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This Article is From Sep 02, 2020

क्या कड़े निर्णय के चक्कर में देश को गर्त में पहुंचा दिया PM मोदी ने?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 02, 2020 11:09 am IST
    • Published On सितंबर 02, 2020 11:09 am IST
    • Last Updated On सितंबर 02, 2020 11:09 am IST

भारत के सामाजिक-राजनीतिक मानस में एक हीनग्रंथि है.  कड़े निर्णय लेने और भाषणबाज़ नेता का कांप्लेक्स इतना गहरा है कि यह भारत गांधी जैसे कम और साधारण बोलने वाले को ही नकार देता. नरेंद्र मोदी को जनता के बीच कड़े निर्णय लेने वाले नेता के रूप में स्थापित किया गया. मोदी ने भी खुद को कड़े निर्णय लेने वाले नेता के रूप में पेश किया. हर निर्णय को कड़ा बताया गया और ऐतिहासिक बताया गया. उन निर्णयों से पहले संवैधानिक नैतिकताओं को कुचल दिया गया. मुख्यमंत्रियों से पूछा जा सकता था कि क्या क्या करना है. उन्हें ही तालाबंदी की ख़बर नहीं थी. जनता के बीच उसे भव्य समारोह के आयोजन के साथ पेश किया गया ताकि कड़ा निर्णय चकाचौंध भी पैदा करे. 

नोटबंदी और तालाबंदी ये दो ऐसे निर्णय हैं जिन्हें कड़े निर्णय की श्रेणी में रखा गया. दोनों निर्णयों ने अर्थव्यवस्था को लंबे समय के लिए बर्बाद कर दिया. आर्थिक तबाही से त्रस्त लोग क्या यह सवाल पूछ पाएँगे कि जब आप तालाबंदी जैसे कड़े निर्णय लेने जा रहे थे तब आपकी मेज़ पर किस तरह के विकल्प और जानकारियाँ रखी गईं थीं. उस कमरे में किस प्रकार के एक्सपर्ट थे? उनका महामारी के विज्ञान को लेकर क्या अनुभव था? या इसकी जगह आपने दूसरी तैयारी की. टीवी पर साहसिक दिखने और कड़े भाषण की? यह जानना बेहद ज़रूरी है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने न तब और न आज कहा है कि इस महामारी से निपटने के लिए तालाबंदी करें. कोरोना एक महामारी थी. कड़े निर्णय लेने की क्षमता का प्रदर्शन करने का मौक़ा नहीं था. इसकी जगह वैज्ञानिक निर्णय लेने थे लेकिन उससे मतलब तो था नहीं. जबकि विदेश से आने वाले कोई पाँच लाख यात्री थे. बिना देश को बंद किए इन पाँच लाख लोगों की जाँच और संपर्कों का पता कर आराम से रोका जा सकता था. उसके बाद भी हालात बिगड़ते तो दूसरे तरह के उपाय किए जा सकते थे.यह सब कुछ नहीं किया गया. पूरे देश को ठप्प करने के बजाए पाँच लाख लोगों की ट्रेसिंग हो सकती थी. वे किस किस से मिले इसका डेटा बन सकता था और सबकी टेस्टिंग कर उन्हें अलग किया जा सकता था. 

30 जनवरी को ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी वैश्विक चेतावनी जारी कर दी थी. उसकी किताब में सबसे बड़ी चेतावनी यही थी. मगर कड़े निर्णय लेने वाले प्रधानमंत्री उस समय कोरोना को कुछ न समझने के कड़े निर्णय ले रहे थे. यानी फ़रवरी महीने में अहमदाबाद में ट्रंप की रैली का आयोजन करवा रहे थे. 13 मार्च को सरकार कहती हैं कि कोरोना के कारण भारत में हेल्थ इमरजेंसी नहीं है. 24 मार्च को प्रधानमंत्री अचानक से कड़े निर्णय लेते हैं और देश को बर्बाद कर देते हैं. उनकी वाहवाही होती है कि इस तरह के कड़े निर्णय मोदी ही ले सकते हैं. जबकि वह फ़ैसला मूर्खता से भरा था. 

तुरंत ही जश्न मनाया जाने लगा कि मोदी ने कड़ा निर्णय लिया है. लोगों की सहज धार्मिकता की आड़ में एकल दीप प्रज्ज्वलित जैसे नाटकों से कड़े निर्णय की मूर्खता को महानता में बदला गया. देश को सास बहू सीरीयल समझ चलाने की सनक आज सबकी ज़िंदगी को बर्बाद कर रही है. करोड़ों लोग सड़क पर आ चुके हैं. नौकरियाँ ख़त्म हो गईं.

भारत की जीडीपी की ग्रोथ रेट -24 प्रतिशत हो गई. हिसाब लगाएँगे तो जीडीपी के अनुपात में क़र्ज़े का अनुपात 90-100 प्रतिशत हो चुका होगा. इसे यूँ समझें कि अगर जीडीपी का आकार 100 रूपया है तो भारत सरकार का क़र्ज़ा 90-100 रूपया है. ऐसी स्थिति को दिवालिया हो जाना कहते हैं. बाहर से लंबे समय के लिए निवेश बंद हो जाते हैं. तो अब यहाँ से आपकी ज़िंदगी में आर्थिक बदलाव अच्छे नहीं होने जा रहे. नौकरियाँ नहीं होंगी तो लंबे समय तक नौजवानों को बेरोज़गार रहना होगा. बिज़नेस को खड़ा होने में कई साल लग जाएँगे. लोगों की बचत आँधी हो जाएगी. राहुल गांधी ने फ़रवरी में कहा था कि आर्थिक सुनामी आने वाली है तब आप हंसे थे. अब आप हंस भी नहीं पाएँगे. 

कड़े निर्णय की एक प्रक्रिया होती है. यह छवि बनाने का खेल नहीं होता है. नोटबंदी और तालाबंदी विषम परिस्थितियों में लिया गया कड़ा निर्णय नहीं था. बल्कि इन तथाकथित कड़े निर्णयों के कारण वो विषम परिस्थितियाँ पैदा हो गईं जिनके कारण आपका भविष्य ख़तरे में पड़ गया है. सोमवार को जीडीपी के आँकड़े आए. कड़े निर्णय लेने वाले मोदी और उनकी सरकार के सारे मंत्री चुप हैं. कोई बोल नहीं रहा है. 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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