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This Article is From Sep 19, 2017

रोहिंग्याओं को भारत में शरण क्यों? रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 20, 2017 12:47 pm IST
    • Published On सितंबर 19, 2017 21:01 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 20, 2017 12:47 pm IST
क्या वाकई आज़ादी के नाम से विश्वविद्‌यालयों को अब डर लगने लगा है, जिसे हासिल करने के लिए हमने 1857 से लेकर 1947 तक क़रीब एक सदी की लड़ाई लड़ी. क्या कल यह भी हो सकता है कि विश्वविद्यालयों में डेमोक्रेसी या लोकतंत्र के नाम से होने वाले कार्यक्रम रद्द कर दिए जाएं? कहीं ऐसा तो नहीं कि उनकी जगह डिक्टर एक पुनर्खोज या तानाशाही, आज की आवश्यकता टाइप के कार्यक्रम हुआ करेंगे? इलाहाबाद में 18 सितंबर को एक दिन का लिबर्टी फेस्टिवल होने वाला था, जिसे वाइस चांसलर ने अनुमति देने के बाद मना कर दिया.

दि वायर में जब यह रिपोर्ट पढ़ी तो ख़्याल आया कि संविधान को लेकर थियेटर, गीत और कविता के उत्सव से भी किसी को क्यों दिक्कत होगी. इसके विरोध में आवाज़ सुनाई दी कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी को जेएनयू बनाने की कोशिश हो रही है. 68 वें नंबर की यूनिवर्सिटी को कोई तीसरे नंबर के जेएनयू जैसा बना दे, तो इसका स्वागत होना चाहिए या विरोध. जेएनयू से तो भारत की दूसरी महिला रक्षा मंत्री आती हैं जहां कुछ दिन पहले कुछ लोग टैंक लगाने का प्रस्ताव दे रहे थे ताकि देशप्रेम पनपे. क्या भारत में देशप्रेम, राष्ट्रवाद टैंक पर चढ़कर आया था या गांधी जी के साथ सूत कातकर, चरखा चलाकर आया था. जिस हिन्दुस्तान के करोड़ों लोगों ने अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए तोप, बंदूक और टैंक से लैस बरतानिया हुकूमत को भगा दिया, वहां के विश्वविद्यालयों में देशप्रेम के लिए चरखा लगाना चाहिए या टैंक लगाना चाहिए. सिंपल सा सवाल है. डिम्पल सी मुस्कुराहटों के साथ सोचेंगे तो जवाब मिल जाएगा.

अब आते हैं रोहिंग्या मुसलमानों की समस्या पर. देश के पांच बड़े वकीलों ने फैसला किया है कि वे रोहिंग्या शरणार्थियों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करेंगे. सबसे पहले प्रशांत भूषण के ज़रिए मोहम्मद सलिमुल्लाह और मोहम्मद शाक़िर ने याचिका दायर कर रोहिंग्या को वापस म्यांमार भेजे जाने के फैसले को चुनौती दी थी. इनका कहना है कि वापस गए तो मारे जाएंगे. फिर रोशन तारा जैसवाल, ज़ेबा ख़ैर, के जी गोपालकृष्णन जैसे वकील भी इस लड़ाई में साथ आ गए मगर अब चोटी के पांच वकीलों ने भी रोहिंग्या की तरफ से बहस करने का फैसला किया है. फली एस नरीमन, कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण, राजीव धवन और कोलिन गोज़ाल्विस रोहिंग्या के पक्ष में दलील देंगे. भारत सरकार की तरफ से एडिशनल सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता बहस कर रहे हैं. 3 अक्तूबर को सुनवाई होनी है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी कहा है कि रोहिंगया मुसलमान शरणार्थियों को वापस भेजने के सरकार के फैसले का विरोध करेगा. इस मामले में केएन गोविंदाचार्य और चेन्नई की एक संस्था इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट भी हस्तक्षेप करने वाले हैं. दोनों ही रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने के पक्ष में हैं. 

भारत का एक और विभाजन संभव
गोविंदाचार्य ने कहा है कि अगर ये रहेंगे तो भारत का एक और विभाजन हो सकता है. अलक़ायदा जैसे आतंकी संगठन इनका इस्तमाल कर सकते हैं. इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट कहा कहना है कि ये भारत की सामाजिक आर्थिक और सुरक्षा के लिए ख़तरा हो सकते हैं. म्यनमार पर दबाव डाला जाना चाहिए कि वो अपनी सीमा के भीतर के विवादों को सुलझाए. यह संस्था मानती है कि मानवाधिकार का संकट है लेकिन इसका समाधान उसी ज़मीन पर जाकर करना चाहिए. ये सब livelaw.in पर छपा है.

जम्मू तक कैसे पहुंच गए रोहिंग्या
यह भी सवाल उठ रहा है कि रोहिंग्या जम्मू तक कैसे पहुंच गए. इसके अलावा केंद्र सरकार के हलफमाने में दिए गए तर्कों को भी जानना चाहिए. सरकार का मानना है कि इस मामले में अदालत दखल न दे, देशहित में सरकार को ही फैसला लेने दें. रोहिंग्या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं.

रोहिंग्या देशविरोधी गतिविधियों में शामिल रहे हैं. मानव तस्करी और हवाला नेटवर्क से जुड़े हैं. कई आतंकी संगठन इनके ज़रिये सांप्रदायिक हिंसा फैलाने की साज़िश कर रहे हैं. इसमें पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठन आईसीसी भी है. आतंकी पृष्ठभूमि वाले कुछ रोहिंग्या की पहचान की गई है. भारत में रहे तो बौद्दों के ख़िलाफ़ हिंसा हो सकती है. भारत की आबादी ज़्यादा है. सामाजिक आर्थिक ढांचा जटिल है. रोहिंग्या को देश में उपलब्ध संसाधनों में से सुविधाएं देने पर नागरिकों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. 

जम्मू में रहने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों की दलील है कि सभी 7 हज़ार रोहिंग्याओं का आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है. जब से वे जम्मू में रह रहे हैं उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं लगा है. स्थानीय पुलिस एक साल से उनकी पूछताछ कर रही है और उसके पास सभी की पूरी जानकारी है. हमारे सहयोगी श्रीनिवासन जैन के टज्ञ्थ वर्सेज़ हाइप में यह रिपोर्ट दिखाई कि जहां जहां रोहिंग्या रहते हैं यानी जम्मू जयपुर, दिल्ली, फरीदाबाद, मेवात में, वहां उनके खिलाफ पुलिस में किस तरह की रिपोर्ट दर्ज है.

कोई भी रोहिंग्या आतंकवाद में लिप्त नहीं 
20 जनवरी को मुख्यमंत्री महबूबी मुफ्ती ने कहा कि 'जम्मू और कश्मीर में कोई भी रोहिंग्या आतंकवाद में लिप्त नहीं पाया गया. इन विदेशियों के उग्रवादीकरण की एक भी घटना सामने नहीं आई'. जम्मू में रोहिंग्या के ख़िलाफ़ 14 एफआईआर हैं. इनमें कई प्रकार के अपराध हैं. एक अवैध रूप से सीमा पार करना भी है. 5,473 रोहिंग्या रहते हैं और इस हिसाब से अपराध दर हुआ 0.24 फीसदी है.

जम्मू के आईजी पुलिस ने कहा है कि रोहिंग्या के खिलाफ़ चौंकाने वाला तो कोई आपराधिक मामला नहीं देखा है. दिल्ली में 1000 रोहिंग्या रहते हैं. पुलिस के पास इनके खिलाफ एक भी एफआईआर नहीं है. जयपुर में 350 रोहिंग्या रहते हैं, यहां के चार थानों में सिर्फ एक मामला दर्ज है. रोहिंग्या पुरुष पर एक रोहिंग्या महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया है. हरियाणा के फरीदाबाद और मेवात में कोई केस नहीं दर्ज नहीं हुआ है. इस सभी शहरों में पुलिस का कहना है कि वे रोहिंग्या के शिविरों की लगातार निगरानी करती रहती है. 

VIDEO:  प्राइम टाइम इंट्रो: रोहिंग्याओं को शरण से आर्थिक बोझ?

सू ची ने तोड़ी चुप्पी
आंग सांग सू ची ने अपनी चुप्पी तोड़ी, लेकिन ज़िद नहीं छोड़ी. कहा कि अंतर्राष्ट्रीय आलोचनाओं से उन्हें फर्क नहीं पड़ता है. म्यांमार में न तो हिंसक टकराव हुआ है न ही सफाई अभियान चला है. आंग सांग सू ची ने यह नहीं कहा कि क्यों उनके मुल्क में रोहिंग्या को नागरिक अधिकार हासिल नहीं है. वे रोहिंग्या शब्द का इस्तमाल नहीं करती हैं, बंगाली मुसलमान कहती हैं.

चार लाख रोहिंग्या बांग्लादेश से भागे
चार लाख रोहिंग्या बांग्लादेश से भागने के लिए मजबूर हुए हैं फिर भी आंग सांग सू चीकहती हैं कि ज़्यादातर मुसलमान रखाइन इलाके में रह रहे हैं. उन्होंने कहा कि वे भागने वालों से बात करना चाहती हैं जो रह गए हैं उनसे भी ताकि समस्या का समाधान हो सके. उन्होंने कहा जो बांग्लादेश गए हैं, जांच वगैरह के बाद वापस आ सकते हैं. सू ची के इस बयान की आलोचना हो रही है कि उन्होंने रोहिंग्या पर ज़ुल्म ढाने वाली सेना के बारे में नहीं कहा है. दुनिया कह रही है कि रोहिंग्या की हालत देखिए, इन्हें तड़पा तड़पा कर मारा जा रहा है. ये इंसानियत का सवाल है, मज़हब का नहीं. वो तो कहिए कि खालसा एड जैसा संगठन भी हैं जो बहस को छोड़ इनकी मदद के लिए कूद पड़ा है और पूरी दुनिया में इनकी तारीफ भी हो रही है. भारत सरकार ने भी अपनी तरफ से मदद भेजी है.

विरोध करने वालों के भी अपने तर्क
जो लोग रोहिंग्या के भारत में रहने का विरोध कर रहे हैं उनके मोटा-मोटी तीन चार प्रकार के तर्क हैं. ये आतंकी संगठन से ताल्लुक रखते हैं, आतंकी गतिविधियों के लिए ज़रिया बन सकते हैं, भारत के संसाधनों पर बोझ हो सकते हैं. हमने इन तीन चार सवालों को लेकर उन चार वकीलों से बात कि वे क्यों रोहिंग्या शरणार्थी के लिए बहस करना चाहते हैं. 

छह सवाल
  1. रोहिंग्याओं को भारत में शरण क्यों दी जानी चाहिए?
  2. सरकार कह रही है कि रोहिंग्याओं से आतंकवादी ख़तरा हो सकता है, इस तर्क से आप कितने सहमत हैं?
  3. सरकार कह रही है कि रोहिंग्याओं को शरण देने से देश के संसाधनों पर बोझ पड़ेगा. इससे आप कितने सहमत हैं?
  4. क्या रोहिंग्याओं का मुद्दा उछालना किसी सियासी या चुनावी रणनीति के तहत ध्रुवीकरण की कोशिश है?
  5. रोहिंग्या समस्या को सरकार क्या म्यांमार सरकार के साथ बातचीत कर नहीं सुलझा सकती?
  6. सरकार कह रही है कि इस मामले में कोर्ट दखल ना दे? इस मामले में डील करने का अधिकार सरकार को ही है? इस पर आप क्या सोचते हैं?

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