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This Article is From Dec 24, 2019

यूपी से पुलिस बर्बरता की दहलाने वाली रिपोर्ट

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 24, 2019 23:20 pm IST
    • Published On दिसंबर 24, 2019 23:20 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 24, 2019 23:20 pm IST

उत्तरप्रदेश के कई शहरों से आ रही खबरें विचलित करने वाली हैं. इन खबरों में पुलिस हिंसा की जो तस्वीर उभरी है वो भयानक है. बेशक प्रदर्शनकारियों की तरफ से भी हिंसा हुई है और पत्थर चले हैं. लेकिन ये प्रदर्शनकारी थे या नहीं, बाहरी थे या बीच के थे, इसे लेकर अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग जवाब हैं. दिल्ली का मीडिया लंबे लंबे इंटरव्यू में व्यस्त है लेकिन मुज़फ्फरनगर और बिजनौर से आती खबरें बता रही हैं कि उन इंटरव्यू की जगह इन ख़बरों को ज़्यादा जगह देने की ज़रूरत है. हमारे सहयोगी सौरभ शुक्ला दोनों ज़िलों से वापस आए हैं. लखनऊ से आलोक पांडे भी लखनऊ के हालात पर ख़बरें कर रहे हैं.

सौरभ की रिपोर्ट पर आने से पहले हम एक और रिपोर्ट से एक किस्से का ज़िक्र करना चाहते हैं. स्क्रोल डॉट इन पर सुप्रिया शर्मा की रिपोर्ट शुरू होती है 55 साल के रफ़ीक अहमद की कहानी से.रफ़ीक अहमद ठेकेदार हैं और इलाके में इन्हें लोग पहचानते हैं. 20 दिसंबर को नमाज़ के बाद मस्जिद से बाहर निकले तो पुलिस ने ही कहा कि आप लोगों से अपील कर दें. पुलिस के कहने पर रफ़ीक़ ने उन्हीं के लाउडस्पीकर से शांति बनाए रखने और घर जाने की अपील भी की. जबकि उनके अनुसार ज़रूरत नहीं थी क्योंकि वहां 100 लोग भी जमा नहीं थे.रफ़ीक अहमद ने देखा कि बहुत सारे लोग सिविल ड्रेस में खड़े थे. उन्होंने पुलिस से पूछा तो जवाब नहीं मिला. जब वे वापस जाने लगे तो आंसू गैस छोड़े जाने की आवाज़ सुनी और उनके सर पर लाठी आ लगी. उनका कहना है कि कोई पत्थर चला था.फिर भी पुलिस ने लाठी चला दी. यह घटना नहटौर के नायज़ा सराय इलाके की है.

21 दिसंबर को यूपी पुलिस के प्रमुख ने कहा था कि यूपी पुलिस ने कोई गोली नहीं चलाई है. मगर अब मान लिया है कि गोली चली है. बिजनौर में दो लोगों की मौत हुई है. सौरभ से एसपी बिजनौर ने माना है कि 20 साल के छात्र सुलेमान की मौत गोली से हुई है क्योंकि पुलिस के जवान ने आत्मरक्षा में गोली चलाई थी. बात यह है तो फिर पुलिस प्रमुख ने क्यों कहा था कि पुलिस ने गोली ही नहीं चलाई और प्रदर्शनकारी आपस में गोलीबारी से मरे हैं.

मुज़फ्फ़रनगर में हिंसा की कहानी कुछ और मोड़ लेती है. वहां पर प्रदर्शनकारियों पर गोली किसने चलाई, घरों और दुकानों में लूटपाट किसने की? क्या दूसरे संगठन के लोग प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने आए थे, हिंसा के इरादे से आए थे? क्या इन्हें पुलिस की शह हासिल है? स्क्रोल डॉट इन में सुप्रिया शर्मा ने पूर्व कांग्रेस सांसद सैइदुज्ज़मा के बेटे से बात की है. उनकी चार कारें जला दी गई हैं. उनका आरोप है कि पुलिस और संघ के लोगों ने हिंसा की. हमारे सहयोगी सौरभ शुक्ला का कहना है कि मुज़फ्फरनगर की स्थिति बताती है कि पुलिस ने तोड़फोड की है. ये सब कैमरे में कैद न हो इसलिए सीसीटीवी कैमरे तोड़ दिए गए हैं. आखिर पुलिस को सीसीटीवी कैमरे तोड़ने की ज़रूरत क्यों पड़ी.

अगर पुलिस के दावे में सत्यता है तो वह सीसीटीवी कैमरे क्यों तोड़ रही है, क्या यूपी की पुलिस ने कुछ ऐसा किया है जिस पर बात नहीं की जा रही है और बात करने लायक कम सबूत बचे हैं. लोग भी भय से बात नहीं कर पा रहे हैं. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी मेरठ जाकर वहां घायलों से मिलना चाहते थे मगर उन्हें नहीं जाने दिया गया. जमीन से आ रही रिपोर्ट पुलिस के दावे पर गंभीर सवाल उठाती है. आसान है प्रदर्शनकारियों को हिंसक बता देना. लेकिन पुलिस की हिंसा का क्या. अगर दूसरे लोग पुलिस की मौजूदगी में प्रदर्शनकारियों पर हिंसा करते हैं तो वे कौन है. क्या हिंसा करवाई गई ताकि कार्रवाई का बहाना मिले? इसकी जांच कैसे होगी, होगी तो कब तक होती रहेगी? बनारस, लखनऊ और कई जगहों पर कई लोगों की गिरफ्तारी को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं.
व्यवस्था संभालना पुलिस की ज़िम्मेदारी है मगर कई वीडियो ऐसे भी मिले जिसमें लोग शांति से चले जा रहे हैं और पुलिस पीछे से अचानक लाठी चलाने लगती है. कहीं पर लोग किनारे खड़े हैं पुलिस उन्हें दबोचकर मारने लगती है. वीडियो विचलित कर सकता है. करेगा ही.

एक आदमी का हाथ दो पुलिस वाले पकड़े हैं, दो लाठियों से मार रहे हैं. कभी तीन पुलिस वाले लाठी चला रहे हैं तो कभी दो पुलिस वाले लाठी भांज रहे हैं. इतने करीब से इतने ज़ोर से मारने की क्या ज़रूरत थी. हमने गिना है. सोलह लाठियां एक वीडियो में रिकार्ड हुई हैं और उसके बाद कैमरा मुड़ जाता है. हमें अंदाज़ा भी नहीं है कि इस व्यक्ति की अभी क्या स्थिति है. इतनी लाठियां खाने के बाद वो किस अस्पताल में भर्ती होगा, उसे ठीक होने में कितना वक्त लगेगा. यह वीडियो कानपुर के बाबूपूरबा थाना क्षेत्र का है, 20 दिसंबर का है. यहां हुई हिंसा में पुलिस ने लोगों को पकड़ा और पीटा. यहां के तीन लोगों की हिंसा में मौत हो गई थी.  

इस तरह की पुलिस बर्बरता के वीडियो व्हाट्स ऐप में बहुत घूम रहे हैं. इन वीडियो में पुलिस की कार्रवाई ने दहशत पैदा कर दी है और पुलिस को इस तरह से किसी को मारते देख लगता है कि उसका इरादा सिर्फ व्यवस्था बनाना नहीं कुछ और भी है. यूपी के पुलिस प्रमुख ओपी सिंह ने कहा कि पुलिस ने कोई गोली नहीं चलाई है. जबकि गोली से ही 15 से 16 लोग मारे गए हैं. मीडिया में गोली से मारे जाने वालों की संख्या कहीं 15 है तो कहीं 18 भी है. पुलिस ने बताया था कि 50 से अधिक पुलिस वालों को गोली लगी है या वे घायल हुए हैं. 22 दिसंबर को जब हमारे सहयोगी आलोक ने पुलिस प्रमुख ओपी सिंह से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने कहा था कि आप जो चलाना चाहते हैं चला सकते हैं. 21 दिसंबर को यूपी पुलिस प्रमुख का बयान है कि पुलिस ने कोई गोली नहीं चलाई. उन्होंने कहा था कि सिंगल बुलेट भी फायर नहीं हुआ है. प्रदर्शनकारी आपस में फायरिंग से मरे हैं.

कानपुर में 30 साल के मोहम्मद रईस की मौत हो गई है. शुक्रवार को रईस को गोली लगी थी. बाबू पूरबा इलाके में रईस मज़दूरी करते थे. उनके पिता से मिलने के लिए प्रशासन की तरफ से कोई गया तक नहीं. सुभाषिनी अली मोहम्मद रईस के पिता के पास गई थीं.

यही नहीं लोगों की गिरफ्तारियों पर भी सवाल उठ रहे हैं. छात्रों, एक्टिविस्ट और आम लोगों पर कई संगीन धाराएं लगाई हैं. इस तरह की शिकायतें आ रही हैं कि जो लोग गिरफ्तार किए हैं उन्हें कानूनी और अन्य सुविधा उपलब्ध कराने में पुलिस रोड़े अटका रही है. ज़ाहिर है पुलिस कहेगी कि उसकी तरफ से कोई अड़चन नहीं है. लखनऊ में जिन लोगों की गिरफ्तारी हुई है उनमें दीपक कबीर हैं, मशहूर थिएटर कलाकार हैं. जब वे अपने दोस्तों के बारे में पता करने पुलिस स्टेशन गए तो वहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. गुरुवार को प्रदर्शन हुआ था उसमें दीपक कबीर और उनकी पत्नी शामिल हुए थे लेकिन उस दिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया. अगले दिन एफआईआर में उनका नाम हाथ से जोड़ दिया गया. उन पर हत्या और दंगा भड़काने के आरोप लगाए गए.

पूर्व आईपीएस अफसर एसआर दारापुरी और 76 साल के मानवाधिकार वकील मोहम्मद शोएब भी गिरफ्तार किए गए हैं. कांग्रेस नेता, फिल्म अभिनेत्री और एक्टिविस्ट सदफ़ जफ़र की गिरफ्तारी को लेकर भी पुलिस पर कई सवाल उठ रहे हैं. फिल्म अभिनेत्री मीरा नायर, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने सदफ को रिहा करने की मांग की है. लखनऊ के परिवर्तन चौक पर नागरिकता संशोधन कानून और रजिस्टर के विरोध में प्रदर्शन हो रहा था. सदफ़ ज़फ़र वहां से फेसबुक लाइव कर रही थीं.

फेसबुक लाइव में सदफ पुलिस से कह रही हैं कि पुलिस पत्थरबाज़ों को पकड़ क्यों नहीं रहे हैं. उसके हेलमेट पहनने का क्या फायदा, इतनी कम पुलिस क्यों है जबकि प्रदर्शनकारी ज़्यादा हैं. पुलिस तमाशा देख रही है. तभी एक महिला पुलिस आती हैं और कहती हैं कि तुम भी चलो तुम इन पत्थर चलाने वालों के साथ हो. इस वीडियो में सदफ जफ़र पुलिस के बीच में ही घूमती देखी जा सकती हैं. उन्हीं के साथ घूम रही हैं. लेकिन पुलिस अधीक्षक, पूरवी लखनऊ ने कहा है कि हमने बलवा करते वक्त उन्हें मौके से गिरफ्तार किया है. सारा कुछ प्रक्रियाओं के तहत हुआ, सबूत हैं. पुलिस पर आरोप बेसलेस हैं. कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने सदफ़ से सोमवार को मुलाकात की थी. बताया कि उन्हें बुरी तरह मारा. पीठ पर मारा है, बाल खींचे हैं. सदफ़ की बहन नहीद का कहना है कि उनकी बहन के पेट में मारा गया है, पीटा गया. मैंने उसे बहुत दर्द में देखा है. सदफ पर हत्या और दंगा भड़काने के आरोप हैं.

इसी तरह की खबर बनारस से भी  आ रही है. 19 दिसंबर को बनारस में नागरिकता कानून और रजिस्टर के खिलाफ प्रदर्शन के बाद बनारस में दस मुकदमे दर्ज हुए हैं. 91 नामजद में से 73 गिरफ्तार हो चुके हैं. इनमें से अधिक छात्र बताए जाते हैं जो बीएचयू के हैं. फोटो और वीडियो के ज़रिए 6000 लोगों की पहचान की जा रही है. बनारस में पुलिस ने पोस्टर लगाए हैं. जनपद वासियों से अनुरोध किया जाता है कि 20 दिसंबर 2019 को उपद्रव कर लोक व्यवस्था भंग करने वाले उपद्रवियों को चिन्हित कर फोटो जारी किया जा रहा है. जो इनकी पहचान बताएगा उन्हें इनाम दिया जाएगा. इस पोस्टर में 24 तस्वीरें हैं. क्या यह नया तरीका है प्रदर्शन करने वालों को हतोत्साहित करने का. क्या बनारस में ऐसी कोई हिंसा हुई जिसके बाद इतनी बड़ी कार्रवाई हो रही है.

बनारस में पुलिस ने एक अपील भी जारी की है. इस अपील में कहा गया है कि कुछ व्यक्ति योजनाबद्ध तरीके से नई उम्र के लड़कों को भड़काऊ भाषण एवं सोशल मीडिया के माध्यम से भड़का कर उन्हें उग्र कर रहे हैं. क्या नागरिकता कानून के विरोध में उतरे युवाओं को पुलिस खास तौर से निशाने पर ले रही है ताकि वे पीछे हट जाएं. क्या पुलिस ऐसा हर प्रदर्शन में करती है.

24 दिसंबर मंगलवार को बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में दीक्षांत समारोह था. इतिहास के छात्र रजत सिंह ने डिग्री लेने से इंकार कर दिया. रजत सिंह ने 69 छात्रों और सिविल सोसायटी के लोगों की गिरफ्तारी के विरोध में ऐसा किया है. कमेटी अगेंस्ट असॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट की वेबसाइट पर लिखा है कि नागरिकता कानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों को कवर करते हुए दिल्ली और यूपी में दर्जन भर से ज्यादा पत्रकार घायल हुए हैं. एडिटर्स गिल्ड ने बयान जारी किया है कि पिछले एक हफ्ते में खासकर यूपी और कर्नाटक में पत्रकारों के साथ जो हिंसा हुई है उसकी निंदा करते हैं. हम पुलिस बल को याद दिलाना चाहते हैं कि जो प्रदर्शन की जगहों पर पत्रकार जाते हैं वो संविधान के प्रति अपना कर्तव्य निभाते हैं. सूचना जमा कर लोगों तक पहुंचाते हैं. उनके खिलाफ शारीरिक हिंसा करना लोकतंत्र और मीडिया की आवाज़ को दबाना है. हम गृह मंत्रालय से आग्रह करते हैं कि अलग अलग राज्यों की पुलिस से कहें कि पत्रकारों को पर्याप्त सुरक्षा दें. उन्हें निशाना न बनाएं. इस वक्त ज़िम्मेदारी से कवरेज की बहुत ज़रूरत है.

लखनऊ में द हिन्दू अखबर के पत्रकार ओमर राशिद को पुलिस एक रेस्त्रां से उठाकर ले गई. दो घंटे तक हिरासत में रखा और उनके साथ सांप्रदायिक टिप्पणियां की गईं. आलोक पांडे जो काफी संतुलित और संयमित तरीके से बोलते हैं रिपोर्ट करते हैं उन्होंने लिखा है कि भयानक अनुभव था अपनी आंखों से यह सब होते देखना. बाद में ओमर राशिद को मुख्यमंत्री के कार्यालय के दफ्तर और यूपी पुलिस प्रमुख की पहल के बाद छोड़ा गया. घटना 21 दिसंबर की है.

लखनऊ में प्रदर्शन का कवरेज कर रहीं काविश अज़ीज के साथ भी अभदता हुई है. जब वे वीडियो बना रही थीं तो पुलिस नहीं बल्कि नकाबपोश आदमी आता है और रिकार्ड करने से रोक देता है. गाली देता है और फोन छीनने  की कोशिश करता है. काविश अज़ीज स्वतंत्र पत्रकार हैं. यूपी से स्थानीय स्तर पर कई पत्रकार भय से रिपोर्ट नहीं कर पा रहे हैं. हमारे सहयोगी सौरभ शुक्ला कहते हैं कि वे पश्चिम यूपी के दौरे पर कुछ पत्रकारों से मिले जो पुलिस की मार के शिकार हुए हैं मगर उन पर भय इतना है कि बात करने की हिम्मत नहीं जुटा सके. यही खौफ लोगों में भी है.

लखनऊ और बनारस के लोगों को दिल्ली से उम्मीद है कि उनकी मदद करें. दिल्ली से आवाज़ उठे. कोई वकीलों का नंबर मांग रहा है तो वकील अपना नंबर लोगों को दे रहे हैं ताकि गिरफ्तार लोगों की मदद की जा सके. गिरफ्तारी के पहलू की मीडिया में कम चर्चा होती है इसलिए भी आशंकाएं गहरी होने लगी हैं.

मंगलवार को मंडी हाउस से जंतर मंतर की तरफ मार्च हुआ था. इस मार्च का एक उद्देश्य यह भी था कि पुलिस की जो कार्रवाई हुई है उसका विरोध करना. सोमवार रात को पुलिस ने इस मार्च की अनुमति दी थी लेकिन सुबह मंडी हाउस के इलाके में 144 लगा दी गई. फिर भी प्रदर्शन करने वाले वहां पहुंचे और शांतिपूर्ण तरीके से मार्च किया.

रैलियां और सभाएं नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में भी हो रही हैं. कुछ जगहों पर समर्थन में निकले जुलूस में गोली मारने के नारे लगाते हुए सुना जा सकता है. मगर पुलिस को गोली मारना दंगा भड़काने या उकसाना नज़र नहीं आता. शायद समर्थकों के मुंह से निकल रहे गोली मारने के नारे में उसे कविता दिखती हो. दिल्ली में बीजेपी के नेता और कटिहार में भी एबीवीपी के नेता गोली मारने के नारे लगाते हुए का वीडियो देखा गया है. यह वीडियो बिहार के दरभंगा का है. नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में रैली थी. कुछ लोग तलवार लेकर इस रैली में क्या कर रहे थे. क्या तलवार हथियार नहीं है? क्या कानून एक पक्ष को तलवार लेकर प्रदर्शन करने की इजाज़त देता है? इस रैली मे बीजेपी के दरभंगा नगर के विधायक संजय सरावगी और एमएलसी अर्जुन स्वामी भी थे. कोई अप्रिय घटना नहीं हुई.

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