विज्ञापन
This Article is From Feb 27, 2015

राजीव रंजन की कलम से : कितना टिकाऊ होगा धुर विरोधी पीडीपी-बीजेपी का गठबंधन

Rajeev Ranjan, Saad Bin Omer
  • Blogs,
  • Updated:
    फ़रवरी 27, 2015 20:38 pm IST
    • Published On फ़रवरी 27, 2015 20:28 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 27, 2015 20:38 pm IST

कहते हैं प्यार और जंग में सब जायज है, लेकिन इस जुमले में एक और शब्द जोड़़ लेना चाहिए वह है राजनीति। मतलब अब तो राजनीति में भी सबकुछ जायज दिख रहा है। तभी तो जम्मू कश्मीर में एक मार्च को पीडीपी-बीजेपी का गठजोड़ सत्ता संभालने जा रहा है।

यह बात अलग है कि यह गठजोड़ राजनीतिक पंडितों के गले नहीं उतर रहा है। वजह है दोनों ही दलों का वैचारिक धरातल पर एक-दूसरे से बिल्कुल ही जुदा होना अर्थात इनकी सोच ठीक एक दूसरे के विपरीत है।

दिल्ली में इस धुर विरोधी गठबंधन के ऐलान से दोनों ही दलों के कार्यकर्ता परेशान हैं। उनकी परेशानी यह है कि वे इस गठबंधन पर खुशी मनाएं या फिर मातम। इस गठबंधन को लेकर होने वाली चर्चा सिर्फ सोशल मीडिया पर ही नहीं, बल्कि गली-चौराहों में भी है।

सोशल मीडिया पर तो इसे मतदाताओं के साथ सबसे बड़ा धोखा कहा जा रहा है, तो जम्मू इलाके में बीजेपी कार्यकर्ता अपने विरोधी राजनीतिक दलों की उन बातों का जवाब नहीं दे पा रहे हैं जो उन्हें 'बाप-बेटी' के राज से मुक्ति के नारों की याद दिला रहे हैं।

बीजेपी ने पहली बार राज्य में अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन करते हुए 25 विधानसभा सीटों पर कब्जा किया। इस जीत का क्रेडिट जम्मू इलाके के उन मतदाताओं को जाता है, जिन्होंने वाकई 'बाप-बेटी' और 'बाप-बेटा' के शासन से मुक्ति की खातिर बीजेपी के पक्ष में जम कर वोटिंग की थी।

ये नारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद अपनी चुनावी सभाओं में लगा कर बीजेपी के लिए वोट मांगे थे। वैसे बाप-बेटी का मतलब मुफ्ती मुहम्मद सईद तथा उनकी बेटी महबूबा सईद है, जबकि बाप-बेटा का मतलब फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला से था।

बीजेपी कार्यकर्ता हैरान और परेशान हैं। बीजेपी नेतृत्व पहली बार राज्य में बनने जा रही बीजेपी गठबंधन वाली सरकार पर खुशी मनाने को कह रही है, तो काडर के लिए परेशानी यह है कि वह किस बात की खुशी मनाए। राज तो फिर से 'बाप-बेटी' का ही होगा। मुख्यमंत्री तो छह साल के लिए उन्हीं का होगा।

ऐसा ही कुछ हाल पीडीपी कार्यकर्ताओं का कश्मीर में है। वे एक दूसरे का मुंह ताक रहे हैं। वे उस बीजेपी साथ मिलकर सरकार बनाने जा रहे है, जिसके खिलाफ कश्मीर में लोगों ने जमकर वोट डाले थे। तभी तो बीजेपी का कश्मीर में खाता भी नहीं खुल पाया।

पीडीपी ने भी कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के खिलाफ जहर उगल कर नहीं, बल्कि कश्मीरियों को बीजेपी का डर दिखला कर वोट बटोरे थे। अपनी रैलियों और भाषणों में खुद मुफ्ती मुहम्मद सईद और महबूबा मुफ्ती ने बीजेपी के घाटी में बढ़ते कदमों का डर कश्मीरियों को दिखाया था।

जम्मू-कश्मीर में पहली बार सत्ता में भागीदारी करने जा रही बीजेपी को पीडीपी का साथ कितना रास आएगा यह लाख टके का सवाल है। इसके लिए बीजेपी को अपने कई मूल मुद्दों से समझौता करना पड़ रहा है, जिसे लेकर वह आज तक राजनीति करती आई है।

इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या बीजेपी घाटी छोड़ कर गए कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में बसाने के अपने वादे को पूरा कर पाएगी। इसमें उसे पीडीपी से कितना सहयोग मिल सकेगा। अगर पीडीपी इस काम में बीजेपी को सहयोग करती है तो उसे घाटी के लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। देखा जाए तो बीजेपी और पीडीपी दोनों के लिए यह जुआ खेलने से कम नहीं है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com