महिलाओं की सुरक्षा में घोर लापरवाही, 5 साल में केंद्र ने राज्यों को निर्भया फंड के लिए दिए 2000 करोड़, पर 20% भी नहीं हुए खर्च

आप अगर इतने ही परेशान हैं तो अपने शहर के अंधेरे कोनों की पहचान कीजिए और सांसदों/विधायकों से कहिए कि अपने फंड से वहाँ लाइट लगाएँ. वे लगाते भी हैं.

महिलाओं की सुरक्षा में घोर लापरवाही, 5 साल में केंद्र ने राज्यों को निर्भया फंड के लिए दिए 2000 करोड़, पर 20% भी नहीं हुए खर्च

पिछले पांच वर्षों में केंद्र ने राज्यों को निर्भया फंड के लिए 2000 करोड़ से अधिक पैसे दिए हैं. लेकिन इसका बीस प्रतिशत भी ख़र्च नहीं हुआ है. ये लापरवाही की इंतहा है. दूसरा ये महिला विकास मंत्री और अधिकारी जानने का भी प्रयास नहीं करते कि क्या ऐसा किया जाए जो स्थायी हो.

मैं जब यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, बर्कली गया था तब वहां हर सौ कदम पर ऐसे इलेक्ट्रानिक खंभे देखे थे. जिस पर इमरजेंसी लिखा था. इस पर आपात स्थिति में पुलिस से लेकर किस किस को फ़ोन कर सकते हैं उसका सारा ब्यौरा लिखा है. बहुत ज़्यादा सीरीयस हो तो लाल बटन दबा सकते है. इतनी कम दूरी पर ये इलेक्ट्रॉनिक खंभे लगे हैं कि चांस है कि कोई दौड़ कर पहुँच जाए या कोई दूसरा हिंसा होते देखे तो बटन दबा दे. यूनिवर्सिटी की अपनी पुलिस होती है जो चंद मिनट में आ जाती है.

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यही नहीं आप इन तस्वीरों में छोटे छोटे बक्से को देखेंगे. इन्हें यूनिवर्सिटी की बिल्डिंग में जगह जगह लगाया गया है. लाल बटन दबाइये यूनिवर्सिटी का सिक्योरिटी सिस्टम सक्रिय हो जाता है.

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इस तरह के सिस्टम माहौल को सुरक्षित करते हैं. आप इन तस्वीरों को देखिए. इन्हें सिर्फ़ लगाना ही है. हवन या ध्यान छोड़ कर इनका आविष्कार नहीं करना है.

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दूसरा डॉ वर्गीज़ मैथ्यू ने मुझे एक लेख भेजा है. पाँच हज़ार शब्दो का. इस लेख में कई ऐसे अध्ययन का ज़िक्र है जो औरतों की सुरक्षा को शहरों की डिज़ाइन से जोड़ते हैं. आपने स्मार्ट सिटी या किसी बिल्डर के ब्रोशर देखे होंगे. शहर की कल्पना में फुटपाथ ख़ाली दिखता होता होगा. दूर दूर तक ख़ाली फुटपाथ दिखता है. दरअसल महिला सुरक्षा के एंगल से इस तरह के डिज़ाइन को देखा गया है. शहर ऐसे बनाए जा रहे हैं कि दूर दूर तक सब ख़ाली दिखे. रास्ते कारों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं. इंसानों को ध्यान में रख कर नहीं.

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हैदराबाद की घटना स्थल का ध्यान कीजिए. अगर शहरों की डिज़ाइन में लोगों को शामिल किया जाता तो अपराध कम होता. ख़त्म भले न होता. सिर्फ़ स्ट्रीट लाइट लगा देने से महिला सुरक्षा पर सकारात्मक असर पड़ जाता है. हमारे शहर लाखों अंधेरे स्पॉट से भरे हैं. आप अगर इतने ही परेशान हैं तो अपने शहर के अंधेरे कोनों की पहचान कीजिए और सांसदों/विधायकों से कहिए कि अपने फंड से वहाँ लाइट लगाएँ. वे लगाते भी हैं.

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सिस्टम बनाने की बात सोचिए. ग़ुस्से का बहाना बनाकर वीरता का प्रदर्शन मत कीजिए. ग़ुस्सा है तो ऐसी चीजों पर दबाव बनाइये जिससे लंबे समय के लिए हर किसी को फ़ायदा हो.

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