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This Article is From May 21, 2018

बंगाल के पंचायत चुनावों में हुई हिंसा क्‍या लोकतंत्र की हार नहीं है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 21, 2018 21:51 pm IST
    • Published On मई 21, 2018 21:51 pm IST
    • Last Updated On मई 21, 2018 21:51 pm IST
बंगाल के पंचायत चुनावों में हुई हिंसा बता रही है कि गांवों में चुनाव का मतलब आज भी बम बंदूक़ और चाक़ू है. सीपीएम का नामो निशां मिट गया मगर उसके दौर की हिंसा पार्टी बदल कर जारी है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पंचायत चुनावों में 27 लोगों की हत्या हुई है. मरने वालों में सभी दल के लोग हैं जो बता रहा है कि हथियार सबने उठाया है. आपस में हिंसक संघर्ष की घटना तो मरने वालों की संख्या से भी भयानक है. एक जगह तृणमूल के ही युवा और वरिष्ठ नेताओं के समर्थकों के बीच ख़ूंख़ार संघर्ष हो गया. जिसमें अकरम नाम का बुज़ुर्ग सा दिखने वाला एक व्यक्ति सरसों के कनस्तर की चादर का बुलेट प्रूफ़ पहने हुए पकड़ा गया है. चादर काट कर उसे अल्युमुनियम की परत लगा देने से सामान्य गोली के असर से बचने का चांस रहता है. एक ही पकड़ा गया है मगर पुलिस को आशंका है कि ऐसे स्थानीय रूप से बने बुलेट प्रूफ़ जैकेट और भी हो सकते हैं. इस स्तर की हिंसा के बाद पूरा चुनाव रद्द कर देना चाहिए और इसी के साथ राज्य चुनाव आयोग को भंग कर दिया जाना चाहिए.

लोकतंत्र में हिंसा के सवाल से कोई समझौता नहीं किया जा सकता. सौ करोड़ भी हिंसा है और बम बंदूक़ भी हिंसा है. ममता बनर्जी ने अपनी जीत को बंगाल की जनता और शहीदों के नाम समर्पित किया है. यही अपने आप में शर्मनाक है. शहीद होने की नौबत क्यों आई? जब देश का बड़ा हिस्सा चुनावों के वक़्त हिंसा से मुक्त हो चुका है तो बंगाल में इसे शह कैसे मिल रही है. ज़रूर नाकामी राज्य चुनाव अधिकारी की है मगर जवाबदेही मुख्यमंत्री की बनती है. क्या लेफ़्ट संत्रास के जवाब में उन्होंने यही राजनीतिक संस्कृति विकसित होने दी है? इसका मतलब यह नहीं कि वहां बाक़ी अहिंसा पर चल रहे हैं. वहां के गांवों की राजनीति की भाषा हिंसा क्यों बनी हुई है?

पंचायत के तीनों स्तर पर तृणमूल की सत्तर से 95 फ़ीसदी जीत के बाद भी टेलिग्राफ़ में एक ख़बर देखकर सन्न रह गया. तृणमूल के एक सदस्य पर बीजेपी की मदद करने का आरोप रहा होगा. ख़बर के अनुसार उसकी पत्नी को सार्वजनिक रूप से उठक बैठक कराया गया है. भयावह ख़बर है. अख़बार ने तस्वीर भी छापी है. इस लिंक को चटका कर आप भी देख सकते हैं. शर्म आती है कि हमारा राजनीतिक समाज इतना जर्जर हो गया है. ममता बनर्जी इस जीत का आख़िर क्या करेंगी? क्या उनके यहां लोकतंत्र की हार नहीं है? क्या सिर्फ़ कर्नाटक में ही लोकतंत्र की हार है?

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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