इलाक़े में धारा-144 लगी थी. मुंबई के आरे के जंगलों में जाने वाले तीन तरफ़ के रास्तों पर बैरिकेड लगा दिए गए थे. ठीक उसी तरह से जैसे रात के अंधेरे में किसी इनामी बदमाश या बेगुनाह को घेर कर पुलिस एनकाउंटर कर देती है, शुक्रवार की रात आरे के पेड़ घेर लिए गए थे. उन पेड़ों को भरोसा होगा कि भारत की परंपरा में शाम के बाद न फूल तोड़े जाते हैं और न फल. पत्तों को तोड़ना तक गुनाह है. वो भारत अब इन पेड़ों का नहीं है, विकास का है जिससे एक प्रतिशत लोगों के पास सत्तर प्रतिशत लोगों के बराबर की संपत्ति जमा होती है. पेड़ों को यह बात मालूम नहीं थी. उन्होंने देखा तक नहीं कि कब आरी चल गई और वे गिरा दिए गए. इसे पेड़ों को काटना नहीं पेड़ों की हत्या कहा जाना चाहिए.
यह न्याय के बुनियादी सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है. मामला सुप्रीम कोर्ट में था तो कैसे पेड़ काटे गए. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में मामला था तो पेड़ कैसे काटे गए. क्या अब से फांसी की सज़ा हाईकोर्ट के बाद ही दे दी जाएगी. सुप्रीम कोर्ट में अपील का कोई मतलब नहीं रहेगा? वहां चल रही सुनवाई का इंतज़ार नहीं होगा? आरे के पेड़ों को इस देश की सर्वोच्च अदालत का भी न्याय नहीं मिला. उसके पहले ही वे काट दिए गए. मार दिए गए.
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हत्या का सबूत न बचे, मीडिया को जाने से रोक दिया गया. इन 2000 पेड़ों को बचाने निकले नौजवानों को जाने से रोक दिया गया. पूरी रात पेड़ काटे जाते रहे. पूरी रात मुंबई सोती रही. उसके लिए मुंबई नाम की फिल्म का नाइट शो ख़त्म हो चुका था. यह उस शहर का हाल है जो रात भर जागने की बात करता है. जो राजनीतिक दल के नेता पर्यावरण पर भाषण देकर जंगलों और खदानों के ठेके अपने यारों को देते हैं वो बचाने नहीं नहीं दौड़े. वे ट्विट कर नाटक कर रहे थे. बचाने के लिए निकले नौजवान. पढ़ाई करने वाले या छोटी मोटी नौकरियां करने वाले. पैसे वाले जिन्हें कभी मेट्रो से चलना नहीं है, वो ट्विटर पर मेट्रो के आगमन का विकास की दीवाली की तरह स्वागत कर रहे थे.
यह नया नहीं है. 4 अक्तूबर के इंडियन एक्सप्रेस में वीरेंद्र भाटिया की रिपोर्ट आप ज़रूर पढ़ें. ऐसी रिपोर्ट किसी हिन्दी अख़बार में नहीं आ सकती. गुरुग्राम रेपिड मेट्रो के दो चरणों के लिए विकास के कैसे दावे किए गए होंगे ये आप 2007 के आस-पास के अखबारों को निकाल कर देख सकते हैं. फिर 4 सितंबर 2019 वाली ख़बर पढ़िए. आपसे क्या कहा जाता है, क्या होता है और इसके बीच कौन पैसे बनाता है, इसकी थोड़ी समझ बेहतर होगी.
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आई ए एस अफसर अशोक खेमका ने हरियाणा के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है कि हरियाणा सहकारी विकास प्राधिकरण, जो बाद में हुडको बना, उसके अफसरों ने डीएलएफ और आई एल एफ एस कंपनी और बैंकों के साथ मिलीभगत कर झूठे दावे किए और सरकार से रियायतें लीं और बहुत मुनाफा कमाया. इसके लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट में दावा किया गया कि हर दिन 6 लाख यात्री चलेंगे. जबकि 50,000 भी नहीं चल रहे हैं. मेट्रो आर रही है, मेट्रो आ रही है के नाम पर मेट्रो लाइन के किनारे रीयल स्टेट कंपनियों के भाव आसमान छूने लगे. बैंक से इस कंपनी को लोन दिलाए गए. अब मेट्रो बंद होने के कगार पर है और वापस हरियाणा सरकार उसे 3771 करोड़ में लेने जा रही है. जनता का पैसा कितना बर्बाद हुआ. धरती का पर्यावरण भी. ठीक है कि हर मेट्रो के साथ नहीं हुआ मगर एक के साथ हुआ है तो क्या गारंटी कि दूसरे के साथ ऐसा नहीं हुआ होगा.
मुंबई के बड़े लोग इसलिए चुप रहे. उन्हें पता है कि संसाधनों की लूट का मामल किस किस में बंटेगा. उस मुंबई में जुलाई 2005 की बारिश में 1000 से अधिक लोग सड़कों पर डूब कर मर गए थे. सबको पता है कि मैंग्रोव के जंगल साफ हो गए. मीठी नदी भर दी गई इसलिए लोग मरे हैं. मगर मुंबई 4 सितंबर की रात सोती रही.
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29 लोग गिरप्तार हुए हैं. 23 पुरुष हैं और 6 लड़कियां हैं. इनके ख़िलाफ़ बेहद सख़्त धाराएं लगाई गईं हैं. जिनमें 5 साल तक की सज़ा हो सकती है. आरोप है कि इन लोगों ने बिना किसी प्रमाण और अनुमति के पेड़ों के काटने का विरोध किया. प्रदर्शन किया. इस तरह सरकारी कर्मचारी के कर्तव्य निर्वाहन में बाधा डाली. 28 साल की अनिता सुतार पर आरोप लगाया गया है कि उन पर कांस्टेबल इंगले को मारा है. इन पर 353, 332, 143, 141 लगा है. 181य19 लगा है. 353 ग़ैर ज़मानती अपराध है. किसी सरकारी कर्मचारी को कर्तव्य निर्वाहन से रोकने पर लगता है.
गिरफ्तार किए गए दो छात्र टाटा इंस्टिट्यूट आफ सोशल साइंस के हैं. दोनों एक्सेस टू जस्टिस में मास्टर्स कर रहे हैं. इनमें से एक आरे के जंगलों पर थीसीस लिख रहा था. इसलिए उसे मौके पर होना ही था. दोनों को अब पुलिस सुरक्षा में इम्तहान देना होगा. विश्व गुरु भारत में यह बात किसी नॉन रेज़िडेंट इंडियन को मत बताइयेगा. वह इस वक्त हर तरह के झूठ के गर्व में डूबा हुआ है. ऐसी जानकारियां उसके भीतर शर्म पैदा कर सकती हैं. भारत के लोगों को तो क्या ही फर्क पड़ेगा. जब जंगल के जंगल काट लिए गए तब कौन सा शहर रो रहा था.
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29 लोग सिर्फ संख्या नहीं हैं. इनके नाम हैं. वे आज के सुंदर लाल बहुगुणा है. चंडीप्रसाद भट्ट हैं. मैं सबके नाम लिख रहा हूं. अनिता, मिंमांसा सिंह, स्वपना ए स्वर, श्रुति माधवन, सोनाली आर मिलने, प्रमिला भोयर. कपिलदीप अग्रवाल, श्रीधर, संदीप परब, मनोज कुमार रेड्डी, विनीथ विचारे, दिव्यांग पोतदार, सिद्धार्थ सपकाले, विजयकुमार मनोहर कांबले, कमलेश सामंतलीला,नेल्सन लोपेश, आदित्य राहेंद्र पवार, द्वायने लसराडो, रुहान अलेक्जेंड्र, मयूर अगारे, सागर गावड़े, मनन देसाई, स्टिफन मिसल, स्वनिल पवार, विनेश घावसालकर, प्रशांत कांबले, शशिकांत सोनवाने, आकाश पाटनकर, सिद्धार्थ ए, सिद्धेश घोसलकर.
नाम इसलिए नहीं दे रहा कि इसे पढ़कर यूपी बिहार के नौजवान जाग जाएंगे या उनमें चेतना का संचार होगा. जब मुंबई नहीं जागी तो फिर किसकी बात की जाए. ये नाम मैंने इसलिए दिए क्योंकि पर्यावरण पर अक्सर परीक्षा में निबंध आते हैं, जिसमे आप झूठ लिखकर अफसर बन जाते हैं और फिर पर्यावरण को बचाने वाले पर केस करते हैं. तो खाली पन्ना भरने में अगर ये नाम काम आ सके तो ये भी बहुत है. हैं न.
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