नमस्कार... मैं रवीश कुमार। इतना तो तय है कि हमारे कई नेता न तो संविधान ठीक से जानते हैं, न धर्म का विधान। लोकतंत्र की पूरी समझ कंफ्यूज़ होती जा रही है। कोई नेता को भगवान बता रहा है तो कोई विरोधी को राक्षस। ऐसे तुलसीदासों से कम से कम रामायण को तो बचाया ही जाए।
दिक्कत यह है कि पहली बार ऐसे बयान नहीं आए हैं, माफी होती है, फिर अगले बयान के लिए ये बयान रिकॉर्ड से निकाले जाते हैं ताकि विरोधी को चुप कराया जा सके। लेकिन ये सब दिल्ली में हुआ वह भी 21वीं सदी के भारत की राजधानी में। जिसके राजौरी विधानसभा की एक चुनावी सभा में केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा कि उस पर वह संसद के दोनों सदनों में माफी मांग चुकी हैं। वर्ना सुबह तक न्यूज़ चैनलों पर मंत्री जी अपने बयान की तारीफ कर रही थीं। उन्होंने जो गाली दी उसका ज़िक्र तो हो ही नहीं सकता, लेकिन अफसोस इस बात का भी है कि उन्होंने एक गाली के समानांतर राम के नाम का इस्तमाल किया। रामज़ादा कहा।
यह साफ नहीं कि उन्होंने माफी गाली देने पर मांगी है या पूरे भाषण से। क्योंकि उन्होंने तो यह भी कहा कि राम को मानने वालों की सरकार चाहिए। देश को मानने वालों की सरकार चाहिए। इस देश में वह चाहे मुसलमान हो या ईसाई वो सारी की सारी राम की संतानें हैं। जो ये नहीं मानते वो देश को भी नहीं मानते।
तो नागरिकता की परिभाषा संविधान से तय होगी या किसी साध्वी के ऐसे प्रलापों से। राम को मानने वालों की सरकार का क्या मतलब है? जो विपक्ष में है फिर वो किसे मानने वाला हैं? और यह तय कौन करेगा? क्या यह नागरिकता की संवैधानिक मान्यताओं का मज़ाक नहीं है।
एक ऐसे वक्त में जब कई राज्यों में बीजेपी की जीत हो रही है प्रधानमंत्री की लोकप्रियता शिखर पर है। ऐसे बयान क्या यूं ही निकल आ रहे हैं। क्या दिल्ली की जनता को भी ये भाषा पसंद आने लगी है।
वेंकैया ने कहा कि निरंजन ज्योति ग़रीब परिवार से आई हैं, उन्हें माफी के बाद छोड़ देना चाहिए। तो क्या यह छूट बीजेपी बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को भी उनके बयानों के लिए देने जा रही है। लेकिन गिरिराज सिंह तो पढ़े लिखे हैं। पहली बार केंद्र में मंत्री बने हैं, लेकिन बिहार में तो मंत्री रह चुके हैं। उन्होंने केजरीवाल की तुलना राक्षस मारीच से क्यों की? गिरिराज सिंह ने प्रधानमंत्री को राम कहा है।
देवकांत बरुआ ने इंदिरा इज़ इंडिया, इंडिया इज़ इंदिरा कहा था, तब बीजेपी ने इस बयान को ऐसे पकड़ा कि कभी छोड़ा ही नहीं। गिरिराज की यह तुलना क्या आध्यात्मिक है या सांसारिक जो राजनीति में रहने के लिए ज़रूरी होता है। क्या गिरिराज सिंह को नहीं मालूम कि खुद प्रधानमंत्री ने पांव छूने तक से मना किया है। लेकिन इन सबके बाद अगर ऐसे बयान आएंगे तो क्या आंच प्रधानमंत्री तक नहीं जाएगी।
आज प्रधानमंत्री का एक बयान भी आया है कि सांसद राष्ट्र के नाम संबोधन न करें। मैं इस पर समझौता नहीं करूंगा। किस संदर्भ में और किसे कहा इसे प्रवक्ता स्पष्ट करेंगे।
इन बयानों के संदर्भ में क्या दिल्ली का राजनीति में कोई नया पैटर्न नज़र आ रहा है। मात्र ज़ुबान की फ़िसलन है या कोई रणनीति। एक ही समय में दो मंत्री एक ही तरह की बातें क्यों कर रहे थे? क्या निरंजन ज्योति और गिरिराज सिंह दोनों के ही बयान फिसल रहे थे।
सोमवार सुबह पूर्वी दिल्ली के दिलशाद गार्डन के एक चर्च में आग लग गई। ईसाई समुदाय को लगता है कि किसी ने जानबूझ कर गड़बड़ी फैलाने का प्रयास किया है। वे प्रधानमंत्री से न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं। इस घटना की निंदा तो सबने की है। वहां पर बीजेपी के ही सांसद मनोज तिवारी पहले पहुंचे। बाद में अन्य दल के नेता भी।
अच्छी बात है कि किसी भी दल के नेता ने भड़काऊ बातें नहीं की हैं। लेकिन कहीं इन घटनाओं के बहाने व्यापक रूप से ऐसी बहस पैदा करने का प्रयास तो नहीं हैं, जिनके दम पर सांप्रदायिक भावुकता पैदा की जा सके। इस मामले की जांच हो रही है।
जब संसद में केंद्रीय राज्यमंत्री निरंजन ज्योति के बयान पर हंगामा हो रहा था, तब सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि मंत्री के ख़िलाफ़ एफआईआर होनी चाहिए। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के सांसद तापस पॉल के एक बयान का हवाला दिया कि माफी मांगने के बाद भी अदालत ने उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया था।
इसी साल जुलाई में तापस पाल ने कहा था कि अगर सीपीएम का कोई भी बंदा हमारी मां बहन को छेड़ेगा तो तापस पाल नहीं छोड़ेगा। वो रिवाल्वर से मार देगा। मैं अपने लड़कों को भेज कर उनका रेप करवाऊंगा। तब कोलकाता हाईकोर्ट ने कहा था कि इस बयान ने सभी हदें पार कर दी हैं। इनके खिलाफ एफआईआर होनी चाहिए। तापस पॉल के माफी मांगने के बाद भी कोर्ट ने कहा था कि किससे माफी मांगी गई है। जनता से या अपनी पार्टी से।
43 पन्नों के आदेश में अदालत ने कहा था कि अगर कानून बनाने वाला ही कानून तोड़ेगा और कानून का पालन कराने वाली एजेंसियां आंखें बंद कर लेंगी तो क्या इसे कोई सभ्य मुल्क बर्दाश्त करेगा। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने तापस की गिरफ्तारी की मांग की थी।
मंत्री ने माफी मांग ली है। गिरिराज सिंह ने माफी नहीं मांगी है। आप जनता की सेवा के लिए बेचैन हमारे नेताओं को क्या हो जाता है। कहीं आप जनता ही तो गलत नहीं हैं। ऐसा तो नहीं कि आप ही ऐसी ही भाषा पसंद करने लगे हैं। क्या पता आप भी वही सोचते हों जो आपके नेता कहते हैं। एक बार सोचियेगा प्राइम टाइम देखते देखते…
This Article is From Dec 02, 2014
राजनीति में कब तक चलेगी ये भाषा?
Ravish Kumar, Saad Bin Omer
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Updated:दिसंबर 02, 2014 21:17 pm IST
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Published On दिसंबर 02, 2014 21:13 pm IST
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Last Updated On दिसंबर 02, 2014 21:17 pm IST
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