प्राइम टाइम इंट्रो : इस बजट में स्‍मार्ट सिटी का क्‍या हुआ?

प्राइम टाइम इंट्रो : इस बजट में स्‍मार्ट सिटी का क्‍या हुआ?

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

आम बजट की समीक्षा का दौर चल रहा है. अभी चलेगा. हर साल स्मार्ट सिटी की धूम रहती थी मगर इस बार के बजट भाषण में स्मार्ट सिटी को जगह नहीं मिली. मीडिया भी लगता है कि स्मार्ट सिटी से थक गया है. भाषण में तो नहीं था, प्रमुख योजनाओं के व्यय के खांचे में जाकर देखा तो पता चला कि मोदी सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना का बजट कम हुआ है. आम तौर पर स्मार्ट सिटी और अटल पुनरुद्धार और शहरी परिवर्तन अमृत योजना के तहत मिलाकर राशि बताई जाती है लेकिन आप अलग अलग भी देख सकते हैं. 2016-17 में यह राशि 9,559 करोड़ थी, 2017-18 के लिए 9000 करोड़ का ही प्रावधान है. यानी स्मार्ट सिटी का बजट साढ़े पांच सौ करोड़ कम हो गया है. अगर आप अमृत योजना और स्मार्ट सिटी के बजट को अलग अलग करके देखेंगे तो इस साल अमृत योजना का बजट 5000 करोड़ है, जबकि यह पिछले साल 4883 करोड़ था. यानी अमृत योजना के बजट में 117 करोड़ की मामूली वृद्धि हुई है. स्मार्ट सिटी का बजट 4000 करोड़ है जो पिछले बजट में 4675 करोड़ था. यानी स्मार्ट सिटी का बजट 675 करोड़ कम हुआ है.

अमृत योजना के तहत क्या प्रगति हुई है इसकी रिपोर्ट नहीं मिल सकी. भारत सरकार ने 21 जनवरी 2015 को ह्रदय योजना शुरू की थी. हम ह्रदय योजना की वेबसाइट पर गए. वेबसाइट पर योजना के बारे में जानकारी के कालम में लिखा है कि इस योजना को नंवबर 2018 तक पूरा होना है. लेकिन ऑपरेशनल गाइडलाइन्स में लिखा है कि लॉन्‍च किये जाने के बाद 27 महीने के भीतर पूरा होना है यानी इसे अप्रैल 2017 तक. इतना अंतर कैसे है, ये तो वेबसाइट डिपार्टमेंट ही बता सकता है. बहरहाल 500 करोड़ के बजट से मिशन मोड में काम करते हुए विरासत के 12 शहरों का कायाकल्प कर दिया जाना था. इसके लिए 2015-16 के बजट में इसके लिए 27.22 करोड़ दिया गया. 2016-17 के बजट में 200 करोड़ का प्रावधान था मगर संशोधित बजट में 150 करोड़ हो गया. 2017-18 के लिए भी 150 करोड़ का बजट दिया गया है.

बजट पत्र के हिसाब से 500 करोड़ में से 328 करोड़ ही दिया गया है लेकिन ह्रदय योजना की वेबसाइट के अनुसार सभी शहरों को 454 करोड़ की राशि दी जा चुकी है. लेकिन शहरों को दी जाने वाली राशि का प्रतिशत तो कुछ और कहता है. अगर करीब पूरी राशि दी जा चुकी है तो फिर अजमेर को सौ फीसदी, अमरावती को 93 फीसदी, वाराणसी को 85 फीसदी, मथुरा को 35 प्रतिशत, अमृतसर और पुरी को आठ प्रतिशत, गया को पंद्रह प्रतिशत की राशि मंज़ूर हुई है. कितनी प्रगति हुई है, वेबसाइट पर कोई जानकारी नहीं है. श्यामा प्रसाद रूर्बन मिशन का बजट 300 करोड़ से बढ़ाकर 1000 करोड़ किया गया है. इसके तहत 300 क्लस्टर बनने हैं.

पुलिस सुधार और आधुनिकीकरण का भी देख लेते हैं. पुलिस बलों के आधुनिकीकरण का बजट 2016-17 में 2235 करोड़ था. 2017-18 में 213 करोड़ कम कर दिया है. 2022 करोड़ हो गया है. पुलिस अधिसंरचना का बजट पिछले साल 3183 करोड़ था. इस साल के बजट में 1264 करोड़ की वृद्धि हुई है. 4,447 करोड़ है.

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा है कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 133 किमी सड़क हर दिन बन रही है. पिछले साल के बजट की प्रगति रिपोर्ट जब हमने देखी तो आंकड़े कुछ और कह रहे थे. नेशनल हाईवे के मामले में हमारी प्रगति वैसी शानदार नहीं है जैसी मीडिया बताता है. बजट प्रगति रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 में 25,000 किमी सड़क बनाने के लिए ठेका देने का महत्वकांक्षी लक्ष्य रखा था. सितंबर 2016 तक सिर्फ 3,969 किमी सड़क बनाने के ही ठेके दिये गए. अक्टूबर से लेकर जनवरी तक यानी चार महीने का आंकड़ा स्टेटस रिपोर्ट नहीं है. पिछले बजट में टारगेट था कि 10,000 किमी सड़क बनाने का काम पूरा कर लिया जाएगा. यह टारगेट पूरा नहीं हुआ है. बजट रिपोर्ट के अनुसार 2,979 किमी सड़क बनाने का काम पूरा हुआ.

सरकार ने कहा है कि वो अब प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत बनने वाली सड़क पर निगाह रखेगी. उसे सबसे पहले नेशनल हाईवे की मॉनिटरिंग करनी चाहिए. सरकार को हाईवे मंत्रालय से पूछना चाहिए कि सितंबर तक के ही आंकड़े क्यों हैं. दिसंबर तक के क्यों नहीं हैं. 2015-16 में 10,000 किमी सड़क बनाने का ठेका दिया लेकिन 6,029 किमी सड़क ही पूरी बन सकी. वित्त मंत्री ने बजट भाषण में कहा कि हाईवे और ग्रामीण सड़क बनाने के मामले में 2014-15 से लेकर इस साल तक 1,40,000 किमी लंबी सड़क बनी है. पिछले तीन साल में सबसे तेज़ प्रगति हुई है. वित्त मंत्री सिर्फ पिछले साल का ही हाल बता सकते थे मगर उन्होंने तीन साल के आंकड़ों को जोड़ दिया. अब आते हैं स्किल इंडिया पर जो एक बहुप्रचारित अभियान है. इसके बारे में इंप्लिमेंटेशन रिपोर्ट के पेज नंबर 17 पर कहा गया है कि प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत 2016-20 के बीच एक करोड़ लोगों को कौशल विकास की ट्रेनिंग का टारगेट है. कितने लोगों को दी गई है, कोई ज़िक्र नहीं है. अलबत्ता यह लिखा हुआ है कि कार्य प्रगति पर है. नेशनल बोर्ड फॉर स्किल डेवलपमेंट सर्टिफिकेशन नाम की एक संस्था बनी है. इसने और एक करोड़ लोगों को स्किल ट्रेनिंग देने का टारगेट रखा है. स्टेटस रिपोर्ट में कार्य प्रगति पर है यही लिखा है.

हर बजट को नौकरियां पैदा करने वाला बजट कहा जाता है. बजट इंप्लिमेंटेशन पेपर के पेज नंबर 18 पर गए. पिछले बजट में वित्त मंत्री ने 1000 करोड़ की एक नई योजना का ऐलान किया था कि फॉर्मल सेक्टर में जो भी कर्मचारी रखा जाएगा, उसके प्रोविडेंट फंड का हिस्सा सरकार देगी. ताकि कंपनियां लोगों को काम पर रखने के लिए प्रोत्साहित हों. क्या आपको पता है कि इस बारे में स्टेटस रिपोर्ट क्या कहती है. यही कि कार्य प्रगति पर है. पैराग्राफ 67 पर लिखा हुआ है कि सरकार ने 155 करोड़ रुपये ही ईपीएफ के अपने हिस्से के तौर पर जमा किये हैं. इसमें से भी तीस करोड़ रुपये टेक्सटाइल सेक्टर में दिये गए हैं. सरकार 155 करोड़ के हिसाब से ही बता देती कि कितने लोगों को नौकरी मिली है. ज़ाहिर है फॉर्मल सेक्टर में नौकरी पाने वालों की संख्या बहुत कम रही होगी. इसलिए सरकार ने 155 करोड़ बता दिया. नौकरी की संख्या नहीं बताई. 1000 करोड़ का बजट था. 155 करोड़ ही खर्च हुआ. रोज़गार का कोई ठोस आंकड़ा तो नहीं है मगर सरकार का यह आंकड़ा काफी कुछ तो कहता ही होगा.

यही नहीं प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन योजना का बजट भी लगातार कम होता जा रहा है. 2015-16 में इसके तहत 1281 करोड़ का प्रावधान था. 2016-17 में इसके तहत 1120 करोड़ का प्रावधान हुआ. 2017-18 के बजट में यह 10,24 करोड़ पर आ गया है. तीन साल में 257 करोड़ की कटौती हो चुकी है. प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन योजना (pmegp) की अपनी वेबसाइट पर है. हम जब इस साइट पर गए. इस पर आख़िरी डेटा 2014-15 का है जिसके मुताबिक उस साल इस योजना के तहत एक लाख 38,728 लोगों को रोज़गार के अवसर प्रदान किये गए. एक हज़ार करोड़ के बजट से एक लाख लोगों को रोज़गार का अवसर दिलाया गया. 18,000 से अधिक प्रोजेक्ट बने हैं, हर प्रोजेक्ट में कम से कम सात लोगों को काम मिला है. कम से कम इस योजना के बारे में 2015-16, 2016-17 के आंकड़े होने चाहिए. 2014-15 में पहले की तुलना में सबसे कम रोज़गार का सृजन हुआ था. यह योजना 2008-09 से चल रही है. प्रधानमंत्री के नाम से चलने वाली योजनाओ की वेबसाइट पर तो कम से कम लेटेस्ट जानकारी होनी चाहिए थी.

हो सकता है कि बजट पत्र पढ़ने में हमसे भी चूक हुई हो. मगर बजट पत्र पढ़ने का तरीका हमें बदल लेना चाहिए. मीडिया आप पर अलग तरह की प्राथमिकताएं थोपता है कि बजट कैसा रहा, जीडीपी कितनी रही. अव्वल तो बजट सस्ता महंगा के चक्कर में ही खत्म हो जाता था, मोदी सरकार इस चक्कर से निकल चुकी है, मीडिया अभी तक फंसा हुआ है. बजट पत्र पूरा पढ़िये. यहां आपको सवाल भी मिलेंगे तो जवाब भी. तभी आपको पता चलेगा कि खेलो इंडिया का बजट 118 करोड़ से बढ़कर 350 करोड़ हो गया है. खेलों में एक्सलेंस को प्रोत्साहित करने का बजट थोड़ा सा कम हो गया है. 365 करोड़ से 312 करोड़ हो गया है.

बजट में जो घोषणा हुई थी, उससे तो हम भी प्रभावित प्रतीत हो रहे थे मगर जब कोई दूसरा एंगल लेकर आ जाता है तो मेरी दिलचस्पी बढ़ जाती है. क्योंकि दूसरे एंगल के कारण ही पहला एंगल ज़्यादा बेहतर समझ आता है.


Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com