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This Article is From Oct 09, 2018

#MeToo की चिंगारी भड़की, कई जगह असर

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 10, 2018 16:53 pm IST
    • Published On अक्टूबर 09, 2018 23:04 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 10, 2018 16:53 pm IST
प्रधानमंत्री मोदी ने न तो एमजे अकबर को बर्ख़ास्त किया है और न ही एमजे अकबर ने विदेश राज्य मंत्री के पद से इस्तीफा दिया है. न ही अकबर के बचाव में कोई मंत्री आया है. न ही अकबर के लिए बीजेपी का कोई प्रवक्ता सामने आया है. दरअसल किस्सा ही ऐसा सामने आया है कि उसके सामने कोई सामने नहीं आ रहा है. मुबशिर जावेद अकबर मध्यप्रदेश से राज्यसभा के सांसद हैं तो वहां से भी कोई सामने नहीं आया है. एमजे अकबर भी अपने बचाव में अभी तक सामने नहीं आए हैं. उनका सामने आना ज़रूरी है, क्योंकि कई महिला पत्रकारों ने ऐसे प्रसंग सुनाए जिन्हें पढ़कर उन्हें भी अच्छा नहीं लगेगा. अकबर के सामने न आने से सरकार पर भी आंच आ रही है. उम्मीद है वे जल्दी सामने आएंगे और कुछ कहेंगे. किस पत्रकार के बारे में क्या धारणा है, मेरी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन जब कुछ महिला पत्रकारों ने संदर्भ और प्रसंग के साथ ब्योरा लिखा तो लगा कि अब अकबर की बात होनी चाहिए. मैंने कोई जल्दबाज़ी नहीं की. सोमवार के दिन भी रूका कि एक दिन ठहर कर देखते हैं फिर इस पर बात करेंगे. तो अपनी तरफ से जितना चेक सिस्टम हो सकता है हमने पालन किया.

NDTV ने भी अकबर से उनका पक्ष जानने के लिए संपर्क किया है. किस्सा यह है कि 7 अक्तूबर को 'द वायर' की पत्रकार रोहिणी सिंह ने ट्वीट किया कि भारत की पत्रकारिता के इतिहास का सबसे बड़ा यौन प्रताड़क तो आज सत्ता में बैठा है. ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी ने उसके बारे में नहीं लिखा. इतना कहना था कि लुटियन दिल्ली के तहखाने में दबे कई किस्से छटपटाने लगे. 8 अगस्त को पत्रकार प्रिया रमानी ने पिछले साल की अपनी आपबीती को ट्वीट कर दिया जो वोग पत्रिका में छपी थी. इसे ट्वीट करते हुए प्रिया रमानी ने कहा कि मैंने तब उस स्टोरी में अकबर का नाम नहीं लिया था, लेकिन वो कहानी शुरू ही होती है अकबर के कारनामे से. उसके बाद वरिष्ठ पत्रकार हरिंदर बावेजा ट्वीट करती हैं कि हम सबके पास एमजे के किस्से हैं. एक बार उसने कहा था कि क्या मैं रम की बोतल के साथ घर आ जाऊं तो मैंने ना कह दिया था. लेकिन कोई ना का मतलब कभी ना नहीं समझता है.

इन सबके बीच फर्स्टपोस्ट पर एक अनाम महिला पत्रकार ने अपनी आपबीती बताई. उस लेख में अकबर का नाम नहीं लिया गया है. पर प्रसंग और संदर्भ के साथ अपनी बात कही है. उस लेख में जिसका किस्सा है लोगों ने समझा वो कथित रूप से अकबर हैं. अकबर है या नहीं, आप उस कहानी को पढ़ नहीं सकेंगे. पत्रकारिता के भीतर ताकतवर लोगों की तूती किस कदर बोलती है, आपको जानना चाहिए. आज सुबह वन्य जीवों की दुनिया पर लिखने वालीं पत्रकार और The Vanishing: India's wildlife crisis की लेखिका प्रेरणा सिंह बिंद्रा ने भी कई ट्वीट किए और नाम लेकर एमजे अकबर के साथ अपनी उन स्मृतियों को साझा किया जिन्हें पढ़कर प्रधानमंत्री को भी अच्छा नही लगेगा. प्रेरणा ने लिखा है कि मैं यह बात हल्के में नहीं कह रही. मुझे ग़लत आरोप का अंजाम मालूम है. अब तो उस घटना के 17 साल हो गए, मेरे पास ठोस प्रमाण भी नहीं हैं. लेकिन तब मैं नौजवान थी. मुझे फीचर एडिटर बना दिया था. मैं अपने संपादक की प्रतिभा से काफी प्रभावित थी. एक रात जब होटल के कमरे में बुलाया तो मना कर दिया. उसके बाद से मेरा जीवन नरक कर दिया.

बात विवेक अग्निहोत्री से शुरू हुई, फिर नाना पाटेकर और विकास बहल और उत्सव चक्रवर्ती तक पहुंची, तभी यह चिंगारी पत्रकारिता के क्षेत्र की तरफ मुड़ी और महिला पत्रकारों ने अपनी आप बीती लिखनी शुरू कर दी. ट्विटर पर जब एमजे अकबर का नाम चल रहा था तब सब इसे अनदेखा कर रहे थे. बाकी नामों को लेकर सरगर्मियां बढ़तीं जा रही थीं. मीटू अभियान के तहत लगातार चेहरे बदल रहे हैं. कोलकाता से छपने वाले अखबार द टेलीग्राफ के पहले पन्ने पर अकबर का नाम होगा, किसी ने नहीं सोचा होगा. अख़बार क्या-क्या नहीं देखता है. जिस अखबार के संस्थापक संपादक रहे उसी अखबार के पहले पन्ने पर एमजे अकबर पर लगे आरोपों की खबर थी. यह खबर दिल्ली के अंग्रेज़ी अखबारों में पहले पन्ने से गायब थी. दि टेलिग्राफ ने लिखा है कि भारत में मीटू आंदोलन की लहर कई न्यूज़ रूम्स से होते हुए नरेंद्र मोदी की सरकार तक पहुंच गई है. कई महिला पत्रकारों ने पूर्व पत्रकार और विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर का नाम लिया है.

ऐसा नहीं है कि पत्रकारों ने एमजे अकबर का पक्ष जानने का प्रयास नहीं किया. दि ट्रिब्यून की डिप्टी एडिटर स्मिता शर्मा ने आज विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से ही पूछ लिया कि कई महिला पत्रकारों ने विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर पर सेक्शुअल हैरेसमेंट के आरोप लगाए हैं. महिला बॉस होने के नाते आपका क्या कहना है. स्मिता शर्मा ने सवाल दायें बायें करके नहीं पूछा था. साफ-साफ पूछा था. बाद में उन्होंने ट्वीट भी किया कि विदेश मंत्रालय के आधिकारिक बयान का भी इंतज़ार कर रही हूं. आप भी देखिए जब स्मिता शर्मा ने पूछा तो सुषमा स्वराज ने कैसे किनारा किया.

दिल्ली के गलियारे में पुराने किस्से टहल रहे थे. वे पत्थरों से चिपके पड़े थे मगर अब हवा में उड़ रहे हैं. स्क्रोल की एडिटर सुप्रिया शर्मा ने तो बाक़ायदा अपना ईमेल ट्वीट किया है कि अगर प्रिया रमानी की तरह किसी के पास एमजे अकबर का कोई प्रसंग है तो उन्हें supriya@scroll.in पर ईमेल करे. आप जानते हैं कि एमजे अकबर आजीवन संपादक की भूमिका में ही काम करते रहे. इनके जीवन का बड़ा हिस्सा संपादकी में बीता है. न जाने कितने पुरुष और महिला पत्रकारों को नौकरी दी होगी इसका हिसाब मुश्किल है. फिर एक सवाल आता है कि 1976 में संडे पत्रिका को कामयाब बनाने के बाद सीढ़ियां एमजे के कदम चूमतीं गईं. टेलिग्राफ अखबार की स्थापना की. 1989 में जब बिहार के किशनगंज से कांग्रेस से नामांकन भरना था तब विशेष विमान से ले जाए गए थे ताकि नामांकन कर सके. लोकसभा का चुनाव जीते, फिर राजनीति में रहे और वहां से निकलकर दि एशियन एज अखबार की स्थापना की. फिर वहां से निकल कर इंडिया टुडे के एडिटोरियल डायरेक्टर बन गए. फिर वहां से निकलकर बीजेपी में गए और मध्य प्रदेश से राज्यसभा गए. अब विदेश राज्य मंत्री हैं. राजनीति में तो हर कोई कहीं पहुंच जाता है, लेकिन सवाल है कि एमजे जैसे लोग क्या सिर्फ प्रतिभा के बल पर आगे पहुंच जाते हैं. क्या इनकी प्रतिभा का ज़रा भी विकल्प नहीं होता कि उनके आचरण के किस्सों को दरकिनार कर दिया जाता है. यह सवाल एमजे पर लगे आरोपों से कहीं ज्यादा बड़ा है, जिसका जवाब मीडिया संस्थानों को देना चाहिए. 

बात विवेक अग्निहोत्री से शुरू हुई फिर नाना पाटेकर और विकास बहल और उत्सव चक्रवर्ती तक पहुंची तभी यह चिंगारी पत्रकारिता के क्षेत्र की तरफ मुड़ी और महिला पत्रकारों ने अपनी आप बीती लिखनी शुरू कर दी। अनुराग कश्यप ने तो अपनी फिल्म कंपनी फैंटम ही भंग कर दी. एआईबी ने माफी मांगी है और उत्सव चक्रवर्ती ने AIB के सीईओ पद से इस्तीफा दे दिया है. फिल्म और कॉमेडी जगत के लोगों ने तुरंत एक्शन लिया तो दबाव मीडिया संस्थानों पर बनना ही था. मीडिया में सबसे पहले दि वायर की पत्रकार अनु भुयां ने बाक़ायदा लेख लिखा कि बिजनेस स्टैंडर्ड के साथी पत्रकार मयंक जैन ने उन्हें अश्लील पेशकश की थी. आज खबर आई है कि मयंक जैन ने इस्तीफा दे दिया है और उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है.

हिन्दुस्तान टाइम्स के पोलिटिकल एडिटर प्रशांत झा को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. टाइम्स ऑफ इंडिया के रेजिटेंड एडिटर के आर श्रीनिवास को छुट्टी पर भेज दिया गया है. केआर श्रीनिवास पर कई महिला पत्रकारों ने आरोप यौन शोषण की कोशिश के आरोप लगाए थे. टाइम्स ऑफ इंडिया ने कहा है कि इस मामले की आंतरिक जांच हो रही है. दि वायर के सिद्धार्थ भाटिया पर रीमा सान्याल और भारती शुक्ला ने आरोप लगाए. इनका ट्वीट है कि सिद्धार्थ ने अनुचित कमेंट किया और हैरसमेंट किया है. सिद्धार्थ भाटिया ने खंडन किया है, कहा है कि वे इन दोनों को नहीं जानते हैं, न ही ऐसी घटना याद है. अगर भारती शुक्ला पूरी डिटेल के साथ सामने आएंगी तो जांच के लिए तैयार हैं. दि वायर ने अपना ईमेल भी सार्वजनिक किया है कि कोई भी सबूत हो, शिकायत हो तो ईमेल करें. ईमेल आप वायर की मोनोबिना गुप्ता को mg@thewire.in पर ईमेल कर सकते हैं. NDTV में इंटर्न रही राधिका ठाकुर ने भी इंटर्नशिप के दौरान छेड़छाड़ के आरोप लगाए हैं. राधिका से सारी जानकारी मांगी गई है, जिसकी जांच आंतरिक कमेटी कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार NDTV में विशाखा कमेटी बनी हुई है, इसे वर्क सिक्योर ग्रुप कहते हैं. इस ग्रुप की अध्यक्ष वकील कीर्ति सिंह हैं. हाल ही में 12 सितंबर को चैनल के भीतर एक टाउनहॉल हुआ था, जिसमें कीर्ति सिंह ने समझाया था कि क्या-क्या नहीं करना है. मैं भी ऐसी एक मीटिंग में रहा हूं. काफी कुछ सीखने को मिला है. इसलिए सीखने का प्रयास कीजिए. सभी कर्मचारियों तक यह बात साफ-साफ पहुंचे, इसके लिए चैनल के भीतर आप आएंगे तो सबसे पहले फ्रंट ऑफिस पर ही एक नोटिस दिखेगा.

इस तरह का नोटिस. बाकायदा हिन्दी में लिखा है कि यौन उत्पीड़न क्या है. शारीरिरक संपर्क और छूना, यौन फायदों की मांग या अनुरोध, यौन इशारों वाली टिप्पणियां, पोर्नोग्राफी दिखाना, यौन-प्रकृति का कोई भी अवांछित व्यवहार, किसी की सेहत और सुरक्षा पर असर डाल सकने वाला अपमान, शिकायत कैसे करनी है, किससे करनी है. यह सब उस नोटिस में लिखा है. कमेटी के कौन-कौन सदस्य हैं उनके नाम और नंबर भी दिए गए हैं. नंबर वाला हिस्सा हम आपको नहीं दिखा रहे हैं, क्योंकि वह भीतर के कर्मचारियों के लिए है.

इन्हीं आरोपों पर फिल्म जगत के लोगों ने एक्शन लिया. मीडिया संस्थानों ने एक्शन लिया. क्या सरकार को एमजे अकबर के मामले में चुप ही रहना चाहिए. क्योंकि एमजे का मामला भी उनके पत्रकारिता के दिनों का मामला है. आखिर जब सारे संस्थान नैतिकता के आधार पर एक्शन ले रहे हैं तो फिर एम जे अकबर खुद भी पहल कर ही सकते हैं. बहुत लोग सोच रहे होंगे कि लड़कियां किसी पर भी अनाप-शनाप आरोप लगा देंगी. बदनाम कर देंगी. ऐसा भी होता है, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि जो आरोप लगा रहा है वो गलत ही है. इसलिए सबसे पहले सुनिए. हम जानते हैं कि महिलाओं के साथ छेड़खानी आम बात है. अगर वह कह रही हैं तो बात सही हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए बकायदा गाइडलाइन बनाई है. उसके हिसाब से जांच होगी. इसलिए नाहक आशंका फैलाने की ज़रूरत नहीं है. बीजेपी के सांसद उदित राज का बयान सुनिए. ठीक इसी तरह का बयान ट्रंप ने अमेरिका में दिया है. ट्रंप ने जिसे सुप्रीम कोर्ट के लिए जज मनोनीत किया उसे लेकर वहां लंबी बहस चली कि जिस आदमी को आप नियुक्त कर रहे हैं उसका किरदार अच्छा नहीं है. अंत में ट्रंप ने उसे जज बनाया. आप उदित राज को सुनिए तो फिर समझ जाएंगे कि अंत में एमजे अकबर का कुछ नहीं होगा.

टिप्पणियां मी टू आंदोलन से जुड़ी महिला पत्रकारों ने जो आरोप लगाए हैं उन्हें सुनिए. उनमें समाज के दस्तावेज़ हैं. खुद में भरोसा रखिए. आप बिल्कुल फर्क कर सकते हैं कि कौन सा आरोप बेबुनियाद है, हल्का है. मीडिया पर भरोसा नहीं कर सकते, क्योंकि उसका इतिहास ही यही रहा है. ऐसे मामलों में इतना ट्रायल कर देता है कि कई बार डर इस मीडिया ट्रायल से ज्यादा लगता है. मेरे हिसाब से अगर आप इस वक्त कंफ्यूज़्ड हैं कि सेक्सुअल हैरसमेंट क्या है और एक महिला से पेश आने का कायदा क्या है तो आप गलत नहीं हैं. यही पहली सीढ़ी है बदलने की कि आप सेक्सुअल हैरसमेंट की सीमा जानना चाहते हैं. आप बिल्कुल एक सही सवाल के करीब हैं, जिसका जवाब जानने की कोशिश कीजिए. इसलिए सुशील महापात्रा ने दि वायर की पत्रकार आरफ़ा ख़ानम शेरवानी से इसके बारे में पूछा है.

मी टू आंदोलन की एक कमी ये लगी कि हर दिन एक नया चेहरा सामने आ रहा है. उसे लेकर इतना हंगामा हो रहा है कि बीते दिन जो चेहरा सामने आया था वो गायब हो जाता है. एक तरह से हर नया नाम पिछले नाम को बचने का मौका बना देता है. इसलिए ज़रूरी है कि एक सिस्टम बने. सिस्टम का प्रावधान है. हम सब सचेत हों कि ऐसा अब नहीं चलेगा.

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