राहुल गांधी (Rahul Gandhi) उसी तरह की ताकत का प्रदर्शन कर रहे हैं, जिसकी कमी को लेकर आलोचक अक्सर उन पर निशाना साधते रहे हैं. आज सुबह तेल की कीमतों के खिलाफ संसद तक साइकिल से एक छोटे सफर के बाद, 51 साल के नेता ने ब्रेकफास्ट के वक्त 14 विपक्षी दलों के नेताओं के साथ एक बैठक की, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये सभी दल सरकार को दोनों सदनों में सरकार के खिलाफ एकजुट होकर काम कर सकते हैं. साथ ही नए कृषि कानून, पेगासस फोन हैकिंग (Pegasus phone hacking) जैसे मुद्दों पर उसे घेर सकते हैं.
कांग्रेस के लिए एक बड़ी राहत की बात रही कि तृणमूल कांग्रेस समेत जिन 14 दलों के नेताओं को आमंत्रित किया गया था, वे यहां पहुंचे. जबकि पिछले हफ्ते विपक्ष की एकजुटता के लिए राहुल गांधी द्वारा बुलाई गई बैठक से ये पार्टी नदारद थी. बैठक में शरद पवार की पार्टी एनसीपी और शिवसेना के प्रतिनिधि भी शामिल थे, जिनके साथ मिलकर महाराष्ट्र में कांग्रेस गठबंधन सरकार चला रही है. हालिया हफ्तों में देखा गया है कि कांग्रेस नेताओं ने शिवसेना के खिलाफ कठोर बयान दिए हैं, जो गांधी परिवार की शिवसेना के साथ रिश्तों और विचारधारा में असहजता की रणनीति का संकेत प्रतीत होता है. लिहाजा तथ्य यह है कि महाराष्ट्र गठबंधन सरकार का पूरी तरह प्रतिनिधित्व रहा, जो पर्दे के पीछे चलने वाली और परेशान करने वाली बयानबाजी का मुकाबला करने में मदद करेंगे कि अघाड़ी सरकार लड़खड़ा रही है.
नाश्ते का मेनू जरूरतों के अनुरूप प्रतीत हो रहा था. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इसे ट्वीट कर "शानदार" करार दिया. हालांकि संभवतः यह इतना स्वादिष्ट नहीं था कि मायावती की पार्टी बीएसपी और आम आदमी पार्टी को नाश्ते की मेज तक ला पाता. दबे स्वरों में वहां मौजूद नेता इन्हें बीजेपी की बी-टीम का तमगा देते रहे. मायावती पहले ही सार्वजनिक तौर पर कह चुकी हैं कि वो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में किसी भी दल के साथ कोई गठबंधन नहीं करेंगे. चुनाव अगले छह माह बाद होने हैं. यूपी का प्रभार संभालने वाली प्रियंका गांधी ने भी कई बार बीजेपी का साथ देने को लेकर मायावती पर निशाना साध चुकी हैं.
तृणमूल कांग्रेस की इस बैठक में मौजूदगी को पिछले मीटिंग से उसकी गैर मौजूदगी से तुलना की गई. यह दिल्ली में ममता बनर्जी की सोनिया गांधी की हुई मुलाकात के बाद का घटनाक्रम है. दिल्ली की इस यात्रा में ममता ने पूरे देश में "खेला होबे" का ऐलान किया है. यह स्लोगन बंगाल में बखूबी काम कर गया, जहां उन्होंने मई के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बुरी तरह परास्त किया.
कांग्रेस के लिए यह शक्ति प्रदर्शन था, जहां तक राहुल गांधी का सवाल है, जो आधिकारिक तौर पर अपनी मां सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष होने के बावजूद यह प्रदर्शित कर रहे हैं कि वो अब बड़े फैसले रहे हैं. राहुल गांधी के शीर्ष सलाहकार भी बैठक में थे : दीपेंद्र हुड्डा, अधीररंजन चौधरी, केसी वेणुगोपाल, जयराम रमेश. पारंपरिक तौर पर विपक्षी नेताओं से संपर्क साधने का काम अहमद पटेल करते थे, जो सोनिया गांधी के भरोसेमंद सहयोगी थे. पिछले साल नवंबर में उनकी मौत के बाद कमलनाथ इस सेतु की भूमिका में प्रतीत हो रहे हैं. उन्होंने विपक्ष के कई बड़े नेताओं के साथ बैठक कर साझा रणनीति पर चर्चा की है. वो आनंद शर्मा के साथ ममता बनर्जी से मिले, जिनके साथ युवा कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने काम किया था. कमलनाथ ने 22 जून को दिल्ली में शरद पवार के साथ भी बैठक की थी, ताकि विपक्ष के साझा एजेंडे पर काम किया जा सके.
प्रशांत किशोर जो पहले चुनावी रणनीतिकार का काम करते थे, अब वो कांग्रेस में शामिल होकर ज्यादा गहन भूमिका में आने पर विचार कर रहे हैं. वो बीजेपी के खिलाफ विपक्षी नेताओं को एक मंच पर लाने की कवायद में अहम भूमिका निभाते रहे हैं. जब ममता बनर्जी दिल्ली में थीं, तब प्रशांत किशोर (जो बंगाल में उनके लिए चुनाव प्रचार के कमान को संभाल रहे थे) पर्दे के पीछे लगातार अपनी मौजूदगी साबित कर रहे थे. ममता की बैठकों और प्रेस से मुलाकात को लेकर रणनीति बनाते रहे. प्रशांत किशोर ने इससे पहले 11 जून को मुंबई में शरद पवार से मुलाकात की थी. वो गांधी परिवार से भी कई दौर की मुलाकात कर चुके हैं. कथित तौर पर वो कांग्रेस में एक बड़ी भूमिका की तैयारी कर रहे हैं.
पेगासस स्कैंडल ने विपक्ष को मोदी सरकार के खिलाफ एक आक्रामक हथियार के साथ उसकी कमजोरी का फायदा उठाने का मौका दिया है. संसद सत्र के दौरान विपक्ष लगातार सरकार को इस मुद्दे पर सफाई देने की अपनी मांग को उठाने में सफल रहा है. वो लगातार पूछ रहा है कि क्या सरकार ने ये स्पाईवेयर खरीदा था और इसे किसके खिलाफ इस्तेमाल किया गया. मोदी सरकार का जासूसी को कोई मुद्दा न होने का तर्क देकर खारिज करने का ज्यादा फायदा नहीं हुआ है. इस मामले में उसने अभी तक जो भी स्पष्टीकरण दिया है वो व्यर्थ साबित हो रहा है.
जब विपक्ष इस मुद्दे पर लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है, तब राहुल गांधी अपनी पुरानी हिचकिचाहट से अलग विपक्ष के सीनियर नेताओं के साथ रिश्ते प्रगाढ़ करने में जुटे हैं. ममता बनर्जी और शरद पवार जो पहले उदासीन रवैये को लेकर पहले राहुल की शिकायत किया करते थे और सोनिया गांधी के साथ संपर्क को ज्यादा प्राथमिकता देते थे, वो भी अब एक कदम आगे जाकर उनके साथ रिश्तों में सहजता लाने का काम कर रहे हैं. यहां तक कि शिवसेना के साथ संपर्क का यह प्रयास पहले कभी नहीं देखा गया. लेकिन उन्हें इसे स्थायी बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.
(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...
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