ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक हाईप्रोफाल राष्ट्रीय मेहमान भारत आया हो और भारत की राजधानी दिल्ली में दंगे हो रहे हों. ये और बात है कि इस हिंसा की प्रशासनिक ज़िम्मेदारी अब के मीडिया समाज में किसी की नहीं होती है, फिर भी ये बात दुखद तो है ही कि हम किस तरह की राजधानी दुनिया के सामने पेश करना चाहते हैं. इस राजधानी के चुनाव में गोली मारने के नारे लगाए गए, उसके बाद सरेआम पिस्टल लहराने और गोली चलाने और चलाने की कोशिश की यह तीसरी घटना हो गई है. क्या वाकई किसी ने इस बात की फिक्र नहीं की कि केंद्र सरकार का तंत्र राष्ट्रपति ट्रंप के स्वागत की तैयारियों में लगा है तो दिल्ली शांत रहे. दंगे की नौबत न आए. या फिर दिल्ली के पूर्वी हिस्से में हिंसा इसलिए हुई या होने दिया गया ताकि जब तमाम चैनलों के स्क्रीन ट्रंप के आगमन की तस्वीरों से भरे हुए हों, तब हिंसा का खेल खेला जाए. लेकिन ऐसा तो हुआ नहीं. हिंसा की घटना ने ट्रंप के कवरेज के असर को गायब कर दिया. भले ही टीवी पर हो न हो लेकिन दिल्ली इस वक्त इस शहर की चिन्ता में डूबी है. उसका ध्यान जलती दुकानों और चलती गोलियों में फंसा हुआ है.
क्या यह सब इसलिए होने दिया गया ताकि हेडलाइन बने कि जिस वक्त ट्रंप भारत में उतर रहे थे, दिल्ली में दंगे हो रहे थे? क्या दिल्ली पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों ने मौक़े की नज़ाकत को बस इतना ही समझा? जैसे जैसे ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी मोटेरा स्टेडियम की तरफ बढ़ रहे थे, वहां मौजूद भीड़ के बीच दोनों के स्वागत में तालियां गूंज रही थीं, दोनों नेता अपने अपने भाषण की तैयारी कर रहे थे. इधर दिल्ली के पूर्वी दिल्ली में ऐसे हालात बन रहे थे कि दस जगहों में धारा 144 लगाने के हालात बन रहे थे. जाफ़राबाद, मौजपुर, कर्दमपुरी, दयालपुर, गोकुलपुरी, नूरइलाही, चांदबाग से तनाव और पथराव की खबरें आने लगीं. सबसे पहले सुबह नौ बजे हमारे सहयोगी परिमल का मैसेज आता है कि वे मौजपुर चौक पर हैं और यहां पर तनाव बढ़ रहा है. पुलिस भारी मात्रा में मौजूद हैं. परिमल वहां से थोड़ी दूर जाते हैं, और तब साढ़े बारह बजे उनका मैसेज आता है कि जाफ़राबाद में नागरिकता संशोधन कानून के विरोधी और समर्थकों के बीच पथराव होने लगा है. डेढ़ बजे तक एक और वीडियो सामने आता है कि भजनपुरा के आस चांदबाग में पत्थरबाज़ी तेज़ हो चुकी है. दो बजते बजते मैसेद आता है कि हालात खराब हो चुके हैं. मौजपुर मेट्रो स्टेशन और जाफराबाद मेट्रो के बीच भी पथराव होने लगा है. पुलिस आंसू गैस चला रही है, उपद्रवियों पर काबू पाने के लिए. 40 मिनट के बाद मुकेश का मैसेज आता है कि जाफराबाद में दो गुटों में पथराव हो रहा है. एक ऑटो में आग लगा दी है. उसी समय भजनपुरा में उपद्रवी ने मोटरसाइकिल और गाड़ी में आग लगा दी है. मौके पर फायर ब्रिगेड की गाड़ी से भी तोड़फोड़ होती है. तीन बजते बजते जब राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी का कार्यक्रम मोटेरा स्टेडियम में समाप्ति की तरफ बढ़ रहा था तभी यह वीडियो सामने आता है. एक आदमी जो लाल रंग के टी शर्ट में है, हाथ में रिवाल्वर लिए आता है. उसकी तरफ पुलिस का एक जवान भी है. लाल टी शर्ट वाला दूसरी तरफ गोली चलाता है. वीडियो खत्म हो जाता है. पता नहीं चलता है कि इसके बाद लाल टी शर्ट वाला क्या करता है, पुलिस उसके साथ क्या करती है. क्या यही हमारी सुरक्षा का बंदोबस्त है, जिस दिल्ली में शाम के वक्त अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप दिल्ली पहुंचने वाले हैं, ज़ाहिर है जहां सुरक्षा की पूरी तैयारी होगी, वहां उस तैयारी का ये नतीजा है कि इस तरह से खुलेआम पथराव हो रहा है. कोई शख्स खुलेआम रिवाल्वर लेकर गोली चला रहा है. क्या ये हमारी कानून व्यवस्था है. टॉप एंगल से रिकार्ड किए गए इस मोबाइल वीडियो में देखिए तो यह लाल टी शर्ट वाला भयानक लगता है. किस तरह से खुलेआम रिवाल्वर लहरा रहा है, गोली चलाता दिख रहा है, इस वीडियो में दो बार गोली चलाने की आवाज सुनाई देती है, एक पुलिस वाला सामने आता है, मगर वह पीछे हटने लगता है, उस पर पत्थर फेंके जाते हैं, और वो पीछे गिरता हुआ लगता है, लेकिन हमारे सहयोगी मुकेश ने बताया कि पुलिस वाले को गोली नहीं लगी, उसने पुलिस को छोड़ दिया. लेकिन दूसरी तरफ गोली चलाते हुए वह इस तस्वीर में साफ साफ दिख रहा है. इस स्टिल तस्वीर में उसका चेहरा साफ है. यह साफ नहीं है कि इस लाल शर्ट वाले ने कितनी गोलियां चलाईं, किसे गोली लगी, रिवाल्वर लाइसेंसी है या अवैध है? क्या यह कोई पेशेवर अपराधी है.
आपने जो भी वीडियो देखे हैं, वो पूरे नहीं हैं. व्हाट्सऐप और ट्विटर पर कई तरह के वीडियो फार्वर्ड किए जा रहे हैं. एक वीडियो में एक पक्ष हिंसा करता तो दिख रहा है लेकिन दूसरा नहीं दिखता है. दूसरे वीडियो में दूसरा पक्ष हिंसा कर रहा है. किसी वीडियो में पुलिस पत्थर चला रही है तो किसी वीडियो में पुलिस के साथ सादे लिबास में लोग भी पत्थर चला रहे हैं. जिसे जो ठीक लग रहा है वह उस हिसाब से वीडियो चुन ले रहा है और फारवर्ड कर दे रहा है. सभी को यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि ऐसे वीडियो से कुछ पता ज़रूर चलता है मगर पूरी बात का पता नहीं चलता है. कभी वीडियो बहुत शुरू के होते हैं तो कभी बीच के या कभी आखिर के. इसलिए ऐसे वीडियो को देखते सम सतर्कता बरतें. सोशल मीडिया पर ऐसे बहुत से वीडियो चल रहे हैं.
चाहे यह नागरिकता संशोधन विरोधी गुट की तरफ से आया या समर्थकों की तरफ से आया होगा, एक ऐसे वक्त जब दिल्ली को आश्वस्त करना था कि यहां सुरक्षा के हालात पूरी तरह नियंत्रण में हैं, आपको इस वीडियो में दिख सकता है कि कितनी कम पुलिस बंदोबस्त है. सिर्फ एक पुलिसवाला है इस पर काबू पाने के लिए. जिस तरफ लाल टी शर्ट वाला गोली चला रहा है उस तरफ कोई पुलिस वाला नज़र नहीं आ रहा है. एक प्रदर्शनकारी की भी मौत हो गई है. फुरकान की मौत गोली लगने से हुई है. यह साफ नहीं है कि इसकी गोली से हुई है या किसी और की गोली से.
इस वक्त भीड़ कह कर संबोधित किया जा रहा है. सवाल है कौन सी भीड़. सूत्रों के हवाले से दिए जा रहे खबरों की विश्वसनीयता भी उतनी ही है जितनी एक वीडियो के टुकड़े की. यानी पूरी बात को जानना इस वक्त मुश्किल है. कहां पर किस पक्ष ने किस पर पत्थर फेंके और जवाब में क्या हुआ, पत्थर फेंकने की योजना कहां बनी, यह जानने की बात है, किसी के कैमरे में कोई पक्ष आ गया और वही दिखाया जाने लगा इससे नफ़रत और फैलेगी. जो भी उकसा रहा था, उस पर पुलिस ने क्या कार्रवाई की, क्या कोई ऐसे कदम उठाए जिससे लोग आश्वस्त हो सकें कि स्थिति पुलिस संभाल रही है, उकसाने वाले नहीं.
भजनपुरा के पेट्रोल पंप को जला कर खाक कर दिया गया है. इंडियन ऑयल का है. खबरें आ रही हैं कि बड़ी तादाद में गाड़ियों में आग लगाई गई है. पिछली बार की हिंसा में भी सीलमपुर में एक पेट्रोल पंप को निशाना बनाया गया था.
हिंसा की कोई जगह नहीं हो सकती है. उकसाने पर भी नहीं. इस हिंसा में आम लोग भी घायल हुए हैं. उन्हें किस तरह की चोट आई है, किस अस्पताल में भरती कराया गया है, इसकी पूरी सूचना नहीं है. यह सूचना ज़रूर है कि डीसीपी अमित शर्मा भी घायल हो गए हैं. डीसीपी शर्मा की मौजूदगी में ही बीजेपी के नेता कपिल मिश्रा ने प्रदर्शनकारियों को तीन दिन का वक्त दिया था. क्या कपिल मिश्रा के भाषण को उकसाने वाला भाषण माना जाएगा? कोई प्रदर्शन कर रहा है, उसके सामने अपनी टोली ले जाकर हटाने की राजनीति में हमेशा टकराव की आशंका होती है, आपने कब सुना था कि कोई प्रदर्शन कर रहा है तो उसके खिलाफ दूर से भी और पास जाकर भी गोली मारने के नारे लगाए जा रहे हैं. उकसाने पर जिन्होंने हिंसा का रास्ता अपनाया है उन्होंने भी बहुत बड़ी गलती की है. लेकिन पूछिए कि कपिल मिश्रा ने यह क्यों किया, क्या उन्हें नहीं पता था कि प्रदर्शन को हटाना या बनाए रखना पुलिस की ज़िम्मेदारी है. कपिल मिश्रा देश के गृहमंत्री के पास जा सकते थे कि पुलिस से कहें कि वो रास्ता खाली कराए, वो खुद पुलिस का काम करने क्यों गए? क्या वो उकसाने के लिए वहां नहीं गए थे? क्या ये भाषण शांति के लिए दे रहे थे?
कपिल मिश्रा ने आज शांति बनाए रखने का ट्वीट किया है. लेकिन जो सबसे दुखद खबर है वो यह कि दिल्ली पुलिस के एक जवान की जान चली गई है. जवान का नाम रतन लाल है. हेड कांस्टेबल रतन लाल के सिर पर चोटी लगी थी. रतन लाल गोकुलपुरी एसीपी के रीडर थे. इतने दिनों से दिल्ली में प्रदर्शन होते रहे हैं. रतन लाल ने 1998 में दिल्ली पुलिस ज्वाइन की थी. 42 साल के थे. दो बेटियां हैं. एक बेटा है, पत्नी हैं. गृह राज्य मंत्री ने कहा है कि हिंसा करने वालों के साथ सख्ती की जाएगी.
गृह राज्य मंत्री ने राहुल गांधी और ओवैसी को ज़िम्मेदारी बता दिया. रविवार को कपिल मिश्रा क्या करने गए थे, उसके बारे में कुछ नहीं कहा? क्या धरना प्रदर्शन हटवाना कपिल मिश्रा का काम है? क्या इस वक्त इस तरह के बयान उचित था? आज ही सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा है कि नागरिकों को प्रदर्शन का अधिकार है लेकिन शांतिपूर्ण तरीके से. सरकार हमेशा सही नहीं होती है. जब तक हिंसा नहीं होती है, सरकार किसी प्रदर्शन को कुचल नहीं सकती है. अगर हम असहमति को कुचलेंगे तो लोकतंत्र पर बुरा असर पड़ेगा. महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन के मूल में असहमति थी. असहमति को अवश्य ही प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. असहमति ज़ाहिर करने वालों को एंटी नेशनल कहा जा रहा है. सरकार और देश दो अलग अलग चीज़ें हैं. मैं देखता हूं कि बार एसोसिएशन प्रस्ताव पास करता है कि फलां एंटी नेशनल है इसलिए उसका केस नहीं लड़ा जाएगा. यह नहीं होना चाहिए. आप किसी को कानूनी मदद लेने से नहीं रोक सकते हैं. अगर किसी पार्टी को 51 प्रतिशत वोट मिला है तो इसका मतलब यह नहीं कि 49 प्रतिशत लोग 5 साल तक नहीं बोलेंगे. लोकतंत्र 100 प्रतिशत लोगों के लिए होता है.
गृह राज्य मंत्री कृष्णा रेड्डी का बयान गृह मंत्री का काम राजनीतिक ज्यादा था जो ऐसे मौके पर बचा जा सकता था. वो तय कर आए हैं कि अब इस जांच में क्या होगा, क्या नतीजा निकलेगा. रविवार से स्थिति तनावपूर्ण हैं, कायदे से उसकी जवाबदेही लेनी चाहिए थी. बहरहाल शाम सात बजे स्थिति सामान्य हो गई.
शाम को जब राष्ट्रपति ट्रंप का विमान आगरा से दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरा इस सफेद नीले रंग के जहाज़ को देखकर नहीं कह सकता है कि दिल्ली के एक हिस्से में हिंसा और गोलीबारी की घटना हुई है. ये अच्छा है कि माहौल शांतिपूर्ण हो गया है. लेकिन हालात सामान्य होने का मतलब नहीं है कि तनाव खत्म हो गया है. घायलों के वीडियो अभी भी आ रहे हैं. जिन लोगों को चोट लगी है उनकी कहानी सामने नहीं आई है. इन सबके बीच हेड कांस्टेबल रतन लाल को याद कीजिए. इस हिंसा ने एक कर्तव्यनिष्ठ जवान की जान ली है. शाहीन बाग और जामिया कोर्डिनेशन कमेटी ने रतन लाल की मौत पर अफसोस जताया है. हिंसा और नफरत का विरोध किया है. जिनके पेट्रोल पंप जले हैं, दुकानें जली हैं, घर वालों को चोट लगी है, वो इन सामान्य सी लगती तस्वीरें राहत नहीं पहुंचा सकती हैं. इस महत्वपूर्ण दौरे की चमक से दिल्ली का एक बड़ा हिस्सा अंधेरे में रह गया है. क्या रतन लाल के घर भी स्थिति सामान्य हो गई है?
परिमल हमारे सहयोगी ने शाम सात बजे रिपोर्ट दी कि वहां हालात सामान्य हो गए हैं. सामान्य होने का मतलब यह नहीं है कि तनाव खत्म हो गया है. रविवार को जब तनाव की स्थिति पैदा हुई थी तभी सतर्क हो जाना चाहिए था. खुलेआम पत्थर चलें यह ठीक नहीं है. प्रदर्शनकारियों को भी यह देखना चाहिए कि जब हालात बिगड़े तो पीछे हट जाएं. जवाब में पत्थर चलाने से उनकी दावेदारी ही कम होती है. इससे उकसाने वालों को ही लाभ मिलता है. हालात सामान्य हैं लेकिन मेट्रो से तो लगता है कि अभी भी तनावपूर्ण हैं. जाफ़राबाद, मौजपुर-बाबरपुर, गोकुलपुरी, जौहरी एन्क्लेव और शिव विहार में आने जाने के गेट बंद हैं. वेलकम मेट्र स्टेशन तक ही ट्रेन जाएगी.
उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीट किया है कि तीस साल से दिल्ली में हूं. इतना डर कभी नहीं लगा. शर्मिंदा हूं. कौन लोग हैं जो दिल्ली में आग लगा रहे हैं. इसे बचाना होगा. ऐसे वक्त में रिपोर्टर के लिए बहुत मुश्किल होता है. उसकी सुरक्षा भी दांव पर होती है. लेकिन आप इस घटना को प्रेस के कई रिपोर्टरों के ट्वीट से भी समझ सकते हैं.
क्विंट की ऐश्वर्या एस अय्यर शाम पांच बजे ट्वीट करने लगती हैं. लिखती हैं कि अपनी आंखों से मौजपुर और जाफ़राबाद में पत्थरबाज़ी, आंसू गैस और लाठी चार्ज देखें. गाड़ियां जलाई गईं. दुकानें जलाईं गईं. घरों के अंदर पत्थर फेंके गए. कई लोग घायल हैं. ऐश्वर्या ने एक दूसरे ट्वीट में लिखा है कि हम मौजपुर में हिंसा की तस्वीर लेना चाहते थे. उस दौरान सड़क पार करने में नागरिकता विरोधी प्रदर्नकारियों ने सड़क पार करने में हमारी मदद की. जब मैं सामने वाली साइड से पत्थरबाज़ी रोकने के लिए चिल्लाती हूं तो नागरिकता समर्थक प्रदर्शनकारी मदद करता है और रास्ता पार है. तीसरे ट्वीट में ऐश्वर्या लिखती हैं कि वे जाफ़राबाद मौजपुर एरिया में हैं. ठीक वहां पर जहां हिंसा हो रही है. एक तरफ जाफ़राबाद से एंटी कानून प्रदर्शनकारी हैं. दूसरी तरफ मौजपुर से कानून के समर्थक प्रदर्शनकारी हैं. उसी दौरान ऐश्वर्या ये तस्वीर भी ट्वीट करती हैं और बता रही हैं कि जाफराबाद और मौजपुर के बीच जब ऑटो जलाया गया था उससे पहले की ये तस्वीर है जिसमें कानून विरोधी प्रदर्शनकारी गुलाब के फूल लेकर खड़े हैं. कह रहे हैं कि हम हिंसा में विश्वास नहीं रखते.
तनु श्री ट्विट करती हैं कि दोनों तरफ से पत्थरबाज़ी हो रही हैं. गाड़ियां और दुकानें जलाई जा रही हैं. मैंने इस तरह कि हिंसा राजधानी कभी नहीं देखी. मुझे यकीन नहीं हो रहा है.
शाहिल ने ट्वीट किया है कि मैंने खुद गिना है कि 37 गाड़ियां और संपत्तियों में आग लगाई गई है. पुलिस ने बताया है कि 37 पुलिस वालों को चोट लगी है, घायल हैं.
टाइम्स आफ इंडिया के जसजीव ट्वीट करते हैं खजूरी खास वज़ीराबाद मेन रोड पर एक दुकान में आग लगी है. बहुत पत्थरबाज़ी हो रही है और पुलिस वाले कुछ नहीं कर रहे हैं.
तमाम पत्रकारों के अकाउंट से पता चलता है कि हिंसा में दोनों तरफ के लोग शामिल हैं. दोनों तरफ का मतलब नागरिकता संशोधन कानून के विरोधी और समर्थक भी. यह दुखद है. योगेंद्र यादव और अपूर्वानंद ने प्रदर्शनकारियों से अपील की है कि वे अपना धरना हटा लें.
15 दिसंबर को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुई हिंसा को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक महत्वपूर्ण फैसला आया है. कोर्ट ने कहा है कि घायल हुए छह छात्रों को यूपी की सरकार मुआवज़ा दे. यूपी के पुलिस प्रमुख को कहा है कि सीसीटीवी फुटेज में पुलिस और पीएसी के जवान मोटरसाइकिल तोड़ते देखे गए हैं इनके खिलाफ कार्रवाई की जाए. जो पुलिस वाले छात्रों पर अनावश्यक लाठियां बरसा रहे हैं उनके खिलाफ भी कार्रवाई हो. कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सुझावों को लागू करें. यूनिवर्सिटी के वीसी से भी कहा है कि वे छात्रों के साथ संवाद की बेहतर व्यवस्था कायम कर और छात्रों के बीच भरोसा बनाए. अलीगढ़ के एक इलाके में इसी रविवार को हिंसा हो गई थी.