भोपाल में हज़ारों लोगों की मौत के बाद अमेरिका भाग जाने वाले वारेन एंडरसन को क्या कभी वे लोग याद आते होंगे जो उसकी कंपनी की लापरवाही से रिसी गैस की वजह से मारे गए?
क्या वह अपने−आप को भी गुनहगार मानता होगा या उसे लगता होगा कि उसने अपना काम किया और जो हादसा हुआ उसके लिए वह ज़िम्मेदार नहीं है।
वह दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क का नागरिक था। मुनाफ़ा कमाने हिंदुस्तान आया था। उसका काम यहां के नागरिकों की सुरक्षा करना नहीं था। उसका काम अपनी कंपनी को कम से कम खर्च पर चलाना था। उसी कंपनी को जो अमेरिका के लिए मानक अलग रखती थी और हिंदुस्तान के लिए अलग।
दरअसल एंडरसन और यूनियन कारबाइड की हरक़त को क़रीब से देखेंगे तो समझेंगे कि ये बस सीईओ और उसकी कंपनी का मामला नहीं है। अविकसित और विकासशील देशों को अपनी चरागाह समझने वाली मगरूर कंपनियों का भी है।
तीस बरस बाद आज भारत वही नहीं है जो तब हुआ करता था, लेकिन विदेशी कंपनियों को न्योता देते हुए हम उनके आगे और भी झुकने को तैयार हैं। अपने नागरिकों के हितों को उनकी सुरक्षा को उनकी सुविधाओं को और उनके सम्मान को भी कुरबान करते दिखाई पड़ रहे हैं।
एक ताकतवर मुल्क होने की चाहत अच्छी है, लेकिन समझने की बात ये है कि ये काम मुनाफ़ाखोर पूंजीवाद की सरपरस्ती में नहीं हो सकता। उसके लिए वह राष्ट्रीय स्वाभिमान चाहिए, जिसमें कम में काम चलाने और सबकुछ साझा करने का अभ्यास भी हो। वरना भोपाल जैसे हमारी स्मृति में ही नहीं हमारे अंदेशों में भी बने रहेंगे और जब कभी घटित होंगे तो हमारे पास कुछ कहने को नहीं होगा।
This Article is From Oct 31, 2014
प्रियदर्शन की बात पते की : एंडरसन की ताक़त
Priyadarshan
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Updated:नवंबर 19, 2014 15:36 pm IST
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Published On अक्टूबर 31, 2014 23:06 pm IST
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Last Updated On नवंबर 19, 2014 15:36 pm IST
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