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This Article is From Aug 29, 2022

झूठ के मलबे के नीचे दबा हमारा समाज कंक्रीट के मलबे पर तालियाँ बजाता है

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 29, 2022 22:41 pm IST
    • Published On अगस्त 29, 2022 22:41 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 29, 2022 22:41 pm IST

80 हज़ार टन मलबा निकला है। भ्रष्टाचार का टावर नाम देकर नोएडा में जिस टावर के गिरने का जश्न मनाया गया, अब मलबे का टावर बन कर लोगों के फेफड़े में घुस चुका होगा और घुसता रहेगा। नोएडा और देश के अन्य इलाकों में अनगिनत लोग बिल्डरों के जाल में फंसे हुए हैं, उन्हें अगर किसी तरह से उम्मीद है कि मीडिया उनकी आवाज़ बनने जा रहा है तो वे धोखे में न रहे। एक बिल्डर के झांसे में आकर अपनी कमाई और ज़िंदगी गंवा देने वाले लोगों की कहानी में शायद ही मीडिया को दिलचस्पी होगी,क्योंकि उस कहानी में कोई तमाशा नहीं है। जिस तरह से भ्रष्टाचार का टावर गिराए जाने का तमाशा हर किसी ने देखा है, वैसा तो बिल्कुल नहीं है। 

यह इमारत भ्रष्टाचार का प्रतीक तो है ही, सवाल है कि इसके  लिए सज़ा इमारत को मिल रही है या इसमें शामिल अधिकारियों को भी? सुप्रीम कोर्ट के कहने पर यूपी सरकार ने SIT का गठन किया था।SIT की रिपोर्ट में नोएडा प्राधिकरण में उस दौरान 2004-2012 कार्यरत रहे 24 अधिकारी-कर्मचारी और सुपरटेक प्रबंधक के पदाधिकारियों को आरोपी माना था. हमारे सहयोगी अरविंद उत्तम का कहना है कि FIR हुई है। 24 अधिकारी हैं और नोएडा प्राधिकरण के दो पूर्व सीईओ हैं। एक सीईओ का नाम है मोहिंदर सिंह और एक का नाम है एस के द्विवेदी। ये दोनों सेवानिवृत्त हो चुके हैं।आर पी अरोड़ा और पी एन बाथम अतिरिक्त सीईओ थे, इनके भी मान FIR में हैं। जिन लोगों के नाम FIR में हैं उनमें से दो की मौत हो चुकी है। चार अधिकारियों को सस्पेंड भी किया गया है लेकिन बाकी तो रिटायर हो चुके थे।जनवरी 2022 में आरोप पत्र जारी कर आरोपी अधिकारियों ने कई दस्तावेज अथॉरिटी से मांगे थे.

दो सप्ताह में जवाब देना था लेकिन सात महीने बाद इन आरोपी अधिकारियों ने जवाब दिया और  ट्विन टावर बनवाने में हुई गड़बड़ियों से खुद को अंजान और निर्दोष बताया है 10 से 20 पन्नों के अपने जवाब में अधिकारियों का कहना है कि सारी मंजूरी नियमों के तहत दी गई है, इसके लिए कुछ दस्तावेज भी इन अधिकारियों ने अटैच किये है।नोएडा के सेक्टर 93-ए में ग्रुप हाउसिंग प्लॉट GH-4 आवंटित किया गया था और भूमि का कुल क्षेत्रफल लगभग 54815 वर्ग मीटर है। इसके लिए नक्शे 2006, 2009 और 2012 में पारित किए गए थे। नक्शे में बदलाव की अनुमति उस समय समिति लेती थी, ऐसे में सीईओ के हस्ताक्षर नहीं हैं लेकिन एफएआर की मंजूरी सीईओ व बोर्ड बैठक तक में होती है। इस मामले में वर्ष 2006 में पहली बार नक्शे  में बदलाव के समय सीईओ संजीव शरण, दूसरी बार 2009 में सीईओ मोहिंदर सिंह और तीसरी बार 2012 में बदलाव के समय सीईओ कैप्टन एस के द्विवेदी थे। तीनो सीईओ रिटायर हो चुके हैं और मोहिंदर सिंह विदेश में है. कोर्ट ने इस इमारत को अवैध साबित किया है लेकिन इन अधिकारियों के जवाब से क्या माना जाए जो खुद को निर्दोष बता रहे हैं? जिनके नाम FIR में हैं, उन्हीं के खिलाफ आरोप साबित नहीं होते हैं, कार्रवाई नहीं होती है, तब भी लोगों ने मान लिया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई हो गई, जिस तरह से कई हज़ार टन विस्फोटक लगाए गए, सारा प्रशासन जुट गया, उस तरह से इन 26 लोगों के खिलाफ मामले को अंजाम तक पहुंचाने में क्यों नहीं जुटा गया? ऐसा लगता है कि एक इमारत को सज़ा दी गई है,जिनकी वजह से ये इमारत खड़ी हुई वो सजा से बच गए हैं। कहीं कहीं दोषी अधिकारियों की संख्या 30 भी छपी है।

बिल्डर के खिलाफ किसी भी लड़ाई में जीत हो,बड़ी बात होती है। इनके झांसे में आकर आदमी जिस दुष्चक्र में फंसता है, वह अंतहीन है। लेकिन क्या ट्विन टावर के गिरने पर ताली बजा देने से भ्रष्टाचार का टावर गिर गया? जो मीडिया कथित रुप से बजट की कमी के कारण उसी यूपी में आई बाढ़ और सूखे को कवर करने नहीं जाता है, किराए पर खुली ऑडि कार लेकर कवरेज करने लगा। यह वो मिडिल क्लास है जिसे बिजली का मीटर लगाने से लेकर तरह तरह के कनेक्शन लेने पर रिश्वत देने की सच्चाई मालूम है लेकिन फिलहाल इसने मान लिया है कि भ्रष्टाचार खत्म हो गया है। उसकी जीत हो गई है।

यह वही समाज है जो छह साल पहले भ्रष्टाचार मिटा देने के नाम पर कई दिनों तक लाइन में लगा रहा और नोटबंदी को मास्टर स्ट्रोक बताता रहा। इस समाज के बच्चों के स्कूल में पर्यावरण दिवस पर ड्राइंग कंपटिशन ज़रूर होते हैं जिसमें नदी और पेड़ की तस्वीर बना कर बच्चा पर्यावरण के प्रति जागरुक होने का गर्व माता-पिता को देता है। 

40 मंज़िला इमारत जब बन रही थी तब भी पर्यावरण का नुकसान कर रही थी, अब इसे गिराकर नुकसान को और गहरा किया गया है। इसे रोकने के लिए कई लोगों ने बहुत सारे उपाय सुझाए।यहां ठंड के दिनों में गरीबों के लिए रात्री आश्रय स्थल बन सकता था, सेना के शहीदों के परिवारों को दिया जा सकता था, विकलांगों को दिया जा सकता था, स्कूल से लेकर अस्पताल तक खोले जा सकते थे। इसका इतना ही मतलब है कि समाज में अब भी कुछ लोग हैं जो सोच रहे हैं। जो समझते हैं कि भ्रष्टाचार की सज़ा के और भी तरीके हो सकते हैं। मगर इस इमारत के गिरने पर ताली बजाने वालों ने साबित कर दिया कि जो लोग नोटबंदी के समय ताली बजा रहे थे, वही थे जो कोरोना के समय बालकनी पर थाली बजा रहे थे और वहीं लोग हैं जो इस इमारत के गिरने को भ्रष्टाचार के मिटने के जश्न के रुप में मना रहे हैं। हो सकता है ये लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई की जीत का जश्न मना रहे हो।

12 साल कोर्ट में लड़ने वालों के संघर्ष को भी रिजेक्ट नहीं किया जा सकता है। इस देश में बिल्डर के खिलाफ कोई भी जीत किसी जंग की जीत से कम नहीं है। हो सकता है इस जश्न में वो खुशी शामिल रही हो। नोएडा से इलाहाबाद हाईकोर्ट जाना और फिर वहां से सुप्रीम कोर्ट। उनकी लड़ाई एक मंज़िल पर पहुंची है लेकिन जिस तरह से एक इमारत को गिराया गया है और पर्यावऱण को नुकसान पहुंचा है, उसकी भी चिन्ता होती तो अच्छा रहता लेकिन ऐसे सवालों पर हमारा समाज कहां चिन्तित होता है, वायु प्रदूषण का आंकड़ा देकर एयर प्यूरिफायर खरीदने को पर्यावरण से लड़ना समझता है।  लेकिन क्या जीत की उस खुशी में हम धरती का ही नुकसान कर जाएंगे?


नोटबंदी के समय को याद कीजिए। लोगों ने यकीन कर लिया कि भ्रष्टाचार दूर होने वाला है और कई दिनों तक लाइन में लगे रहे। उसी तरह ट्विन टावर के ध्वस्त होने से जश्न मना रहे हैं कि भ्रष्टाचार का टावर ध्वस्त हो गया है।यह जो मलबा नोएडा से हटेगा, कहां जाएगा? 80 हज़ार टन मलबा हटाने के लिए कितने हज़ार ट्रक चलेंगे, क्या वो इलेक्ट्रिक वाहन होंगे? तीन महीने में यह मलबा हटेगा।हटने के दौरान भी प्रदूषण करता रहेगा। जिस शहर में नवंबर के महीने में हवा खराब होने पर कंस्ट्रक्शन पर रोक लगा दी जाती है उस शहर में इमारत गिराकर इतना मलबा पैदा किया गया, जिसे हटाने में तीन महीने का वक्त लग जाएगा। 

80 हज़ार टन मलबे का यह गुबार है, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रूड़की के वैज्ञानिक कहते हैं कि पचास हज़ार टन मलबा तो इन दोनों इमारतों के बेसमेंट में ही खप जाएगा। कंक्रीट का मलबा कहीं भी पड़ा रहे, उसका क्या असर होगा, उसके कण किस तरह उड़ते रहेंगे, फेफड़े में घुसते रहे होंगे या अभी ही घुस गए होंगे। ये सब वो सवाल हैं, जिस पर चिन्ता की जा सकती है। लेकिन 30 हज़ार टन मलबे को हटाने में तीन महीने तक 3000 हज़ार ट्रक चलते रहेंगे। धूल के कण कहीं गायब नहीं होते हैं, कार्बन वातावरण में ही रहता है, वो कहीं मिट नहीं जाता है, इसलिए कार्बन के उत्सर्जन को खतरनाक माना जाता है। ट्विन टावर को गिरान में 18 करोड़ खर्च हो गए और मलबा हटाने में भी कई करोड़ खर्च हो जाएंगे। 


कुछ समय के लिए भी फेफड़े में सस्पेंडेड पार्टिकल घुस जाए तो क्या यह चिन्ता की बात नहीं है? क्या ऐसा कोई पैमाना है कि जो सस्पेंडेंट पार्टिकल हैं वो कितने दिन या कितने घंटे घुसे रहेंगे तभी फेफड़े पर असर करेंगे? क्या आप कुछ समय के लिए प्रदूषित जगह पर जा सकते हैं? अभी ये जो कहा जा रहा है कि कंस्ट्रंक्शन और डिमोलिशन से जो मलबा निकाला जाएगा उसे प्रोसेस किया जाएगा? इसकी सच्चाई भी जान लीजिए। 25 अगस्त 2020 को डाउन टू अर्थन में कंस्ट्रक्शन और डिमोलिशन के मलबे को लेकर एक रिपोर्ट छपी थी। इस रास्ते से जितना मलबा पैदा होता है, भारत उसका केवल एक प्रतिशत फिर से इस्तेमाल करता है।  2016 में प्रेस इंफोर्मेशन ब्यूरो की एक रिलीज़ है जिसमें तत्कालीन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का बयान है कि भारत में हर साल 530 मिलयन टन मलबा तैयार होता है। 

लेकिन सेंटर फार साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट है कि इस देश में 150 मिलयन टन इमारती मलबा पैदा होता है। यह भारत सरकार के बिल्डिंग मटीरियल प्रमोशन काउंसिल का आंकड़ा है।इस तरह के मलबे की रिसाइकलिंग की जो दैनिक क्षमता है वह 6500 टन प्रतिदिन है यानी कुल मलबे का मात्र एक प्रतिशत। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2017 तक 53 शहरों में इमारती मलबे को निपटाने और फिर से इस्तमाल के लिए प्लांट बन जाने थे लेकिन 2020 तक केवल 13 शहरों में बने हैं। जब लोग अपने विवेक की चिन्ता नहीं करेंगे तो उनके फेफड़ी की चिन्ता कौन करेगा। 53 शहरों में इमारती मलबे के निस्तारण का प्लांट बन जाना था, बना केवल 13 शहरों में। इमारती मलबों से जो धूल कण उड़ते हैं उससे शहर की हवा प्रदूषित होती है। 2024 तक शहरों की हवा में जो धूल कण मिल रहे हैं उसमें 20-30 प्रतिशत की कमी लाइन जानी है। यह नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम का लक्ष्य है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि नोएडा मे जो मलबा पैदा हुआ है वह धूल में बदल चुका है। धमाके के बाद बड़ा हिस्सा रेत में बदल गया होगा, यह भी याद रखना चाहिए कि इसमें 3700 किलो बारूद भी है।
पेड़ों के पत्तों को धो देने से हवा साफ नहीं हो जाती है, इस कार्रवाई से धूल पत्तों से उतर रही है ताकि पत्ते फिर से हरे दिखने लगे, लेकिन वह धूल कहां जा रही है, यह भी तो सोचिए। 


नोएडा में जो मलबा पैदा हुआ है वह अब फेफड़े में भ्रष्टाचार पैदा करेगा। जिस देश में इमारती मलबे से होने वाले प्रदूषण को रोकने की इतनी खराब हालत हो, कहीं कोई व्यवस्था न हो, जिसे जहां खाली जगह मिलती है, वहां फेंक आता है। बताया गया कि भारत में इतनी ऊंची इमारत पहली बार गिराई गई है इसलिए कोई रिकार्ड बन गया है, मगर दुनिया भर के देशों में ऐसी इमारतें गिराई जाती रहती हैं। इमारतों के गिराए जाने की टेक्नालजी पूरी तरह से स्थापित है। 

दुनिया भर में इमारतें ढहाई जाती रही हैं। 2015 में चीन में 118 मंज़िला इमारत ढहा दी गई। दो टन विस्फोटक का इस्तेमाल हुआ था। इस बिल्डिंग का इस्तेमाल ही नहीं हुआ तो गिरा गई। उसी तरह 2021 में 15 बहुमंज़िला इमारत एक साथ गिरा दी गई। जो आठ साल में भी पूरी नहीं हो सकी थीं।यूनान प्रांत की राजधानी कुमिंग में जब इमारतें गिराई गईं तो धूल का गुब्बार भर गया था। 45 सेकेंड के भीतर ये सारी इमारतें मिट्टी में धूल का अंबार मिला गईं। जनवरी 22 में भी चीन के हायनान प्रांत में 39 इमारतों को ध्वस्त किया गया था। चीन में जितना कचरा पैदा होता है, उसका 30 से 40 फीसदी इमारती मलबा होता है। चीन में बहुत ज्यादा इमारती मलबा पैदा होता है।अमरीका और जापान अपने इमारती मलबे का 90 और 95 प्रतिशत रिसाइकिल कर लेते हैं। भारत में यह एक प्रतिशत है। 2018 में अमरीका में जो इमारती मलबा पैदा हुआ था वह निगमों के कचरे से दोगुना था। यह जो कहा जा रहा है कि पचास हज़ार टन नोएडा के ट्विन टावर के बेसमेंट में रहेगा, हमें इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है। इतनी बड़ी मात्रा में मलबा इस इलाके में होगा, क्या उसका कुछ भी असर नहीं होगा?


बेशक इस तरह के वीडियो वायरल करने लायक होते हैं, लोग बिना सोचे-समझे बार बार देखते हैं। देखते हुए क्या महसूस करते हैं पता नहीं, क्या उनके ज़हन में यह सवाल उठता होगा कि इतना मलबा अलग लोगों के फेफड़ें में घुसेगा तो क्या होगा, यह जो मलबा पैदा हो रहा है, क्या उसे किसी तरह से रोका जा सकता था? परिमल ने नोएडा में उस जगह पर जाकर देखा जहां इमारती मलबे की रिसाइकलिंग होती है

दिल्ली विश्वविद्यालय में इस साल की प्रवेश परीक्षा पूरी नहीं हुई है, जुलाई और अगस्त का महीना ऐसे ही गुज़र गया। सितंबर भी चला ही जाएगा। नामांकन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है और पढ़ाई भी शुरू नहीं हुई है। ऐसा नहीं है कि युवा समझ नहीं रहे हैं, जो विदेश जा सकते हैं वे तो अब विदेश जाने के लिए 9 वीं क्लास से तैयारी करने लगे हैं। विदेश जाकर स्नातक की पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।ये वो छात्र हैं जो विदेश जाने के चक्कर में विदेश नहीं जा रहे बल्कि वाकई समझ गए हैं कि यहां पढ़ाई का स्तर रसातल में जा रहा है। 
यहां अब आपको क्या क्या पढ़ना पड़ेगा, उसका अंदाज़ा नहीं है

अंडमान का सेल्युलर जेल है, यहां से परिंदा भी बाहर नहीं जा सकता था, जिसे यहां कैद मिली, उसने जीवन का दूसरा सूरज नहीं देखा। बहुत से सेनानी लौटे ही नहीं, कुछ लोग माफी मांग कर ज़रूर लौटे? कर्णाटक की आठवीं कक्षा के कन्नड़ा भाषा पाठ्य पुस्तक में सावरकर पर एक अध्याय है। इसके एक पाराग्राफ में  लिखा गया है कि जिस कमरे में सावरकर को रखा गया था उसमें एक भी छेद नहीं था. पर एक बुलबुल उनके इस कमरे में आती थी और सावरकर उसके पंखों पर बैठकर जेल से बाहर निकलते थे ताकि वह अपनी मातृभूमि देख सके।

यह भी कितना गलत है कि सावरकर को जिस कमरे में रखा गया था उसमें एक भी छेद नहीं था। आप इस तस्वीर में देख सकते हैं, गृहमंत्री सावरकर को श्रद्धांजली दे रहे हैं, तस्वीर के ठीक ऊपर खिड़की की जाली है। कई छेद हैं। सेलुलर जेल की यातना का मज़ाक नहीं उड़ाया जा सकता, वाकई इस जेल में आज़ादी के नायकों ने यातनाएं सही हैं मगर अब जब यह पढ़ाया जाएगा कि कमरे में एक भी छेद नहीं था और सावरकर बुलबुल की पंख पर बैठकर भारत घूम आया करते थे तब यही सब होगा।

लगता है लेखक पुष्पक विमान भूल गया होगा। इससे हमें यह भी पता चलता है कि लोग बुलबुल के पंख पर भी उड़ा करते थे। इस जानकारी से NRI अंकिलों में खुशी की लहर दौड़ पड़ेेगी कि भारत तो पहले से ही विश्व गुरु था। लोग पंख से उड़ा करते थे। उनकी खुशी की तुलना आप नोएडा की हाउसिंग सोसायटी के ताली बजाने वालों से नहीं कर सकते। वैसे अगर इस टाइप की पढ़ाई हो तो वाकई पढ़ाई आसान हो जाएगी।

कोचिंग करने की ज़रूरत नहीं होगा। जिसे जो मन आएगा बोलेगा, लिखेगा, पढ़ाएगा। आप दर्शक भी पीपल के पत्ते पर बैठकर अपने गांव चले जाया कीजिएगा, हवाई जहाज़ या ट्रेन का किराया बचेगा। गांव से वापस आते समय आप पीपल का पत्ता वहीं छोड़ दीजिएगा। जामुन की टहनी पर बैठकर आ जाइये। कोई बचपन में मगरमच्छ से गेंद छीन ले रहा है तो कोई बुलबुल के पंख से भारत की यात्रा कर आ रहा है। बीजेपी कह रही है कि वो सावरकर के कल्पना की उड़ान थी---कांग्रेस का कहना है कि वो सत्ता में आते ही ऐसी बेतुकी बातों को पाठ्यक्रम से हटा देंगे।

रोटी फिल्म का गाना है। नाच मेरी बुलबुल पैसा मिलेगा। कहां कदरदान हमें ऐसा मिलेगा। ऐसी जनता जब मिल जाए तब बुलबुल को नाचने की भी ज़रूरत नहीं। बहुत से दर्शकों को पता नहीं होगा कि बुलबुल किस चिड़िया का नाम है। हमने इंटरनेट से पता लगाया है। लेकिन हम बता देते हैं कि बुलबुल के पंख से उड़ने के चक्कर में बुलबुल का शिकार न करें। ये कानूनन अपराध भी है और इंसानियत के खिलाफ भी।भारत घूमने के बहुत सारे इंतज़ाम हैं। सड़क है, रेल है, विमान है। 

बुलबुल का चहकना गाने के समान माना गया है। लेकिन उसकी लंबाई तो बहुत छोटी होती है। बुलबुल कोई हाथी के आकार का पक्षी नहीं है। इसकी लंबाई कम से कम 13 सेंटीमीटर होती है और बहुत से बहुत 29 सेंटीमीटर। इतनी छोटी चिड़िया के पंख अजगर जितने लंबे तो नहीं होते होंगे कि कोई गद्दा तकिया बिछाकर विमान बना ले। बुलबुल का पंख गोल होता है। छोटा ही होता है। गर्दन भी छोटी होती है।

पूंछ लंबी होती है मगर किताब में नहीं लिखा है कि पूंछ पकड़ कर जाते थे। सावरकर बुलबुल के पंख पर ही बैठकर अंडमान से भारत भ्रमण पर जाते थे। भारत में किस जगह जाते थे, इसका ज़िक्र नहीं है। पंख ब्रेक लेते थे या लगातार उड़ते रहते थे इसका ज़िक्र नहीं है।कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्हें पंख पर उड़ता देख, गांव गांव में बच्चे दौड़ने लगते थे।अब इस देश में कुछ भी हो सकता है। दुनिया भर में बुलबुल की 150 प्रजातियां मानी जाती हैं। अफ्रीका, मध्य पूर्व से लेकर इंडोनेशिया तक बुलबुल मिलती है। यह सब इंटरनेट से जानकारी मिली है। कुछ गलती होगी तो आप मुर्गी के पंख से हमारे पास आ जाइयेगा हम सुधार कर देंगे।

सावरकर का मामला सीरीयस हो जाता है। अभी तक उनकी माफी पर ही झगड़ा होता था कि सच्चे वीर हैं या माफी वीर लेकिन बुलबुल का पंख आ गया है। गांधी जी के बारे में कंफर्म में है वे किसी बुलबुल के पंख पर बैठकर भारत का भ्रमण नहीं कर सके। गांधी फिल्म में भी उन्हें ट्रेन से भारत भ्रमण करते दिखाया गया है।मैं भी बुलबुल के पंख से आपके घर प्राइम टाइम भेज दिया करूंगा। आप खिड़की पर बैठकर बुलबुल के पंख के आने का इंतज़ार कीजिएगा।  इस देश में टेंशन की कमी नहीं है। हर दिन एक नया टेंशन आ जाता है।

मुंबई से एक ऐसा टेंशन आया है जिसके बारे में तो किसी ने सोचा भी नहीं था। अभी तक दशहरा के दिन शिवाजी मैदान पर शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे और उनके बाद उद्धव ठाकरे भाषण दिया करते थे। सुनील सिंह बता रहे हैं कि एकनाथ शिंदे की नज़र दशहरा मैदान पर है। दिल्ली में कथित रुप से शराब घोटाला का विमर्श गायब हो गया है। उसकी जगह दूसरे मुद्दों ने ले ली है। आम आदमी पार्टी के विधायक आज पूरी रात विधानसभा में ही गुजारेंगे। उनकी मांग है कि उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना की सीबीआई जांच करवाई जाए। आम आदमी पार्टी के विधायक दुर्गेश पाठक ने दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना पर आरोप लगाया कि जब वो खादी ग्रामोद्योग आयोग के चेयरमैन थे तो उस दौरान नोटबंदी के समय कथित रुप से 500 और 1000 के नोट बड़ी संख्या में बदली किए गए थे।ब्लैक मनी को व्हाइट किया गया। बीजेपी का कहना है कि आम आदमी पार्टी सरकार ने एक्साइज के साथ साथ क्लासरूम घोटाला भी किया है। बीजेपी का कहना है कि उप राज्यपाल ने मुख्यमंत्री की 47 फाइल इसलिए लौटा दी क्योंकि उस पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर नहीं थे, इन सब से ध्यान हटाने के लिए आम आदमी पार्टी ऐसे बेमतलब के आरोप लगा रही है


 

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