मध्‍यप्रदेश में सत्ता का 'सेमीफाइनल' और कांग्रेस की जीत के मायने

यह था तो उपचुनाव ही, लेकिन कालखंड ने इसे बेहद दिलचस्प बना दिया. कोलारस और मुंगावली की यह विधानसभा सीटें शायद ही इससे पहले इतनी महत्वपूर्ण बनी होंगी जितनी कि इस उपचुनाव में बनीं.

मध्‍यप्रदेश में सत्ता का 'सेमीफाइनल' और कांग्रेस की जीत के मायने

प्रतिष्ठा का सवाल बने इन उपचुनावों के लिए शिवराज सिंह चौहान ने 40 से ज्यादा रैली की थीं (फाइल फोटो)

यह था तो उपचुनाव ही, लेकिन कालखंड ने इसे बेहद दिलचस्प बना दिया. कोलारस और मुंगावली की यह विधानसभा सीटें शायद ही इससे पहले इतनी महत्वपूर्ण बनी होंगी जितनी कि इस उपचुनाव में बनीं. लगातार तीन विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की विजयी पताका फहरा रहे मध्‍यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए इसे सबसे ज्यादा अहम बताया जा रहा था तो सत्ता से दूर बैठी कांग्रेस इसके जरि‍ए अपने लिए भरपूर 'ऑक्सीजन' की तलाश कर रही थी. इससे पहले कांग्रेस ने चित्रकूट का उपचुनाव भी जीता था. यह जीत कांग्रेस के साथ ही सिंधिया के गढ़ में ज्‍योति‍रादि‍त्‍य को मजबूती दे गई. इन परि‍णामों के आधार पर अब मध्यप्रदेश में चुनावी चौसर की रणनीति‍ तय होने वाली है. जाहिर है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान,  पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सवालों का सही जवाब खोज रहे होंगे, वहीं अभी तक आगामी वि‍धानसभा चुनाव के लि‍ए किसी भी एक चेहरे को प्रोजेक्ट नहीं करने वाली कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया की दावेदारी बढ़ जाएगी.

तीन चुनाव यानी तकरीबन 15 साल का वक्त. पूर्ण बहुमत और स्थायी नेतृत्व. इसके बावजूद बीजेपी के पास तुलना करने के लिए 2003 का वह साल है जब दिग्विजय सिंह की सरकार बिजली और सड़क के मुद्दे पर निपट गई थी. बुधवार को जब विधानसभा में राज्‍य के वित्त मंत्री जयंत मलैया इस सरकार का अपना अंतिम बजट प्रस्तुत कर रहे थे तो उनके पास अपनी उपलब्धि का तुलनात्मक साल 2003 ही था. इतने सालों में आंकड़े बदलते ही हैं चाहे किसी की भी सरकार हो.

मध्यप्रदेश में पिछले चुनाव शिवराज सिंह चौहान अपनी लाड़ली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना और ऐसी जनता से जुड़ी कई योजनाओं के जरिए निकालने में सफल रहे थे. इस कार्यकाल में उनके पास ऐसी योजनाएं तो हैं, लेकिन उनका जमीनी क्रियान्वयन और लोगों को पेश आने वाली दिक्कतों से लोग नाराज हैं. मसलन भावांतर योजना को इस साल की सबसे बड़ी योजना बताया जा रहा है, पर जमीनी सच्चाई यह है कि लोगों को इसका भुगतान देरी से मिल रहा है. किसानों को दो सौ रुपए का समर्थन मूल्य भी दिया तो चुनावी साल में, इसके साथ ही पिछले साल का बोनस देने की घोषणा को अच्‍छी मंशा की जगह लोगों ने चुनावी चारा अधि‍क माना है, यह घोषणा यदि वह पिछले साल ही कर देते या हर साल सौ-सौ रुपए का बोनस किसानों को देते तो उनकी छवि किसानप्रिय नेता की बनी रहती. शिवराज सिंह चौहान ही मैदान में  
मध्यप्रदेश में अब चुनावी चौसर बेहद दिलचस्प होने वाली है. शिवराज सिंह चौहान लंबे समय से अपना झंडा बुलंद किए हुए हैं. यदि वह शीर्ष नेतृत्व को कोलारस और मुंगावली का ठीक-ठीक जवाब देने में सफल हो भी गए तो छह-आठ महीने बाद उन्हें एक बड़ा किला लड़ाना है. जाहिर है कि परिस्थितियां अब आसान नहीं हैं, गुजरात के अनुभव और उसके बाद कई और चुनावों के नतीजे कांग्रेस को लगातार ऑक्‍सीजन दे रहे हैं, उसे संघर्ष में ला रहे हैं, ऐसे में मध्‍यप्रदेश में आने वाला चुनाव बेहद दि‍लचस्‍प होने वाला है इसमें कोई दो राय नहीं है.

वीडियो: शिवराज सिंह बोले, यह चुनाव है, दंगल नहीं

राकेश कुमार मालवीय एनएफआई के पूर्व फेलो हैं, और सामाजिक सरोकार के मसलों पर शोधरत हैं...

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