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हमारे एक और साथी अनुराग द्वारी को हम नरोडा और पटेल बहुल इलाकों में ही छोड़कर आए थे। उन्होंने पुलिस का काफिला देखा तो अपने कैमरामैन प्रवीण के साथ काफिले से जुड़कर ही शूट करने लगे। पुलिस को कैमरे की मौजूदगी नागवार गुजरी। एक सब इंस्पेक्टर ने अनुराग की कालर पकड़ ली। वह दबाव डाल रहा था कि जो तस्वीरें रिकार्ड की हैं वे डिलीट करे। अनुराग और उनके साथी ने एक बाइक वाले की पिटाई करते हुए तस्वीरें कैद की थीं। अनुराग की समझदारी ने उसे जैसे-तैसे पुलिस के गुस्से से बचाया।
उधर सूरत में हमारे दो साथी प्रसाद और तेजस मेहता थे। दोनों पुलिस की ओर से प्रदर्शनकारियों को रिकार्ड कर रहे थे। जैसे ही दोनों कवरेज करके अपनी गाड़ियों की ओर भागे उन पर पत्थर बरसने लगे। एक पत्थर कैमरा मैन दिनेश हराले के पैर में लगा, दूसरा पत्थर तेजस की गाड़ी पर तब आया जब वह दरवाजा बंद कर रहा था। लेकिन तीसरी बार किस्मत भी न बचा पाई, पत्थर सीधा विंडस्क्रीन पर गिरा। दोनों मौके से भागने में कामयाब रहे.
पिछले कुछ साल में मीडिया पर हमले बढ़े हैं। हमें पहले लगता था कि प्रदर्शनकारी तो गुस्सा निकालने निकले हैं, किसी पर भी निकल सकता है लेकिन अब महसूस होता है कई बार हम पर हमला अपनी पब्लिसिटी के लिए हो रहा है। रही बात पुलिस की तो पहले पुलिस और प्रेस के रिश्तों में खटपट होती रहती है लेकिन अब लगता है कि हमारा काम ही उन्हें नागवार गुजरता है। अब ऊपर से लेकर नीचे तक के पुलिस वाले यह कहते सुने जा सकते हैं कि पहले मीडिया को सबक सिखाओ।