यह ख़बर 21 नवंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

मीडिया पर क्यों निकाला गुस्सा?

नई दिल्ली:

नमस्कार... मैं रवीश कुमार। इस हफ्ते रामपाल ने मीडिया को काफी थका दिया। रामपाल ने समाज को भी झकझोरा होगा। उसकी गिरफ्तारी के बाद कई तरह के सवाल हैं, जो निश्चित ही दूसरे मुद्दों की रजाई में कहीं छिप जाएंगे।

रामपाल जैसे बाबाओं का उद्गम स्थल भले ही मीडिया न हो, लेकिन उनके प्रचार प्रसार का माध्यम तो है ही। किसी नाटक के राजा की तरह सजे धजे ज्योतिषाचार्यों से लैस तमाम चैनल आपको पड़ोसी के घर में दही फेंक आने से लेकर पीला कुर्ता पहनकर सलाह देते रहे हैं। यह एक कांप्लेक्स है, जिसमें मंदिर, मस्जिद, दरगाह, मठ, डेरे, नेता, समाज, कॉरपोरेट और मीडिया सब शामिल हैं।

मीडिया से ही जुड़ा एक और सवाल है और वह है पुलिस का मीडिया पर हमला। कोई पहली बार नहीं हुआ, आखिरी बार के लिए भी नहीं हुआ। इस बार पत्रकारों पर हमला हुआ तो राजनीतिक कारणों से कई लोग सोशल मीडिया पर जायज़ भी ठहराने लगे। ऐसे लोग तय नहीं कर पाते कि लोकतंत्र में ज़रूरी क्या है। उनकी अपनी भड़ास या किसी माध्यम की स्वतंत्रता।

राजनीतिक कारण ही था कि राबर्ट वाड्रा की एक हरकत भर से समाज का एक बड़ा हिस्सा सक्रिय हो गया। ये वही हिस्सा मीडिया की आज़ादी की कसमें खाने लगा, जो मीडिया के आज़ाद स्पेस के सिकुड़ने की चर्चाओं पर चुप रहता है।

हम और आप अपने-अपने हिसाब से घटना चुनते हैं और उसके हिसाब से मीडिया की आज़ादी को लेकर दुख प्रकट करते हैं। हिसार में जो हुआ वह पहले की घटनाओं की तरह सामान्य नहीं हैं, लेकिन हमारा रवैया बिल्कुल खानापूर्ति वाला है। बिना कारण पुलिस ने पत्रकारों की पिटाई शुरू कर दी। पीछे मुड़कर उन्हें दौड़ाने लग गई। कैमरे छिन लिए और खेतों में ले जाकर मारा भी। यह वही पुलिस है जो पत्रकारों से फुर्सत पाती है तो बनारस में छात्र संघ के चुनाव की मांग कर रहे, इस छात्र को इस कदर पीटने लगती है। एक छात्र गिरा हुआ है और बारी बारी से कई पुलिसकर्मी आते हैं और पीटते जाते हैं।

क्या इस देश में धरना देना भी गुनाह है। और कोई दे रहा है तो उससे निपटने का यही अंतिम और सख्त तरीका है। दरअसल पुलिस की यह प्रवृत्ति इसलिए बनी हुई है, क्योंकि हम सहनशील होते जा रहे हैं। हम अपनी अपनी निष्ठाओं के हिसाब से शासक वर्ग को छूट देते हैं कि उसने ऐसा किया तो ठीक किया। बाद में यही छूट सरकारों की आदत में बदल जाती है। जो समाज अपने छात्रों, किसानों पर होने वाले लाठी चार्ज को लेकर बेचैन नहीं होता, वह अगर मीडिया पर लाठी बंदूक चलने से खामोश है, तो उसकी इस निरंतरता की तारीफ की जानी चाहिए। कम से कम वह दोहरेपन का शिकार तो नहीं है।

सवाल है कि मीडिया के लिए कोई स्पेस बचा है या नहीं। यह सवाल भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि आम लोगों के लिए मीडिया में कोई स्पेस बचा है या नहीं। बहस होनी चाहिए। जनदबाव से जब सरकारें बदल सकती हैं तो मीडिया का यह स्पेस क्यों नहीं बदल सकता। हमेशा यह सवाल किसी एक पत्रकार या संपादक का क्यों बनकर रह जाता है। यह लोगों के लिए सवाल क्यों नहीं है कि मीडिया का स्पेस कितना आजाद है। कई पत्रकार घायल हो गए।

यह भी सही है कि मीडिया भी इन सवालों को लेकर उतना निर्भीक है। इसके भीतर पैदा होने वाले सवाल इसी को चुप करा जाते हैं। कई बार तो पत्रकार अपने ही पेशेवेर जगत में इंसाफ के लिए लड़ता हुआ असनुसा रह जाता है। हिंसा की घटना में तमाम चैनलों के पत्रकार घायल हुए। एनडीटीवी के रिपोर्टर, कैमरामैन, इंजीनियर घायल हुए हैं। लाइव इंडिया के पत्रकार विकास चंद्रा की जान जाते जाते बची।

विकास चंद्रा की भी हिसार की घटना में बुरी तरह पिटाई हो गई थी। पिटाई के बाद उन्हें एंबुलेंस से ले जाया गया, लेकिन एंबुलेंस ने थोड़ी दूर के बाद बीच सड़क पर उतार दिया। अस्पताल तक लेकर नहीं गई। बाद में विकास ने अपने ओबी वैन के इंजीनियर को फोनकर बुलाया। उसके दफ्तर के लोगों ने हिसार के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया। इसके बाद विकास को दिल्ली के गंगाराम अस्तपाल में लाया गया, जहां उसे दो दिनों तक आईसीयू में रखा गया। सर में चोट लगने के कारण रक्त का थक्का जम गया है। शरीर में भी कई जगहों पर चोट आई है।

हमारे सहयोगी सिद्धार्थ पांडे अब ठीक हैं। सिद्धार्थ और मुकेश को भी काफी चोट लगी है। मुकेश सेंगर को तो जरा भी भनक नहीं थी कि ये होने वाला है। पुलिस महकमे को लंबे समय से कवर करते रहे हैं। सिद्दार्थ और मुकेश दोनों।

सिद्धार्थ तो उस दिन खुद को संभाल नहीं पाया। उसे दिल्ली के एम्स में भर्ती होना पड़ा। हमारे थ्री इंजीनियर अशोक मंडल को भी एम्स में भर्ती कराया गया। पुलिस ने अशोक के चेहरे पर काफी मारा है। कान पर इतने ज़ोर से मारे हैं कि कान में रक्त जम गया है। अश्विनी मेहरा, सचिन गुप्ता और फहाद तलाह ये तीनों कैमरामैन इस घटना में चोट खा गए। मुकेश सिंह सेंगर को भी काफी चोट लगी।

ये सभी हमारे साथ आज स्टुडियो में हैं। इन सबसे बात करेंगे लेकिन हिसार की घटना को कवर करते हुए ज़ी न्यूज़ के शिवम भट्ट की जान चली गई। 24 साल का शिवम सड़क दुघर्टना का शिकार हो गया। कैथल अंबाला सड़क पर उसकी कार दुघर्टनाग्रस्त हो गई। उसके दो साथी रोहित खन्ना और कैमरामैन जयवीर भी गंभीर रूप से घायल हैं। पुलिस का कहना है कि इनकी कार उस एंबुलेंस का पीछा कर रही थी, जिसमें रामपाल को ले जाया जा रहा था, लेकिन सड़क पर बिखरे बैल के कंकालों से टकरा कर कार पलट गई।

तब बड़ी संख्या में मीडिया की कई कारें एंबुलेंस का पीछा कर रही थीं। ऐसी ही एक दुघर्टना में मेरी कार ट्रक से टकरा गई थी। क्वालिस में कई और भी पत्रकार सवार थे। कई को गंभीर रूप से चोट लगी थी। हमारे पेशे की यह ज़रूरत कई बार जानलेवा साबित हो जाती है। काश शिवम भट्ट बच जाता।

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हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शिवम की मौत पर दुख जताया है और घायल पत्रकारों के जल्दी ठीक हो जाने की कामना की है। मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार ने आईसीयू में भर्ती विकास चंद्रा का वहां जाकर हाल चाल लिया था। मुख्यमंत्री ने शिवम भट्ट के परिवारवालों को पांच लाख रुपये देने का एलान किया है। घायल पत्रकारों के इलाज का सारा खर्चा हरियाणा सरकार उठाएगी। (प्राइम टाइम इंट्रो)