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This Article is From Sep 05, 2018

नोटबंदी से काले धन पर कितनी लगाम लग पाई?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 05, 2018 00:27 am IST
    • Published On सितंबर 05, 2018 00:27 am IST
    • Last Updated On सितंबर 05, 2018 00:27 am IST
8 नवंबर 2016 को जब नोटबंदी हुई थी तो बतौर प्रधानमंत्री किसी को पता नहीं था. सबको एक ही बार रात आठ बजे टीवी से पता चला था. लेकिन नोटबंदी फिर से हो सकती है इसका पता सबको चल चुका है और वो भी टीवी से. नीति आयोग के चेयरमैन प्रधानमंत्री होते हैं और उपाध्यक्ष होते हैं राजीव कुमार. राजीव कुमार ने श्रीनिवासन जैन से कहा है कि अर्थव्यवस्था की सफाई के लिए वे किसी भी दिन नोटबंदी करना चाहेंगे, ताकि ये औपचारिक हो सके. टैक्स भरने की आदत में सुधार हो. नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार के अनुसार टैक्स भरने की आदत में सुधार के लिए वे कभी भी नोटबंदी करना चाहेंगे. दुनिया भर में कई देश हैं जहां टैक्स भरने की आदत इस वक्त भी भारत से बेहतर से होगी, लेकिन क्या वहां आदत में ये सुधार नोटबंदी से आई है. तब तो जहां भी टैक्स चोरी होती है वहां नोटबंदी होनी चाहिए.

ख़ुद को नोटबंदी का समर्थक कहने वाले राजीव कुमार कहते हैं कि वे नैतिक आधार पर ज्यादा समर्थन करते हैं. यह इसलिए किया गया ताकि हमारे सामाजिक और आर्थिक व्यवहार में पवित्रता और ईमानदारी आए. कमाल है. 2019 का चुनाव होने वाला है. बस नज़र रखिएगा. आपको पता चल जाएगा कि काला धन कैसे सीना तानकर आपके आस पास घूम रहा है. भारत के इतिहास का सबसे महंगा चुनाव होने जा रहा है. पानी की तरह नोट हवा में उड़ेगा. नोटबंदी का बड़ा टारगेट था कि 2 से 3 लाख करोड़ काला धन बैंकों में नहीं आएगा. अब जब करीब करीब सारा पैसा वापस आ गया, तो इस सवाल को छोड़ बाकी सारे पहलू पर जोर दिया जा रहा है. हमने टैक्स एक्सपर्ट वेद जैन से बात की. वेद जैन इंस्टिट्यूट ऑफ चार्टेड अकाउंटेंट्स के पूर्व अध्यक्ष भी रहे हैं. 

नोटबंदी को सफल बताने के लिए तर्क दिए जा रहे हैं कि आयकर रिटर्न बढ़ गया. जबकि आयकर रिटर्न बढ़ने की दर नोटबंदी के पहले और बाद में कोई खास अलग नहीं है. क्या आयकर रिटर्न बढ़ाने के लिए नोटबंदी ही एकमात्र उपाय था. जो भी बढ़ा है, उसका बड़ा हिस्सा उन आयकरदाताओं का है जिन्होंने रिटर्न तो जमा किए मगर टैक्स नहीं दिए, क्योंकि टैक्स देने लायक उनकी आमदनी नहीं थी. इस बारे में भी वीरेंद जैन से हमने बात की.

तो नोटबंदी पर राजीव कुमार का इतना यकीन है कि इसे फिर से लागू करने की बात कर रहे हैं. जल्दी से आप आंखें बंद कर लीजिए, ताकि सब कुछ एक बार याद आ जाए. अब रुपए को भी याद कर लीजिए. एक डॉलर का दाम 71 रुपये 50 पैसे हो गया. भारत के इतिहास में रुपया इतना कभी नहीं गिरा था. लेकिन क्या रुपया 2018 में अलग कारणों से गिर रहा है, क्या उसके गिरने के कारण 2013 में गिरने के कारणों से अलग हैं जब अगस्त 2013 के एक दिन एक डालर 68.8 रुपये का हो गया था. तब क्यों उस नरेंद्र मोदी से लेकर सुषमा स्वराज ने इसके गिरने को प्रधानमंत्री और भारत की साख गिरने से जोड़ा था. अब जब रुपया उससे भी अधिक गिरा है तब वे किन कारणों से जोड़ना चाहेंगे.

4 सितंबर को रुपया एक डॉलर के मुकाबलले 71.58 का हो गया. यह इतिहास में सबसे न्यूनतम है. सोमवार को एक डॉलर का भाव 71. 21 पर बंद हुआ था. व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लॉजिक प्रोडक्शन में लगे हैं. तर्कोत्पादन. इसके तहत बताया जा रहा है कि अगस्त 2013 में एक डॉलर करीब 69 का हो गया था. इस वक्त 71 रुपये का हुआ है. यानी मोदी राज में तीन रुपया ही ज्यादा बढ़ा है. वहीं आप 1947 से देखें तो 1 डॉलर बराबर 1 रुपये था जो 2013 में 69 रुपये का हो गया. यानी इस दौरान कांग्रेस के राज में 69 रुपया कमज़ोर हुआ. मौजूदा राज में 3 रुपया ही कमज़ोर हुआ. ऐसे कूड़ा तर्कों से सावधान रहें. व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी में सुबह सुबह जो आप पढ़ते हैं वो आईटी सेल का भेजा हुआ कबाड़ होता है, जिसका एक ही मकसद होता है कि पढ़ने वाले को अंधेरे में रखा जाए. उसे कुछ और हफ्तों तक मूर्ख बनाया जाए. हंसा कीजिए ऐसे मैसेज देखकर और रोया भी कीजिए कि व्हाट्सऐप ने आपका क्या हाल कर दिया है. इससे निकलने का एक ही रास्ता है. बहुत पढ़ना पढ़ेगा जिसके लिए कहां वक्त है बहुतों के पास.

हिन्दी के अख़बार में भी तो व्हाट्सऐप वाला ही छपता है. याद है न हिन्दी के चैनल आपको 2000 के नोट चिप लगा हुआ बता रहे थे. तो अब आप फंस चुके हैं. पिछले एक महीने में रुपए में 4 प्रतिशत की गिरावट आई है. जनवरी में 64 रुपये था, अगस्त आते आते 71 रुपये से अधिक हो गया. आयात बिल बढ़ने के कारण वित्तीय हालत पर भी असर पड़ता है. तेल के दाम बढ़ते हैं तो आपकी जेब पर भी असर पड़ता है. अमेरिका में भारत के कई छात्र पढ़ते हैं. 2016-17 में अमेरिका में भारतीय छात्रों की संख्या 1 लाख 86 हज़ार हो गई जो अब तक की सबसे अधिक थी. क्विंट वेबसाइट पर राकेश दुबूबू ने लिखा है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भारतीय छात्र साढ़े छह अरब डॉलर का योगदान करते हैं. आज के रेट के हिसाब से ये राशि होती है 46,400 करोड़. सेमेस्टर के हिसाब से वहां फीस जमा करनी होती है. अलग-अलग कोर्स की फीस अलग होती है. जैसे हार्वर्ड से एमबीए करने के लिए 2 साल के डिग्री कोर्स की फीस है 218,248. पिछले साल 1 डॉलर जब 63 रुपये का था तो 1.37 करोड़ फीस हुई. इस समय 71.30 के रेट से छात्रों को 1.55 करोड़ फीस देनी पड़ेगी. यानी उनका बजट 18 लाख बढ़ जाएगा.

ज़्यादातर छात्र लोन लेकर जाते हैं, स्कॉलरशिप भी लेकर जाते हैं. ये ध्यान में रखना ज़रूरी है और यह भी जानना ज़रूरी है कि यहां के कॉजों की क्या हालत है, आपको बार-बार बताना ज़रूरी नहीं है. इस वक्त अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत मई के महीने से कम है. मई में 80 डॉलर प्रति बैरल थी. इस वक्त 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल है. फिर भी पेट्रोल की कीमतें जो हैं, वो मई भी ज्यादा हो गई हैं. हम आपको महाराष्ट्र के कुछ कस्बों शहरों में पेट्रोल का रेट बताते हैं.

नांदेड़ के उमरी में 89.19 रुपए प्रति लीटर है. परभणी में पेट्रोल 88.52 रुपए प्रति लीटर है. नांदेड़ के देगलूर में 88.16 रुपए प्रति लीटर है. अमरावती में पेट्रोल 88.03 रुपए प्रति लीटर. वाशिम में पेट्रोल 87.33 रुपए प्रति लीटर. नाशिक शहर में पेट्रोल 87.12 रुपए प्रति लीटर है. अकोला में पेट्रोल 86.80 रुपए प्रति लीटर है.

छोटे शहरों में पेट्रोल तो महानगरों से भी ज़्यादा महंगा है. बिहार के सहरसा ज़िले में 4 सितंबर को पेट्रोल करीब 90 रुपये प्रति लीटर पहुंच गया. मीर टोला बनगांव से एक दर्शक ने रसीद भेजी है कि आज 89 रुपये 94 पैसे प्रति लीटर पेट्रोल लिया है. सिम्पल समाचर में ऑनिंद्यो चक्रवती ने बताया है कि पेट्रोल पर किस तरह आपसे 85 परसेंट टैक्स लिए जाते हैं. 85 परसेंट टैक्स आप तब भी दे रहे थे जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 46 डॉलर प्रति बैरल थी. पहले वो हिस्सा देखिए फिर आगे बढ़ते हैं. ऑनिन ने दिल्ली के दाम के हिसाब से समझाया है जहां पेट्रोल की कीमत 79 रुपये 31 पैसे प्रति लीटर हो गया. दिल्ली में पेट्रोल 16 अगस्त से लेकर 4 सितंबर के बीच 2 रुपया 17 पैसे महंगा हुआ है. डीज़ल 2 रुपये 62 पैसे के हिसाब से महंगा हुआ है.

वैसे खबर यही आ रही है कि टैक्स में कटौती कर तेल के दाम घटाने का कोई इरादा नहीं है सरकार का. इसके बाद भी बीजेपी की सहयोगी जेडीयू ने यह मांग की है कि पेट्रोल डीजल को जीएसटी के दायरे में लाए. अगर ऐसा हुआ तो आपको 25 रुपये कम देने पड़ेंगे. सुशील महापात्रा पेट्रोल पंप पर गए और मोटरसाइकिल चलाने वालों से बात की. उनकी कमाई तो बढ़ती नहीं है मगर तेल के दाम बढ़ जाते हैं. यह सही है कि विपक्ष का भारत बंद टाइप का प्रदर्शन नहीं है जो 2013 के दौर में हुआ करता था, क्योंकि वो लोग अब सरकार में हैं तो ज़ाहिर है उनसे प्रदर्शन की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. मगर जनता अपनी परेशानी को समझ रही है. इस वक्त वो परेशान है. उसकी परेशानी का इसी से मोल नहीं होना चाहिए कि वो वोट किसे करेगी. इस वक्त उसके लिए 87 रुपया, 88 रुपया देना भारी पड़ रहा है, यही देखा जाना चाहिए.

यशवंत सिन्हा ने ndtv.com पर लिखा है कि इस मसले को लेकर विपक्ष सड़क पर क्यों नहीं है. यह बात भी सही है, विपक्ष सड़क पर भी होगा तो भी क्या गारंटी है कि मीडिया पेट्रोल की बढ़ती कीमतों पर चर्चा करेगा. यशवंत सिन्हा को यू ट्यूब से चैनलों के डिबेट निकाल कर रिसर्च करना चाहिए. उन्हें ज्ञान प्राप्त होगा. ज्ञान यह प्राप्त होगा कि भारत के न्यूज़ चैनल साढ़े चार साल से हिन्दू मुस्लिम नेशनल सिलेबस पूरा करने में लगे हैं और अभी आधा सिलेबस भी पूरा नहीं हुआ है. ऐसे में आप पेट्रोल डीज़ल पर कहां डिबेट का डिमांड कर रहे हैं. अख़बारों का भी वही हाल है खासकर हिन्दी के अखबारों का. एक बार ठीक से पलट कर तो देखिए कि क्या कह रहा हूं.

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