देश की सियासत में पानी के कैसे-कैसे रंग...

देश की सियासत में पानी के कैसे-कैसे रंग...

प्रतीकात्मक फोटो

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में सूखे की स्थिति क्या है? क्या वहां पानी की किल्लत उतनी ही है जितनी महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में? क्या वहां राहत और बचाव के काम प्रदेश सरकार की देखरेख में ठीक से हो रहे हैं? क्या वहां केंद्रीय मदद की जरूरत है? क्या यह मदद पानी की सप्लाई के रूप में भी होनी चाहिए?

ये हैं वे कुछ सवाल, जो आज देश में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच के संबंधों की जमीनी हकीकत को बयान करते हैं। देश के किसी भी हिस्से में यदि कोई प्राकृतिक या मानव-जनित आपदा आती है तो बजाय तुरंत सहायता और राहत के इंतजाम के, हमारा तंत्र पहले यह सुनिश्चित करता है कि ऐसी मदद से राजनीतिक और अन्य रूप में किसको क्या मिलने वाला है। यदि प्रभावित राज्य में केंद्र सरकार की ही या उसकी सहयोगी दल की सरकार है, तो कार्रवाई का नजरिया दोनों ओर से अलग होगा। और यदि दोनों जगहों पर अलग-अलग दलों की सरकारें हैं, तो  यह मान के चलना चाहिए कि राजनीति तो होनी है।

यूपी के बुंदेलखंड में हालात महाराष्ट्र से अलग नहीं
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी और सहयोगी दल की सरकार है तो वहां की सरकार ने केंद्रीय मदद के लिए गुहार लगायी, और केंद्र ने जल्द ही पानी की ट्रेन लातूर भेज दी। इस कदम की प्रदेश सरकार द्वारा सराहना की गयी। लेकिन उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में, जहां सूखे की स्थिति महाराष्ट्र और आसपास के क्षेत्रों से कुछ ज्यादा अलग नहीं है, वहां उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार केंद्र से किसी भी तरह की राहत के बजाय केवल सहायता राशि की मांग कर रही है। यही नहीं, अगर केंद्र की ओर से पानी देने की पेशकश की भी गयी तो राज्य सरकार ने कम से कम दस हज़ार टैंकरों की मांग कर डाली जिसे पूरा करना किसी भी सरकार के लिए मुश्किल होगा।

यूपी में बुंदेलखंड के सात जिले हैं सूखाग्रस्त
उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने बुंदेलखंड के सात जिलों (झांसी, ललितपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट, जालौन और हमीरपुर) को सूखा ग्रस्त घोषित किया है। कुछ हफ़्तों पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करके वहां खाद्य सामग्री बांटने के आदेश किये और राहत के तौर पर कई योजनाओं की घोषणा की, जिनमें स्टेडियम और अन्य बड़ी इमारतों का निर्माण शामिल है। बुंदेलखंड भौगोलिक तौर पर भी सूखा और चट्टानी इलाका है जहां सामान्य तौर वर्षा कम ही होती है, और पिछले दो सालों से वहां बहुत कम वर्षा होने के कारण सूखे की स्थिति बनी हुई है। वहां भी किसान कष्ट में हैं, फसल में नुकसान होने की वजह से कुछ आत्महत्या के मामले भी सामने आये हैं, अधिकतर किसानों ने इलाका छोड़कर अन्य जगहों पर शरण ले रखी है। कुल मिलाकर इन सात जिलों के अलावा आसपास के जिलों में भी सूखे की स्थिति बन रही है।

अप्रैल में सामने आया था घास की रोटी खाने का मामला
अप्रैल महीने में वहां कुछ किसानों के परिवारों द्वारा अन्न की कमी के कारण घास की रोटी खाने का मामला प्रकाश में आने के बाद प्रशासन हरकत में आया था और प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार की टीमें हालत का जायजा लेने वहां पहुंची थी। उसके बाद ही केंद्र की ओर से राहत पैकेज का ऐलान हुआ था जिसे प्रदेश सरकार ने अपेक्षा के मुताबिक नाकाफी बताया था और फिर मुख्य सचिव ने यहां तक कहा कि प्रदेश सरकार के इंतजाम काफी हैं और उन्हें केन्द्रीय मदद की जरूरत नहीं है। लेकिन पिछले हफ्ते तक मामला सुर्ख़ियों में बने रहने और क्षेत्र के हमीरपुर के सांसद पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल की मांग पर रेल मंत्रालय ने पानी के टैंकर की एक ट्रेन झांसी भेजी और फिर शुरू हुआ चिर-परिचित राजनीतिक ड्रामा।

अखिलेश सरकार ने कहा, हमें इसकी जरूरत ही नहीं
प्रदेश सरकार की ओर से बताया गया कि झांसी आकर खड़ी इस ट्रेन को प्रदेश सरकार द्वारा तो मंगवाया ही नहीं गया था और प्रदेश में इसकी जरूरत ही नहीं है। फिर रेलवे अधिकारियों के हवाले से कहा गया कि इस ट्रेन में तो खाली टैंकर लगे हैं जिन्हें झांसी में पानी से भरा जायेगा और जहां स्थानीय जिले के अधिकारी कहेंगे, वहां भेजा जायेगा। झांसी के जिला अधिकारी ने कहा कि उन्हें तो मालूम ही नहीं, यह टैंकर वहां क्यों आये हैं और इसकी जानकारी की जिम्मेदारी रेलवे पर छोड़ दी। रेलवे के अधिकारियों ने कहा कि उन्हें तो पता ही था कि यह टैंकर खाली हैं... और अब यह मामला अपेक्षित तौर पर जांच और बयानों के मकड़जाल में उलझकर रह गया है।

अफसर बोले, क्षेत्र में पानी की पर्याप्‍त उपलब्‍धता
यूपी सरकार का कहना है कि बुंदेलखंड में पानी टैंकर की ट्रेन की जरूरत नहीं है, और केंद्र वहां यह ट्रेन भेजकर, वह भी खाली टैंकर, सिर्फ राजनीति कर रहा है। महोबा, झांसी और अन्य जिलों के जिलाधिकारी कह रहे हैं कि क्षेत्र में पानी का पर्याप्त उपलब्धता है और पानी के टैंकर की जरूरत नहीं है। फिर भी, रेलवे के अधिकारी कह रहे हैं कि झांसी रेलवे स्टेशन के यार्ड में पानी के टैंकर खड़े हैं और आसपास के किसी भी जिले के अधिकारी की मांग पर यह ट्रेन वहां भेज दी जाएगी।

यूपी सरकार के सामने है यह दुविधा
अखिलेश सरकार के सामने समस्या यह है कि यदि वह केंद्र की पानी की ट्रेन को स्वीकार कर लेती है तो लोगों में यह सन्देश जायेगा कि उनकी सरकार पानी उपलब्ध कराने में असफल रही। इसलिए सरकार के प्रवक्ता लगातार कह रहे हैं कि पानी के पर्याप्त इंतजाम हैं। फिर बुंदेलखंड का राजनीतिक तौर पर वह महत्व नहीं है जो महाराष्ट्र का है और बुंदेलखंड में सूखे की स्थिति आमतौर पर बनी ही रहती है, इसलिए प्रदेश सरकार वहां खाद्य सामग्री के पैकेट बंटवा रही है, जिन पर अखिलेश यादव का बड़ा सा चित्र छपा हुआ है, जिससे प्राप्तकर्ताओं को कोइ संशय न रहे कि यह सामग्री किसने भेजी है।

देश में सूखे पर भी होती है राजनीति
केंद्र और विशेष तौर पर रेलवे द्वारा ऐसी मुहिम बिना किसी समुचित तैयारी के नहीं की जाती, क्योंकि किसी भी रेलखंड पर खाली या भरी रेलगाड़ियां चलने से पहले काफी तैयारी और अधिकारियों का समन्वय चाहिए होता है। हो सकता है कि खाली टैंकर झांसी सिर्फ खड़े करने के लिए भेजे गए हों, हो सकता है कि इस खाली टैंकर की गाडी के झांसी आने पर किसी ने कह दिया हो कि इसमें पानी भरा है, हो सकता है कि टैंकर के अन्दर देखने पर पता चला हो कि ये तो खाली हैं, और फिर सियासत शुरू हो गयी हो। हमारे देश में चाहे सूखा हो या बाढ़, ऐसी प्राकृतिक आपदा राजनीति करने के लिए सबसे सुविधाजनक रही है। ऐसी आपदा का वास्तविक कारण जानने की किसी के पास न तो फुर्सत है न ही जरूरत। वर्षों पहले प्रख्यात फिल्म निर्माता एमएस. सथ्यू की फिल्म ‘सूखा’ (1980) के अंत में डायलॉग था कि इस देश में सूखे पर भी राजनीति होती है। हालात इन 36 वर्षों में कुछ बदले नहीं हैं...।

रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...

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