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This Article is From Aug 27, 2015

गुजरात में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के निशाने पर रहा मीडिया

Reported By Abhishek Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 27, 2015 22:25 pm IST
    • Published On अगस्त 27, 2015 17:07 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 27, 2015 22:25 pm IST
गुजरात में हिंसा के पिछले कुछ दिन यूं बीते कि मीडिया दोनों तरफ से निशाने पर था। मीडिया पर अहमदाबाद में हमले की शुरुआत जीडीएमसी ग्राउंड से हुई। पुलिस जब पटेलों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले हार्दिक पटेल को घेर रही थी, तब उसे पटेल आरक्षण की मांग करने वाले लोगों पर कम मीडिया पर ज्यादा गुस्सा आया। हमारे अहमदाबाद के कैमरा पर्सन प्रमोद तब शूट कर रहे थे तो अचानक पीछे से पुलिस ने दो चार लाठी जड़ दीं। खुद को बचाने के लिए प्रमोद ने पुलिस से कहा कि वे सरकार के लिए ही रिकार्डिंग कर रहे हैं, तब जाकर जान छोड़ी, लेकिन तब तक इतनी लाठियां पड़ चुकी थीं कि वे अगले दो दिन तक कराहते रहे। पुलिस ने मीडिया को चुनकर मारा इसमें अब कोई शक मुझे तो नहीं है.

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मेरे साथी कैमरा मैन सुहास चौधरी और मैं बहुत सुबह-सुबह अहमदाबाद के बाहरी इलाकों बापूनगर और नरोडा में गाड़ी में ही बैठकर तस्वीरें ले रहे थे। सोचा था कि कैमरा निकलेगा तो लोग भड़केंगे। पहले हम कैमरा बिना छिपाये ही आगे बढ़ रहे थे कि अचानक ऐसे इलाके में पहुंच गए जहां लोगों को गाड़ी में कैमरा नजर आ गया। लोग पीछे भागे तो हमने गाड़ी तेज कर दी। गाड़ी में ही एक कपड़ा था जिससे कैमरा ढंका। हम कैमरा छिपाकर चल रहे थे। जब वापस आए तो हमारे गुजरात के साथी राजीव पाठक को खबर आई कि एक रेलवे क्रासिंग पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों में संघर्ष चल रहा है। सड़क या कहीं से भी शूट नहीं कर सकते थे। प्रदर्शनकारियों को अपने चेहरे कैद होने का डर था और पुलिस अपनी बर्बरता को छिपाना चाहती थी। हम इलाके में पूरे भरोसे के साथ घुस गए राजीव के एक रिश्तेदार के घर की छत पर खड़े होकर पुलिस को रिकार्ड कर रहे थे कि अचानक पुलिस ने आंसू गैस के गोले हमारे ऊपर दागने शुरू कर दिए।

हमारे एक और साथी अनुराग द्वारी को हम नरोडा और पटेल बहुल इलाकों में ही छोड़कर आए थे। उन्होंने पुलिस का काफिला देखा तो अपने कैमरामैन प्रवीण के साथ काफिले से जुड़कर ही शूट करने लगे। पुलिस को कैमरे की मौजूदगी नागवार गुजरी। एक सब इंस्पेक्टर ने अनुराग की कालर पकड़ ली। वह दबाव डाल रहा था कि जो तस्वीरें रिकार्ड की हैं वे डिलीट करे। अनुराग और उनके साथी ने एक बाइक वाले की पिटाई करते हुए तस्वीरें कैद की थीं। अनुराग की समझदारी ने उसे जैसे-तैसे पुलिस के गुस्से से बचाया।

उधर सूरत में हमारे दो साथी प्रसाद और तेजस मेहता थे। दोनों पुलिस की ओर से प्रदर्शनकारियों को रिकार्ड कर रहे थे। जैसे ही दोनों कवरेज करके अपनी गाड़ियों की ओर भागे उन पर पत्थर बरसने लगे। एक पत्थर कैमरा मैन दिनेश हराले के पैर में लगा, दूसरा पत्थर तेजस की गाड़ी पर तब आया जब वह दरवाजा बंद कर रहा था। लेकिन तीसरी बार किस्मत भी न बचा पाई,  पत्थर सीधा विंडस्क्रीन पर गिरा। दोनों मौके से भागने में कामयाब रहे.

पिछले कुछ साल में मीडिया पर हमले बढ़े हैं। हमें पहले लगता था कि प्रदर्शनकारी तो गुस्सा निकालने निकले हैं, किसी पर भी निकल सकता है लेकिन अब महसूस होता है कई बार हम पर हमला अपनी पब्लिसिटी के लिए हो रहा है। रही बात पुलिस की तो पहले पुलिस और प्रेस के रिश्तों में खटपट होती रहती है लेकिन अब लगता है कि हमारा काम ही उन्हें नागवार गुजरता है। अब ऊपर से लेकर नीचे तक के पुलिस वाले यह कहते सुने जा सकते हैं कि पहले मीडिया को सबक सिखाओ।

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