आर्थिक समाचार पार्ट वन - भावुक मुद्दों की जल्द दरकार, नहीं है मार्केट में रोजगार
साल 2017 में भी काम नहीं मिला, 2018 में मिलने की उम्मीद बहुत कम है. यह कहना है CMIE के महेश व्यास का, जो रोजगार पर नियमित विश्लेषण पेश करते रहते हैं. हमने इनके कई लेख का हिन्दी अनुवाद कर यहां पेश किया है. CMIE मतलब Centre for monitoring Indian Economy, के विश्लेषण की काफी साख मानी जाती है.
आज के बिजनेस स्टैंडर्ड में महेश व्यास ने लिखा है कि सितंबर से दिसंबर 2017 के रोजगार संबंधित सर्वे आ गए हैं. इन्हें अंतिम रूप दिया जा रहा है लेकिन जो शुरुआती संकेत मिल रहे हैं उससे यही साबित होता है कि रोजगार में मात्र 0.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. संख्या में 20 लाख. इसके भीतर जाकर देखने पर शहरी रोजगार में 2 प्रतिशत की वृद्धि दिखती है और ग्रामीण रोजगार में 0.3 प्रतिशत की गिरावट दिखती है.
रोजगार पाने लायक उम्र की गिनती में 15 साल और उससे अधिक को रखा जाता है. 2017 में इस उम्र के करीब ढाई करोड़ लोग जुड़े मगर इसमें से बहुत ही कम लेबर मार्केट में गए. इसी को श्रम भागीदारी दर कहते हैं. महेश व्यास कहते हैं कि भारत में श्रम भागीदारी दर ग्लोबल औसत से बहुत कम है. ग्लोबल औसत 63 है, भारत में 2017 में 44 प्रतिशत पर आ गया जो 2016 में 47 प्रतिशत पर था. महेश व्यास कहते हैं कि कायदे से 1 करोड़ 10 लाख लोगों को रोजगार मार्केट में आना चाहिए था, मगर डेढ़ करोड़ लोग इस मार्केट से निकल गए. इस तरह श्रम भागीदारी दर 46.6 प्रतिशत से घटकर 43.9 प्रतिशत हो गई.
श्रम भागीदारी दर मे गिरावट आने का मतलब है कि लोगों को नौकरी या काम मिलने की बहुत कम उम्मीद है. श्रम भागीदारी में आ रही गिरावाट को तीन अलग-अलग संस्थाओं ने अपने सर्वे में दर्ज किया है. लेबर ब्यूरो, नेशनल सैंपल सर्वे संगठन और सी.एम.आई.ई के सर्वे में यह बात सामने आई है. नाउम्मीदी के कारण बहुत से बेरोजगार नौकरी की खोज बंद कर देते हैं. फिर भी 2017 में 2 करोड़ लोग काम खोज रहे थे. इनमें से 80 लाख शहरों में थे. काम खोजने वालों में 34 फीसदी शहरी भारत के होते हैं मगर शहरी भारत में 41 फीसदी लोग बेरोजगार हैं.
रोजगार कम होने का कारण है कि निवेश बहुत कम हो रहा है. नए निवेश के प्रस्ताव गिरकर 8 खरब डॉलर पर आ गए हैं. दो साल पहले 15 खबर डॉलर हुआ करता था. अगर यही हाल रहा तो 2018 में भी उम्मीद नहीं की जा सकती है. 2018 के पहले सप्ताह में बेरोजगारी की दर 5.7 प्रतिशत थी. पिछले 12 महीने में यह सबसे अधिक है.
मोदी सरकार ने हर साल दो करोड़ रोजगार देने का वादा किया था. सरकार के पास हर तरह के आंकड़े हैं, मगर रोजगार के आंकड़े कभी वह ट्वीट नहीं करती है. मंत्री और सांसद बीमार की तरह रोज किसी न किसी की जयंती, पुण्यतिथि ट्वीट करते हैं. इसकी जगह अपने मंत्रालय में मौजूद अवसरों को ट्वीट करने लगे तो कितना अच्छा होता. युवाओं को भुलावे में रखने के लिए महापुरुषों को याद करने की नौटंकी चल रही है.
यह सही है कि बीजेपी हर चुनाव जीत लेती है. इसके लिए रोजगार पर लेख लिखने वालों को गाली न दें, बल्कि वोट देने वालों का शुक्रिया अदा करें.
आर्थिक समाचार पार्ट टू- सरकार देगी टैक्सभक्ति का शानदार मौका
शेयर मार्केट में निवेश करने वालों के लिए अच्छी खबर है. अभी एक साल से कम समय पर बेचने से टैक्स देना होता है. उसके बाद टैक्स फ्री माल हो जाता है. सरकार विचार कर रही है कि अब शेयर खरीदने के तीन साल के भीतर बेचने पर टैक्स लिया जाए ताकि आपको ज्यादा से ज्यादा टैक्स देने का मौका मिले. अभी तक सरकार एक साल के भीतर बेचने पर ही टैक्स लेकर आपको टैक्स देने के गौरव से वंचित कर रही थी.
बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के अनुसार, वित्त मंत्रालय इस पर विचार कर रहा है. टैक्सभक्त एंकरों के लिए यह शानदार मौका है कि वे मांग करें कि ये एक साल या तीन साल क्या होता है, जब भी आप कमाएं, टैक्स देना चाहिए. इससे भक्तों को भी देश के लिए कुछ करने का मौका मिलेगा. मैं कुछ भी टैक्स फ्री नहीं चाहता, भले ही सरकार टेंशन के अलावा कुछ न दे. स्कूल न दे, अच्छे कॉलेज न दे और अस्पताल न दे. पूछने पर जेल-वेल भी भेजे.
आर्थिक समाचार पार्ट थ्री- चलो खरीदें महंगा तेल
गुजरात चुनाव बीतने के तुरंत बाद लोग महंगा पेट्रोल और डीजल खरीदने योग्य हो गए हैं. दिल्ली में पेट्रोल 70 रुपये और डीजल 60 रुपये के पार जाने लगा है. यह अच्छी खबर है. निराश न हों, फिर कोई चुनाव आ ही रहा होगा. तब बैलेंस कर लीजिएगा.
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This Article is From Jan 09, 2018
आ गया आर्थिक समाचारों का झटकामार बुलेटिन
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जनवरी 17, 2018 13:39 pm IST
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Published On जनवरी 09, 2018 16:16 pm IST
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Last Updated On जनवरी 17, 2018 13:39 pm IST
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