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This Article is From Jul 29, 2015

याकूब मेमन की फांसी पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई अंतिम मुहर

Reported By Ravish Kumar
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  • Updated:
    जुलाई 29, 2015 21:23 pm IST
    • Published On जुलाई 29, 2015 21:18 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 29, 2015 21:23 pm IST
याकूब मेमन को फांसी दी जाएगी। दो दिनों के भीतर देश की सबसे बड़ी अदालत की दो प्रकार की बेंचों ने उसकी याचिका पर सुनवाई की है। पहले दो जजों की बेंच और फिर तीन जजों की बेंच के बाद तय पाया गया कि किसी प्रक्रिया की अनदेखी नहीं हुई है। याकूब मेमन का डेथ वारंट पूरी तरह से कानूनी है।

सबसे पहले 21 जुलाई को क्यूरेटिव पिटिशन खारिज हुई थी जिसे तीन जजों की बेंच ने सुना था। इसमें चीफ जस्टिस एच.एल. दत्तू, जस्टिस पी.एस. ठाकुर और जस्टिस अनिल आर दवे। 28 जुलाई को जस्टिस दवे और जस्टिस कुरियन जोसेफ की बेंच ने सुना, सहमति नहीं बनी तो 29 जुलाई को तीन जजों की बेंच ने सुना और अंतिम फैसला सुना दिया। इसमें जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस पी.सी. पंत और अमिताव रॉय शामिल थे।

जजों की संख्या देंखें तो आठ दिन में सात जजों ने याकूब मेमन की याचिकाओं पर विचार किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब याकूब की किसी भी याचिका पर सुनवाई नहीं होगी। 27 जुलाई 2007 को टाडा कोर्ट ने याकूब को फांसी की सज़ा सुनाई थी तब से लेकर आठ साल गुज़र गए। याकूब की तरफ से पैरवी करते हुए राजू रामचंद्रन ने कहा कि क्यूरेटिव याचिका की सुनवाई के वक्त सभी प्रक्रियाओं का पालन नहीं हुआ है इसलिए क्यूरेटिव पिटिशन पर फिर से सुनवाई होनी चाहिए और डेथ वारंट भी जल्दबाज़ी में जारी किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों ही आपत्तियों को खारिज कर दिया और कहा कि 30 अप्रैल 2015 को जारी हुआ डेथ वारंट भी पूरी तरह सही है। फैसला आते ही कैमरों की नज़र नागपुर में फैसले का इंतज़ार कर रहे याकूब के बड़े भाई सुलेमान पर गई।

होटल से निकल कर जेल जाने के रास्ते जब पूछा गया तो सुलेमान ने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया लेकिन वहां से लौटते वक्त कहा कि मुझे न्यायपालिका पर यकीन है और ऊपरवाले पर भी। सुलेमान भी बम धमाकों में आरोपी थे लेकिन बरी किए गए, लेकिन सुलेमान की पत्नी जेल में हैं। कुल मिलाकर मेमन परिवार के 4 सदस्यों को सज़ा सुनाई गई और तीन को बरी भी किया गया है। नेशनल लॉ युनिवर्सिटी, दिल्ली से जुड़े एक डेढ़ पेनाल्टी लिटिगेशन क्लिनिक की तरफ से वरिष्ठ वकील टी.आर. अंध्यार्जुना ने गुजारिश की कि फांसी को उम्र कैद में बदल दिया जाए मगर ये अपील भी खारिज हो गई। 30 जुलाई को याकूब मेमन का जन्मदिन है उसी दिन उसे फांसी दी जाएगी।

बंबई बम धमाके में 12 लोगों को सज़ा हुई थी। जिसमें एक कस्टम अधिकारी एस.एन थापा की कैंसर से मृत्यु हो गई। 10 लोगों को फांसी की सज़ा हुई जिसे सुप्रीम कोर्ट ने उम्र कैद में बदल दिया गया। याकूब 13वां शख्स है जिसे फांसी हुई है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ ही रहा था उसी बीच महाराष्ट्र के राज्यपाल ने दया याचिका ठुकराने का फैसला सुना दिया। ऐसा नहीं है कि याकूब दोषी नहीं था। 27 जुलाई 2007 को टाडा कोर्ट के जज जस्टिस पी.डी. कोडे ने
- आपराधिक साज़िश में फांसी की सज़ा सुनाई।
- एक आतंकवादी वारदात को मदद, बढ़ावा और सहायता देना - उम्र क़ैद।
- हथियार और गोला बारूद को ग़ैरक़ानूनी तौर पर रखा और भेजा - 14 साल का कठोर कारावास।
- लोगों की जान को ख़तरा पहुंचाने के मकसद से विस्फोटक रखना - दस साल का कठोर कारावास।

सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि मेमन की भूमिका मास्टरमाइंड और अन्य आरोपियों के बीच जानकारी पहुंचाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि उसे विस्फोटकों के बैग संभालने, उन्हें सुरक्षित रखने का भी दोषी पाया गया है। कोर्ट ने ये भी कहा कि मेमन धमाकों को अंजाम देने के लिए हुए हवाला के लेनदेन में भी सक्रिय था।

हम सब जानते हैं कि दुनिया के 130 देशों ने फांसी की सज़ा खत्म कर दी है। भारत में फांसी दी जाती है और इस लिहाज़ से याकूब मेमन के मामले में भी पूरी प्रक्रिया का पालन हुआ। फांसी की सज़ा के विरोधी भी मानते हैं कि वो अपराधी है। उसे जेल में रखा जाना चाहिए। फांसी का विरोध करने वालों को लेकर सोशल मीडिया में गद्दार तक कहा जा रहा है। फेसबुक और व्हाट्सऐप पर चल रही ऐसी एक अफवाह में मेरा भी नाम जोड़ दिया गया है। झूठे आधार पर अफवाह फैलाना कौन सा राष्ट्रवाद है। अफसोस इन्हें ढंग से हिन्दी भी नहीं आती वर्ना 40 लोगों में कुछ के नाम तो सही से लिखे ही जा सकते थे।

ऐसे लोगों को नहीं मालूम कि पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी फांसी की सज़ा के विरोधी थे।एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने कार्यकाल में एक भी दया याचिका खारिज नहीं की। सभी याचिकाओं को लंबित ही रखा जिसके कारण एक भी फांसी नहीं हुई। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने भी यही किया। किसी को फांसी नहीं दी। बीबीसी हिन्दी की साइट पर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है जिसके अनुसार 2004 से 2013 के बीच भारत में 1303 लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई गई। सिर्फ तीन को फांसी हुई। धनंजय चटर्जी, अजमल कसाब और अफ़ज़ल गुरु और अब याकूब मेमन को फांसी।

मुंबई में हुए बम धमाकों में 257 लोग मारे गए थे और करीब हज़ार लोग घायल हुए थे। उससे पहले मुंबई में भयंकर दंगे हुए थे। श्री कृष्णा आयोग ने माना था कि बंबई धमाकों का रिश्ता दंगों से भी था। दंगों में सभी समुदायों के 900 से अधिक लोग मारे गए लेकिन किसी को सज़ा नहीं मिली। लेकिन क्या इस उदाहरण से याकूब के मामले में जो हुआ उसे देखा जा सकता है। पर क्या राजनीतिक कारणों से फांसी की सज़ा बदली जाती है।

बब्बर खालसा इंटरनेशनल के बलवंत सिंह राजोआना और जगतार सिंह हवारा को पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के आरोप में फांसी दी गई थी। 31 मार्च 2012 को फांसी दी जानी थी लेकिन फांसी से पहले मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल राष्ट्रपति से मिलने चले गए। फांसी रोक दी गई। राजोआना की फांसी के विरोध में पंजाब बंद किया गया। इसके बाद भी अकाली दल और बीजेपी के संबंध मधुर ही रहे। बीजेपी ने ज़रूर फांसी का समर्थन किया था मगर राजनीतिक संबंध मौजूदा केंद्र सरकार में भी कायम हैं।

यह भी तथ्य है कि अकाली दल ही नहीं पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी राजोआना की फांसी का विरोध किया था और कहा था कि उम्र कैद में बदल दिया जाए। यहां तक कि बेअंत सिंह के परिवारवालों ने भी कहा था कि मृत्यु दंड को उम्र कैद में बदल दिया जाए। भुल्लर और राजोआना की फांसी को उम्र कैद में बदल दिया गया है।

राजोआना और भुल्लर की सज़ा को उम्र कैद से फांसी में बदलने का केंद्र का विचार है या नहीं लेकिन केंद्र ने राजीव गांधी के हत्यारों की सज़ा को फांसी से उम्र कैद में बदलने के फैसले के खिलाफ याचिका ज़रूर दायर की थी जो बुधवार को खारिज हो गई। अदालत के बाद अब राजनीतिक दायरा ही बचा है जहां बहस हो सकती है। बहस ही तो हो रही है।

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