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This Article is From Jan 31, 2019

45 साल में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी की रिपोर्ट से डर गई सरकार

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 31, 2019 12:42 pm IST
    • Published On जनवरी 31, 2019 12:36 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 31, 2019 12:42 pm IST

2017-18 के लिए नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस की तरफ से कराये जाने वाले श्रम शक्ति सर्वे के नतीजों को सरकार दबा रही है. इस साल पिछले 45 साल में बेरोज़गारी की दर सबसे अधिक रही है. दिसंबर 2018 के पहले हफ्ते में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) ने सर्वे को मंज़ूर कर सरकार के पास भेज दिया लेकिन सरकार उस पर बैठ गई. यही आरोप लगाते हुए आयोग के प्रभारी प्रमुख मोहनन और एक सदस्य जेवी मीनाक्षी ने इस्तीफ़ा दे दिया.

बिज़नेस स्टैंडर्ड के सोमेश झा ने इस रिपोर्ट की बातें सामने ला दी है. एक रिपोर्टर का यही काम होता है. जो सरकार छिपाए उसे बाहर ला दे. अब सोचिए अगर सरकार खुद यह रिपोर्ट जारी करे कि 2017-18 में बेरोज़गारी की दर 6.1 हो गई थी जो 45 साल में सबसे अधिक है तो उसकी नाकामियों का ढोल फट जाएगा. इतनी बेरोज़गारी तो 1972-73 में थी. शहरों में तो बेरोज़गारी की दर 7.8 प्रतिशत हो गई थी और काम न मिलने के कारण लोग घरों में बैठने लगे थे.

पिछले 45 साल में 2017-18 में सबसे ज्यादा रही बेरोजगारी, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इंकॉनमी (CMIE) के महेश व्यास तो पिछले तीन साल से बेरोज़गारी के आंकड़े सामने ला रहे हैं. उनके कारण जब बेरोज़गारी के आंकड़ों पर बात होने लगी तो सरकार ने लेबर रिपोर्ट जारी करनी बंद कर दी. उन्होंने पिछले महीने के प्राइम टाइम में बताया था कि बेरोज़गारी की दर नौ प्रतिशत से भी ज़्यादा है जो कि अति है.

आप इंटरनेट पर रोज़गार और रोज़गार के आंकड़ों से संबंधित ख़बरों को सर्च करें. आपको पता चलेगा कि लोगों में उम्मीद पैदा करते रहने के लिए ख़बरें पैदा की जाती रही हैं. बाद में उन ख़बरों का कोई अता-पता नहीं मिलता है. जैसे फ़रवरी 2018 में सरकार अपने मंत्रालयों से कहती है कि अपने सेक्टर में पैदा हुए रोज़गार की सूची बनाएं. एक साल बाद वो सूची कहां हैं.

ग़रीबों को न्यूनतम आय कैसे सुनिश्चित होगी?

पिछले साल टी सी ए अनंत की अध्यक्षता में एक नया पैनल बना था. उसे बताना था कि रोज़गार के विश्वसनीय आंकड़े जमा करने के लिए क्या किया जाए. इसके नाम पहले जो लेबर रिपोर्ट जारी होती थी, वह बंद कर दी गई. जुलाई 2018 इस पैनल को अपनी रिपोर्ट देनी थी मगर उसने छह महीने का विस्तार मांग लिया.

इसीलिए बेहतर आंकड़े की व्यवस्था के नाम पर उन्होंने पुरानी रिपोर्ट बंद कर दी क्योंकि उसके कारण सवाल उठने लगते थे. अब जब राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की रिपोर्ट आई है तो उसे दबाया जा रहा है. सोचिए सरकार चाहती है कि आप उसका मूल्‍यांकन सिर्फ झूठ, धार्मिक और भावुक बातों पर करें.

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सरकार की आर्थिक नीतियां फ़ेल हो चुकी हैं इसलिए भाषण को आकर्षक बनाए रखने के लिए अमरीकी मॉडल की तरह स्टेडियम को सजाया जा रहा है. अच्छी लाइटिंग के ज़रिए प्रधानमंत्री को फिर से महान उपदेशक की तरह पेश किया जा रहा है. उन्होंने शिक्षा और रोज़गार को अपने एजेंडे और भाषणों से ग़ायब कर दिया है. उन्हें पता है कि अब काम करने का मौक़ा भी चला गया.

इसलिए उन्होंने एक तरह प्रधानमंत्री कार्यालय छोड़ सा दिया है. भारत के प्रधानमंत्री सौ सौ रैलियां कर रहा हैं लेकिन एक में भी शिक्षा और रोज़गार पर बात नहीं कर रहे हैं. मैंने इतना नौजवान विरोधी प्रधानमंत्री नहीं देखा. सरकारी ख़र्चे पर होने वाली इन सौ रैलियों के कारण प्रधानमंत्री बीस दिन के बराबर काम नहीं करेंगे. इसे अगर बारह-बारह घंटे में बांटे तो चालीस दिन के बराबर काम नहीं करेंगे. वे दिन रात कैमरे की नज़र में रहते हैं. आप ही सोचिए वे काम कब करते हैं?

न्यूनतम आय की गारंटी के लिए पैसा कहां से आएगा?

न्यूज़ चैनलों के ज़रिए धार्मिक मसलों का बवंडर पैदा किया जा रहा है ताकि लोगों के सवाल बदल जाएं. वे नौकरी छोड़ कर सेना की बहादुरी और मंदिर की बात करने लग जाएं. हमारी सेना तो हमेशा से ही बहादुर रही है. सारी दुनिया लोहा मानती है. प्रधानमंत्री क्यों बार बार सेना-सेना कर रहे हैं? क्या सैनिक के बच्चे को शिक्षा और रोज़गार नहीं चाहिए? उन्हें पता है कि धार्मिक कट्टरता ही बचा सकती है. इसलिए एक तरफ अर्ध कुंभ को कुंभ बताकर माहौल बनवाया जा रहा है तो दूसरी तरह रोज़गार के सवाल ग़ायब करने के लिए अनाप-शनाप मुद्दे पैदा किए जा रहे हैं.

हे भारत के बेरोज़गार नौजवानों ईश्वर तुम्हारा भला करे! मगर वो भी नहीं करेगा क्योंकि उसका भी इस्तमाल चुनाव में होने लगा है. तुम्हारी नियति पर किसी ने कील ठीक दी है. हर बार नाम बताने की ज़रूरत नहीं है.

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