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This Article is From Dec 04, 2019

रवीश कुमार का ब्‍लॉग : JNU ने छात्रों के बीच एक सपना दिखाया है कि यूनिवर्सिटी JNU जैसी होनी चाहिए

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 04, 2019 12:40 pm IST
    • Published On दिसंबर 04, 2019 12:40 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 04, 2019 12:40 pm IST

30 नवंबर को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय गया था. एक पूर्व छात्र सुनील की याद में सभा थी. सुनील अर्थशास्त्र में एम ए थे. उसके बाद पढ़ाई का विचार छोड़ जीवन के क्षेत्र में लौट गए और प्रयोग करने लगे. वे चाहते तो इस विषय में दुनिया के हर श्रेष्ठ विश्वविद्यालय में पढ़ने से लेकर पढ़ाने के अवसर का लाभ उठा सकते थे. लेकिन चले गए होशंगाबाद. जहां तवा नदी पर बन रहे बांध से आदिवासी जन विस्थापित हो गए थे. सुनील ने सभी को संगठित किया और जलाशय में मछली मारने के अधिकार की लड़ाई शुरू कर दी. अंत में सरकार को मछली पालन का अधिकार देना पड़ा.

तवा जलाशय का यह प्रयोग काफी चर्चित हुआ था क्योंकि आदिवासी मछली पकड़ना नहीं जानते थे. कम से समय में ट्रेनिंग देकर उन्हें इतना सक्षम कर दिया कि साल का राजस्व सवा करोड़ तक पहुंच गया. अर्थशास्त्र का यह प्रतिभाशाली छात्र अपने विस्थापितों को आर्थिक गतिविधियों की मुख्यधारा में ले आया. लेकिन बाद में सरकार को लगा कि इससे आदिवासियों में चेतना आ रही है तो इस सफल प्रोजेक्ट को बंद कर दिया.

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यह सुनील के गांधीवादी समाजवादी जीवन का छोटा सा परिचय है. उनका जीवन बताता है कि अच्छी शिक्षा से लैस कोई प्रतिभाशाली युवक गांवों की तरफ लौटता है तो सकारात्मक बदलाव कर देता है. बहुत मुश्किल है सभी के लिए कर पाना लेकिन जो कर गए उनके लिए बहुत आसान भी था.

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आज भी बहुत से छात्र गांवों या पिछड़े इलाके में काम करने जाते हैं. संख्या कम है मगर नीयत वही है जो सुनील की थी. कैंसर के कारण 54 साल ही उम्र मिली. अच्छी बात है कि उनके मित्र उन्हें याद रखना चाहते हैं. अपने सीमित संसाधनों के दम पर उनकी स्मृति में हर साल एक व्याख्यान कराते हैं.

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जेएनयू के छात्रों का शुक्रिया. शनिवार को मुझे सुनने आए. प्रतिभाशाली छात्रों के बीच बोलने की अपनी सकुचाहट होती है. इतनी जगह बोल आया हूं लेकिन जेएनयू जाते समय बार बार ये ख़्याल धक्का मार रहा था कि जेएनयू में क्या बोलेंगे. लेकिन सभागार के बाहर से ही जो प्यार मिला वह अभिभूत करने वाला था. सभागार में जगह नहीं थी फिर भी खड़े रहे और कार्यक्रम शुरू होने के बहुत पहले से वहां पहुंच गए थे. बहुत से छात्र सभागार के बाहर शीत में खड़े होकर सुनते रहे. यह जानकर मेरा सर झुक गया. मुझे इसका बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था. वर्ना और अच्छी तैयारी कर जाता. मेरी आदत है. जब तक तैयारी नहीं हो जाती है मुझे बोलने में आनंद नहीं आता है. लेकिन आप सभी ने मेरा उत्साह बढ़ा दिया.

हर दौर में जेएनयू बरकार रहे. जे एन यू को बदनाम करने की कोशिशें चलती रहेंगी लेकिन इस यूनिवर्सिटी ने वाकई छात्रों के बीच एक सपना दिखाया है कि यूनिवर्सिटी जेएनयू जैसी होनी चाहिए. फिर से शुक्रिया दोस्तों.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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