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This Article is From Dec 09, 2019

अमरीका में दूध ख़रीदना वैज्ञानिक हो जाने जैसा होता है

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 09, 2019 09:57 am IST
    • Published On दिसंबर 09, 2019 09:57 am IST
    • Last Updated On दिसंबर 09, 2019 09:57 am IST

जब भी अमरीकी डिपार्टमेंटल स्टोर गया हूं, दूध के डिब्बों की भरमार पर नज़र तो पड़ी है लेकिन जिज्ञासा नहीं हुई. इस बार मौंटेरे के एक स्टोर में संगीता ने कहा कि यहां सबसे पीछे दूध के उत्पाद रखे होते हैं क्योंकि उसकी बिक्री ख़ूब होती है. सबसे पीछे इसलिए रखते हैं ताकि आप जब ख़रीदने आएं तो बाक़ी सामान भी देखते चलें और ख़रीदने को प्रेरित हों. फिर वो मुझे स्टोर के सबसे आख़िर में रखे दूध के रैक की तरफ़ ले गईं. मैंने नोट करना शुरू कर दिया कि कितने प्रकार के ब्रांड और उत्पाद हैं. हर उत्पाद को एक दूसरे से अलग और श्रेष्ठ बताने के लिए अवयवों में कितना बारीक और हास्यास्पद अंतर किया गया है. इन अंतरों की समझ आपको गोपाल तो नहीं बनाएगी, वैज्ञानिक ज़रूर बना देगी.

एक डिब्बे पर लिखा है कि गाय को घास खिलाई गई है. एक पर लिखा है कि गाय के साथ समुचित बर्ताव हुआ है. एक डिब्बे पर लिखा है कि गाय को कोई हार्मोन नहीं दिया गया है. एक डिब्बे को प्रोटीन की मात्रा के हिसाब से बेचा जा रहा है तो एक को दिमाग़ के स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी बताया जा रहा है. विटामिन डी के हिसाब से भी अलग डब्बा है. वसाओं की डिग्री में भी फ़र्क़ किया गया है. पूरी तरह वसा मुक्त डिब्बा है. एक डिब्बे में एक प्रतिशत वसा कम है और दूसरे डिब्बे में दो प्रतिशत वसा कम है. कोई आसानी से पचने का दावा करता है तो कोई अल्ट्रा फ़िल्टर्ड है. एक डिब्बा आर्गेनिक मिल्क का दावा करता है. एक डिब्बा दावा करता है कि उसके दूध में विटामिन डी है. एक डिब्बा दावा करता है कि उसका दूध संपूर्ण दूध है.

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यही नहीं अमरीकी की जनता वनस्पति आधारित दूध ज़्यादा पसंद करने लगी है. नारियल और बादाम से निकाले गए दूध की अच्छी मांग है. ओट मिल्क (जई) की मांग तो पिछले एक साल में 222 प्रतिशत बढ़ी है. सीएनएन की रिपोर्ट बताती है कि गाय के दूध के उपभोग में पिछले आठ साल में 13 प्रतिशत की कमी आई है. एक बड़ी डेयरी उत्पाद कंपनी कंगाली के कगार पर पहुंच गई है. वैसे अमरीकी मक्कखन और चीज़ ख़ूब खा रहे हैं.

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अमरीकी उपभोक्ता समाज की यह अति जागरूकता का परिणाम है कि दूध के असंख्य डिब्बे साथ में कचरा पैदा करते हैं. बर्कली में हमने देखा कि कचरा फेंकने के बक्से पर लिखा है कि उसे दो हज़ार दूध के डिब्बों को गला कर बनाया गया है.

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याद कीजिए भारत के खेतों और शहरों को दूध की थैलियों में कितना भर दिया. इससे दूध ले जाने की सुगमता तो बढ़ी है लेकिन धरती पर बोझ भी बढ़ा है. शहरों में हमारी गायों की हालत है, अमरीका होता तो उनके दूध पीने पर पाबंदी लग जाती या लिखा होता कि प्लास्टिक खाने वाली गाय का दूध.

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इस अति उपभोगवाद और अति सतर्कता का कोई अंत नहीं है. फिर भी हम बीमारियों से मुक्त नहीं हुए हैं. अच्छा भी है कि सबकी ज़रूरतों के हिसाब से दूध उपलब्ध है. स्वास्थ्य को लेकर दो तरह का अमरीका दिखता है. कुछ कुछ लोग भयंकर मोटे दिखते हैं. जिनके एक शरीर पर चार पांच शरीर लदे होते हैं मगर सुपर फ़िट दिखने वाले भी बहुत हैं. मगर दिन के किसी भी वक्त सड़क किनारे लोग दौड़ते दिख जाएंगे. खाने के मामले में संयम होने लगे हैं. लेकिन दूध के इतने सारे ब्रांड के बीच अपनी पसंद या ज़रूरत का ब्रांड चुनना वाक़ई कमाल का काम होगा.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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