राजस्थान की राजनीति दो साल बाद एक बार फिर संक्रमण काल से गुजर रही है. साल 2020 में तत्कालीन उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने जिस तरह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने मुश्किलें खड़ी की थीं, आज उसी तरह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने की राह में मुश्किलें खड़ी कर रखी हैं.
दरअसल, अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने जा रहे हैं. हो सकता है कि उनकी ताजपोशी इस पद पर हो जाए, क्योंकि वह कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की पसंद भी रहे हैं. ऐसे में 'एक व्यक्ति, एक पद' सिद्धांत के तहत गहलोत को मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़नी पड़ सकती है. लिहाजा, सियासत के जादूगर कहे जाने वाले गहलोत ने पहले से ही गोटियां बिछानी शुरू कर दीं.
सबसे पहले गहलोत ने पिछले हफ्ते सबको चौंकाते हुए आधी रात अपने समर्थक विधायकों संग मीटिंग की और उसमें यह साबित करने की कोशिश की कि उनके पास राजस्थान की सत्ता और पार्टी का केंद्रीय संगठन, दोनों रहेगा और भविष्य में कोई दिक्कत नहीं होगी. इससे घबराए सचिन पायलट ने तुरंत दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाई. उधर, गहलोत ने भी अपनी इस मुराद को लिए पहले सोनिया गांधी फिर राहुल गांधी से मुलाकात की लेकिन दोनों दरवाजों पर एक व्यक्ति, एक पद की नसीहत मिली तो उन्होंने समर्थक विधायकों से खेल कराना शुरू कर दिया.
रविवार (25 सितंबर) को जब पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश पर पार्टी पर्यवेक्षक मलिकार्जुन खड़गे और अजय माकन ने राजस्थान कांग्रेस विधायक दल की मीटिंग करनी चाही तो गहलोत समर्थक करीब 90 विधायक वहां नहीं पहुंचे और एक मंत्री के घर मीटिंग करने के बाद प्रेशर पॉलिटिक्स के तहत विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के घर जा पहुंचे और उन्हें अपना त्याग पत्र सौंप दिया. लगे हाथ उन लोगों ने तीन शर्तें भी रख दीं.
गहलोत समर्थक विधायकों ने शर्त रखी है कि 2020 में पार्टी के खिलाफ विद्रोह करने वाले सचिन पायलट को मुख्यमंत्री न बनाया जाय. दूसरा, जब तक कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के नतीजे घोषित न हो जाएं, यानी 19 अक्टूबर तक कांग्रेस विधायक दल की बैठक न हो और तीसरा, अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाए रखने का विकल्प दिया जाय. इन शर्तों के साथ समर्थक विधायकों ने पार्टी पर्यवेक्षकों से मिलने से इनकार कर दिया है. सूत्र बता रहे हैं कि इस हरकत से पार्टी नेतृत्व नाराज है.
दरअसल, पार्टी आलाकमान चाहता है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव होने से पहले ही राजस्थान में शांतिपूर्ण, संतुलित और संयमित तरीके से सत्ता का हस्तांतरण हो जाए क्योंकि अगर ये अभी नहीं हुआ, तो गहलोत के अध्यक्ष बनने के बाद, इस प्रक्रिया में हितों का टकराव हो सकता है और तब पार्टी में फूट भी हो सकती है. आशंका 2020 के दोहराए जाने की भी है.
चूंकि, अगले साल राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए पार्टी नेतृत्व राजस्थान कांग्रेस में किसी तरह की टूट की आशंकाओं से समय रहते निपटना चाहता है और 2018 के चुनाव बाद बने सत्ता के फार्मूले (जिसके तहत गहलोत और पायलट के बीच टॉप पोस्ट पर समय अवधि का बंटवारा होना था) को भी लागू कर दोनों पक्षों को संतुष्ट करना चाहता है लेकिन गहलोत किसी भी कीमत पर अपने प्रतिद्वंद्वी को अपना उत्तराधिकारी बनाना नहीं चाहते.
'यह तो अनुशासनहीनता है...' टीम गहलोत के दबाव बनाने के पैंतरों पर भड़के कांग्रेस पर्यवेक्षक
गहलोत जहां सोनिया गांधी की पसंद रहे हैं, वहीं सचिन पायलट राहुल और प्रियंका की पसंद हैं. 2020 में भी राहुल-प्रियंका की दखल के बाद ही सचिन पायलट ने अपना विद्रोह वापस लिया था. यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट ने भी पार्टी के खिलाफ विद्रोह किया था लेकिन हर बार उन्होंने वापसी की थी. ऐसे में सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या सचिन पायलट की उड़ान 'जादूगर' गहलोत रोक देंगे या फिर जाट नेता सियासी पिच पर 'सचिन' सबित होंगे.
बहरहाल, दोनों पार्टी पर्यवेक्षक (खड़गे और माकन) वापस दिल्ली कूच कर गए लेकिन केरल में भारत जोड़ो यात्रा के तहत पदयात्रा कर रहे राहुल गांधी ने अपने दूत और पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल को दिल्ली भेज दिया है. माना जा रहा है कि वेणुगोपाल राहुल के संदेश के साथ सोनिया गांधी से बैठक करेंगे और देर-सबेर इस संकट का समाधान करेंगे.
प्रमोद प्रवीण NDTV.in में कार्यरत हैं...
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