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This Article is From Jul 25, 2022

झंडा ऊंचा रहे हमारा, लेकिन यूक्रेन से लौटा छात्र क्या करे बेचारा?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 25, 2022 23:44 pm IST
    • Published On जुलाई 25, 2022 23:34 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 25, 2022 23:44 pm IST

झंडा खादी का हो या पॉलिएस्टर का यह सवाल तो है ही लेकिन क्या इतने कम समय में 20 करोड़ झंडे का उत्पादन, वितरण, विक्रय वगैरह सब हो जाएगा? बिल्कुल हो सकता है लेकिन इस समय कई निर्माताओं का कहना है कि अचानक आए आर्डर को पूरा करने के लिए न तो सामग्री है और न पूंजी.इससे पहले इतने कम समय में इतना झंडा न कभी बना होगा,न बिकेगा.देश में कितने सप्लायर हैं जो इतने कम समय में बीस लाख या एक करोड़ झंडा बनाकर,उन्हें पैक कर देश भर में सप्लाई कर सकते हैं?17 जुलाई को गृहमंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक के बाद हर घर तिरंगा अभियान को ठोस रुप दिया था. इसके लिए सरकार ने एक वेबसाइट भी बनाई है जिस पर सप्लायरों के नाम हैं.

आशीष, रविंद्र, राजीव, रमनीश, कीर्ति कुमारी, प्रदीप, आरती, स्वपना, इमरान, रियाज, सुबोध,गिरिराज,जावेद, चंद्रजीत, जितेंद्र, अंकित, अनुराग, ममता, संगीता, निर्मल और जुबैदा, सीमा,अहमद, अनूप, सुमित्रा, ताहिर.इस तरह से इन नामों को सुनकर ऐसा लगता है कि मोहल्ले के बुजुर्ग सारे बच्चों को पुकार रहे हैं. वेबसाइट पर चार पांच का ही पूरा नाम दिया गया है, बहुतों के नाम पूरे नहीं हैं या ऐसे ही होंगे आशीष चंद्रजीत, सीमा, संगीता टाइप.इनकी कंपनी के नाम क्या हैं, पता नहीं चलता. शहरों के भी नाम नहीं दिए गए हैं. केवल नाम है, ईमेल और फोन नंबर है. 

18 जुलाई के प्राइम टाइम में हमने बताया था कि सरकार ने हर घर तिरंगा नाम से एक वेबसाइट बनाई है, जिस पर केवल 11 सप्लायरों के नाम दिए गए हैं.कइयों के शहरों के भी नाम और फोन नंबर थे. इनमें से ज़्यादातर सप्लायर गुजरात के थे लेकिन तीन से चार दिनों के भीतर सप्लायरों की सूची में 50 से अधिक नाम जोड़ दिए गए हैं.

यह खबर 19 जुलाई के संदेश अखबार की है. गुजरात का बड़ा अखबार है. लिखा है कि सूरत के एक डाईंग मिल में एक करोड़ झंडा बनाया जा रहा है. इस अभियान का यह भी एक अच्छा असर है. मेरी राय में अगर इस अभियान से सूरत की कपड़ा मिलों को इसी तरह का काम मिलता है तो उसे केवल गुजरात में होने वाले चुनाव से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. क्योंकि झंडे तो दूसरे राज्यों में भी बनेंगे. हर घर तिरंगा वेबसाइट पर जिन लोगों के नाम हैं, उनमें से कइयों से हमारे सहयोगियों ने फोन पर बात की. पहले तो यही पता चला कि अब इसकी वेबसाइट पर कई ऐसे सप्लायरों के नाम जोड़ दिए गए हैं जो केवल गुजरात के नहीं हैं. गुजरात के बाहर के भी हैं.  

13 अगस्त से लेकर 15 अगस्त के बीच अमीर से गरीब, दफ्तर से लेकर दुकान, महल से लेकर घर, घर से लेकर झोंपड़ी, हर जगह तिरंगा फहराया जाना है.हर घर तिरंगा की वेबसाइट पर ज्यादातर सप्लायरों के नाम पिछले दो तीन दिनों में ही जोड़े गए हैं. हमारे सहयोगियों ने कुछ नंबरों पर फोन किया तब बातचीत के दौरान पता चला कि इनमें से कइयों के पास झंडा बनाने की तैयारी नहीं है. हमें यह तो पता नहीं चल सकता कि इनसे एक करोड़ झंडा बनाने के लिए कौन कह रहा है लेकिन कई सप्लायरों ने कहा कि हमसे 1 करोड़ झंडा बनाने के लिए कहा जा रहा है, हमारे पास उतना पोलियेस्टर का कपड़ा भी नहीं है. हम अगर बीस लाख भी बना लें तो उसे गिनने और पैकेजिंग का स्टाफ तक नहीं है.

कइयों का कहना है कि कोई ठोस तरीके से आर्डर भी नहीं दे रहा है, केवल ज़ुबानी बातें कर रहा है. किसी ने कहा कि पोलियेस्टर का झंडा बनाने की तैयारी नहीं है. सरकार ने काफी देर से फैसला किया है. कोई कह रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में तिरंगा बनाकर सप्लाई करने के लिए फंड नहीं है.कुछ ने बताया कि सरकार ने जो ई पोर्टल बनाया है GEM उसके लिए अभी टेंडर भरने को कहा जा रहा है. एक ने कहा कि पहले लागत आकार के हिसाब से हुआ करती थी. अगर खादी का एक झंडा बीस रुपये का पड़र रहा है तो एक करोड़ झंडे के लिए बीस करोड़ कहां से लाऊंगा. हमने कोशिश की कि सप्लायर अपनी बात रिकार्ड पर कहें लेकिन जैसे ही कहा कि फोन से रिकार्ड कर लें, या वीडियो पर रिकार्ड कर सकते हैं तो बातचीत समाप्त हो गई. 

तिरंगा झंडा बनाने वालों में से कइयों ने कहा कि इतने आर्डर आ रहे हैं कि पूरा करना उनके बस की बात नहीं है. क्या यह इतनी बड़ी बात है कि इसे आन रिकार्ड कहने के लिए किसी के पास साहस नहीं है.तिरंगा की यही तो खूबी है कि देख लेने भर से गलत को गलत कहने की हिम्मत आ जाती है, थाम लेने से भर से जान देने का जज्बा आ जाता है लेकिन तिरंगा बनाने वालों से जब हमारे सहयोगियों ने कहा कि जो परेशान बता रहे हैं उसे रिकार्ड पर कहें तो कोई तैयार नहीं हुआ. लोग भले अपनी छत पर तिरंगा न फहराएं, अपने दिल में ज़रूर फहराएं ताकि बोलने की हिम्मत आ  सके. इन सप्लायरों की बातचीत से एक चीज़ निकल कर आई कि सरकार ने देरी से फैसला किया है, कम से कम उन्हें देरी से पता चला है, वे मानते हैं कि करोड़ों झंडा बनाने और बाज़ार में भेजने के लिए बहुत कम समय दिया गया है. हमने यह जानने का प्रयास किया कि क्या सरकार ने इस अभियान के बारे में देर से फैसला लिया? 

यह वित्त मंत्रालय का सर्कुलर है. इस पर तारीख लिखी है 31 मई 2022. लिखा है कि आज़ादी का अमृत महोत्सव के कार्यक्रमों को लागू करने वाली राष्ट्रीय समिति का फैसला है कि हर नागरिक को प्रेरित करना है कि वह अपने घर पर तिरंगा फहराए. इस सर्कुलर के ज़रिए सार्वजनिक उद्यमों में काम करने वाले सभी कर्मचारियों का आह्वान किया गया है कि वे फ्लैड कोड का पालन करें. 20 मई को संस्कृति मंत्रालय के सचिव गोविंद मोहन का एक सर्कुलर मिलता है कि गृह मंत्री की अध्यक्षता वाली समिति ने हर घर तिरंगा अभियान को मंज़ूरी दी है. इसी में लिखा है कि 13 मई को कैबिनेट सचिव ने सभी सचिवों के साथ इस अभियान को लेकर बैठक की थी. 

उसके बाद से हिन्दी के अखबारों में इस अभियान को लेकर खबरें छपने लगी थीं. 17 जुलाई को जब गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की तब यह अभियान सभी की निगाहों में आ गया और राजनीतिक स्तर पर बात होने लगी. यह सवाल उठने लगा कि 20 करोड़ तिरंगा झंडा कहा से आएगा. क्या सप्लायरों को देर से बताया गया? और इस अभियान को लोगों के बीच लाने में देरी हुई है? 

यू ट्यूब पर हर घर तिरंगा अभियान को लेकर कई प्रचार वीडियो अपलोड हुए हैं. ये वीडियो 22, 23 और 25 जुलाई की तारीख को अपलोड हुए हैं.जब इस अभियान को लेकर 13 मई को ही फैसला हो गया था तब प्रचार वीडियो अभी क्यों अपलोड हो रहे हैं? अभियान के 18 दिन रह गए हैं, और अभी प्रचार वीडियो बन रहा है. इस तथ्य को ध्यान से सुनिए. 30 अप्रैल 2022 के दिन प्रेस इंफोर्शन ब्यूरो की एक प्रेस रिलीज जारी हुई है. इसमें बताया गया है कि खादी ग्रामोद्योग आयोग KVIC ने प्रधानमंत्री मोदी के निर्देशन में एक बड़ा लक्ष्य हासिल किया है. इस कारण FMCG सेक्टर मे खादी ग्रामोद्योग आयोग KVIC पहली कंपनी हो जाती है, जिसने एक लाख करोड़ का टर्नओवर रिकार्ड किया है. जब खादी ग्रामोद्योग की क्षमता किसी प्राइवेट सेक्टर की कंपनी से भी ज्यादा है तब भारत सरकार ने केवल खादी का तिरंगा अभियान क्यों नहीं चलाया. क्यों पोलियेस्टर के झंडे को इस अभियान से जोड़ा है. 

इसलिए कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संघ की बात में दम है. उनका कहना है कि पोलियेस्टर का झंडा बनेगा तो खादी का झंडा कम बिकेगा. आर्डर कम आएंगे. सरकार ने यह नहीं कहा है कि खादी का झंडा नहीं होगा लेकिन पोलियेस्टर का विकल्प देने से खादी का झंडा बनाने वाले असुरक्षित हो गए हैं. जब खादी ग्रामोद्दोग की क्षमता एक लाख करोड़ के टर्नओवर की है तब क्यों नहीं KVIC पर भरोसा किया गया कि इसके नेतृत्व में खादी के करोड़ों झंडे बन जाएंगे. नरेंद्र मोदी डॉट इन पर प्रधानमंत्री का एक कथन लिखा हुआ है कि जब हम खादी खरीदते हैं तब दिन रात मेहनत करने वाले लाखों बुनकरों के जीवन में रौशनी लाते हैं.30 दिसंबर 2021 में जब फ्लैग कोड में बदलाव किया गया और पोलियेस्टर का झंडा बनाने की इजाज़त दी गई. तब पोलियेस्टर को लेकर कहीं कोई खास चर्चा नहीं हुई. कम से कम मीडिया रिपोर्ट से तो पता ही नहीं चलता है कि इतना बड़ा अभियान आने वाला है. क्या उस समय हर घर तिरंगा अभियान का खाका बन चुका था, जिसके कारण फ्लैग कोड में बदलाव किया गया? अगर ऐसा कोई प्लान वजूद में आ चुका था तब भी आठ महीने काफी थे, खादी के करोड़ों झंडा बनाने के लिए.क्या इस देश में खादी और सूती के कपड़ों की कमी हो गई है, जिसके कारण नियमों में बदलाव कर पोलियेस्टर का झंडा बनाने की अनुमति दी गई है? सरकार को बताना चाहिए कि उसके विभागों ने झंडे के लिए जो आर्डर दिए हैं या दिए जा रहे हैं उनमें खादी के कितने करोड़ झंडे हैं? 

खादी का तिरंगा बनाने का यह कारख़ाना कर्नाटक के हुबली ज़िले में है. यहां काम करने वाली ज़्यादातर महिलाएं हैं. भारतीय मानक ब्यूरो ने कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ को ही खादी का तिरंगा बनाने के लिए अधिकृत किया है. जब से पोलियेस्टर का तिरंगा बनाने की अनुमति दी गई है, हाथ से तिरंगा बनाने वाले यहां के कामगारों के आगे अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है. यहां पर ज़्यादातर महिलाएं ही काम करती हैं जिनकी संख्या 1200 के करीब बताई जाती है. कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ के सचिव शिवानंद माथापति ने पोलियेस्टर का झंडा बनाने के फैसले पर नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए प्रधानमंत्री और सांसदों विधायकों को पत्र लिखा है. उनका कहना है कि दो साल से कोरोना के कारण उनकी संस्था को भारी घाटा हुआ था. इस बार आज़ादी का अमृत महोत्सव होने के कारण उम्मीद थी कि चार से पांच करोड़ का तिरंगा बिकेगा. लेकिन अभी तक 70 लाख के ही आर्डर आए हैं. 15 अगस्त आते आते बहुत से बहुत 1 से डेढ़ करोड़ का ही तिरंगा बिकेगा.पोलियेस्टर का झंडा बनाने की अनुमति देने से आर्डर काफी कम होने लगे हैं. कर्नाटक में 30 से 40 हज़ार लोग खादी के सेक्टर में काम करते हैं, सरकार के इस एक फैसले से इन सभी को झटका लगेगा. कर्नाटक का खादी ग्रोद्योग संयुक्त संघ बेहद पवित्रता और अनुशासन से तिरंगा बनाने का काम करता है. पोलियेस्टर ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. KKGSS इसके खिलाफ 27 जुलाई को आंदोलन की तैयारी कर रहा है.

KKGSS कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ की स्थापना 1 नवंबर 1957 को हुई थी. इसे राज्य के कई गांधीवादियों ने मिलकर बनाया था ताकि गांवों में उद्योग धंधा चालू हो सके. पूरे देश में एकमात्र यूनिट है जिसे भारतीय झंडा बनाने के लिए अधिकृत किया गया है. हर घर तिरंगा की वेबसाइट पर जब खादी ग्रामोद्योग की किसी संस्था का नाम नहीं देखा तभी खटका था कि ऐसा क्यों है. क्यों शुरू के 11 सप्लायरों में से गुजरात के हैं. खादी उत्पादन का विभाग लघु एवं मझोले उद्योग मंत्रालय के तहत आता है. 

MSME के मंत्री नारायण राणे ने पिछले साल दिसंबर में लोकसभा  में बताया है कि पिछले सात वर्षों में भारत में खादी संस्थाओं के 122 बिक्री केंद्र बंद हुए हैं लेकिन 624 नए बिक्री केंद्र खुले भी हैं. 624 बिक्री केंद्रों में से 326 बिक्री केंद्र अकेले यूपी में खुले हैं. इन सभी बिक्री केंद्रों के नाम हर घर तिरंगा की वेबसाइट पर होने चाहिए थे.15 अगस्त तक के लिए नारायण राणे के मंत्रालय ने नए बिक्री केंद्रों की स्थापना क्यों नहीं की? क्या यह अच्छा नहीं होता कि घर घर तिरंगा अभियान के साथ खादी का तिरंगा का अभियान जुड़ जाता, इसी बहाने इससे जुड़े लोगों को ज़्यादा काम मिलता, उनके हाथ में पैसे आते. अब तो झंडा कभी भी फहराया जा सकता है, अगर शुरूआत से ही खादी के झंडे को प्राथमिकता नहीं मिलेगी तो इसकी जगह पर लोग पोलियेस्टर का ही झंडा खरीदेंगे और यही चारों तरफ उपलब्ध दिखाई देगा.जब आत्म निर्भर भारत का नारा चल रहा है तब क्यों नहीं खादी ग्रामोद्योग के हर सेंटर पर तिरंगा बनाने का अभियान चलाया गया, इससे तो कई ज़िलों में लोगों के पास रोज़गार औऱ पैसा दोनों पहुंच जाता. पोलियेस्टर का झंडा बनेगा तो हो सकता है कि आयातित कपड़ों का भी इस्तेमाल हो तब फिर आत्मनिर्भर भारत के नारे का क्या मतलब रह जाता है

तिरंगा अभियान के बहाने राजनीति का भी अभियान कहां पीछे रहने वाला है. बीजेपी ने आज श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा रैली निकाली है. तिरंगा का संबंध शुचिता, पवित्रता,सच औऱ अहिंसा से है.दिल्ली पुलिस ने बीजेपी के सांसद तेजस्वी सूर्या से मुख्यमंत्री केजरीवाल के घर पर हमले के मामले में पूछताछ की है. उनका भी नाम हमला करने वाले आरोपियों में शामिल है. लेकिन वही तेजस्वी सूर्या आज श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा यात्रा का नेतृत्व कर रहे थे. तेजस्वी कह रहे हैं कि यह कोई सिविलाइज़ेशनल टास्क है जिसे कश्मीर के युवाओं और भारत के युवाओं को पूरा करना है. सिविलाइज़ेशनल टास्क. ऐसा लगता है कि सभ्यता का कोई होमवर्क बाकी रह गया है जिसे स्कूल खुलने से पहले पूरा करना है. यह मैं इसलिए कह रहा हूं कि 17 जुलाई के दिन PIB की जो प्रेस रिलीज़ जारी हुई है उसमें तो ऐसा कुछ नहीं लिखा है कि यह सिविलाइज़ेशनल टास्क है. यही लिखा है कि सभी को प्रेरित करना है और यह अभियान स्वैच्छिक है. फिर टास्क की बात कहां से आ गई.

इस अभियान के तहत आप जब भी तिरंगा फहराएं सेल्फी लेकर वेबसाइट पर ज़रूर डालें ताकि पूरी दुनिया देख सके. अभी तक पौने सात लाख से अधिक लोगों ने तिरंगा के साथ सेल्फी लेकर अपलोड भी कर दिया है. हम आपको बता दें कि PIB की प्रेस रिलीज़ के अनुसार यह अभियान 22 जुलाई से ही शुरू हो चुका है. इसमें कहा गया है कि केंद्र और राज्यों की सभी सरकारी वेबसाइट, फेसबुक पेज, इंस्टा और ट्विटर हैंडल पर तिरंगा की तस्वीर 22 जुलाई से लग जानी चाहिए. आम लोगों से भी यही अपील है. 

आज दोपहर तीन बजे जब हम गृह मंत्री अमित शाह के ट्विटर हैडल पर चेक किया तो उनकी डीपी में तिरंगा झंडा की तस्वीर नहीं थी. 17 जुलाई को जब अमित शाह नेतिरंगा अभियान को लेकर मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की उसी बैठक से संबंधित प्रेस नोट में इसकी जानकारी दी गई थी.अमित शाह के ट्विटर हैंडल के कवर पिक्चर में statue of unity की तस्वीर है. तिरंगा की तस्वीर अभी नहीं लगी है. प्रधानमंत्री मोदी के ट्विटर हैंडल की डीपी में भी उनकी ही तस्वीर है. प्रधानमंत्री के कवर पिक्चर में 2019 की जीत की तस्वीर है.  वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के ट्विटर हैंडल की डीपी पर में तिरंगा नहीं है. वित्त मंत्री ने भी ट्विटर की डीपी या कवर पेज पर तिरंगा की तस्वीर नहीं लगाई है. अभियान के शुरू हुए 3 दिन हो चुके हैं. मंत्रालयों की डीपी में भी अभी तिरंगा की तस्वीर नहीं लगी है. इन सभी को PIB का प्रेस नोट पढ़ना चाहिए जो 17 जुलाई को जारी हुआ था, इसमें कहा गया है कि 22 जुलाई से सभी को सोशल मीडिया पेज पर तिरंगा की तस्वीर लगानी है. हमने आखिरी बार आज शाम पांच बजे देखा था.

झंडा को लेकर अभी राजनीति के कई और रुप देखने को मिलेंगे. देश की राजनीति बिना लाइसेंस के बार चलाने, विधायक के फार्म हाउस में वेश्यावृत्ति चलाने, बार चलाने और शिक्षकों की भर्ती में करोड़ों रुपये घूस लेने के मामलों का तमाशा देखती रहेगी लेकिन आम जनता को देशभक्ति का इम्तहान देना ही होगा. गौरव का एक ऐसा ही पल मार्च और अप्रैल के महीने में आया था. उन पलों में ले जाने के लिए फ्लैशबैक बहुत ज़रूरी है.फ्लैशबैक में ही पहुंच कर आप ख़ुद को देख पाते हैं कि आपने नहीं समझने की जो कसमें खाई हैं, उसे आज भी पूरी निष्ठा के साथ निभा रहे हैं. यही हाल नमामि गंगे को लेकर और यही हाल आपरेशन गंगा को लेकर है

यूक्रेन से लाए गए छात्रों से कहा जा रहा है कि भारत माता की जय बोलें. भारत की धरती पर वायुसेना का विमान उतरा है, मेडिकल छात्रों ने थोड़ी हिचक के साथ ज़ोर से भारत माता की जय के नारे लगाए हैं. चैनलों पर यह वीडियो चला है, ज़ाहिर है दर्शकों में राष्ट्रवाद का ज्वार पैदा हो गया है. इस विमान में मंत्री जी आ रहे हैं, बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री कितना ध्यान रखते हैं.(ब्रीद पीम का संदेश लाया हूं) यहां बनारस में प्रधानमंत्री यूक्रेन से निकाल कर लाए गए छात्र से मुलाकात कर रहे हैं. फ्लैशबैक में इन तस्वीरों को देखकर याद आ रहा होगा कि मार्च और अप्रैल के महिने में आपरेशन गंगा को लेकर कितना दावा किया जाता होगा. भूल तो आप यह भी गए होंगे कि वहां फंसे छात्रों को निकालने के लिए मीडिया के कुछ हिस्से और विपक्ष ने कितना ज़ोर लगाया है.लेकिन जब आपरेशन गंगा शुरू हुआ तब ख़बरें इस तरह से चलने लगीं जैसे किसी सरकार में ऐसी संवेदनशीलता कभी नहीं देखी गई थी.यूपी का चुनाव चल रहा है, था, यूक्रेन से लाए गए मेडिकल छात्रों के आपरेशन का नाम आपरेशन गंगा है. जोश का ज्वाब ऐसा फैला कि पूर्व मंत्री रविशंकर प्रसाद तक झूठ बोल गए कि प्रधानमंत्री ने पुतिन से बात कर युद्ध रुकवा दिया और मेडिकल छात्रों की जान बचाई गई है. जून महीने में गुजरात के शिक्षा मंत्री का बयान है कि मोदी ने रुस और यूक्रेन से बात कर 6 घंटे के लिए युद्ध रुकवा दिया. आज तक यह युद्ध नहीं रुका है लेकिन जब 6 घंटे के लिए युद्ध रुकवा दिया गया था तब खुद प्रधानमंत्री ने इसका श्रेय क्यों नहीं लिया.शायद इसलिए कि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने पहले ही बता दिया है कि युद्ध रुकवाने जैसी बात बेमानी है, फालतू है, सर के ऊपर से गुज़र जाने वाली है. क्या यह सब आपको फ्लैशबैक में याद आ रहा है? 

 फ्लैशबैक ज़रूरी था ताकि आप याद कर सकें कि आपरेशन गंगा को लेकर श्रेय लेने की कितनी होड़ मची थी, उसके लिए झूठ तक बोला जा रहा था. हम नहीं जानते कि इस देश में कितने ऐसे लोग हैं, जो इस झूठ को सच मानते हैं कि यूक्रेन में फंसे मेडिकल छात्रों को निकालने के लिए प्रधानमंत्री ने कुछ समय के लिए युद्ध रुकवा दिया. क्या आप सरकार से पूछना चाहेंगे कि जब युद्ध रुकवा सकते हैं तब फिर यूक्रेन से आए मेडिकल छात्रों की आगे की पढ़ाई के लिए कदम क्यों नहीं उठा सकते? तब कैसे इनकी हर वापसी के साथ प्रचार हो रहा था, अब ये क्या कर रहे हैं, कोई समाचार भी नहीं छपता है. 

दिल्ली का रामलीला. 23 से 27 जुलाई के बीच यहां पर यूक्रेन से आए छात्रों और उनके माता भूख हड़ताल पर बैठे हैं. 18000 छात्रों का भविष्य अधर में लौटा है, आंदोलन के प्रति इनकी गंभीरता देखिए कि 200 भी मुश्किल से नज़र नहीं आते हैं. ऐसा लगता है कि इस पूरे शहर में इन्हें लेकर मैं ही गंभीर हूं. 18000 छात्र हैं, माता-पिता होंगे, क्या यहां संख्या ज़्यादा नहीं होनी चाहिए थी? अपने आंदोलन को खुद ही पार्ट टाइम बनाएंगे तो कौन गंभीरता से लेगा. दूसरी बात, इनमें से बहुत से ऐसे लोग हैं जो मेरा नाम तक सुनना पसंद नहीं करते, जब प्राइम टाइम में अपने आंदोलन का कवरेज देखेंगे तो उन्हें यह पता होना चाहिए कि मैं इतना भी अनजान नहीं हूं. तीसरी बात, ऐसी समस्या के कवरेज को नौजवान ही नहीं देखते हैं. छात्रों को केवल अपनी परीक्षा से मतलब है.यह भी बताना ज़रूरी था जब ये खुद दूसरों की समस्या से मतलब नहीं रखते तो इनकी समस्या को लेकर दूसरा क्यों परवाह करे. चौथी बात,इनका आंदोलन रामलीला मैदान में हो रहा है. जो अब आउट आफ फैशन हो चुका है. इस मैदान में अन्ना आंदोलन और लोकपाल आंदोलन का एक ऐसा रहस्यमयी अतीत दर्ज है, जिसके कारण यहां होने वाला कोई भी आंदोलन फर्ज़ी सा ही लगता है. रामलीला मैदान की राजनीतिक साख समाप्त हो चुकी है. आप पता कर सकते हैं कि कानून पास होने के कई साल बाद जो लोकपाल बना, उसके कामकाज का क्या रिकार्ड है.भ्रष्टाचार से जुड़ी किसी भी खबर में लोकपाल का ज़िक्र नहीं आता है ED कोई  ही आता है. इन बातों को याद करते हुए इन्हें भी याद करना चाहिए कि 18000 छात्रों का भविष्य कोई मामूली बात नहीं है, सरकार को सोचना चाहिए. 

भारत में 600 से ज़्यादा मेडिकल कालेज हैं. क्या वहां इन्हें एडमिशन दिला कर इनकी पढ़ाई पूरी कराई जा सकती है? इस सवाल का जवाब इतना सरल नहीं है. नियम कानून इसके खिलाफ हैं और वहां पढ़ रहे मेडिकल छात्र भी विरोध करने लग जाएंगे. भारत आने के बाद कुछ दिनों तक आनलाइन क्लास चली थी लेकिन जैसे जैसे यूक्रेन तबाह होता गया, आनलाइन क्लास बंद होती चली गई. ऐसा नहीं है कि विपक्ष के सांसदों को इननी चिंता नहीं है.

तेलंगाना राष्ट्र समिति के चार सांसदों ने एक ज़रूरी सवाल पूछा है. डॉ गड्डम रंजीत रेड्डी, डॉ वेंकटेश नेता बोरलाकुंता,दयाकर पसुनूरी, कविता मलोथू, ने लोकसभा में सरकार से पूछा किक्या यह सही है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने यूक्रेन से आए 400 मेडिकल छात्रों को राज्यों के मेडिकल कालेज में समायोजित किया है? क्या नेशनल मेडिकल कमिशन ने राज्य सरकार के फैसले को मंज़ूरी नहीं  दी है? क्या सरकार इन छात्रों को यूरोप या अन्य जगहों के मेडिकल कालेजों में समायोजित करने का कोई प्रयास कर रही है?

इसके जवाब में 22 जुलाई को स्वास्थ्य राज्य मंत्री डॉ भारती प्रवीण पवार ने बताया कि भारत में मेडिकल शिक्षा की नियामक संस्था नेशनल मेडिकल कमिशन के पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है. यानी बंगाल सरकार ने अपने मेडिकल कालेजों में यूक्रेन के छात्रों को समायोजित किया है, उसकी जानकारी नेशनल मेडिकल काउंसिल को नहीं है. यह जवाब है केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री का. 

इसी सवाल के जवाब में मंत्री कहती हैं कि इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट 1956 और नेशनल मेडिकल कमिशन एक्ट 2019 में इस बात का कोई प्रावधान नहीं है कि किसी विदेशी यूनिवर्सिटी से आए छात्रों का ट्रांसफर  भारतीय मेडिकल कालेज में हो सकता है. नेशनल मेडिकल काउंसिल ने इन छात्रों को भारतीय मेडिकल कालेज में समायोजित करने को लेकर कोई अनुमति नहीं दी है. इसका मतलब है कि यूक्रेन के मेडिकल कालेजों में पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य हवा में लटक गया है. अगर नियमों में ऐसा प्रावधान नहीं है तो क्या बात वहीं खत्म हो जाती है. क्या सरकार को नियमों में बदलाव को लेकर नहीं सोचना चाहिए? इसी एक जून को इंडियन एक्सप्रेस में एक खबर छपी है


वडोदरा में विदेश मंत्री एस जयंशकर का बयान है कि हम यूक्रेन के आस-पास के देशों से बात कर भारतीय छात्रों की समस्या का समाधान निकालने का प्रयास कर रहे हैं ताकि वे मेडिकल की पढ़ाई को जारी रख सकें. हमने हंगरी से बात की है और हंगरी ने इसके लिए सहमति भी जताई है. हम अपने बच्चों की मदद के लिए बहुत गंभीरता से प्रयास कर रहे हैं. यह बयान 1 जून का है, 6 अप्रैल को लोकसभा में विदेश मंत्री यही बात कह चुके हैं, 25 जुलाई तक हालात में कोई बदलाव नहीं है. 

विदेश मंत्री के अनुसार हंगरी से अगर प्रस्ताव आया है तो वह किस मुकाम पर है, अन्य देशों के साथ अगर मेडिकल छात्रों को लेकर बात हुई है तो उसका क्या नतीजा निकला है, हम नहीं जानते हैं.भारत के विदेश मंत्री का बयान अप्रैल और जून का है, अब तो जुलाई बीतने जा रहा है, इस मामले में सरकार इन छात्रों को क्यों नहीं बताती है कि मामला कहां तक पहुंचा है. 

यूक्रेन पर रूस की तबाही से केवल भारत के छात्र प्रभावित नहीं हुए हैं, वहां ब्रिटेन, घाना, नाइजीरिया औऱ चीन समेत कई देशों के छात्र मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे. मीडिया में छपी खबरों के अनुसार पता चलता है कि कुछ देशों ने अपनी तरफ से समाधान निकालने का प्रयास किया है.नाइजीरिया की यूनिवर्सिटी में अच्छी तनख्वाह और बुनियादी ढांचे की मांग को लेकर लेक्चरर प्रोफेसर चार महीने से हड़ताल पर हैं. इसके बाद भी वहां की सरकार ने एक समाधान निकाला है.यूक्रेन से निकाल गए 1000 छात्रों से कहा है कि वे 15 जुलाई नाइजीरिया के विदेश मंत्रालय की साइट पर अपना पंजीकरण कराएं.नाइजीरिया की सरकार ने यूक्रेन से आनलाइन डिग्री लेने को मान्यता देने से इंकार कर दिया है. अपने देश में इन छात्रों की पढ़ाई की कोशिश हो रही है. घाना ने कैरिबियन द्वीप से एक समझौता किया है. इसके तहत ग्रेनाडा की सेंट जार्ज यूनिवर्सिटी आफ मेडिसिन में यूक्रेन से निकाले गए 200 छात्रों का एडमिशन हुआ है ताकि उनकी पढ़ाई पूरी हो सके. घाना ने यह काम मार्च के महीने में ही कर दिया था.घाना अन्य देशों से भी बात कर रहा है. 18 मई की एक खबर है कि यूक्रेन में पीएचडी कर रहे छात्रों को छह महीने की छात्रवृत्ति दी जाएगी ताकि वे यूनिवर्सिटी आफ ब्रिस्टल में अपना रिसर्च पूरा कर सकें. 

मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप पाने वाले छात्रों का कहना है कि नवंबर 2021 से छात्रवृत्ति का पैसा नहीं आया है. इसके लिए वे कभी अल्पसंख्यक मंत्रालय तो कभी UGC को पत्र लिख रहे हैं. जवाब आता है मगर पैसा नहीं आता है. ऐसी खबरों को देखने का धीरज जब दर्शकों में ही नहीं है तब सरकार पर क्या असर होगा. आप खादी का झंडा खरीदेंगे या पोलियेस्टर का? 

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