनी जनता को राहत देने के लिए दुनिया की सरकारें अलग अलग कदम उठा रही हैं. भारत में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 80 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है. मुमकिन है मिडिल क्लास और निम्न मध्यमवर्गीय तबका भी इसका लाभ ले रहा हो लेकिन क्या यह काफी है. कई देशों में सरकारी योजनाओं पर आश्रित लोगों को अलग से पैसे दिए जा रहे हैं ताकि वे महंगाई का मुकाबला कर सकें. ऑस्ट्रेलिया का उदाहरण हमने आपको बताया ही.

जर्मनी में भी पेट्रोल और डीज़ल पर लगने वाले टैक्स में अगले तीन महीने के लिए कटौती की गई है. चांसलर ओल्प स्कोल्ज़ की सरकार ने 30 यूरो सेंट टैक्स की कटौती कर दी है. डीज़ल पर 14 सेंट की कटौती का एलान हुआ है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट का टिकट भी सस्ता कर दिया गया है. मासिक टिकट 9 यूरो सस्ता कर दिया गया है. जो मज़दूर आयकर जमा करते हैं उन्हें जर्मनी की सरकार 300 यूरो दे रही है ताकि पेट्रोल के दामों के कारण जो खर्चा हो रहा है उसकी भरपाई हो सके. भारतीय रुपये में 300 यूरो 24,846 रुपये होता है. शायद इस तरह से तुलना सही नहीं हो मगर इसे आप ऐसे देखिए. जर्मनी के छोटे शहरों में एक घर का किराया 300 यूरो होता है. तो सरकार किराये के बराबर की रकम अपनी जनता को दे रही है. यह काफी पैसा है. परिवारों को एक बार के लिए हर बच्चे के हिसाब से 100 यूरो दिया जा रहा है. इससे कम आय वाले परिवारों को राहत मिलेगी.

ऐसा नहीं है कि जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस में विकास नहीं हो रहा है लेकिन वहां पर महंगाई के सपोर्टर न होने के कारण ही सरकार अपने नागरिकों के खाते में 250 डॉलर, 300 यूरो की रकम डाल रही है. पेट्रोल पर ड्यूटी कम कर रही है. फ्रांस में भी पेट्रोल पर लगने वाली ड्यूटी में 15 सेंट की कमी की गई है. इस कटौती के कारण वहां की सरकार को दो अरब यूरो का झटका लगा है. वहां के अखबारों में इस तरह की खबरें छप रही हैं कि इस कटौती से 60 लीटर की टंकी फुल कराने पर 9 यूरो की बचत होगी. इसके बाद भी फ्रांस की सरकार ने तेल कंपनियों से अपील की है कि सरकार ने 15 सेंट की कटौती की है, कंपनियां भी अपनी तरफ से कुछ कम करें. 5 सेंट की कटौती करें ताकि नागिरकों को ज्यादा से ज्यादा लाभ हो. आयरलैंड और पुर्तगाल में भी पेट्रोल पर ड्यूटी घटाने की ख़बरें छपी हैं.

ब्रिटेन में भी मार्च 2023 तक के लिए ईंधन पर लगने वाले कर में 5 पेन्स की कमी की गई है. लेकिन इससे वहां बहुत फर्क नहीं पड़ा है. ब्रिटेन में पेट्रोल का दाम रिकार्ड स्तर पर है. 167 पाउंड 30 पेंस प्रति लीटर पेट्रोल मिल रहा है. डीज़ल तो और भी महंगा है. ब्रिटेन में मार्च 2011 से लेकर मार्च 2022 तक ईंधन पर लगने वाले कर में कोई बदलाव नहीं हुआ था, लेकिन इस बार के बजट में पांच पेन्स की कटौती की गई है. इसका लाभ अभी जनता तक पहुंचना बाकी है. ब्रिटेन में भी पेट्रोल में एथनॉल की मात्रा बढ़ाकर एक नया पेट्रोल E10 लांच हुआ है लेकिन यह आम पेट्रोल से महंगा है. इससे तेल की अर्थवव्यवस्था पर खास फर्क नहीं पड़ा है. ब्रिटेन की जनता पेट्रोल के दाम बढ़ने से काफी परेशान है. दिसंबर 2021 में सरकार ने बताया था कि 66 हज़ार से अधिक भारतीयों ने इंग्लैंड की नागरिकता ले ली. उसी जवाब में यह भी था कि 2017 से 21 के बीच 6 लाख से अधिक भारतीयों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी. जेलस मत होइये, वहां गए सिमरनों को अपनी ज़िंदगी जी लेने दीजिए आप फोकस पेट्रोल के दाम पर रखिए. 

पिछले साल नवंबर में भारत में भी केंद्र सरकार ने उत्पाद शुल्क में भारी कटौती की थी. पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 32 रुपये से घटा कर 27 रुपये कर दिया गया. राज्यों ने भी कर घटाए. उसके बाद भी लोग 95 रुपया लीटर पेट्रोल भराते रहे. जब युद्ध नहीं था तब से भारत के लोग 100 रुपया लीटर से अधिक पेट्रोल खरीद रहे थे. अब तो कई शहरों में पेट्रोल 122 रुपये लीटर से अधिक हो गया है. दिल्ली में साल भर में CNG की कीमत 25 रु 71 पैसे की बढ़ोतरी हुई है. इस साल 4 महीने में 17 बार वृद्धि हुई है. पिछले साल 1 अप्रैल को कीमत 43 रु 40 पैसे प्रति किलोग्राम थी.अब बढ़कर 69 रु 11 पैसे. 

मुंबई में ओला उबर चलाने वालों का कहना है कि CNG की कीमतें बढ़ने के कारण किराया बढ़ाने के लिए मजबूर हुए हैं. 15 प्रतिशत तक का किराया बढ़ा है लेकिन उन्हें घाटा ही हो रहा है. उनका आरोप कंपनी पर है कि बढ़े हुए किराए का लाभ उन तक नहीं पहुंच रहा है. देश भर में ओला उबर के चालक इस महंगाई से परेशान हैं. सरकार को इन्हें तुरंत कोई राहत देनी चाहिए. कम से कम कुछ समय के लिए टैक्सी वालों से टैक्स की वसूली तो बंद की ही जा सकती है ताकि उनके हाथ में कुछ पैसे आ सकें. ओला उबर में चलने वाले सोशल मीडिया पर गुस्सा निकाल रहे हैं कि किराया बढ़ गया है मगर कार चालक एयरकंडीशन के अलग से पैसे मांग रहा है. इन पोस्ट को पढ़ते हुए कुछ चालक लोगों से मुलाकात हुई जो महंगाई का गुस्सा कंपनी पर निकाल रहे हैं, सरकार पर नहीं. ऐसे कई मैसेज को पढ़ने के बाद इतना तो लगा कि गुस्सा किसी पर भी निकालें लेकिन इंग्लिश क्लास वालों को भी चुभ रहा है, पिंच कर रहा है. ये क्लास भी एयर कंडीशन कार में बैठने के सौ पचास एक्स्ट्रा नहीं दे पा रहे हैं.

अखबारों में खबरें छप रही हैं कि सिलेंडर महंगा होने से लोग फिर से कम भराने लगे हैं. सवाल है कि क्या सरकार के पास अब कोई स्कॉप बचा है कि वह ड्यूटी में कमी करे या अपने नागरिकों के खाते में अनाज के साथ साथ कुछ पैसे भी डाल दे, जिससे उनकी मदद हो जाए. 6 अप्रैल को भारत के क्रूड ऑयल बास्केट की कीमत में 8 प्रतिशत की कमी आई है. अब यहां सवाल है कि 17 दिनों में 10 रुपया लीटर महंगा हुआ है. क्या आगे दाम नहीं बढ़ने की उम्मीद की जा सकती है, क्या जो दाम बढ़े हैं उसमें कटौती की उम्मीद की जा सकती है?

क्या कभी पेट्रोल और डीज़ल का दाम 80 रुपये लीटर पर वापस लौट पाएगा? आर्थिक पत्रकार आनिंद्यो चक्रवर्ती एक दूसरी दलील देते हैं. उनका कहना है कि जो तेल निर्यात के लिए आयात होता है सरकार उसमें कटौती करके जनता को राहत दे सकती है. 

क्या यह विकल्प सरकार के पास है कि निर्यात के लिए जो कच्चा तेल खरीदा जाता है उसमें कटौती करे? FITCH रेटिंग एजेंसी की रिपोर्ट है कि प्राकृति गैस की कीमतों को दोगुना करने और तेल की कीमतों को बढ़ाने से ONGC और रिलायंस जैसी तेल और गैस उत्पादक कंपनियों का मुनाफा बढ़ेगा. अमरीका में भी तेल कंपनियों पर टैक्स लगाने की मांग हो रही है ताकि पेट्रोल पर ड्यूटी घटा कर जनता को राहत दी जा सके.

अमरीकी कांग्रेस में एक विधेयक पेश हुआ है. उसका आधार यह है कि संकट तो यूरोप में है लेकिन अमरीका के भीतर जो तेल का उत्पादन हो रहा है, उसकी लागत तो नहीं बढ़ी है. अत: निर्यात और आयात किए गए तेल के दामों में अंतर को देखेंगे तो तेल कंपनियों को बहुत मुनाफा हो रहा है. इसलिए अस्थायी तौर पर तेल कंपनियों पर टैक्स लगा देना चाहिए ताकि जनता को सस्ती दरों पर पेट्रोल दे सकें. आनिंद्यो चक्रवर्ती क्या यही बात नहीं कह रहे कि भारत सरकार तेल का आयात कम कर दे खासकर वो हिस्सा जिसे तेल कंपनियां निर्यात करती हैं और मुनाफा कमाती हैं. इटली ने हाल ही में ऐसा किया है. तेल कंपनियों पर टैक्स लगा दिया है. यूरोपियन कमिशन में भी इसी तरह का प्रस्ताव पेश किया गया है.

2016 से भारत सरकार तेल के आयात में कटौती की बात कर रही है, अगर तेल कंपनियों के निर्यात के लिए आयात हो रहा है और उसका भार आम जनता पर पड़ रहा है तो क्या उसमें कटौती नहीं हो सकती? फरवरी 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि 2022 में जब भारत आजादी के 75 वीं सालगिरह मना रहा होगा तब तेल की आयात में 10 प्रतिशत की कटौती की जानी चाहिए. ऐसा नहीं था कि सरकार ये बात भूल गई. पिछले साल भी प्रधानमंत्री ने कहा था कि आयात पर निर्भरता कम की जा रही है. प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर पहले ध्यान दिया गया होता तो आज मिडिल क्लास पर भार नहीं पड़ता लेकिन 2016 में जब सरकार ने लक्ष्य तय किया कि तेल का आयात 10 प्रतिशत कम होगा तब पांच साल बीत जाने के बाद क्या रिजल्ट आया है? क्या 2016 से लेकर अब तक कच्चे तेल के आयात में कमी हुई है? 10 फऱवरी 2022 को सरकार ने लोकसभा में जो जवाब दिया है उसी से बता रहा हूं.

2016 में सरकार ने लक्ष्य रखा था कि कच्चे तेल आयात में 10 प्रतिशत की कमी की जाएगी छह साल बाद सरकार ही बता रही है कि आयात बढ़ गया है. इसका मतलब है कि घरेलु उत्पादन के लिए जो नीतियां बनाई गईं, वो हेडलाइन के ही काम आती रहीं. एथनॉल, बायो सीएनजी, बायो गैस वगैरह की. अभी हम एथनॉल की बात नहीं कर रहे हैं लेकिन वैकल्पिक ऊर्जा की अन्य योजनाओं का हाल तो देख ही सकते हैं.  2018 के बजट के बाद मन की बात में प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत में गोबर गैस के कारोबार के लिए आनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफार्म बनेगा. ताकि गोबर गैस का उपयोग किया जा सके. 30 अप्रैल 2018 की पत्र सूचना कार्यालय PIB की प्रेस रिलीज़ में कहा गया है कि 2018-19 में देश के अलग अलग राज्यों में 700 बायो गैस यूनिट की स्थापना की जाएगी. इस साल 3 फरवरी 2021 की वेब पोर्टल लॉन्च हुआ जिस पर आज बायो गैस यूनिट की संख्या 306  दिख रही है. बाकी बनने की प्रक्रिया में हैं. कुल मिलाकर 700 बायो गैस यूनिट का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है जबकि चार साल से अधिक वक्त गुज़र चुका है. इसी तरह कंप्रेस्ट बायो गैस CBG प्लांट का हाल देखिए. इसकी कहानी भी बड़े लक्ष्य की है ताकि देखने सुनने में सब कुछ बड़ा लगे. 

20 नवंबर 2020 की PIB की एक प्रेस रिलीज में कहा गया है कि 2023-24 तक भारत में 5000 कंप्रेस्ड बायो गैस प्लांट लगाए जाएंगे और इससे 15 मिलियन मिट्रिक टन गैस का उत्पादन होगा. रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे, वगैरह वगैरह. इसके लिए 600 प्लांट लगाने के लेटर आफ इंटेंट जारी कर दिए गए हैं. यह कोई साधारण योजना नहीं है. बड़े लक्ष्य की योजना है. 5000 कंप्रेस्ड बायो गैस प्लांट लगाने में दो लाख करोड़ का निवेश अनुमानित है. 30,000 करोड़ की लागत से 900 प्लांट बनाने का काम शुरू होने के कई चरणों में प्रवेश कर चुका था. PIB की प्रेस रिलीज में यह सब जानकारी दी गई है. दो साल बाद, भाजपा सांसद लाकेट चैटर्जी के एक सवाल के जवाब में 31 मार्च 2022 को केंद्रीय मंत्री रामेश्वर तेली जवाब देते हैं फरवरी 2022 तक केवल 20 CBG प्लांट ही कमिशन किए गए हैं. 2020 में बताया जाता कि 900 प्लांट शुरू होने के अलग अलग चरण में हैं लेकिन दो साल बाद 20 प्लांट ही कमिशन होते हैं. तब क्या 23-24 तक यह योजना अपने लक्ष्य को पूरा कर सकेगी? कहीं ऐसा तो नहीं कि बड़े बड़े लक्ष्य बना दिए जाते हैं ताकि हेडलाइन बड़ी लगे और उनके लागू होने का रिकार्ड धीमा होने लगता है, 

कुल मिलाकर 2021-22 तक सरकार आयात में 10 प्रतिशत की कमी का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाई. जबकि 10 फरवरी को लोकसभा में सरकार ने बताया है कि इसके लिए एक कमेटी भी बनाई गई थी जिसने पांच सूत्री सुझाव दिए थे. सरकार ने नेशनल बायोफ्यूल पॉलिसी बनाई है. सतत नाम से नीति बनाई है लेकिन आपने देखा कि उन योजनाओं का भी हाल कैसा है. 

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